TOP Biggest Indian Scams: तमाम उपायों के बावजूद क्यों नहीं खत्म हो रहा भ्रष्टाचार का दीमक, आइये जाने

TOP Biggest Indian Scams: ये भी जान लीजिए कि ये भ्रष्टाचार रूपी हिमशैल यानी आइसबर्ग की सिर्फ महीन चोटी भर है। पानी के नीचे छिपे हुए पूरे हिमशैल का आकार कितना विशाल और व्यापक होगा, इसका अंदाजा खुद आप ही लगा सकते हैं।

Written By :  Yogesh Mishra
Update:2022-07-12 20:06 IST

TOP Biggest Indian Scams (Photo Social Media)

TOP Biggest Indian Scams: नेशनल बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन कॉर्पोरेशन, पावर ग्रिड कॉर्पोरेशन, दिल्ली जल बोर्ड, बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट हैदराबाद का म्यूनिसिपल कमिश्नर, कर्नाटक का आईपीएस अफसर वगैरह। ये सब वो लोग हैं जो इसी महीने में भ्रष्टाचार के मामलों में सीबीआई या अन्य एजेंसियों द्वारा गिरफ्तार किये गए हैं या इनके खिलाफ मुकदमे दर्ज गए हैं। वैसे ये कोई नई बात नहीं है लेकिन हैरत की बात है कि नोटबन्दी जैसे तमाम उपायों के बावजूद भ्रष्टाचार का दीमक खत्म होना तो दूर, कम होने का नाम नहीं ले रहा है।

सरकारी कम्पनियों और निगमों के टॉप अधिकारियों से लेकर सिपाही और माली तक के यहां करोड़ों की संपत्तियां बरामद हो रही हैं, अलमारियों और बक्सों में ठूंस ठूंस कर भरी नकदी मिल रही है। ये भी जान लीजिए कि ये भ्रष्टाचार रूपी हिमशैल यानी आइसबर्ग की सिर्फ महीन चोटी भर है। पानी के नीचे छिपे हुए पूरे हिमशैल का आकार कितना विशाल और व्यापक होगा, इसका अंदाजा खुद आप ही लगा सकते हैं।

हाल में भ्रष्टाचार की कुछ घटनाएं देखिए (Recent Scams in india)

1. भारत में बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट को देख रही कंपनी नेशनल हाई स्पीड रेल कॉर्पोरेशन लिमिटेड के एमडी सतीश अग्निहोत्री को भ्रष्टाचार के मामले में बर्खास्त कर दिया गया है। अग्निहोत्री रेल विकास निगम लिमिटेड के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक भी थे।

2. केंद्रीय जांच ब्यूरो ने केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) के एक शीर्ष अधिकारी को एक ड्रग की अनुमति देने के लिए रिश्वत लेने के आरोप में गिरफ्तार किया है। इस घूसखोरी में भारत की शीर्ष दवा नियामक एजेंसी के कुछ अन्य अधिकारी भी शामिल थे।

3. सीबीआई ने घूसखोरी, घोटाले और भ्र्ष्टाचार के मामले में दिल्ली जल बोर्ड और नेशनल बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन कारपोरेशन के बड़े अफसरों के खिलाफ मामला दर्ज किया है और छापे में बड़ी रकम बरामद की है। ये अधिकारी हैं - एनबीसीसी के महाप्रबंधक डीके मित्तल और परियोजना कार्यकारी साधन कुमार। दिल्ली जल बोर्ड के चीफ इंजीनियर जगदीश कुमार अरोड़ा, एग्जीक्यूटिव इंजीनियर पीके गुप्ता और अन्य।

4. सीबीआई ने घूसखोरी के मामले में पावर ग्रिड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर बी एस झा और टाटा प्रोजेक्ट्स लिमिटेड के पांच वरिष्ठ अधिकारियों को गिरफ्तार किया है।

5. दिल्ली पुलिस ने दिल्ली की रोहिणी जेल के 81 अधिकारियों के खिलाफ घूसखोरी का मामला दर्ज किया है। ये लोग जेल में बन्द एक अपराधी को सुख सुविधाएं देने के लिए करोड़ों रुपए की घूस ले चुके थे।

6. पंजाब विजिलेंस ब्यूरो ने भारतीय वन सेवा के अधिकारी विशाल चौहान को भ्रष्टाचार के एक मामले में गिरफ्तार किया है। ये अधिकारी वन संरक्षक के रूप में तैनात थे।

7. कर्नाटक के एन्टी करप्शन ब्यूरो ने रिश्वत मामले में बेंगलुरु के पूर्व डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर को गिरफ्तार किया है। कर्नाटक में ही एक आईपीएस अफसर को सीआईडी ने पुलिस भर्ती में रिश्वत लेने के आरोप में गिरफ्तार किया है।

1985 की बात है। भारत के सबसे युवा प्रधानमंत्री राजीव गांधी सूखा प्रभावित ओडिशा के कालाहांडी जिले के दौरे पर थे। उन्होंने कहा था कि सरकार जब भी 1 रुपया खर्च करती है तो लोगों तक 15 पैसे ही पहुंच पाते हैं। यहां राजीव बीच के भ्रष्टाचार का जिक्र कर रहे थे। अपने उस भाषण में राजीव ने कहा था कि देश में बहुत भ्रष्टाचार है। उन्होंने कहा था कि भ्रष्टाचार ग्रासरूट लेवल पर है जिसे दिल्ली से बैठकर दूर नहीं किया जा सकता। नरेंद्र मोदी अपने प्रचार अभियान में और आज भी राजीव गांधी के इस बयान को एक कमजोर प्रधानमंत्री का आत्मालाप बताते हैं। नरेंद्र मोदी, मनमोहन सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ हुए आंदोलन की वजह से प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुँचने में कामयाब हुए। उन्होंने खुद को तो भ्रष्टाचार से दूर रखा। पर उनकी सरकारों ने तो हद ही कर रखी है।

यही वजह है कि वह देश में पसरे भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में कामयाब नहीं हो सके, हालाँकि उन्होंने कई अभिनव प्रयोग - डायरेक्ट बेनफिट ट्रांसफ़र व नोटबंदी आदि करके देख लिए हैं। तभी तो 2021 में जारी करेप्शन इंडेक्स में हम दुनिया में 85 वें पायदान पर हैं। जो 2020 से केवल एक पायदान ऊपर है। पर दोनों सालों में भारत को केवल 40-40 अंक ही मिले हैं। इससे साफ़ है कि पायदान बदलने को लेकर हम अपना सिर ऊँचा नहीं कर सकते। क्योंकि इस रिपोर्ट के मुताबिक़ पिछले एक दशक में भारत की स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है। सिर्फ तुलना के लिए बता दें कि 40 के स्कोर पर भारत के साथ मालदीव है। जबकि 39 के स्कोर पर मोरक्को, कोलम्बिया, इथियोपिया, तंजानिया जैसे देश हैं और एक पायदान ऊपर, 41 के स्कोर पर बेलारूस, त्रिनिदाद टोबैगो जैसे देश हैं। टॉप स्कोर वाले डेनमार्क, न्यूज़ीलैंड, फिनलैंड, सिंगापुर जैसे देशों की संगत में पहुंचना तो हमारे लिए एक सपना है।

दुनिया के 180 देशों के बीच फैले भ्रष्टाचार की स्थिति का पता लगाने का काम ट्रांस्पेरेंसी इटंरनेशनल नामक संस्था करती है। इसी के साथ 9 दिसंबर को अंतरराष्ट्रीय भ्रष्टाचार विरोधी दिवस मनाया जाता है। भारत में अलग से 1988 में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम लागू किया गया। फिर भी समाज के हर क्षेत्र में घुन की तरह यह लगा हुआ है। भ्रष्टाचार एक असाध्य व संक्रामक बीमारी की तरह फैल रहा है। खिलाड़ी स्पाट फिक्सिंग कर रहे हैं। शिक्षा के क्षेत्र में फ़र्ज़ी डिग्रियों का खेल खेला जा रहा है। न्यायपालिका में ज़मानत और स्टे को लेकर तमाम बातें चलती हैं। पर अवमानना के तले सब ढक कर रखा गया है।

कोई रक्षा सौदा अभी तक सामने नहीं आया है, जिसमें लेने देन के आरोप सामने न आये हों। नौकरियाँ देने दिलाने का गिरोह हर राज्य व हर नौकरी के लिए काम करता दिख जाता है। पर्चा आउट होना इसी का माध्यम हैं । सार्वजनिक वितरण प्रणाली व नरेगा योजना के भ्रष्टाचार ने गाँव में कितनी गहरी खाई खोदी है, देख कर कोई भी डर सकता है। चुनाव इतने मंहगे हो गये हैं कि काग़ज़ पर सरकारी अफ़सर व निर्वाचन आयोग भले न समझ पाता हो पर आम मतदाता जानता है कि सांसद का चुनाव लड़ने के लिए पाँच करोड़ रुपये व विधायक के लिए दो करोड़ रुपये तो पहले,दूसरे व तीसरे - तीनों स्थान पर रहने वाले उम्मीदवारों को खर्च करना पड़ता है। पैसा देकर राजनीतिक दलों के टिकट लेने की बात तो गये ज़माने की हो गयी। पर अब तो पैसे देकर उच्च सदन भी हासिल होने के क़िस्से सुने जा सकते हैं। पैसे लेकर संसद में सवाल पूछे जाते हैं।

सांसद व विधायक निधि विकास से ज़्यादा भ्रष्टाचार के लिए काम करती दिखती हैं। कभी पंचायत चुनाव के समय किसी गाँव में जाइये तो पता चल जायेगा कि इन चुनावों ने गाँव में केवल भ्रष्टाचार ही नहीं फैलाया बल्कि वैमनस्य बो दिया है। डॉक्टर अनावश्यक जाँचें लिखते हैं। नौकरशाही, नेता के गठजोड़ के बिना किसी घोटाले को अंजाम दिया ही नहीं जा सकता है। ये दोनों, कारपोरेट घरानों के लिए काम करते हैं। पर कारपोरेट भ्रष्टाचार को लोकपाल के दायरे से बाहर रखा गया है। बड़े घोटालों में पहले मीडिया घरानों का नाम फिर पत्रकारों का नाम भी आने लगा है। टू जी घोटाले का ऑडियो सुन लें सब साफ़ हो जायेगा। पहले मीडिया भ्रष्टाचार के सवाल उठाता था। अब वह भ्रष्टाचार करने वालों के हम कदम हैं।

21 दिसंबर,1963 में संसद में भ्रष्टाचार पर पहली बहस हुई थी। इसमें दिया गया लोहिया का भाषण आज भी प्रासंगिक है -"सिंहासन व व्यापार के बीच संबंध भारत में जितना दूषित, भ्रष्ट व बेईमान हो गया है, उतना दुनिया के इतिहास में कहीं नहीं हुआ है।"

डॉ राममनोहर लोहिया के इस कथ्य से जो लोग आज असहमति जताना चाहते हैं, केवल उनके लिए बता दें कि दुनिया का सबसे भ्रष्ट देश सूडान है। जो 11 अंकों के साथ 180 वें पायदान पर है। फिर सीरिया व सोमालिया का नाम आता है। इनके 13 अंक व 148 वें पायदान पर हैं। भ्रष्ट देशों में बांग्लादेश 26 अंक के साथ 147 वें पायदान पर हैं। पाकिस्तान 28 अंक लेकर 140 वें पायदान पर हैं। नेपाल 117 वें पायदान पर है। 37 अंकों के साथ श्रीलंका 102 वें पायदान पर हैं। डेनमार्क , फ़िनलैंड,न्यूज़ीलैंड तीनों पहले स्थान पर हैं। इन्हें 88 अंक मिले हैं, जबकि नार्वें, सिंगापुर व स्वीडन को 85 अंक के साथ चौथा स्थान मिला है। 84 अंकों के साथ स्विट्ज़रलैंड सातवें, 82 अंकों के साथ नीदरलैंड आठवें, 81 अंकों के साथ लक्जेमबर्ग नौंवे, 80 अंकों के साथ जर्मनी दसवाँ स्थान पर है। केवल 25 देशों में भ्रष्टाचार की स्थिति में सुधार आया है। पर 23 देशों में गिरावट भी दर्ज की गयी है। 131 देशों की स्थिति जस की तस है। एक देश का स्कोर 0 -100 के पैमाने पर सार्वजनिक क्षेत्र के भ्रष्टाचार का स्तर है, जहां 0 का अर्थ अत्यधिक भ्रष्ट और 100 का अर्थ बहुत ईमानदार है।

हमारे देश में सबसे पहले जय प्रकाश नारायण ने 1974 में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ने का बिगुल बजाया। फिर 1989 में विश्वनाथ प्रताप सिंह, रामदेव व अन्ना हज़ारे के 2014 के आंदोलन में भी जनता भ्रष्टाचार के ख़ात्मे के लिए कूदी थी। पर दिलचस्प देखिये जय प्रकाश नारायण ने गुजरात के जिस भ्रष्ट मुख्यमंत्री चिमन भाई पटेल के खिलाफ नव निर्माण आंदोलन शुरू किया था, गुजरात के 176 में से 160 विधायकों ने इस्तीफ़ा दे दिया था, वही चिमन भाई पटेल, जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से उपजी जनता पार्टी के भी नेता हो गये। मुलायम सिंह यादव व अजित सिंह के बीच जब मुख्यमंत्री पद के लिए होड़ चल रही थी, तब विश्वनाथ प्रताप सिंह चाहते थे कि अजित सिंह मुख्यमंत्री बनें। पर पर्यवेक्षक बन कर आये चिमन भाई पटेल ने मुलायम सिंह को मुख्यमंत्री बना दिया।

विश्वनाथ प्रताप सिंह ने राजीव गांधी पर बोफ़ोर्स दलाली की बात कहके उनकी मिस्टर क्लीन की इमेज बिगाड़ दी। अपनी सरकार बना ली। पर न तो दलाली के कोई दस्तावेज पेश कर पाये और न ही तोपों में कोई कमी साबित कर पाये। कारगिल में इन्हीं तोपों ने कमाल किया था। मतलब साफ़ है कि भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए जब भी जनता बाहर निकली, वह ठगी गयी। उसके साथ धोखा हुआ। यह भी एक कठोर सच्चाई है कि दुनिया का कोई देश भ्रष्टाचार मुक्त नहीं है। तभी तो ट्रांस्पेरेंसी इंटरनेशनल ने किसी देश को सौ में सौ नंबर नहीं दिया है।

भ्रष्टाचार से देश की पूँजी का रिसाव हो जाता है। मानव अधिकारों का हनन होता है। अंग्रेजों ने भारत के राजे महाराजे को भ्रष्ट करके ही देश को गुलाम बनाया था। कहा जाता है कि अंग्रेजों ने देश पर राज करके एक लाख करोड़ रुपये लूटे। पर स्विस बैंक के एक डायरेक्टर की मानें तो आज़ादी के चौसठवें साल में भारत का क़रीब 280 लाख करोड़ रुपया उनके यहाँ जमा था। यानी पचहत्तर साल में केवल स्विस बैंक में भारतीयों की इतनी काली कमाई जमा है। जिससे तीस साल तक भारत का बजट बिना किसी कर के बनाया जा सकता है। बाक़ी काला धन या बेनामी संपत्तियाँ अलग हैं।

भारत की अर्थव्यवस्था को बढ़ने से रोकने में भ्रष्टाचार को दोषी ठहराया जाता है। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल द्वारा 2005 में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि 62 फीसदी से अधिक भारतीयों ने किसी न किसी समय किसी सरकारी अधिकारी को काम करवाने के लिए रिश्वत दी थी। 2008 में एक अन्य रिपोर्ट से पता चला कि लगभग 50 फीसदी भारतीयों ने रिश्वत देने या सरकारी सेवाएं प्राप्त करने के लिए संपर्कों का उपयोग करने की बात स्वीकारी थी। आज तो शायद ही कोई आदमी हो जिसका साबका अदालत, नौकरशाही या विधायिका से पड़ता हो और उसे रिश्वत न देनी पड़ी हो। हर आदमी आय से अधिक खर्च करने के अभियान से जुड़ चुका हैं। सबसे ख़राब बात तो यह है कि लोगों में यह धारणा घर कर गयी है कि ईमानदारी से जीवन जिया ही नहीं जा सकता। आम जीवन की ज़रूरतें पूरी ही नहीं की जा सकती हैं।

बख्शीश, सेवा शुल्क और जुगाड़ - ये शब्द भारत से ही उपजे हैं। क्या कभी हम इन्हें अपनी डिक्शनरी से मिटा पाएंगे? क्या कभी हम भी डेनमार्क, फिनलैंड, सिंगापुर जैसे देशों की संगत में खुद को देख सकेंगे?

किंवदंतियों में हाइड्रा नामक अजगर रूपी जानवर का जिक्र है जिसका एक सिर कटता था तो दो और उग आते थे। हमारे यहां भ्रष्टाचार भी हाइड्रा की तरह है। क्या इसका कभी खात्मा हो पायेगा? कौन करेगा ये काम? ये सवाल अपने से पूछना होगा, इसका जवाब भी हर किसी को देना होगा। क्योंकि वो हाइड्रा हम सभी में भी छिपा हुआ है।

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