मुफ्त में चलाए ट्रेन: गुजरात HC ने प्रवासियों को राहत देने के लिए कही ये बात
वैश्विक कोरोना वायरस महामारी के संक्रमण को रोकने के लिए बीते 24 मार्च से लॉकडाउन का ऐलान केंद्र सरकार द्वारा किया गया था। ऐसे में अब चौथे चरण का लॉकडाउन चल रहा है।
नई दिल्ली: वैश्विक कोरोना वायरस महामारी के संक्रमण को रोकने के लिए बीते 24 मार्च से लॉकडाउन का ऐलान केंद्र सरकार द्वारा किया गया था। ऐसे में अब चौथे चरण का लॉकडाउन चल रहा है। तीसरे चरण के लॉकडाउन में प्रवासी मजदूरों और श्रमिकों को अपने घर और अपने गृह राज्य जाने में रियायते दी गई थी। प्रवासियों की सुविधा के लिए सरकार ने श्रमिक स्पेशल ट्रेन भी शुरू की गई थी। लेकिन इन सब के चलते रेलवे के किराए को लेकर राज्य और केंद्र सरकारों में विवाद हो गया। इसी सिलसिले में अब गुजरात सरकार ने बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा है कि गृह राज्य आने वाले प्रवासियों का किराया या तो राज्यों को वहन करना चाहिए या फिर रेलवे को ये सुविधा मुफ्त कर देनी चाहिए।
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अंतर-राज्य प्रवासी कामगार
आपको बता दें कि गुजरात हाईकोर्ट में प्रवासियों की परेशानियों को लेकर हुई सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने कहा था कि कई प्रवासी अपने दम पर राज्य में आए थे इसलिए अंतर-राज्य प्रवासी कामगार (रोजगार और सेवा की शर्तों का विनियमन) अधिनियम 1979 के प्रावधान इन पर लागू नहीं होते। इस अधिनियम के जरिए ऐसे प्रवासियों को विस्थापन भत्ता और यात्रा शुल्क नहीं दिया जा सकता।
साथ ही राज्य सरकार ने यह बात वकील आनंद याग्निक की ओर से डाली गई याचिकाओं के संबंध में कही। बताया जा रहा है कि गुजरात हाईकोर्ट ने प्रवासी मजदूरों के जुड़ी कई जनहित याचिका डाली गई हैं, जिस पर कोर्ट सुनाई कर रहा है।
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7,512 श्रमिक पंजीकृत
ऐसे में सरकार ने तर्क दिया है कि अंतरराज्यीय प्रवासी श्रमिक अधिनियम 1979 के प्रावधान उक्त अधिनियम के तहत पंजीकृत प्रवासी श्रमिकों के लिए लागू हैं। इस अधिनियम के तहत 7,512 श्रमिक पंजीकृत हैं।
तो ऐसे में उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर पूरे राज्य में लगभग 22.5 लाख प्रवासी कामगार हैं। उनमें से अधिकांश अपने दम पर राज्य में आए हैं।
यात्रा शुल्क देने मे असमर्थ
वहीं सरकार की रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसे प्रवासी कामगारों को अंतरराज्यीय प्रवासी श्रमिक अधिनियम, 1979 के अनुभाग 14 और 15 के तहत यात्रा भत्ता और विस्थापन भत्ता के भुगतान नहीं किया जा सकता।
सामने आई इस रिपोर्ट में ओडिशा, उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु की सरकारों का भी उल्लेख किया गया है। इसमें बताया गया है कि गुजरात सरकार की तरह ही अन्य राज्यों की सरकारें भी रेलवे का यात्रा शुल्क देने मे असमर्थ हैं।
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