Uddhav Thackeray Birthday: उद्धव के सियासी जीवन का सबसे मुश्किल दौर, जन्मदिन पर कार्यकर्ताओं से मांगा ये तोहफा
Uddhav Thackeray Birthday: उद्धव ठाकरे का जन्म 27 जुलाई 1960 को हुआ था और उन्होंने अपने पिता की छत्रछाया में राजनीति का ककहरा सीखा।
Uddhav Thackeray Birthday: शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) इन दिनों अपने सियासी जीवन के सबसे बड़े संकट का सामना कर रहे हैं। उनके अपने ही विधायकों ने सियासी मैदान में उन्हें इतनी बड़ी चोट दी है जिससे उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी से बेदखल होना पड़ा। मुख्यमंत्री की कुर्सी जाने के बाद अब उनके लिए पार्टी को बचाना सबसे बड़ी चुनौती हो गई है। शिवसेना पर प्रभुत्व स्थापित करने की जंग में शिंदे गुट चुनाव आयोग की चौखट पर पहुंच गया है और यही कारण है कि उद्धव लगातार पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं से संपर्क साधने में जुटे हुए हैं।
उद्धव का आज जन्मदिन (Uddhav Thackeray Birthday) है मगर उन्होंने कार्यकर्ताओं से कहा है कि मुझे अपने जन्मदिन पर पार्टी कार्यकर्ताओं से गुलदस्ता नहीं बल्कि यह भरोसा चाहिए कि वे पार्टी को बचाने की कोशिश में जुटे रहेंगे और अधिक से अधिक कार्यकर्ताओं को पार्टी से जोड़ने के लिए काम करेंगे। उन्होंने बागियों को सड़े पत्ते बताते हुए कहा कि इन पत्तों का झड़ जाना ही बेहतर है। तभी नए पत्ते उगेंगे।
पिता से सीखा सियासत का ककहरा
उद्धव ठाकरे का जन्म 27 जुलाई 1960 को हुआ था और उन्होंने अपने पिता की छत्रछाया में राजनीति का ककहरा सीखा। उनके पिता बाल ठाकरे ने शिवसेना की स्थापना की थी और इस पार्टी को महाराष्ट्र की सियासत में एक मजबूत संगठन की शक्ल देने में कामयाब रहे थे। हिंदुत्व की राजनीति करने के कारण उन्हें महाराष्ट्र में व्यापक समर्थन हासिल हुआ। पिता की मृत्यु के बाद उद्धव को शिवसेना की कमान मिली और वह भी भाजपा के साथ चुनावी गठजोड़ करके शिवसेना को मजबूत बनाने की मुहिम में जुटे रहे।
महाराष्ट्र के पिछले विधानसभा चुनाव के बाद मुख्यमंत्री पद को लेकर शिवसेना और भाजपा के बीच भारी खींचतान हुई। इसके बाद उद्धव ने कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर महाविकास अघाड़ी गठबंधन बनाया। यह गठबंधन महाराष्ट्र में सरकार बनाने में कामयाब रहा और उद्धव को मुख्यमंत्री पद की कमान मिली। उद्धव के मुख्यमंत्री बनने से शिवसैनिकों का वह सपना साकार हुआ जो वे रात-दिन देखा करते थे।
सीएम तो बने मगर मह॔गी पड़ी नाराजगी
2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। चुनावी सभाओं में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह समेत अन्य भाजपा नेताओं ने स्पष्ट तौर पर कहा था कि गठबंधन को सत्ता मिलने पर देवेंद्र फडणवीस ही राज्य के मुख्यमंत्री होंगे। उद्धव ने उस समय तो इन बयानों को लेकर कोई आपत्ति नहीं जताई मगर चुनाव परिणाम आने के बाद उन्होंने बड़ा सियासी खेल करते हुए भाजपा को भारी झटका दे दिया। हालांकि कांग्रेस और एनसीपी के साथ गठबंधन करने के कारण उन्हें कट्टर हिंदुत्व की विचारधारा से अलग जरूर हटना पड़ा।
कांग्रेस और एनसीपी के समर्थन से उद्धव करीब ढाई साल तक राज्य महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद पर रहने में जरूर कामयाब हुए मगर हिंदुत्व की विचारधारा से अलग होने के कारण उनके प्रति पार्टी में नाराजगी भी पैदा हो गई। शिवसेना में ही विधायकों का एक बड़ा गुट कांग्रेस और एनसीपी को छोड़कर भाजपा से गठजोड़ की वकालत करने लगा। शिवसेना के कार्यकर्ताओं में भी हिंदुत्व की राह से अलग हटने के कारण नाराजगी पैदा हो गई और आखिरकार विधायकों और कार्यकर्ताओं की नाराजगी ही उद्धव ठाकरे पर भारी पड़ गई।
बदला चुकाने में भाजपा कामयाब
2019 के चुनाव के बाद उद्धव की चाल से झटका खा चुकी भाजपा मौके का फायदा उठाने की ताक में जुटी हुई थी। भाजपा की शह पर एकनाथ शिंदे की अगुवाई में शिवसेना में बड़ी बगावत हो गई और 40 विधायकों ने अलग गुट बना लिया। भाजपा ने शिंदे गुट से हाथ मिलाने के साथ ही उद्धव को सत्ता से बेदखल कर दिया और शिंदे को समर्थन देकर मुख्यमंत्री बनाने में कामयाबी हासिल की।
भाजपा उद्धव से बदला लेने के लिए किस हद तक बेचैन थी, इसे इसी से समझा जा सकता है कि भाजपा राज में राज्य के मुख्यमंत्री रहने वाले देवेंद्र फडणवीस को पार्टी नेतृत्व के दबाव में डिप्टी सीएम के पद से ही संतोष करना पड़ा। हालांकि यह जरूर है कि भाजपा शिवसेना को तोड़ने और उद्धव को सत्ता से बेदखल करने में कामयाब रही।
अब शुरू हुई पार्टी पर कब्जे की जंग
अब शिंदे गुट और उद्धव ठाकरे के बीच शिवसेना पर प्रभुत्व कायम रखने की जंग शुरू हो चुकी है। शिंदे गुट इस मामले को लेकर चुनाव आयोग पहुंच चुका है। चुनाव आयोग ने दोनों गुटों को अपने-अपने पक्ष में दस्तावेज पेश करने को कहा है। दस्तावेज और आपत्तियां दाखिल करने के लिए 8 अगस्त तक का समय दिया गया है। इस बीच उद्धव ठाकरे ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करके चुनाव आयोग को कोई भी कार्रवाई करने से रोकने की मांग की है।
शिवसेना के 40 विधायकों के साथ ही 12 सांसदों ने भी अलग गुट बना लिया है और लोकसभा स्पीकर ने इस गुट को मान्यता भी दे दी है। ऐसे में उद्धव ठाकरे के आगे के सियासी राह काफी मुश्किल मानी जा रही है। इसी कारण करीब ढाई वर्षो के अपने मुख्यमंत्रिकाल में कार्यकर्ताओं से दूर रहने वाले उद्धव अब लगातार पार्टी कार्यकर्ताओं की बैठक को संबोधित करने और उनका समर्थन हासिल करने की कोशिश में जुट गए हैं।
जन्मदिन पर कार्यकर्ताओं से मांगा भरोसा
कार्यकर्ताओं की बैठक के दौरान उन्होंने कहा कि उन्हें अपने जन्मदिन पर कार्यकर्ताओं से कोई गुलदस्ता या तोहफा नहीं चाहिए बल्कि उन्हें शिवसेना को मजबूत बनाए रखने का भरोसा चाहिए। सत्ता से बेदखल होने के बाद उद्धव ठाकरे बागी गुट के साथ ही भाजपा पर भी बड़ा हमला करने में जुटे हुए हैं। उनका कहना है कि शिवसेना सही मायने में हिंदुत्व की राजनीति करती है जबकि भाजपा हिंदुत्व का नाटक रचकर लोगों का वोट हथियाने की कोशिश में जुटी हुई है। उन्होंने दावा किया कि अभी भी काफी संख्या में निष्ठावान कार्यकर्ता शिवसेना के साथ जुड़े हुए हैं और शिवसेना को खत्म करने की विरोधियों की साजिश कभी कामयाब नहीं होगी।
सियासी जीवन का सबसे बड़ा संकट
उन्होंने कहा कि पैसे की ताकत पर शिवसेना को खत्म करने का कुचक्र रचा जा रहा है। यह लड़ाई निष्ठा और धनबल के बीच में है जिसमें आखिरकार निष्ठावान शिवसेना कार्यकर्ताओं को जीत हासिल होगी। उन्होंने कहा कि बागी नेता सड़े हुए पत्तों की तरह है जिन्हें गिर ही जाना चाहिए। यह पेड़ के लिए अच्छा होता है क्योंकि इसी के बाद पेड़ में नए पत्ते उगते हैं।
उन्होंने कहा कि राज्य में जल्द चुनाव कराए जाने चाहिए ताकि यह पता लग सके कि लोगों का समर्थन किसके साथ है। 2003 में शिवसेना की कमान संभालने वाले उद्धव ठाकरे के लिए आगे की सियासी राह काफी कांटो भरी मानी जा रही है।
अपनों के बेगाने हो जाने के कारण उन्हें सत्ता से बेदखल हो जाना पड़ा है और अब उनके सामने शिवसेना का अस्तित्व बचाने की चुनौती है क्योंकि बागी गुट भाजपा के समर्थन से उद्धव को बड़ी चोट पहुंचाने की कोशिश में जुटा हुआ है। उद्धव अपने सियासी जीवन के सबसे बड़े संकट में फंसे हुए दिखाई दे रहे हैं और अब यह देखने वाली बात होगी कि इस चक्रव्यूह से निकलने में वे कहां तक कामयाब हो पाते हैं।