खत्म हो गया यूपी में जनता दल (यू) का वजूद?

राजनीतिक गलियारों में इन दिनों जनता दल यू के वजूद को लेकर लगातार सवाल उठ रहे हैं। कहा जा रहा है कि यूपी में जनता दल (यू ) का भविष्य क्या होगा? इसके पीछे सबसे बडा कारण संगठन का आपसी विवाद है। साथ ही पार्टी की स्थापना के बाद से यह पहला चुनाव है जिसमें पार्टी का कोई भी प्रत्याशी चुनाव मैदान में नहीं है।

Update:2019-04-24 20:37 IST

श्रीधर अग्निहोत्री

लखनऊ: राजनीतिक गलियारों में इन दिनों जनता दल यू के वजूद को लेकर लगातार सवाल उठ रहे हैं। कहा जा रहा है कि यूपी में जनता दल (यू ) का भविष्य क्या होगा? इसके पीछे सबसे बडा कारण संगठन का आपसी विवाद है। साथ ही पार्टी की स्थापना के बाद से यह पहला चुनाव है जिसमें पार्टी का कोई भी प्रत्याशी चुनाव मैदान में नहीं है और प्रदेश इकाई भंग की जा चुकी है।

2017 के विधानसभा चुनाव में भी विवादों के बीच जनता दल (यू) का राष्ट्रीय लोकदल और बीएस फोर से गठजोड़ तय हो गया, लेकिन बाद में आपसी बात बिगड़ गई। दल में विवाद कोई पहली बार नहीं हुआ है। इसके पहले 2012 के चुनाव में भी आपसी विवाद होने के कारण प्रत्याशियों की सूची काफी देर से जारी हुई थी और जद (यू) ने यह चुनाव भी अपने बूते पर लड़ा था। जिसका परिणाम यह रहा कि अधिकतर स्थानों पर इनके प्रत्याशी अपनी जमानत तक नहीं बचा सके थें, पार्टी की हालत बेहद दयनीय रही थी। केवल बांसडीह ऐसी विधानसभा सीट थी जहां पर जनता दल (यू) का प्रत्याशी पांचवे स्थान पर आ सका था। जबकि चुनाव में शरद यादव ने 135 जनसभाएं की थी लेकिन भाजपा से अलग होने का उसे बहुत अधिक नुकसान उठाना पडा था।

हाल ही में जनता दल (यू ) की एक इकाई के प्रदेश अध्यक्ष रमापति चौधरी प्रदेश प्रवक्ता सुभाष पाठक महासचिव चन्द्रपाल सिंह वर्मा प्रदेश महासचिव आरसी वर्मा आर सी वर्मा विजेन्द्र वर्मा मनोज सचान समेत कई नेता कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं।

यह भी पढ़ें...रामगंगा में डूबने से 2 बच्चों की मौत। बरेली के खजुआई गाँव की घटना नहाने गये थे दोनो बच्चे।

हालांकि हाल ही में राजनाथ सिंह के नामांकन में शामिल होने आए पार्टी के महासचिव केसी त्यागी ने बताया कि कुछ लोगों के किसी पार्टी में शामिल होने से पार्टी का वजूद खत्म थोड़े हो जाता। उन्होंने प्रदेश के वजूद के खत्म होने से साफ इंकार किया।

2012 का चुनाव जनता दल (यू) ने बिहार में गठबन्धन टूटने के बाद अपने दम 219 प्रत्याशी उतारे तो अधिकतर स्थानों पर उसे 100 से 1000 तक ही मत मिल सके। जनता दल (यू) को मात्र 0,36 प्रतिशत मत ही मिल सके थें। कहीं कहीं तो प्रत्याशियों की हालत निर्दलीय प्रत्याशियों से भी बदत्तर रही थी। आंवल में पार्टी उम्मीदवार नेपाल सिंह को को मात्र 191 मत ही मिले थे।

यह भी पढ़ें...मोदी को हराने करने के लिये अब तंत्र मंत्र का सहारा ले रही कांग्रेस: बीजेपी

पार्टी के आपसी विवाद के चलते ही गठबन्धन पर बात नहीं बन सकी थी। जनता दल (यू) 53 सीटों की मांग कर रहा था जबकि भाजपा नेतृत्व इसपर तैयार नहीं था। जबकि इसके पहले जनता दल (यू) भाजपा के साथ चुनाव लडा था तो भाजपा नेतृत्व ने उसे 16 सीटे दी थी। इस चुनाव में रारी सीट जनता दल (यू)के धनंजय सिंह ने जीती थी। जबकि 12 सीटों पर उसकी जमानत जब्त हुई थी। इसीतरह 2002 में भाजपा ने उसे 13 सीट दी थी तो जनता दल (यू) केवल एक सीट ही जीत सका था।

इस बार हो रहे लोकसभा चुनाव में जनता दल यू का वजूद खत्म हो चुका है। 2014 में भी उप्र में जद (यू) के एक उम्मीदवार ने किस्मत आजमाई। तब भदोही संसदीय सीट पर तेज बहादुर यादव मैदान में उतरे और चौथे स्थान पर रहे। 2009 में गठबंधन में जनता दल (यू) को उत्तर प्रदेश की बदायूं और सलेमपुर सीट मिली थी लेकिन, कोई सफलता नहीं मिली।

यह भी पढ़ें...‘दलित एवं आदिवासी विरोधी’ मोदी सरकार को उखाड़ फेकेगी जनता: कांग्रेस

देश में जब 2004 में अटल विहारी वाजपेयी की सरकार थी तब जार्ज फर्नानीज शरद यादव ओर नीतिश कुमार के समय में हुए लोकसभा चुनाव में राजग ने जद (यू) को आंवला, मेरठ और सलेमपुर सीट दी थी। इस चुनाव में जनता दल यू के आंवला सीट पर पार्टी के कुंवर सर्वराज सिंह चुनाव जीते थे। अब तो जनता दल (यू) से अलग होकर शरद यादव ने भी अलग राह पकड़ते हुए लोकतांत्रिक जनता दल बना लिया है।

Tags:    

Similar News