Uttarakhand Tunnel Accident: संकट में मजदूर, अब पांच तरफ से ड्रिलिंग, मलबा धसकने का खतरा

Uttarakhand Tunnel Accident: सुरंग के प्रवेश द्वार से लेकर 50 मीटर की गहराई तक मलबा ढहा है जिससे रास्ता पूरी तरह ब्लाक हो चुका है। मलबे के दूसरे छोर पर मजदूर फंसे हुए हैं।

Written By :  Neel Mani Lal
Update: 2023-11-19 09:37 GMT

Uttarakhand tunnel accident  (photo: social media )

Uttarakhand Tunnel Accident: उत्तराखंड में भूस्खलन के कारण एक निर्माणाधीन सुरंग का प्रवेश द्वार ध्वस्त हो जाने से लगभग एक सप्ताह से 41 मजदूर उसमें फंसे हुए हैं। 12 नवंबर के बाद से बचाव टीमों ने 40 मीटर की रुकावट के बीच में से रास्ता खोलने के लिए कई प्रयास किये हैं लेकिन अब तक कोई सफलता नहीं मिली है। मजदूरों को बचाने के लिए विदेशी विशेषज्ञों की भी मदद ली जा रही है जो मौके पर पहुंच गए हैं।

पांच तरह के प्लान

सुरंग के प्रवेश द्वार से लेकर 50 मीटर की गहराई तक मलबा ढहा है जिससे रास्ता पूरी तरह ब्लाक हो चुका है। मलबे के दूसरे छोर पर मजदूर फंसे हुए हैं। किसी तरह मलबे के भीतर से एक पतला पाइप डाला गया है जिसके जरिये मजदूरों तक खाना-पानी-दवा पहुंचाई जा रही है। इसके अलावा एक पाइप से ऑक्सीजन सप्लाई की जा रही है। आगे से मलबे के बीच से होकर चौड़ा पाइप डालने का प्रयास अभी तक नाकाम रहा है सो अब कई तरफ से पाइप डालने का प्लान है। अब पांच प्लान पर एक साथ काम शुरू होगा जिसमें सुरंग के सिलक्यारा छोर, बड़कोट छोर और सुरंग के ऊपर तथा दाएं और बाएं से ड्रिलिंग कर रास्ता तैयार किया जाएगा जिससे अंदर फंसे सभी मजदूरों को बचाया जा सके।

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आल वेदर चार धाम हाई वे

दरअसल साढ़े चार किलोमीटर लम्बी यह सुरंग चार धाम हाईवे प्रोग्राम का हिस्सा है जो लगभग 900 किलोमीटर तक का नेटवर्क होगा जिससे स्थानीय मंदिरों में आने वाले पर्यटकों और तीर्थयात्रियों की यात्रा तेज हो जाएगी।

लेकिन यह दुर्घटना उत्तराखंड में पिछले कुछ वर्षों में हुई आपदाओं की सीरीज में नवीनतम है, जो भूवैज्ञानिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र में निर्माण के खतरों को उजागर करती है। आलोचकों का कहना है कि पूरे क्षेत्र में बन रहे बांधों, सड़कों और अन्य बड़े बुनियादी ढांचे के कारण ऐसी घटनाएं बार बार होंगी और गंभीरता बढ़ती जायेगी।

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अब तक क्या क्या हुआ

सुरंग में फंसे 41 श्रमिकों तक पहुंचने की कोशिश में अब पहाड़ की चोटी से नीचे की तरफ ड्रिल करने का प्लान बनाया गया है और इसमें सेना की मदद ली गयी है। ड्रिलिंग से चट्टानों और मलबे को तोड़ा जाएगा। मजदूरों तक पहुँचने के लिए एक चौड़ा पाइप डालने के लिए ड्रिल का उपयोग किया जा रहा है। आपदा प्रबंधन अधिकारी देवेन्द्र पटवाल के मुताबिक अब तक मलबे के बीच 24 मीटर तक खुदाई की गयी है, लेकिन मजदूरों को बाहर निकालने के लिए 60 मीटर तक की जरूरत होगी। पहाड़ी की चोटी से ड्रिल करने के लिए नई मशीन का उपयोग किया जा रहा है। लेकिन ये तरीका कम से कम चार या पांच दिन का समय और लेगा।

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मजदूरों को खाना पानी

- कंट्रोल रूम के अधिकारियों के मुताबिक सुरंग के अंदर स्थापित पाइप के जरिये मजदूरों को मेवे, भुने हुए चने, पॉपकॉर्न और अन्य जरूरी सामान पहुँचाया जा रहा है।

- ऑक्सीजन की सप्लाई एक अलग पाइप के जरिये की जा रही है।

- डॉक्टर, अधिकारी और रिश्तेदार लगातार मजदूरों के संपर्क में हैं।

- आपदा स्थल पर दो डॉक्टर मजदूरों की शारीरिक और मानसिक भलाई सुनिश्चित कर रहे हैं।

- चिंता और घबराहट का इलाज करने के लिए मजदूरों को विटामिन और अन्य दवाएं प्रदान की गईं हैं।


200 आपदा कर्मी जुटे

मजदूरों को निकालने की कोशिश में लगभग 200 आपदा राहत कर्मी लगे हुए हैं। बचाव अभियान में ड्रिलिंग मशीनों और एक्सवेटरों का इस्तेमाल किया जा रहा है। योजना है कि मलबे के बीच में से 2.6 फुट चौड़े स्टील पाइपों को अन्दर धकेला जाए जिससे रेंग कर मजदूर बाहर आ जाएँ।

वाइब्रेशन से भी दिक्कत

एक दिक्कत ये भी है कि ड्रिलिंग मशीन जब चलती हैं तो काफी ज्यादा वाइब्रेशन होता है जिसके चलते और भी मलबा गिर सकता है। इसीलिए ये काम भी रोकना पड़ा था। इसके अल्वा 18 नवम्बर को एक ड्रिल मशीन टूट भी गयी जिसके बाद नई मशीन मंगवाई गयी है। मशीन की ड्रिलिंग क्षमता 5 मीटर प्रति घंटे तक है और यह मलबे को साफ करने के लिए 3.2 फुट व्यास वाले पाइप से लैस है।


ऊपर से नीचे ड्रिलिंग

मजदूरों को निकालने के लिए कई तरह की कोशिशें की जा रहीं है। इसमें सामने से ड्रिलिंग, साइड से ड्रिलिंग और ऊपर से नीचे की तरफ ड्रिलिंग शामिल है। लेकिन सभी में कुछ न कुछ समस्या है। जैसे कि, पहाड़ी की चोटी से लंबवत ड्रिलिंग करने से भी अतिरिक्त मलबा आ सकता है। इसके लिए कुछ नई तकनीक का प्रयोग करने का अनुमान है। विशेषज्ञों को उम्मीद है कि इस विधि से मलबा कम गिरेगा। एक चुनौती यह भी है कि ऊपर से ड्रिलिंग करने का मतलब है कि फंसे हुए श्रमिकों तक पहुँचने के लिए उन्हें 103 मीटर की खुदाई करने की आवश्यकता होगी। सामने से ड्रिलिंग में यह दोगुना है।


अमेरिकन मशीन

मलबे को खोदने की प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए तीन दिन से एक अमेरिकन ड्रिलिंग मशीन का संचालन किया जा रहा है। ये मशीन एक स्क्रू या बरमा की तरह ड्रिल करती है। पहले उम्मीद की जा रहे थी कि अमेरिकी ऑगर ड्रिल लगभग 12 से 15 घंटों में 70 मीटर चट्टान को काट देगी लेकिन ऐसा न हो सका। ऑगर ड्रिल मशीन की तीन खेप दिल्ली से वायु सेना द्वारा लाई गयी थी।

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