Jharkhand Political Crisis: महाराष्ट्र के बाद अब झारखंड का नंबर, झामुमो और कांग्रेस के रिश्तों में बढ़ रही खटास

Jharkhand Political Crisis: महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की गठबंधन सरकार गिरने के बाद अब सभी की निगाहें झारखंड पर टिकी हैं। झामुमो और कांग्रेस के बीच रिश्तों में खटास की खबर आ रही है।

Written By :  Anshuman Tiwari
Update:2022-07-11 16:40 IST

Hemant Soren (photo: social media )

Jharkhand Political Crisis: महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) की गठबंधन सरकार गिरने के बाद अब सभी की निगाहें झारखंड (Jharkhand) पर टिकी हैं। झारखंड में हेमंत सोरेन (Hemant Soren in Jharkhand) की अगुवाई में सत्तारूढ़ सरकार पर भी संकट के बादल गहराते जा रहे हैं। राज्यसभा चुनाव के समय ही झामुमो और कांग्रेस के रिश्तों में कड़वाहट पैदा हो गई थी और यह लगातार बढ़ती जा रही है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (Chief Minister Hemant Soren) और उनके करीबी जांच एजेंसियों के निशाने पर हैं और मजे की बात यह है कि कांग्रेस और राजद की ओर से सोरन के समर्थन में अभी तक कोई बयान नहीं दिया गया है।

राष्ट्रपति चुनाव (presidential election 2022) को लेकर झामुमो और कांग्रेस के रिश्तों में  दरार लगातार बढ़ती जा रही है। भाजपा ने राष्ट्रपति चुनाव में द्रौपदी मुर्मू को उम्मीदवार बनाकर सोरेन सरकार की मुश्किलें और बढ़ा दी हैं। आदिवासी उम्मीदवार होने के कारण मुर्मू का विरोध करना सोरेन के लिए मुमकिन नहीं दिखता। दूसरी ओर कांग्रेस खुलकर विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा के समर्थन में जुटी हुई है। इस कारण माना जा रहा है कि राष्ट्रपति चुनाव के बाद सोरेन सरकार पर संकट के बादल और गहरा सकते हैं।

राज्यसभा चुनाव में ही पैदा हो गई थी खटास 

हालांकि गठबंधन के नेता सरकार पर संकट की आशंकाओं को खारिज कर रहे हैं मगर सियासी जानकारों के मुताबिक ढाई साल पुराने सोरेन सरकार के लिए आने वाले दिन मुश्किलों भरे हो सकते हैं। वैसे कांग्रेस और राजद के नेता झारखंड के मौजूदा सियासी हालात पर खुलकर बोलने से बचने की कोशिश करते दिख रहे हैं। अनौपचारिक बातचीत के दौरान दोनों दलों के नेता मौजूदा सियासी हालात पर चिंता जरूर जताते हैं।

दरअसल झामुमो और कांग्रेस (JMM and Congress) के बीच रिश्तों में खटास राज्यसभा चुनाव के समय ही पैदा गई थी। राज्यसभा चुनाव के दौरान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कांग्रेस से चर्चा किए बिना एकतरफा अपने उम्मीदवार की घोषणा कर दी थी। इसे लेकर कांग्रेस नेताओं ने तीखा विरोध भी जताया था। हालांकि सोरेन का दावा था कि उन्होंने कांग्रेस हाईकमान से चर्चा के बाद ही अपने उम्मीदवार की घोषणा की है। 

मुर्मू की उम्मीदवारी से बढ़ा संकट 

सोरेन के लिए सबसे बड़ा संकट एनडीए ने द्रौपदी मुर्मू को उम्मीदवार बनाकर खड़ा कर दिया है। झारखंड में आदिवासियों के बड़ी आबादी है और झामुमो अपने गठन के बाद से ही आदिवासियों के नाम पर राजनीति करती रही है। मुर्मू झारखंड के राज्यपाल की कमान भी संभाल चुकी हैं। मुर्मू के सोरेन परिवार से पहले से ही अच्छे रिश्ते रहे हैं ऐसे में मुर्मू का विरोध करके झामुमो अपने ऊपर आदिवासी उम्मीदवार के विरोध का ठप्पा नहीं लगवाना चाहती। हालांकि सोरेन ने अभी तक खुलकर कुछ नहीं कहा है मगर झामुमो के मुर्मू का समर्थन करने की बात तय मानी जा रही है। 

कांग्रेस ने पूछा सोरेन से सवाल 

दूसरी ओर कांग्रेस की ओर से विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा (Yashwant Sinha) के समर्थन का दबाव बनाया जा रहा है। यशवंत सिन्हा के नामांकन के समय कांग्रेस नेता राहुल गांधी खुद मौजूद थे। कांग्रेस की ओर से 10 साल पहले 2012 का उदाहरण भी दिया जा रहा है। कांग्रेस का कहना है कि उस समय राज्य में झामुमो और भाजपा की सरकार थी।

भाजपा की ओर से आदिवासी नेता पीए संगमा को चुनाव मैदान में उतारा गया था मगर इसके बावजूद झामुमो ने यूपीए के उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी का समर्थन किया था। कांग्रेस का सवाल है कि जब झामुमो 2012 में संगमा का विरोध कर सकती थी तो इस बार मुर्मू के खिलाफ यशवंत सिन्हा का समर्थन क्यों नहीं कर सकती? दूसरी ओर कांग्रेस नेताओं के बढ़ते दबाव के बावजूद इस बार सोरेन मुर्मू का खिलाफत करने के लिए तैयार नहीं दिख रहे हैं।

पहले भी टूट चुका है गठबंधन 

वैसे यदि प्रदेश के राजनीतिक इतिहास को देखा जाए तो 2012 के राष्ट्रपति चुनाव के बाद यहां भाजपा और झामुमो की राहें अलग हो गई थीं। राष्ट्रपति चुनाव के कुछ महीनों बाद ही दोनों पार्टियों का गठबंधन टूट गया था और इसके लिए राष्ट्रपति चुनाव को बड़ा कारण माना गया था। झारखंड के सियासी हलकों में यह सवाल तैर रहा है कि क्या 2012 की तरह एक बार फिर राज्य में सत्तारूढ़ गठबंधन टूट जाएगा?

मजे की बात यह है कि राष्ट्रपति चुनाव के बाद ऐसा ही नजारा एक बार बिहार में भी दिखा था। 2017 के राष्ट्रपति चुनाव में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Bihar Chief Minister Nitish Kumar) ने एनडीए के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद का समर्थन किया था। नीतीश ने राजद के साथ सरकार में होने के बावजूद कोविंद को समर्थन देने की घोषणा की थी। कुछ समय बाद नीतीश खुद महागठबंधन से अलग हो गए थे और उन्होंने भाजपा के साथ मिलकर राज्य में सरकार बनाई थी। अब कुछ ऐसी ही राजनीतिक स्थितियां झारखंड में भी बनती दिख रही हैं। राष्ट्रपति चुनाव के बाद राज्य के सियासी हालात में भी बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है। 

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