Mahila Naga Sadhu: क्या महिला नागा साधु धारण करती हैं वस्त्र? जानें पूरा नियम

Mahila Naga Sadhu: दीक्षा के समय महिला नागा साधुओं को स्वयं का पिंडदान करना होता है। खुद के पिंडदान से उन्हें यह साबित करना होता है कि उन्हें इस शरीर का कोई मोह नहीं है और न हो उन्हें कोई सांसारिक लाभ है।;

Update:2025-01-13 11:03 IST

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Mahila Naga Sadhu: प्रयागराज में आज से आस्था के संगम के महापर्व महाकुंभ की शुरूआत हो गयी। महाकुंभ के अवसर ‘अमृत स्नान’ करने के लिए त्रिवेणी घाट पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी हुई है। इस दौरान कई अखाड़ों के संत भी महाकुंभ पहुंच रहे हैं। माना जाता है कि महाकुंभ के दौरान पवित्र त्रिवेणी पर डुबकी लगाने से सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। महाकुंभ में लाखों की संख्या में नागा साधु भी पहुंचते हैं। इनमें महिला नागा साधु भी शामिल होती हैं। नागा साधुओं के बारे में तो सभी जानते हैं। लेकिन आप महिला नागा साधुओं के बारे में कुछ भी जानते हैं। अगर नहीं तो इस लेख के जरिए जानिए रोचक तथ्य।

दो तरह के होते हैं नागा साधु

नागा साधु दो तरह के होते हैं पहले वस्त्रधारी और दूसरे दिगंबर। दिगंबर नागा वह होते है जोकि वस्त्र का त्याग कर देते हैं। इसी तरह जब महिलाएं भी संन्यासी होने के लिए दीक्षा लेती है तो उन्हें भी नागा बनाया जाता है। लेकिन महिला नागा साधु वस्त्र धारण करती हैं। उन्हें केवल एक ही गेरूएं रंग के वस्त्र पहनने की अनुमति होती है। इसके साथ ही महिला नागा साधु माथे पर तिलक लगाती हैं। महिला नागा साधु जो वस्त्र धारण करती है वह बिना सिला हुआ होता है। जिसे गंती कहते हैं।


नागा साधु की दीक्षा लेने से पहले किसी भी महिला को छह से 12 वर्ष तक ब्रह्मचर्य धर्म का पालन करना पड़ता है। जब महिला इस धर्म का अनुपाल करती है तब उन्हें नागा साधु बनने की अनुमति मिलती है। महिला नागा साधु संगम तट पर भोर में ही स्नान कर लेती हैं। इसके बाद वह साधना शुरू करती है। महिला नागा साधु प्रातःकाल के समय भगवान षिव की आराधना करती हैं और सायं काल भगवान दत्तात्रेय की आराधना करती हैं।

जिंदा रहते करना होता है खुद का पिंडदान

दीक्षा के समय महिला नागा साधुओं को स्वयं का पिंडदान करना होता है और मुंडन भी कराना पड़ता है। खुद के पिंडदान से उन्हें यह साबित करना होता है कि उन्हें इस शरीर का कोई मोह नहीं है और न हो उन्हें कोई सांसारिक लाभ है। वह पूरी तरह से ईश्वर की भक्ति में खुद को समर्पित कर चुकी हैं। महिला नागा साधुओं को सन्यासी बनाने की पूरी प्रकिया सर्वोच्च पदाधिकारी आचार्य महामंडलेश्वर कराते हैं। किसी भी अखाड़े की महिला नागा साधुओं को अवधूतानी, माई या नागिन कहकर बुलाया जाता है। लेकिन माई या नागिनों का अखाड़े के किसी प्रमुख पद पर चयन नहीं होता है।

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