Mahakumbh 2025: प्रयागराज महाकुंभ में पंचकोसीय परिक्रमा की शुरुआत, श्री पंच दशनाम जूना अखाड़े ने की अगुवाई

Mahakumbh 2025: महाकुम्भ में पंचदशनाम जूना अखाड़ा ने अपनी परंपरा का निर्वाह करते हुए पांच दिवसीय पंचकोसीय परिक्रमा की शुरुआत की। जूना अखाड़े के अंतरराष्ट्रीय संरक्षक महंत हरि गिरी के नेत़ृत्व में अखाड़े के साधु, संतों ने गंगा पूजन कर पंच कोसीय परिक्रमा की शुरुआत की।;

Report :  Dinesh Singh
Update:2025-01-20 23:00 IST

Mahakumbh 2025 ( Photo- Social Media )

Mahakumbh 2025: प्रयागराज को तीर्थो का राजा कहा गया है । पांच योजन और बीस कोस में विस्तृत इस प्रयाग मंडल में बहुत से ऐसे तीर्थ हैं कुम्भ में जिनकी परिक्रमा और दर्शन किये बिना कुम्भ का पुण्य फल प्राप्त नहीं होता है । कुम्भ में प्रयाग के इन तीर्थो की परिक्रमा को आगे बढ़ाते हुए पंच कोसीय परिक्रमा की शुरुआत हुई ।

जूना अखाड़े की अगुवाई में गंगा पूजन से शुरुआत

महाकुम्भ में पंचदशनाम जूना अखाड़ा ने अपनी परंपरा का निर्वाह करते हुए पांच दिवसीय पंचकोसीय परिक्रमा की शुरुआत की। जूना अखाड़े के अंतरराष्ट्रीय संरक्षक महंत हरि गिरी के नेत़ृत्व में अखाड़े के साधु, संतों ने गंगा पूजन कर पंच कोसीय परिक्रमा की शुरुआत की। ये पंच कोसीय परिक्रमा पूरे पांच दिन चल कर प्रयागराज के सभी मुख्य तीर्थों का दर्शन पूजन करते हुए 24 जनवरी को सम्पन्न होगी। पंच कोसीय परिक्रमा का समापन विशाल भण्डारे के साथ होगा। जिसमें अखाड़े के सभी नागा संन्यासियों के साथ मण्डलेश्वर, महामण्डलेश्वर और आम श्रद्धालुओं का भण्डारा होगा।

550 साल पहले अकबर ने लगाई थी रोक

दिव्य और भव्य कुम्भ की परम्परा में आयोजित प्रयागराज महाकुम्भ इस बार कई धार्मिक परम्पराओं की फिर से साक्षी बन रहा है । इस बार के कुम्भ में प्रयागराज की उस पुरातन पंचकोसी परम्परा को भी आगे बढ़ाया गया जो आज से 556 साल पहले इस कुम्भ का अटूट हिस्सा थी । कई वर्षों के बाद साधु-संतों और योगी सरकार की कोशिशों से पंचकोसी परिक्रमा की शुरुआत 2019 में हुई। संगम नोज पर साधु संतों और मेला प्रशासन के अधिकारियों ने वैदिक मंत्रोच्चार के साथ पूजा-अर्चना के बाद पंच कोसी परिक्रमा शुरू की। आज से 556 साल पहले मुग़ल शासक अकबर द्वारा रोक दी गई थी ।

क्यों होती है पंच कोसी परिक्रमा

इस परिक्रमा की परम्परा के पीछे प्रयागराज का वह क्षेत्रीय विस्तार है जिसके अनुसार प्रयाग मंडल पांच योजन और बीस कोस में विस्तृत है । गंगा यमुना और सरस्वती के यहाँ 6 तट है जिन्हें मिलाकर तीन अन्तर्वेदियाँ बनाई गई है - अंतर्वेदी , मध्य वेदी और बहिर्वेदी । इन तीनो वेदियो में कई तीर्थ , उप तीर्थ और आश्रम है जिनकी परिक्रमा को पञ्चकोसी परिक्रमा के अन्दर शामिल किया गया है । प्रयाग आने वाले सभी तीर्थ यात्रियों को इसकी परिक्रमा करनी चाहिए क्योंकि इससे इनमे विराजमान सभी देवताओं , आश्रमों , मंदिरों , मठो और जलकुंडो के दर्शन से अक्षय पुण्य फल की प्राप्ति होती है ।

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