Kumbh 2025: सनातन धर्म की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहता है श्री पंच निर्मोही आणि अखाड़ा, जानिए इस अखाड़ के नियम और कानून
Kumbh 2025: श्री पंच निर्मोही अखाड़े की स्थापना 1720 में रामानंदाचार्य ने की थी। यह अखाड़ा भगवान राम के प्रति समर्पित है।
Kumbh 2025: सनातन धर्म दुनिया के सबसे प्राचीन धर्मों में से एक है। यह एक ऐसा धर्म है जो मानव इतिहास की शुरुआत से ही प्रचलित माना जाता है। इस विस्तृत धर्म की खासियत यह रही है कि इसने समय-समय पर कई परिवर्तन किए हैं और अन्य मान्यताओं को भी अपने में समाहित करता चला आया है। अलग-अलग संस्कृतियों और मान्यताओं के साथ शुरू हुआ 1500 ई.पू से लेकर 500 ई.पू का समय वैदिक काल के रूप में जाना जाता है। इस दौरान ही चारों वेद- ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्वेद और सामवेद की रचना हुई थी। कई सदियों तक वेद, यज्ञ, पूजन और धार्मिक अनुष्ठानों ने हिंदू धर्म को भारतीय उपमहाद्वीप में पूरी तरह से फैला दिया। आदि शंकराचार्य ने ईसा से पूर्व आठवीं शताब्दी में भारत के चारों कोनों में चार मठों की स्थापना की थी। उत्तर में बदरिकाश्रम में ज्योतिर्मठ, दक्षिण में शृंगेरी में शृंगेरी मठ, पूर्व में जगन्नाथपुरी में गोवर्धन मठ, पश्चिम में द्वारका में शारदा मठ।
आदि शंकराचार्य ने इन मठों की स्थापना अद्वैत वेदांत के दर्शन को प्रचारित करने और सनातन धर्म की अवधारणा को बढ़ावा देने के लिए की थी। इन चारों मठों में आज भी चार शंकराचार्य होते हैं, जो सनातन परंपरा का प्रचार-प्रसार करते हैं। भक्तिकाल में इन शैव दसनामी संन्यासियों की तरह रामभक्त वैष्णव साधुओं के भी संगठन बनें, जिन्हें उन्होंने अणी नाम दिया। अणी का अर्थ होता है सेना। यानी शैव साधुओं की ही तरह इन वैष्णव बैरागी साधुओं के भी धर्म रक्षा के लिए अखाड़े बनें। बैरागी वैष्णव संप्रदाय के तीन अखाड़े हैं जिनमें श्री दिगम्बर अनी अखाड़ा- शामलाजी खाकचौक मंदिर, सांभर कांथा गुजरात में स्थित है । वहीं श्री निर्वानी आनी अखाड़ा- हनुमान गढ़ी, अयोध्या,उत्तर प्रदेश में स्थित है जबकि तीसरा श्री पंच निर्मोही अनी अखाड़ा- धीर समीर मंदिर बंसीवट, वृंदावन, मथुरा, उत्तर प्रदेश में है। यहां हम बैरागी वैष्णव संप्रदाय के तीन अखाड़े में शामिल इसके तीसरे और अंतिम अखाड़े श्री पंच निर्मोही अनी के बारे में जानकारी साझा करेंगे...
श्री पंच निर्मोही अनी अखाड़े का महत्व
श्री पंच निर्मोही अखाड़े की स्थापना 1720 में रामानंदाचार्य ने की थी। यह अखाड़ा भगवान राम के प्रति समर्पित है। इसीलिए अयोध्या आंदोलन से इस अखाड़े का नाम जुड़ा रहता है। प्रयागराज में होने वाला कुंभ मेला एक विशाल धार्मिक आयोजन के तौर पर अपना महत्व रखता है। लाखों श्रद्धालु और साधु संत इस पवित्र संगम तट पर आस्था के साथ स्नान करते हैं। निर्मोही अखाड़ा भी इस महाकुंभ में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वैष्णव संप्रदाय का यह अखाड़ा भगवान कृष्ण को अपना आराध्य मानता है। कुंभ मेले में निर्मोही अखाड़ा के साधु संत बड़ी संख्या में भाग लेते हैं और धार्मिक अनुष्ठान करते हैं।
कुंभ मेले में निर्मोही अखाड़ा के द्वारा कई धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं जिनमें धार्मिक अनुष्ठानः वेद मंत्रोच्चारण, भजन-कीर्तन के साथ भव्य शोभायात्रा जिसमें साधु संत विभिन्न वाद्ययंत्रों के साथ भगवान कृष्ण की झांकी निकालते हैं। ये साधु संत धर्म और आध्यात्म पर आधारित सत्संग को ही अपने जीवन का सबसे महत्वपूर्ण अंग मानते हैं।
साथ ही भंडारा करके सभी के लिए निःशुल्क भोजन का आयोजन किया जाता है।
भारतीय संस्कृति और परंपरा का भी प्रतीक है यह अखाड़ा
देश और समाज के प्रति कर्तव्यों का निर्वहन करने में निर्मोही अखाड़ा महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस अखाड़े में वाद विवाद और भौतिक सुखों से दूर रहने वाले साधु-संतों का अपना एक अलग ही समाज है। यह वृंदावन अखाड़े में साधु-संत अखाड़े की परंपरानुसार रहते हैं। वृंदावन गोविंद जी मंदिर के पास स्थित श्री पंच निर्मोही अनी अखाड़े में साधु-संत अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन आदि काल से कर रहे हैं। वृंदावन में स्थित श्री पंच निर्मोही अनी अखाड़े के अंतर्गत नौ अखाड़े आते हैं। जिसमें श्री पंच रामानंद निर्मोही अखाड़ा, श्री पंच झाड़ियां निर्मोही अखाड़ा, श्री पंच राधा बल्लवी निर्मोही अखाड़ा, श्री पंच मालधारी निर्मोही अखाड़ा, श्री पंच स्वामी विष्णु हरि निर्मोही अखाड़ा, श्री पंच हरिहर व्यास निर्मोही अखाड़ा आदि का नाम शामिल है। जानकारियों के आधार पर हजार वर्ष पूर्व निर्मोही अखाड़े की स्थापना बालानंद महाराज द्वारा की गई थी।जिनकी गद्दी जयपुर में स्थित है।
श्री पंच निर्मोही अखाड़े का उद्देश्य
कुंभ से पहले साधुओं की बैठक आदि काल से चली आ रही है, जो आज परंपरा निभाई जाती है। समाज और मनुष्य की रक्षा करना निर्मोही अखाड़े का मुख्य उद्देश है। जैसे देश की सेवा सीमा पर भारतीय फौज करती है उसी तरह निर्मोही अखाड़े के संत देश की सुरक्षा करते हैं। निर्मोही अखाड़े की स्थापना के समय शस्त्र विद्या काफी अहम मानी जाती थी। लेकिन समाज और समय में परिवर्तन के साथ कुछ नियमों में भी परिवर्तन भी हुए। इस परिवर्तन के साथ शस्त्र विद्या में अब कुछ ही संत रुचि रखते हैं। वहीं निर्मोही अखाड़ा समाज के प्रति अपना काम करता आ रहा है, किसी के सामने दिखा कर काम नहीं किया जाता है। निर्मोही अखाड़े के अंतर्गत साधु-संत समय जरूरत पड़ने पर देश के प्रति लोगों को जागरूक करते हैं। साधु निस्वार्थ भाव रखकर हिंदुओं को ठाकुर जी के प्रति जागृत करते हैं। यहां कुछ लोगों की समस्याओं को बिना निस्वार्थ के निवारण भी किया जाता है।अखाड़े के संतो का धर्म के प्रति देश के प्रति साधु की भावना होती है। निर्मोही अखाड़े के अंतर्गत जो साधु संत होते हैं, उनके साथ समय-समय पर बैठक भी की जाती है। कुंभ के समय भी सभी साधु-संत बैठक करते हैं।
निर्मोही अखाड़े में इस तरह होता है पदों का चयन
निर्मोही अखाड़े की आंतरिक संरचना की बात करें तो यहां संतों की सहमति होने के बाद निर्मोही अनी अखाड़े में पदाधिकारी को नियुक्त किया जाता है। जो संत पदाधिकारी बनता है वह अखाड़े के प्रति जिम्मेदारी और जागरूकता का निस्वार्थ होकर काम करता है। अखाड़े के संत यहां परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए और इसे प्रोत्साहित करने के लिए सदैव अग्रसर रहते हैं। कुछ अखाड़ों में पदाधिकारी का पद 12 साल बाद परिवर्तित होता है। लेकिन कुछ अखाड़ों में आजीवन काल के लिए पदाधिकारी बनाए जाते हैं। निर्मोही अखाड़े के अंतर्गत जो पदाधिकारी होते हैं, उन्हीं में से एक संत चुना जाता है। अखाड़े के प्रति व्यवहार, कर्मठ योगदान और अखाड़े की शिक्षा को आगे की ओर ले जाने की प्रतिज्ञा के बाद साधु संतों की सहमति के बाद उसे इस अखाड़े का उत्तराधिकारी का पद दिया जाता है।
ये होते हैं पंच निर्मोही आणि अखाड़े के नियम
निर्मोही अखाड़े की शाखाएं कई जगह स्थापित है जिनमें वृंदावन के अलावा उज्जैन और हरिद्वार, देहरादून, गुजरात में शाखाएं बनी हुई हैं। इस अखाड़े में सूर्योदय से पहले संत अपनी दिनचर्या में लग जाते हैं। स्नान करते हैं । भजन कीर्तन में लीन रहते हैं। ठाकुर जी की सेवा और पूजा पाठ किया जाता है। निर्मोही अखाड़े का कठोर नियम है कि इस अखाड़े में संत बनने के लिए सन्यासी को संत होना चाहिए। जो अखाड़े के प्रति हर तरह की निर्भरता रखता हो और अखाड़े के नियम का पालन करे। जीवन पर्यंत ब्रह्मचर्य का पालन करने और शादी न करना इस अखाड़े का नियम बनाया गया है।
इस तरह होती है साधु-संतों की दिनचर्या
प्रत्येक शीतकाल में ये संत वृंदावन में आकर निर्मोही अखाड़ा परिषद में रुकते हैं। निर्मोही अखाड़े के साधु-संत प्रातः चार बजे उठने के बाद सबसे पहले स्नान करते हैं। इसके बाद ठाकुरजी की पूजा-आरती करते हैं। सुबह 7 बजे पंगत होती है, जिसमें साधु-संत एक साथ भोजन ग्रहण करते हैं। इसके बाद महाराज जी के प्रवचन सुनाए जाते हैं और फिर गुरु मंत्र का अभ्यास करते हैं। साधु-संत योग भी करते हैं और शाम को शयनभोग करने के बाद विश्राम करते हैं।
दो गुटों में अब बट चुका है अखाड़ा परिषद
अखाड़ा परिषद मौजूदा समय दो गुटों में बंटा है। एक गुट के अध्यक्ष निरंजनी अखाड़ा के अध्यक्ष श्रीमहंत रवींद्र पुरी और महामंत्री महंत हरि गिरि हैं। इनके साथ जूना, निरंजनी, अग्नि, आवाहन, आनंद, दिगंबर अनी, निर्वाणी अनी, बड़ा उदासनी अखाड़ा हैं।
दूसरे गुट के अध्यक्ष श्री महानिर्वाणी अखाड़ा के अध्यक्ष श्रीमहंत रवींद्र पुरी और महामंत्री निर्मोही अनी अखाड़ा के अध्यक्ष श्री महंत राजेंद्र दास हैं। इनके साथ महानिर्वाणी, निर्मोही अनी, अटल, निर्मल व नया उदासीन अखाड़ा है। संख्या बल के हिसाब से निरंजनी अखाड़ा का गुट भारी है।
( लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं ।)