मूर्ति भले ही किसी की गिरे, यह 'छाया युद्ध' से ज्यादा कुछ भी नहीं

Update: 2018-03-07 07:30 GMT
मूर्ति भले ही किसी की गिरे, यह 'छाया युद्ध' से ज्यादा कुछ भी नहीं

विनोद कपूर

लखनऊ: त्रिपुरा पूर्वोत्तर का एक छोटा सा राज्य है जिसकी आबादी महज 40 लाख है और साक्षरता 94 प्रतिशत से ज्यादा। पिछले 20 साल से यह राज्य अपने सीएम माणिक सरकार की सादगी के कारण जाना जाता था। लेकिन अब विधानसभा चुनाव के बाद 'लाल झंडे' के गिरने और उसकी जगह 'भगवा ध्वज' लहराने के कारण चर्चा में आया है।

त्रिपुरा की राजधानी अगरतला में रूसी क्रांति के जनक लेनिन की प्रतिमा लगी थी, जिसे उस राज्य के अलावा बाहरी प्रदेश में रहने वाले कुछ ही लोग जानते थे। अब वो प्रतिमा गिरा दी गई तो पूरा देश जान गया। अब तो जिन-जिन राज्यों में प्रतिमा गिरी वहां विरोध-प्रदर्शन भी शुरू हो गए हैं।

मूर्ति पर सियासत

त्रिपुरा में बीजेपी के शासन में आने के बाद देश में मूर्ति गिराने का नया खेल शुरू हुआ है। लेनिन के बाद चेन्नई में द्रविड़ आंदोलन के जनक पेरियार की मूर्ति क्षतिग्रस्त की गई तो प्रतिक्रिया स्वरूप कोलकाता में जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी की प्रतिमा पर कालिख पोती गई। त्रिपुरा, तमिलनाडु और अब पश्चिम बंगाल से मूर्ति तोड़े जाने की घटना और हिंसक वारदातों की खबर के बाद गृह मंत्रालय ने सख्ती दिखाते हुए सभी राज्यों को एडवाइजरी जारी की है। वहीं, इन घटनाओं पर पीएम नरेंद्र मोदी ने नाराजगी जाहिर की है। इस बावत उन्होंने गृह मंत्री से बात भी की।

गृह मंत्रालय ने राज्यों को एडवाइजरी जारी की

मंगलवार को तमिलनाडु में भी समाज सुधारक पेरियार की मूर्ति को नुकसान पहुंचाया गया। इस घटना पर पीएम मोदी ने अपनी नाराजगी जाहिर की। पीएम मोदी के इस मामले पर संज्ञान लेने के बाद गृह मंत्रालय ने भी राज्यों के लिए एडवाइजरी जारी की है। मंत्रालय ने राज्यों में मूर्ति तोड़ने और अन्य किसी भी प्रकार के हिंसक घटनाओं पर रोक लगाने के लिए ठोस कदम उठाने के लिए निर्देश जारी किए हैं।

यूपी में मूर्ति क्षतिग्रस्त करने की घटनाएं आम हैं

गृह मंत्रालय की एडवाइजरी के बाद मूर्तियों की सुरक्षा के मद्देनजर यूपी में भी अलर्ट जारी किया गया है। प्रशासन को प्रदेशभर की मूर्तियों की सुरक्षा के निर्देश दिए गए। यूपी में अक्सर मूर्ति तोड़े जाने की घटनाएं होती रहती हैं। खासकर गांव और कस्बों में जहां बाबा साहब की प्रतिमा को क्षतिग्रस्त किया जाता रहा है। उम्मीद है अब नई पीढ़ी गूगल करेगी और जानेगी कि लेनिन कौन थे? रूसी क्रांति क्या थी? इससे दुनिया में कैसे उलटफेर हुए?

मूर्ति तोड़नी ही है तो कब्जे वाली जमीन पर तोड़ें

मूर्ति किसी की भी हो, इसे गिराना एक छाया युद्ध से ज्यादा कुछ नहीं है। इसमें नुकसान हवा में तलवार भांजने वाले को भी होता है। यह युद्ध लड़ने का काल्पनिक संतोष तो देता है लेकिन वैचारिक स्तर पर लड़ने की ताकत को कमजोर कर देता है। बुद्धि से अपंग भी कर देता है। सवाल ये कि मूर्ति भंजक लोगों को इससे मिला क्या? क्या मानसिक शांति मिली? या जिनकी मूर्ति गिराई गई उनके विचार भी लोगों के दिमाग से उतर गए? नहीं ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। ये सिर्फ समाज में एक बैर पैदा कर गया। मूर्ति तोड़नी ही है तो उन खेती लायक हजारों एकड़ जमीन पर भी नजर दौड़ाएं जो मूर्ति के नाम पर घेराबंदी कर किसी के कब्जे में है।

Tags:    

Similar News