कर्ज नहीं लूट: 10 हजार लोगों के पास बैंकों का लगभग 9.64 लाख करोड़ रुपए बकाया
लखनऊ: अगर भारत के लोगों की सेहत और देश की शिक्षा व्यवस्था, दोनों दुरुस्त करनी हो तो बैंकों की बकाया धनराशि चुकता कराने से ही सरकार का काम चल जाएगा। तकरीबन 10 हजार लोगों के पास बैंकों का लगभग 9.64 लाख करोड़ रुपए बकाया है। मतलब यह कि देश की सवा अरब आबादी में से 10 हजार लोग ऐसे हैं जिन्होंने लगभग 10 लाख करोड़ रुपए दबा लिए हैं। देखने की बात यह है कि उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य का कुल वार्षिक बजट लगभग साढ़े तीन लाख करोड़ रुपए ही होता है। यानी कर्जखोरी के रूप में यह लूट बहुत बड़ी है और उतनी ही भयावह भी।
यह धनराशि डूबत ऋण (एनपीए) है। यह धनराशि शिक्षा पर केंद्र सरकार के कुल बजट 79,685 करोड़ और स्वास्थ्य पर खर्च की जाने वाली 39,389 करोड़ रुपए की धनराशि से भी कहीं अधिक है। पांच सौ करोड़ रुपए से अधिक की राशि का कर्ज लेने वाले 7,129 लोगों ने अलग-अलग बैंकों को 70,540 करोड़ रुपए का चूना लगाया है।
प्राइवेट बैंकों के एनपीए की हालत बेहद खराब
जिस देश में बैंकों का कर्ज अदा न करने पर किसान को मौत गले लगाने पर मजबूर होना पड़ रहा हो, वहीं के बैंकों की एनपीए धनराशि बैंकों के कुल ऋण का दस फीसदी से अधिक बैठती है। यह एनपीए की धनराशि कॉरपोरेट और एमएसएमई सेक्टर के मद में आती है। प्राइवेट बैंकों के एनपीए की हालत तो इतनी खराब है कि वर्ष 2016 में 50,146.12 करोड़ रुपए की राशि बढ़कर मार्च 2017 में 83,936.30 करोड़ रुपए हो गई।
अपनों ने ही लगाया चूना
देश के 16 सार्वजनिक बैंकों का सकल एनपीए 4,17,991.42 करोड़ रुपए है। बैंकों को लाखों करोड़ रुपए का चूना लगाने वालों ने जो-जो हथकंडे अख्तियार किए हैं, वे सब बैंक के अधिकारियों और कर्मचारियों के रहमोकरम के बगैर संभव नहीं हैं। क्रेडिट कार्ड के लोन अथवा उसके ब्याज की अदायगी नहीं करने पर बैंकों की ‘सिबिल लिस्ट’ में नाम आने और दूसरे बैंक से कर्ज न मिलने की रीति-नीति समझाने वाले बैंकों ने धन्ना सेठों को अकूत कर्ज देने में कोई कोताही नहीं बरती है। इस काम में बैंकों ने ‘सिबिल लिस्ट’ नहीं देखी।
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स्टेट बैंक सबसे आगे
देश के सबसे बड़े बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने 12,091 करोड़ रुपए का कर्जा केवल 1,034 खाताधारकों को मुहैया कराया। इसी तरह पंजाब नेशनल बैंक का तकरीबन एक हजार करोड़ और सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया का करीब 3,600 करोड़ रुपए डूबत ऋण की कोटि में चला गया है।
दिलदार बैंकों ने खुलकर बांटा कर्ज
'अपना भारत' और newstrack.com के हाथ देश भर के बैंकों की एनपीए की एक सूची हाथ लगी है। 372 पेज की इस सूची के कुछ नामचीन नामों में कौशल कुमार नाथ, मनीष नाथ, बलविंदर सिंह, अनिल भार्गव, अरविन्द भार्गव, सुकेश गुप्ता, पीके तिवारी, रजनीश पाहवा, राजीव पाहवा, इरशाद आलम, राकेश कुमार शर्मा, श्रीनिवास, एस.वेंकटरमन, लक्ष्मी मुरुगेशन,अजय आर.अग्रवाल, शेफाली बंसल, सतीश डी भागवत, अनिल सी.अगासे, दलजीत सिंह, कौशिक कुमार नाथ, राजेश के.मेहता, हरिकिशन सिंह, अनिल कुमार सिंह, टी.वी.आर. रेड्डी, वी.एल.चार्या, नेहा बेदी, पुनीत बेदी, तिलकराज बेदी, संजीव कपूर, सुदेश कुमार संथालिया, शिखा अग्रवाल, मनीष अग्रवाल, अमित अग्रवाल सरीखे नाम हैं। खास बात यह है कि इन लोगों ने अलग-अलग बैंकों से जमकर पैसा लिया है। यह पैसा अलग-अलग नामों की कंपनियां खोलकर लिया गया। अब सभी एनपीए खाते में हैं।
सूची में ये भी
दूसरी ओर, जूम डेवलपर्स, विनसम डायमंड एंड ज्वेलरी, फोरेवर प्रेसियस ज्वेलरी एंड डायमंड्स, डेक्कन क्रानिकल होल्डिंग, किंगफिशर एयरलाइन, सूर्या विनायक इंडस्ट्रीज, बीटा नेप्थोल, इंडियन टेक्नोमाट सीओ, राजा टेक्सटाइल, एस कुमार नेशनलवाइड, रामस्वरूप इंडस्ट्रीज, इस्टरलिंग बायोटेक, एलेवेन एनर्जी, रिया एग्रो, जाइलॉग सिस्टम्स, रैंक इंडस्ट्रीज, एलेक्ट्रोथर्म इंडिया, ऊषा इस्पात, प्रकाश इंडस्ट्रीज, क्रांस सॉफ्टवेयर आदि के नाम उस सूची में आते हैं जिसमें पांच सौ करोड़ रुपए से अधिक और चार हजार करोड़ रुपए तक की देनदारी वाले शामिल हैं।
जानबूझ कर नहीं वापस किया कर्ज
इलाहाबाद बैंक और स्टेट बैंक को कौशिक कुमार नाथ की दस कंपनियों को दिए 14,600 लाख रुपए की धनराशि एनपीए में डालनी पड़ी। मनीष नाथ ने इलाहाबाद बैंक, स्टेट बैंक, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, करूर व्यास बैंक से अपनी दस कंपनियों को जो ऋण दिलाया, उसमें से 11,341 लाख रुपए एनपीए में समा गए। बलविंदर सिंह ने भी इलाहाबाद बैंक, आंध्रा बैंक, पंजाब सिंध बैंक और स्टेट बैंक से अपनी छह कंपनियों के लिए जो ऋण लिया उसका 4,570 लाख रुपए इन बैंकों को एनपीए में डालना पड़ा।
अनिल भार्गव के चलते एक्सिस बैंक को 807 लाख रुपए एनपीए करना पड़ा। अरविन्द भार्गव ने पंजाब नेशनल बैंक का 2,665 लाख रुपए एनपीए में डलवाया। पीके तिवारी ने बैंक ऑफ बड़ौदा, यूनियन बैंक समेत कई बैंकों से अपनी आठ कंपनियों के नाम पर कर्ज लिया। इन बैंकों को इनके 54,769 लाख रुपए एनपीए में डालने पड़े।राजीव पाहवा, रजनीश पाहवा, एस.पी.पाहवा के चलते यूनियन बैंक, बैंक ऑफ महाराष्ट्र और बैंक ऑफ बड़ौदा की 5749 लाख रुपए की राशि एनपीए में चली गई। इरशाद आलम ने ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स और बैंक ऑफ बड़ौदा की 2035 लाख की धनराशि को डूबत ऋण में डालने को मजबूर कर दिया।
राकेश कुमार शर्मा ने पंजाब एंड सिंध बैंक, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद से अपनी 11 कंपनियों के नाम पर जो धनराशि बतौर कर्ज ली उसमें से 68,871 लाख करोड़ रुपए एनपीए में चला गया। एन.श्रीनिवास ने आंध्र बैंक से जो ऋण लिया उसका 11,139 लाख रुपए डूबत ऋण में चला गया। एस.वेंकटरमन ने आंध्रा बैंक, देना बैंक, फेडरल बैंक और यूनियन बैंक चारों से अपनी एक ही कंपनी के नाम पर कर्ज लिया। अब इन बैंकों को 56,524 लाख का एनपीए करना पड़ा है।
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लक्ष्मी मुरुगेशन के चलते स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, सेंट्रल बैंक और आंध्रा बैंक को 16,481 लाख रुपए एनपीए करना पड़ा। अजय आर. अग्रवाल के चलते आंध्रा बैंक को 4,423 लाख और बैंक ऑफ बड़ौदा को 472 लाख रुपए का कर्ज एनपीए करना पड़ा। शेफाली बंसल की एक ही कंपनी को आंध्रा बैंक, पंजाब नेशनल बैंक और ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स ने कर्ज देकर 12014 लाख रुपए एनपीए में डाला। दलजीत सिंह ने इलाहाबाद बैंक, करूर व्यास बैंक, स्टेट बैंक ऑफ त्रावणकोर के 2363 लाख रुपए डूबत ऋण की भेंट चढ़ा दिए।
कौशिक कुमार नाथ ने इलाहाबाद बैंक का 1,754 लाख रुपए का एनपीए कराया। राजेश के. मेहता ने अपनी एक कंपनी पर इलाहबाद बैंक और एचडीएफसी से ऋण लिया। इनके ऋण का 2116 लाख रुपये एनपीए हो गया। हरिकिशन सिंह ने अपनी दो कंपनियों के नाम पर इलाहाबाद बैंक से ली गई धनराशि में से 1,078 लाख रुपए नहीं लौटाए। अनिल कुमार सिंह ने इलाहाबाद बैंक, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, पंजाब नेशनल बैंक को 7,184 लाख रुपए एनपीए में डालने को मजबूर किया।
सुकेश गुप्ता और अनुराग गुप्ता के चलते आंध्रा बैंक, पंजाब नेशनल बैंक, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया और स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद को 66,195 लाख रुपए एनपीए में डालने पड़े। विनसम डायमंड्स का बैंक आफ महाराष्ट्र का 27,686 लाख और सेंट्रल बैंक आफ इंडिया का 54,926 लाख रुपए एनपीए में है। विनसम ने पीएनबी को भी 9,0037.06 लाख का चूना लगाया है। इलाहाबाद बैंक की सबसे बड़ी डिफाल्टर फर्म पुनीत फैशंस प्राइवेट लि. का 8671 लाख रुपए एनपीए में है। आंध्रा बैंक की सबसे बड़ी डिफाल्टर कंपनी एमबीएस ज्वेलर्स प्रा.लि. है जिसका एनपीए 25116 लाख रुपए है। इसी बैंक में दूसरे नंबर पर डेक्कन क्रॉनिकल है जिसने 20,676 लाख रुपए का एनपीए दिया है। डेक्कन क्रॉनिकल ने ही एक्सिस बैंक को भी 40,934 लाख रुपए का चूना लगाया है।
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आखिर क्या है एनपीए?
एनपीए का फुल फॉर्म है 'नॉन परफॉर्मिंग एसेट।' एनपीए को साधारण तरीके से हम इस तरह समझ सकते हैं कि अगर कोई व्यक्ति बैंक से बड़ा लोन लेता है और फिर अपने बैंक को ईएमआई देने में नाकाम रहता है, तो उसका लोन एकाउंट एनपीए कहलाता है। इसे बैड लोन भी कहते हैं क्योंकि इसकी वसूली की संभावना बेहद कम होती है। नियमों के हिसाब से यदि किसी लोन की किस्त तय तिथि के 90 दिन के भीतर नहीं आती है तो उसे एनपीए में डाल दिया जाता है। इसे ऐसे भी लिया जा सकता है कि जब किसी लोन से बैंक को रिटर्न मिलना बंद हो जाता है तब वह उसके लिए एनपीए या बैड लोन हो जाता है।
किसानों पर हल्ला, पूंजीपतियों पर चुप्पी
विडम्बना यह है कि जब गरीब किसानों के छोटे-छोटे बैंक कर्ज माफ करने की बात सामने आती है, तो देशभर के बैंक और अर्थशास्त्री तर्क देते हैं कि कर्जा माफ हुआ तो देश की अर्थव्यवस्था चौपट हो जाएगी। लेकिन यही बैंक कर्जे के रूप में पूंजीपतियों को दी गई भारी-भरकम रकम के बारे में चुप्पी साध जाते हैं। पांच-दस हजार रुपए का कर्ज न चुकाने पाने वाले किसान और सामान्य नागरिक से वसूली के तरह-तरह के हथकंडे अपनाए जाते हैं। इनकी सिविल रेटिंग खराब कर दी जाती है। एक बार रेटिंग खराब हो जाने पर किसी भी बैंक से कोई कर्जा न मिलने की चेतावनी दी जाती है। लेकिन करोड़ों रुपए का कर्जा अलग-अलग बैंक बिना देखे दे देते हैं। यह साबित करता है कि मोटा कर्ज देने का कुछ अलग ही खेल होता है।
किसानों की कर्ज माफ़ी पर बैंकों ने मचाया हाय-तौबा
उत्तर प्रदेश में अभी दो महीने पहले किसानों को छोटे-छोटे कर्ज के रूप में दिए गए 36 हजार करोड़ रुपए जब सरकार ने माफ करने का ऐलान किया तो देश भर के बैंक हड़बड़ा उठे। बैंकों ने पहले केन्द्र सरकार से यह रकम वसूलने का कार्य पूरा कराया, तब सरकार कर्ज माफी पर निर्णय ले सकी। कृषि, उपभोक्ता सामग्री और एजुकेशन लोन के लिए आम आदमी को नाक रगड़वा देने वाले इन बैंकों ने उन मुट्ठी भर लोगों को आखिर किस आधार पर हजारों करोड़ की रकम मुहैया कराई, यह खुद जांच का विषय है। ध्यान देने वाली बात तो यह है कि जो सूची 'अपना भारत' और newstrack.com के पास है उसमें भारी कर्जखोरों के नामों में विजय माल्या सरीखे लोग बहुत निचले पायदान पर हैं।
क्या है सिबिल
यह भारत की पहली क्रेडिट इनफार्मेशन कंपनी है। कंपनी किसी भी व्यक्ति द्वारा लोन या क्रेडिट कार्ड के भुगतान की जानकारी अपने सदस्यों (बैंक व वित्तीय संस्थान) से जुटाती है जिनकी संख्या 2,600 है। जुटाती है और इसका पूरा ब्यौरा रखती है। इसी जानकारी के आधार पर किसी भी व्यक्ति या कंपनी का क्रेडिट स्कोर बनाया जाता है। इसी स्कोर के आधार पर बैंक या वित्तीय संस्थान किसी के बारे में तय करते हैं कि उसे लोन देने लायक है कि नहीं। क्रेडिट स्कोर बताने के लिये कंपनी फीस लेती है। सन 2000 में स्थापित इस कंपनी का नाम क्रेडिट इनफार्मेशन ब्यूरो (इंडिया) लिमिटेड था। अब यह ट्रांसयूनियन सिबिल लिमिटेड नाम से जानी जाती है। इसके एमडी हैं सतीश पिल्लई और चेयरमैन हैं एम.वी. नायर। कंपनी का मुख्यालय मुंबई में है।