बेंगलुरूः इंटरनेशनल ट्रिब्यूनल ने देवास-एंट्रिक्स मामले में भारत के खिलाफ फैसला दिया है। आरोप है कि भारत सरकार ने मल्टमीडिया फर्म देवास व इसरो की वाणिज्यिक इकाई एंट्रिक्स के बीच के अनुबंध को खरिज कर गलत और अन्यायपूर्ण कार्य किया। ट्रिब्यूनल के इस फैसले से भारत को मुआवजे के रूप में करीब एक बिलियन डॉलर यानी करीब 67 अरब रुपए की चपत लग सकती है।
इंटरनेशनल ट्रिब्यूनल ने फैसला दिया है कि भारत सरकार ने मल्टीमीडिया फर्म देवास और इसरो की वाणिज्यिक इकाई एंट्रिक्स के बीच के कॉन्ट्रैक्ट को गैरकानूनी तरीके से समाप्त किया जो गलत और अन्यायपूर्ण है। इसके लिए अब भारत सरकार को मुआवजा देना होगा।
-देवास मल्टीमीडिया प्राइवेट लिमिटेड ने अदालत के फैसले की जानकारी दी है।
-कंपनी के अनुसार, कोर्ट के फैसले से साफ पता चलता है कि भारत सरकार ने देवास के विदेशी निवेशकों के साथ इंसाफ नहीं किया है।
-हालांकि, इसरो के अधिकारियों का कहना है कि उन्हें इसका ब्यौरा अभी नहीं मिला है।
हेग स्थित इंटरनेशनल ट्रिब्यूनल संयुक्त राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय व्यापार कानून आयोग के पंचनिर्णय प्रक्रिया संबंधी नियमों के तहत विभिन्न सरकारों से जुड़े मामलों को देखता है। इनमें निवेश समझौतों से जुड़े दावे भी हैं। देवास-एंटिक्स अनुबंध के रद्दीकरण मामले में किसी अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण का यह दूसरा फैसला है. देवास का कहना है कि पंचों की सर्वसम्मति के इस फैसले में न्यायाधिकरण में भारत की ओर से नियुक्त पंच की राय भी शामिल है।
सितंबर 2015 में इंटरनेशनल चैंबर ऑफ कॉमर्स (आईसीसी) की मध्यस्थता निकाय कोर्ट ऑफ आर्ब्रिटेशन ने एंट्रिक्स से कहा था कि वह देवास मल्टीमीडिया को लगभग 4432 करोड़ रुपए का भुगतान नुकसान के मुआवजे के रूप में करे। कोर्ट का कहना था कि एंट्रिक्स ने देवास मल्टीमीडिया के साथ सौदे को गैरकानूनी तरीके से समाप्त किया है।