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नई दिल्ली. राष्ट्रपति के अभिभाषण के बाद लोकसभा में धन्यवाद प्रस्ताव पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए पीएम नरेंद्र मोदी ने कई मुद्दों पर विपक्ष को आइना दिखाया। उन्होंने राहुल गांधी को खास तौर पर निशाने पर रखा। नाम लिए बिना कई बार चुटकी ली। उन्होंने कहा, "हीन भावना के कारण विपक्ष के होनहार सदस्यों को बोलने नहीं दिया जाता। लेकिन कुछ लोग पढ़कर भी आते हैं और मनोरंजन भी कर जाते हैं। कुछ लोगों की उम्र बढ़ जाती है, लेकिन समझ नहीं'' गौरतलब है कि राहुल गांधी ने बुधवार को संसद में मोदी पर जमकर निशाना साधा था।
इंदिरा राजीव के बहाने निशाना
-पीएम ने कहा-''जानें ऐसा क्यों है कि हम लोग अपने देश की इमेज ऐसी बनाते हैं, जैसे हमें भीख का कटोरा लेकर निकले हों। जब हम खुद ऐसा कहते हैं, तो दूसरे लोग ये बात ज्यादा चीखकर-ज्यादा मजबूती से कहते हैं। और ये मैं नहीं कह रहा हूं। ये इंदिराजी ने कहा था। ये 1974 में इंद्रप्रस्थ कॉलेज में इंदिराजी ने भाषण में कहा था।''
-हमारे देश को मजबूत और ऊंची दीवारों ने घेर रखा है। ये 1968 में इंदिरा गांधी ने कही थी।’
-पीएम ने ससंद को सुचारु रूप से चलाने की बात कहने के लिए जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के भाषण का उल्लेख किया।
'उम्र बढ़ जाती है लेकिन समझ नहीं आती'
-पीएम ने कहा,''कई बार उम्र तो बढ़ती है, लेकिन समझ नहीं बढ़ती है। इसलिए चीजें समझने में उन्हें समय लगता है। कुछ लोग तो समय बीतने के बाद भी चीजें समझ नहीं पाते। इसलिए विरोध करते हैं। विरोध करने का अपना तरीका ढूंढते रहते हैं।’
'बादाम से नहीं चलेगा काम '
-राहुल ने अपनी स्पीच में कहा था कि मोदी सारे फैसले अकेले करते हैं। उनसे कोई सवाल भी पूछ नहीं सकता।
- मोदी ने पलटवार करते हुए कहा-''हमसे तो कोई भी सवाल पूछ सकता है। स्टालिन के मरने के बाद कुछ लोग उनकी बड़ी आलोचना करते थे। कुछ भी कहते थे। एक बार एक सभागृह में सोवियत नेता निकिता ख्रुश्चेव ने स्टालिन को बहुत कोसा। एक नौजवान खड़ा हुआ और पूछा कि जब स्टालिन जिंदा थे, तब आप उनके साथ काम करते थे। तब आपने क्या किया?''
-ख्रुश्चेव ने कहा कि तुम आज सवाल पूछ पा रहे हो, स्टालिन के समय में मैं नहीं कर पाता था।
-मोदी ने कहा- ''इस किस्से को समझने में देर लगेगी। बादाम काम नहीं आएगा। कुछ लोग समझ जाएंगे। बाकियों को देर लगेगी।’
'पर उपदेश कुशल बहु तेरे'
-मोदी ने कहा- मैं आलोचना से ज्यादा आरोप झेल रहा हूं। 14 साल में मैं इससे जीना सीख चुका हूं।
-27 सितंबर 2013 को हमारे देश के सम्मानीय पीएम डॉ. मनमोहन सिंह अमेरिका में थे।
-उनके वक्त देश की कैबिनेट में डॉ. फारुख अब्दुल्ला, एंटनी, शरद पवार साहब बैठते थे। कैबिनेट ने एक फैसला किया था।
-उस कैबिनेट के फैसले को फाड़ दिया गया था। अपनों से बड़ों का सम्मान... आदर? ...पर उपदेश कुशल बहु तेरे...जे आचरहिं ते नर न घनेरे।’
-दूसरों को उपदेश देने वाले बहुत लोग हैं। जो खुद वैसा आचरण करे, उनकी संख्या कम है।
तय हो अफसरशाही की जवाबदेही
-यहां कुछ लोग अखबार में क्या छपेगा, उसकी तू-तू मैं-मैं करके स्कोरिंग करते हैं। मीडिया में छा जाते हैं।
-अफसरशाही की अकाउंटैबिलिटी खत्म होती जा रही है। इनका हिसाब लेने संसद ही एक जगह है।
-उनकी जवाबदेही कैसे बढ़ाएं, ये इसी संसद से तय होगा। देश के नागरिकों को अफसरशाही के भरोसे नहीं छोड़ सकते।
'आपने ही तो हमें मौका दिया'
-मोदी ने कहा- हमने स्कूलों में टॉयलेट बनाने कैंपेन चलाया है। आप बना देते तो हम काम नहीं कर पाते।
-बांग्लादेश से सीमा विवाद हमने सुलझाया। 18 हजार गांव आजादी के बाद से अंधेरे में डूबे थे। हमने वहां बिजली पहुंचाने का लक्ष्य रखा।
-60 साल में आपके के ही काम का परिणाम है, इसलिए हमें करना पड़ा। आपने ही गरीबी की जड़ें इतनी गहरी खोद रखी हैं।
-ये बात सही है कि आप सीना तानकर कह सकते हो कि मोदीजी! चुनाव में भाषण करना अच्छी चीज है। आप कहते हो कि गरीबी हटाओगे। मोदी तुम उखड़ जाओगे, लेकिन गरीबी को उखाड़ नहीं पाओगे। इतनी जड़ें जमाई हैं आपने।
-मैंने पिछली बार भी कहा था कि इस देश के 60 साल के इतिहास में हम गरीबों के लिए कुछ कर पाते तो आज गरीबों को मजदूरी नहीं करना पड़ती। यह हमारी सफलता का स्मारक नहीं है। यह विफलता का स्मारक है।