Bihar Postmortem Lady: रूह कंपा देगी बिहार की पोस्टमॉर्टम एक्सपर्ट मंजू देवी की कहानी, दर्दनाक था पहला अनुभव
Bihar Postmortem Lady: बिहार के समस्तीपुर की रहने वाली मंजू देवी की कहानी सुनकर आपकी भी रूह कांप जाएगी। आइये जानते हैं क्यों है उनकी आपबीती इतनी डरावनी।
Bihar Postmortem Lady: जहाँ पोस्टमॉर्टम का नाम सुनते ही ज़्यादातर लोगों की रूह कांप उठती है वहीँ बिहार के समस्तीपुर की रहनेवाले मंजू देवी की कहानी आपको प्रेरणा से भर देगी। एक महिला को पोस्टमार्टम का नाम और भी ज़्यादा डरा सकता है वहीँ अगर आपको ऐसे किसी कमरे में रहना पड़े जहाँ एक लाश पड़ी है और आपके सामने उसका पोस्टमॉर्टम हो रहा हो तो शायद आप भी सहम सकतीं हैं लेकिन वहीँ बिहार की रहने वाली मंजू देवी ने अब तक हज़ारों लाशों के पोस्टमार्टम अकेले ही किये हैं। आइये जानते हैं क्या हैं इनकी कहानी और आखिर कैसे ये इस प्रॉफ़ेशन से जुड़ीं।
रूह कंपा देगी बिहार की पोस्टमॉर्टम एक्सपर्ट मंजू देवी की कहानी
बिहार में समस्तीपुर की रहनेवाले मंजू देवी की ये कहानी की शुरुआत भले ही किसी आम महिला की कहानी की तरह लगे लेकिन उन्होंने जीवन में जिस रास्ते को चुना वो करना हर किसी के बस की बात नहीं है। उनकी आप बीती बस एक कहानी नहीं बल्कि एक मिसाल है। वो बिहार के समस्तीपुर की रहने वाली हैं मंजू की शादी बेहद कम उम्र में हो गयी थी वहीँ 26 साल की उम्र में उनके पांच बच्चे भी थे। इसके बाद मंजू के जीवन में एक ऐसा दौर आया जिसने उन्हें तोड़कर रख दिया उनके पति की मृत्यु हो गयी। बच्चों की परवरिश से लेकर हर एक चीज़ का बोझ उन्हीं के कन्धों पर आ गया। समस्तीपुर में एकल माँ के लिए आजीविका कमाने के लिए कोई काम करने की सोचना भी बेहद कठिन था। ऐसे में मंजू देवी ने उस काम को करने की ओर रुख किया जिसके बारे में कोई महिला सोच भी नहीं सकती।
कहानी जो डरा देगी आपको
मंजू देवी ने एक ऐसी नौकरी करना स्वीकार किया जो करना हर किसी के बस की बात नहीं होती। भले ही चिकित्सकीय रूप से ये महत्वपूर्ण हो लेकिन समाज में इसको लेकर डर वाली स्थिति है। उन्होंने एक पोस्टमॉर्टम सहायक की नौकरी को चुना जो शायद ही कोई महिला अपने करियर में चुनना पसंद करती होगी। लेकिन उस समय हालत और ज़िन्दगी के बीच उन्हें एक चीज़ चुन्नी ही थी। जब मंजू ने ये नौकरी करने की शुरुआत की तब वो 25 साल की थीं। और अब 23 साल बाद उनके अनुसार उन्होंने 20 हज़ार शवों का पोस्टमॉर्टम किया है।
मंजू के जीवन का वो पोस्टमॉर्टम था यादगार
मंजू के जीवन में एक ऐसा पोस्टमॉर्टम करने को आया जिसे करते समय उनके भी हांथ कैंप गए लेकिन फिर भी उन्होंने अपनी हिम्मत को अपना साथ नहीं छोड़ने दिया और सफलतापूर्वक उसे अंजाम दिया। दरअसल ये उनका पहला पोस्टमॉर्टम था जब एक 22 वर्षीय युवक का शव आया जिसकी मृत्यु एक दुर्घटना में हुई थी वहीँ डॉक्टर ने उन्हें कहा था कि इसका सर खोलना है और शरीर को काटकर इसकी जाँच करनी है क्योंकि उन्हें इसकी अंदरूनी जाँच करनी थी। वहीँ एक बार एक स्थानीय डॉन का शव भी उनके पास आया वहीँ बाहर खड़े उसके साथी बेहद गुस्से में शव की मांग कर रहे थे। मंजू कहतीं हैं कि वो दिन वो अपने जीवन में कभी भी भूल नहीं सकतीं। वहीँ उन्होंने अपने एक युवा रिश्तेदार के शव का भी पोस्टमॉर्टम किया जिसकी मृत्यु जलने की वजह से हुई थी।
पहला पोस्टमॉर्टम था ऐसा
मंजू बताती हैं कि पहला पोस्टमॉर्टम उनके लिए आसान नहीं था वो कांप रहीं थी रो रहीं थी लेकिन उन्होंने अपना काम पूरा किया। उन्होंने अपने सभी औज़ार उठाये और डॉक्टरों के निर्देशानुसार पहले शव का सिर खोला और उसके बाद चाकू से उनके छाती और पेट। उस समय तो उन्होंने अपना काम कर दिया लेकिन घर आकर न तो उन्होंने कुछ खाया और न ही वो सो पाईं। लेकिन आज वो बेहद प्रोफेशनल हो गईं हैं। वहीँ उन्हें औज़ार आज भी वही पुराने ही हैं। भले ही वो पोस्टमॉर्टम जैसा बेहद अहम् काम करतीं हों।
बच्चों के लिए उनकी माँ चैंपियन
मंजू के बच्चे अब बड़े हो चुके हैं उन्होंने अपने संघर्ष के दिनों में अपने बच्चों की खातिर घर से बाहर निकलकर इस कठिन रास्ते पर चलना मंज़ूर किया था। वहीँ अब मंजू उन्हें पढ़ा लिखाकर सफल पेशेवर बना चुकीं हैं। सभी उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। मंजू के दो बेटे संगीत विद्या में पारंगत हैं इसलिए उन्होने संगीत में स्नातकोत्तर की डिग्री ली हुई है। वहीँ वो अब वो संगीत के छात्रों के लिए शिक्षण केंद्र चलाते हैं। मंजू भी संगीत में काफी पारंगत थीं लेकिन ज़िदगी में आई ज़िम्मेदारियों के चलते उनके शौक बस सपने बनकर रह गए। वहीँ उनकी दोनों बेटियां स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम में हैं और सिविल सेवाओं की तैयारी कर रहीं हैं। उनके बच्चों को उनपर गर्व है कि कैसे उनकी माँ ने उनके लिए कई तरह की दुःख और तकलीफों को सहा है।