Lifestyle: आज से ही बदल दीजिये लाइफ स्टाइल क्योंकि दिल बंद तो खेल खत्म

बिगड़ते खानपान हमारी सेहत को काफी नुकसान पहुंचा रहे

Report :  Neel Mani Lal
Published By :  Raghvendra Prasad Mishra
Update:2021-09-29 14:45 IST

लाइफस्टाइल से संबंधित सांकेतिक तस्वीर (फोटो साभार-सोशल मीडिया)

Lifestyle: दिल है तो जिंदगी है, हर सांस दिल की धड़कन से जुड़ी हुई है। जीवन सूत्र बस एक ही है- दिल बन्द तो खेल खत्म। दिल का दिमाग से भी अटूट रिश्ता है। दोनों एक दूसरे के बगैर चल नहीं पाते। तभी तो जब भी बात होती है तो दिलोदिमाग की बात कही जाती है। लेकिन सब कुछ जानते हुए भी हम लोग दिल का ख्याल नहीं रख पाते। दिल के मामले में हम हिन्दुस्तानी कुदरती तौर पर ज्यादा ही कमजोर भी हैं। ये भावनात्मक रिश्ता भी है और जेनेटिक संरचना (genetic sanrachana) भी है। यही वजह है कि दुनिया में दिल खराब होने के सबसे ज्यादा केस भारत में ही आते हैं। और ये ट्रेंड साल दर साल बढ़ता जा रहा है।

बीते 25 साल में भारत में ह्रदय रोगों के मामलों में पचास फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। आज 50 साल के उम्र से कम वालों में 75 फीसदी लोग हार्ट अटैक के जोखिम में हैं। 40 साल से कम उम्र के लोगों में से 25 फीसदी हिन्दुस्तानियों में हार्ट अटैक या ह्रदय से जुडी किसी गंभीर बीमारी का ख़तरा है। ज़रा सोचिये, स्वस्थ जीवन और ह्रदय रोगों के बारे में दुनिया जहां की जानकारी उपलब्ध होने और स्वस्थ जीवन के प्रति जागरूकता बढ़ने के बावजूद यह हाल है जहाँ कम उम्र के नौजवान से लेकर कर वृद्ध तक के दिल असमय ख़राब और बंद हुए जा रहे हैं। यह बेहद चिंताजनक स्थिति है। आंकड़े डराने वाले हैं। डरना भी चाहिए क्योंकि शायद तभी हम-आप अपने दिल को महफूज़ रखने के बारे में सोचेंगे और आज से ही इसमें दिल से जुट जायेंगे।


आंकड़ों में भारत

2016 में भारत में जितनी मौतें हुईं उनमें से 28.1 फीसदी ह्रदय रोगों के कारण हुईं थीं। 1990 में जहाँ करीब ढाई करोड़ ह्रदय रोगी थी , वहीं 2016 में उनकी संख्या साढ़े पांच करोड़ हो गयी। आज से 16 साल पहले वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाईजेशन ने कहा था कि भारत ह्रदय रोगों से होने वाली असमय मौतों के कारण साल में 9 अरब डालर की राष्ट्रीय आय गंवा देता है। 2015 आते आते नुकसान बढ़ते बढ़ते 237 अरब डालर का हो चुका था। वर्ल्ड हार्ट फाउंडेशन (world heart foundation) के अनुसार भारत में ह्रदय रोग के रिस्क फैक्टर्स में धूम्रपान, शराब और हाइपरटेंशन प्रमुख हैं। ये तीनों ही चीजें लाइफ स्टाइल से जुडी हुई हैं। सच्चाई यह है कि सब कुछ होने के बावजूद लाइफ स्टाइल खराब ही होती जा रही है, ख़ास कर युवाओं में। डाक्टरों और एक्सपर्ट्स का कहना है कि भारत की आबादी में ह्रदय रोग और उसका जोखिम इतना व्यापक है कि उसे महामारी के बराबर आंका जा सकता है।

हिन्दुस्तानियों का दिल

भारतीयों में ह्रदय रोग ज्यादा होने के प्रमुख कारणों में लाइफ स्टाइल (Lifestyle), डाइट और जेनेटिक संरचना शामिल हैं। आईईटी, मद्रास की एक रिसर्च में पता चला था कि 35 से 40 फीसदी भारतीयों में कुछ ऐसी जेनेटिक संरचना होती है, जिस कारण उनमें ह्रदय रोग का जोखिम ज्यादा रहता है। एक अन्य रिसर्च में यह भी पता चला कि अगर माता-पिता में किसी को ह्रदय रोग है, तो बच्चों में ह्रदय रोग होने की संभावना 40 से 60 फीसदी बढ़ जाती है। जेनेटिक्स के अलावा एक बड़ा कारण है भारतीयों की डाइट। यहाँ लोगों की डाइट कार्बोहायड्रेट से भरपूर होती है । लेकिन प्रोटीन की मात्रा बहुत कम रहती है। जिसके चलते भी धमनियों के ब्लॉकेज की समस्या बढ़ती है। डाइट में एक पहलू पश्चिमी देशों की डाइट का अनुसरण करना है। तमाम खाद्य पदार्थ जो कभी भारतीय खानपान का हिस्सा नहीं रहे हैं, उनको लोग देखादेखी में अपनाते जा रहे हैं। स्नैक्स और जंक फ़ूड का प्रचलन पारंपरिक खाने पर हावी हो गया है।


तीसरी सबसे बड़ी बात है लाइफ स्टाइल की। भारतीय लोग कभी भी खेलकूद वाले नहीं रहे हैं। तमाम जागरूकता के बावजूद साईकिल अपनाने वाले लोग नगण्य हैं। एक उम्र के बाद लोग खेलों में हिस्सा लेना बंद कर देते हैं। जीवन शैली को स्वस्थ रखने से ही दिलोदिमाग स्वस्थ रहेगा, यह समझना होगा। लाइफ स्टाइल (Lifestyle) में ब्लड प्रेशर, ब्लड ग्लूकोज और लिपिड जैसे सामान्य हेल्थ चेकअप को भी शामिल करना होगा।

कोरोना का असर

लोगों के दिलों को बर्बाद करने वाले कारकों में अब कोरोना वायरस भी शुमार हो गया है। जो लोग कोरोना से संक्रमित हुए हैं, उनमें से काफी बड़ी संख्या में लोगों को ह्रदय सम्बन्धी समस्याएं पाई जा रही हैं। ऐसा वायरस के कारण भी हुआ है। कोरोना के इलाज में दी गयी दवाओं के कारण भी। अध्ययनों में पाया गया है कि कोरोना वायरस ह्रदय की मांसपेशियों को क्षतिग्रस्त कर देता है। इसके अलावा इस वायरस के कारण धमनियों में खून के थक्के बन जाते हैं, जिसका असर भी हृदय पर पड़ता है। इसके अलावा कोरोना के इलाज में स्टेरॉयड व अन्य दवाइयों को दिए जाने का असर भी ह्रदय पर पड़ा है।

हृदय रोग के जोखिम कम करें

- लाइफ स्टाइल (Lifestyle) बदल डालें। व्यायाम अवश्य करें। जॉगिंग, साइकिलिंग, तेज चलना अपनी दिनचर्या में शामिल करें। आरामदायक जीवनशैली को छोड़ दें।

- अगर हाइपरटेंशन है तो समय पर दवाइयां लेकर ब्लड प्रेशर ठीक रखें। लेकिन शारीरिक गतिविधियाँ अवश्य जारी रखें।

- याद रखें- तनाव नहीं लेना है। तनाव या स्ट्रेस दिल के लिए जहर होता है, इससे दूर रहें। कैसे रहेंगे, यह आप को खुद तय करना होगा। दवा खा कर तनाव कम करना भी कोई उपाय नहीं है यह याद रखें।

- भरपूर नींद लें।

- खानपान दुरुस्त करें– फैट, तेल घी, मक्खन खाना कम कर दें। नमक चीनी बहुत कम लें। फल-सब्जी ज्यादा खाएं।

- सिगरेट और शराब, इन दोनों से दूर हो जाएँ।

हार्ट अटैक (heart attack) और स्ट्रोक के लक्षण

- अचानक तेज थकान या सीने में भारीपन महसूस करना।

- सांस तेज चलना या ज्यादा पसीना आना।

- गर्दन, पीठ, कमर, जबड़ों या बांह में दर्द होना।

- शारीरिक क्षमता कम होना।

- शरीर के किसी हिस्से में लकवापन आना।

- नजर अचानक धुंधली पड़ जाना।

- मतिभ्रम होना।

युवाओं में कमजोर होता दिल

आज के सोशल मीडिया के युग में युवाओं में फिट रहने का ट्रेंड बढ़ तो रहा है ।.लेकिन युवाओं में हार्ट अटैक के आंकड़े भी चिंताजनक हैं। एक सर्वे के अनुसार पहले हार्ट अटैक के 35 फ़ीसदी मामले 35 वर्ष से कम आयु के लोगों में देखे गए हैं। इसमें कोई शक नहीं कि मोटापा, अस्वस्थ जीवनशैली हृदय रोगों की ओर अग्रसर करती है,इनसे बचाव के लिए शारीरिक फिटनेस बेहद ज़रूरी है। लेकिन अन्य पहलुओं को भी समझना बेहद ज़रूरी है।

फिटनेस का दबाव

बहुत से युवा हर वक़्त फिट रहने के दबाव में अपने शरीर को जरूरत से ज्यादा कष्ट या बोझ देते हैं। वर्क आउट के नाम पर जिम में, घर पर या कहीं भी ज़रूरत से ज्यादा व्यायाम से धमनियों पर प्रेशर बनता है? जिससे ब्लडप्रेशर बढ़ने का जोखिम होता है । हार्ट अटैक की भी नौबत आ सकती है। बेहतर होगा कि अपनी क्षमता, अपने शरीर की लिमिटेशन को ईमानदारी से स्वीकार करें। इसे शर्म का या प्रतिष्ठा का विषय न बनाएं, फिर उसके बाद उन कमियों पर काम करें। हल्के व्यायाम से शुरुआत करें और धीरे धीरे आगे बढ़ें। किसी भी स्टेज में जरा भी तकलीफ महसूस हो तो निश्चित रूप से डॉक्टर से सलाह लें। लेकिन फिट रहने के लिए अपनी रक्तवाहिकाओं को कष्ट न दें और आगे बताये गए पहलुओं पर भी ध्यान दें।

मानसिक तनाव

हम अपने दैनिक जीवन में अपने मन मस्तिष्क को कितना संतुलित रख पाते हैं इस पर भी ह्रदय का स्वास्थ्य निर्भर करता है। तनाव को कतई नज़रअंदाज़ न करें। यह याद रखें कि स्ट्रेस में रह कर नौकरी, बिजनेस या निजी जीवन जीने से आपका ही नुकसान होता है। एक बार ह्रदय की हेल्थ खराब हो गयी तो वह स्थाई डैमेज छोड़ जाती है। स्वास्थ्य से बढ़ कर किसी अन्य चीज को न रखें। समझदारी से मानसिक समस्याओं पर चर्चा बेहद ज़रूरी है। अक्सर मानसिक समस्याओं को प्रतिष्ठा या छवि से जोड़ा जाता है । लेकिन यह बिल्कुल भी उचित नहीं है, जब भी तनाव का सामना करें तो तुरंत बिना किसी झिझक मनोचिकित्सक से सलाह लें।

जेनेटिक कारण

हृदय रोग के अनुवांशिक कारण भी होते हैं। अक्सर स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही की कड़ी में यह भी किया जाता है। बहुत से लोग फिट रहने की ठान लेते हैं । लेकिन यह नहीं समझते कि रोगों की जड़ का एक हिस्सा बहुत मुमकिन है फैमिली हिस्ट्री में हो। इसलिए हृदय रोग समेत अन्य अनुवांशिक रूप से फैलने वाले रोगों के सन्दर्भ में अपनी फैमिली हिस्ट्री पर नज़र ज़रूर रखें, उसके अनुसार अपना बेहतर स्वास्थ्य सुनिश्चित करें।

उम्र का असर दिल पर

उम्र के साथ शरीर की मशीनरी भी कमजोर होती जाती है और यह स्वाभाविक प्रक्रिया है। 65 साल से ज्यादा के उम्र के लोगों में हार्ट अटैक पड़ने, हार्ट फेल होने या हार्ट की बीमारी होने की आशंका हमेशा ज्यादा रहती है। इसकी वजह यह है कि उम्र बढ़ने के साथ ह्रदय अपनी क्षमता खोता जाता है। एक युवा हृदय की तुलना में बूढा ह्रदय ज्यादा स्ट्रेस और ज्यादा शारीरिक गतिविधि के दौरान टेक गति से धड़क नहीं पाता है। इसके अलावा उम्र के साथ धमनियों का लचीलापन भी कम हो जाता है। उम्र बढ़ने के साथ ह्रदय का ख्याल भी रखा जाना चाहिए। यहाँ भी वही बातें लागू होती हैं जो युवावस्था से की जानी चाहियें। यानी अच्छी लाइफ स्टाइल जिसमें भरपूर व्यायाम हो, तनाव न हो, तेल-घी वाला खाना न हो, अच्छी नींद हो, सिगरेट-शराब से दूरी हो। जहाँ तक बुजुर्गों में व्यायाम की बात है तो उसके लिए तेज चलना, डांसिंग, साइकिलिंग, बागवानी अदि करना चाहिए। यह कोशिश अवश्य करनी चाहिए कि घंटों लेट या बैठ कर समय न व्यतीत किया जाए।

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