Mughal Samrajya Ka Patan: एक गौरवशाली साम्राज्य से संघर्षमय जीवन जीने को मजबूर हुए थे मुगल, आइए जानते हैं इनके साम्राज्य का पतन और वंशजों की दुर्दशा से जुड़ी कहानी के बारे में

Mughal Samrajya Ka Patan Kaise Hua: अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र के वंशजों को घोर दरिद्रता का सामना करना पड़ा, यहां तक कि खैरात मांग कर गुजारा करना पड़ा। आइए जानते हैं इस विषय पर विस्तार से-;

Written By :  Jyotsna Singh
Update:2025-04-06 18:59 IST

Mughal Samrajya Ka Patan Kaise Hua (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

Mughal Samrajya Ka Patan Kaise Hua: भारत की मूल संस्कृति को छिन भिन्न कर लगभग तीन शताब्दियों तक शासन करने वाले मुगलों का पतन 18वीं शताब्दी में शुरू हुआ और 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद यह साम्राज्य पूरी तरह समाप्त हो गया। लेकिन इनका अंत बहुत ही दुर्गति के साथ हुआ। अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र (Last Mughal Emperor Bahadur Shah Zafar) को अंग्रेजों ने सत्ता से हटा दिया और उन्हें रंगून (म्यांमार) में निर्वासित कर दिया, जहां उनकी मृत्यु हुई। इसके बाद, उनके वंशजों को घोर दरिद्रता का सामना करना पड़ा, यहां तक कि खैरात मांग कर गुजारा करना पड़ा। आइए जानते हैं इस विषय पर विस्तार से-

मिर्जा जवान बख्त: लाल किले से भीख मांगने तक

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

मुगल शासक बहादुर शाह ज़फ़र के पुत्र मिर्जा जवान बख्त (Mirza Jawan Bakht) का जन्म लाल किले में हुआ था। लेकिन अंग्रेजों द्वारा सत्ता छीनने के बाद वे बेहद दयनीय स्थिति में पहुंच गए। बताया जाता है कि उन्होंने दिल्ली की सड़कों पर भीख मांगकर अपना गुजारा किया ताकि उनकी पहचान न उजागर हो और वे अपने गुजारे के लिए कुछ पैसे इकट्ठा कर सकें।

प्रिंस जिनका पेशा कब्र खोदना बना

इतिहासकारों के अनुसार, बहादुर शाह ज़फ़र के कुछ अन्य वंशजों को कब्र खोदकर अपनी आजीविका कमानी पड़ी। अंग्रेजों ने न केवल उन्हें किसी भी सरकारी सहायता से वंचित कर दिया, बल्कि उन्हें अपने परिवार के गौरवशाली अतीत से पूरी तरह काट दिया। गरीबी और तिरस्कार के कारण, कुछ वंशजों को दो वक्त की रोटी के लिए कब्रिस्तान में शवों को दफनाने का काम भी करना पड़ा ताकि वे जीवित रह सकें। यह एक समय के शाही परिवार के लिए सबसे बड़ी त्रासदी थी।

कमर सुल्तान बहादुर: भीख मांगने को मजबूर शहजादा

बहादुर शाह ज़फ़र के पोते कमर सुल्तान बहादुर (Qamar Sultan Bahadur) की स्थिति भी कुछ अलग नहीं थी। इतिहासकार ख्वाजा हसन निज़ामी की किताब 'बेगमात के आँसू' में बताया गया है कि कमर सुल्तान बहादुर भीख मांगते हुए कहते थे, "या अल्लाह, मुझे इतना दे कि मैं अपने खाने के लिए सामान खरीद पाऊं।" यह स्थिति मुगल वंशजों की गरीबी और संघर्ष को दर्शाती है।

शाही बेगमों की व्यथा: विलासिता से संघर्ष तक

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

मुगल साम्राज्य के पतन के बाद शाही बेगमों की स्थिति भी बेहद दयनीय हो गई। अंग्रेजों ने मुगल हरम को समाप्त कर दिया और बेगमों को उनके महलों से निकाल दिया गया। जो महिलाएं कभी बेशुमार दौलत और ऐश्वर्य में जीवन बिताती थीं, वे अचानक से असहाय और बेसहारा हो गईं। बहादुर शाह ज़फ़र की प्रमुख बेगम ज़ीनत महल (Begum Zeenat Mahal) को पति के साथ रंगून भेज दिया गया था, जहां वे बेहद कष्टमय जीवन बिताने को मजबूर हुईं। उनकी सारी संपत्ति जब्त कर ली गई थी। उन्हें अंग्रेजों की दया पर छोड़ दिया गया।

इसके कई शाही बेगमें दिल्ली, कोलकाता और अन्य शहरों में दर-दर भटकने को मजबूर हो गईं। कुछ को भीख मांगनी पड़ी, तो कुछ ने दूसरों के घरों में नौकरानी बनकर काम किया। वे जो कभी शाही महलों में रहती थीं, उन्हें झोपड़ियों और गुमनाम गलियों में शरण लेनी पड़ी।

ख्वाजा हसन निज़ामी की गवाही

ख्वाजा हसन निज़ामी एक मशहूर उर्दू लेखक, पत्रकार, सूफ़ी विचारक और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समर्थक थे। उनका जन्म 1878 में दिल्ली में हुआ था और वे चिश्ती सिलसिले के सूफ़ी संत थे। उन्होंने कई ऐतिहासिक, धार्मिक और सामाजिक विषयों पर किताबें लिखीं- एक अनुमान के अनुसार, उन्होंने 500 से अधिक किताबें लिखीं। उनकी एक प्रसिद्ध पुस्तक 'बेगमात के आँसू' (Begmaat ke Aansoo) है, जो 1857 की गदर (प्रथम स्वतंत्रता संग्राम) के बाद बहादुर शाह ज़फ़र के परिवार और मुग़ल बेगमात की दुर्दशा का मार्मिक वर्णन करती है। इस किताब में उन्होंने उस दौर की दिल दहला देने वाली सच्चाईयों को दर्ज किया है, जब शाही परिवार के लोग दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हुए।

ख्वाजा हसन निज़ामी ने अपनी इस किताब में लिखा कि कैसे कभी रेशमी वस्त्र पहनने वाली और इत्र से महकने वाली ये महिलाएं फटेहाल और लाचार हो गईं। ‘बेगमात के आँसू’ ख्वाजा हसन निज़ामी की एक बेहद मार्मिक और ऐतिहासिक दस्तावेज़ी रचना है, इसमें कई छोटे-छोटे किस्से हैं जो पाठक की आत्मा को झकझोर देते हैं। कुछ उल्लेखनीय किस्से नीचे दिए जा रहे हैं:

1. बेगम जो भीख माँगती थीं

एक किस्सा एक शाही बेगम का है, जो कभी लाल किले की रानियों में गिनी जाती थीं। उन्हें अंग्रेजों ने उनके महल से निकाल दिया था। दर-दर भटकने के बाद वो एक दरगाह के पास बैठकर भीख माँगती थीं। कोई उन्हें पहचान न ले, इसलिए वो अपने चेहरे को हमेशा घूंघट से ढके रहती थीं। एक दिन एक पुराने नौकर ने उन्हें पहचान लिया और रो पड़ा।

2. शहज़ादी जो सब्ज़ी बेचती थी

एक और किस्सा एक मुग़ल शहज़ादी का है जो अपनी गुज़ारे के लिए सब्ज़ी बेचने पर मजबूर हो गई थी। जब लोगों ने उसका शाही परिचय जाना, तो कई लोग हैरान रह गए कि कैसे जो कभी शाही तख़्त के करीब थीं, आज बाज़ार में तराज़ू लिए खड़ी हैं।

3. बेगम की बेटी की शादी एक हलवाई से

एक और मार्मिक प्रसंग में एक बेगम अपनी जवान बेटी की शादी किसी शरीफ़ खानदान में करना चाहती थीं। लेकिन मुफ़लिसी और तंगी की हालत ने उन्हें मजबूर कर दिया कि वो एक हलवाई से बेटी का निकाह करवा दें। शादी के बाद जब लोग हलवाई की दुकान के सामने बेगम को बैठा देखते, तो उन्हें यक़ीन नहीं होता कि ये वही है जो कभी शाही महलों में रहती थीं।

अंतिम वंशजों की वर्तमान स्थिति (Mughals Emperor Last Descendants)

आज भी भारत और म्यांमार में मुगल वंशजों के कुछ परिवार मौजूद हैं। कुछ लोगों ने शिक्षा और अन्य क्षेत्रों में सफलता प्राप्त की। लेकिन कई अभी भी संघर्ष कर रहे हैं। दिल्ली और कोलकाता में कुछ परिवार सामान्य जीवन बिता रहे हैं, जबकि म्यांमार में निर्वासित परिवार के वंशज अपेक्षाकृत अधिक कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। मुगल वंश का पतन केवल एक साम्राज्य का अंत नहीं था, बल्कि यह एक पूरे परिवार की शानो-शौकत से गरीबी और संघर्ष की यात्रा भी थी।

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