Raja Bhoj History: मध्यप्रदेश के इस राजा की कहावत अभी भी है फेमस, आइए जानते इसका अनसुना किस्सा

Raja Bhoj History Wiki in Hindi: राजा भोज परमार वंश के एक प्रतापी शासक थे। उनका जन्म लगभग 1010 ईस्वी में हुआ था। उनके पिता सिंधुलराज और माता सावित्री देवी थीं।

Written By :  AKshita Pidiha
Update:2024-12-21 20:05 IST

 Madhya Pradesh Ke Raja Raja Bhoj Ki Kahani in Hindi 

Raja Bhoj History Wiki in Hindi: मध्य प्रदेश के इतिहास में राजा भोज का नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित है। वह सिर्फ एक महान योद्धा और कुशल प्रशासक ही नहीं, बल्कि कला, साहित्य और संस्कृति के अभूतपूर्व संरक्षक भी थे। राजा भोज ने 11वीं शताब्दी में धार (मध्य प्रदेश) से अपने विशाल साम्राज्य पर शासन किया। उनके शासनकाल को मध्यकालीन भारत के स्वर्ण युग के रूप में जाना जाता है।

राजा भोज का जीवन परिचय

राजा भोज परमार वंश के एक प्रतापी शासक थे। उनका जन्म लगभग 1010 ईस्वी में हुआ था। उनके पिता सिंधुलराज और माता सावित्री देवी थीं। बचपन से ही भोज अत्यंत बुद्धिमान और पराक्रमी थे। उन्हें राजनीति, युद्धकला, वेद, ज्योतिष और वास्तुशास्त्र का गहन ज्ञान प्राप्त था।


भोज ने अपनी राजधानी उज्जयिनी (उज्जैन) और बाद में धार को बनाया। उन्होंने अपने शासनकाल में कला, संस्कृति और शिक्षा को अद्वितीय ऊंचाइयों पर पहुंचाया।

सत्ता में आने की चुनौतीपूर्ण यात्रा

राजा भोज का शुरुआती जीवन संघर्षों से भरा था। उनके पिता की मृत्यु के बाद जब भोज गद्दी पर बैठे, तब उनके विरोधियों ने उनकी सत्ता को चुनौती दी।


चालुक्य, कलचुरी और चंदेल जैसे शक्तिशाली राजवंशों से संघर्ष करते हुए भोज ने न केवल अपने राज्य को सुरक्षित रखा, बल्कि अपने साम्राज्य का विस्तार भी किया।उनकी शक्ति और कूटनीति के कारण मध्य भारत में परमार साम्राज्य एक प्रमुख शक्ति बन गया।

कहावत का जन्म हुआ यहाँ

राजा भोज 11वीं सदी में मालवा क्षेत्र के पराक्रमी और प्रभावशाली शासक थे, जिन्होंने अपनी वीरता और बुद्धिमत्ता से इतिहास में अमिट छाप छोड़ी। राजा भोज ने भोपाल की खोज की थी, जिसे पहले ‘भोजपाल’ के नाम से जाना जाता था। यह नाम राजा भोज की महानता और योगदान को दर्शाता है। समय के साथ, भोजपाल को बदलकर भोपाल कर दिया गया।राजा भोज मालवा की राजधानी धार से शासन करते थे और अपने समय में कई महत्वपूर्ण युद्ध लड़े। इनमें से दो प्रमुख युद्ध थे कलचुरी नरेश गांगेयदेव, जिन्हें ‘गंगू’ के नाम से जाना जाता था, और चालुक्य नरेश तैलप, जिन्हें ‘तेली’ कहा जाता था, के साथ। इन युद्धों में राजा भोज ने दोनों शासकों को करारी हार दी, जो उनकी ताकत और सैन्य कुशलता का प्रमाण है।इन विजयों के बाद राजा भोज की प्रतिष्ठा इतनी बढ़ी कि उनके नाम पर एक प्रसिद्ध कहावत प्रचलित हुई:

"कहां राजा भोज और कहां गंगू तेली"

यह कहावत राजा भोज की शौर्य और प्रतिष्ठा को दर्शाने के साथ-साथ उनके विरोधियों की कमजोरी और हार को भी उजागर करती है।

राजा भोज का शासनकाल: ज्ञान और संस्कृति का युग


राजा भोज को ‘विद्या का मसीहा’ कहा जाता है। उन्होंने कई विश्वविद्यालयों और गुरुकुलों की स्थापना की। धार में स्थापित ‘भोजशाला’ उनकी सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक है। यह एक प्रसिद्ध शिक्षा केंद्र था, जहां संस्कृत और अन्य विषयों की पढ़ाई होती थी।भोज खुद एक महान विद्वान थे। उन्होंने कई ग्रंथ लिखे, जिनमें ‘समरांगण सूत्रधार’ ( वास्तुकला पर), राजमार्तंड’ (योग पर), और ‘ सरस्वती कंठाभरण’ ( काव्यशास्त्र पर) प्रमुख हैं।

राजा भोज के शासनकाल में मध्य प्रदेश में वास्तुकला ने अद्वितीय ऊंचाइयां प्राप्त कीं। उन्होंने धार, उज्जैन और भोपाल में कई भव्य मंदिरों और इमारतों का निर्माण कराया। भोजपुर का शिव मंदिर उनकी वास्तुकला की उत्कृष्टता का उदाहरण है।इस मंदिर में एक विशाल शिवलिंग है, जो दुनिया के सबसे बड़े शिवलिंगों में से एक है। इसे ‘भोजेश्वर मंदिर’ भी कहा जाता है।

सैन्य कौशल और विजय अभियान

राजा भोज ने अपने शासनकाल में कई सैन्य अभियानों का नेतृत्व किया। उन्होंने मालवा, गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों पर विजय प्राप्त की।


चालुक्य और कलचुरी जैसे शक्तिशाली राजवंशों के साथ युद्ध में भोज ने अपनी वीरता का परिचय दिया। उनके शौर्य और सैन्य कौशल के कारण उनकी गिनती भारत के महान योद्धाओं में होती है।

धार्मिक सहिष्णुता और सामाजिक सुधार

राजा भोज धार्मिक रूप से सहिष्णु थे। उन्होंने सभी धर्मों का सम्मान किया और समाज में सुधार लाने के लिए कई कदम उठाए। उनके शासनकाल में शैव, वैष्णव, बौद्ध और जैन धर्मों को बढ़ावा मिला।

भोज ने नदियों और तालाबों का निर्माण कर जल संरक्षण को बढ़ावा दिया। उनके द्वारा बनाए गए ‘भोजताल" (भोपाल का बड़ा तालाब) आज भी उनकी दूरदृष्टि का प्रतीक है।

राजा भोज के अंत का रहस्य

राजा भोज का निधन 1055 ईस्वी में हुआ। उनकी मृत्यु के बाद परमार साम्राज्य धीरे-धीरे कमजोर हो गया।


हालांकि, भोज का नाम और उनका योगदान हमेशा के लिए इतिहास में अमर हो गया।

राजा भोज की विरासत

राजा भोज को भारतीय इतिहास में उनकी अद्वितीय प्रशासनिक क्षमता, सैन्य कौशल, और सांस्कृतिक योगदान के लिए याद किया जाता है। "कहां राजा भोज, कहां गंगू तेली" जैसी कहावत उनके गौरव को दर्शाती है।भोपाल में स्थित ‘राजा भोज एयरपोर्ट’ और उनके नाम पर बने कई संस्थान उनकी स्मृति को जीवित रखते हैं।


राजा भोज केवल एक शासक नहीं थे; वे एक विचारधारा थे। उनका शासनकाल भारतीय इतिहास का वह काल है, जब शिक्षा, संस्कृति और कला ने एक नया मुकाम हासिल किया। आज भी उनकी गाथाएं प्रेरणा का स्रोत हैं और भारतीय संस्कृति में उनके योगदान को सदियों तक याद किया जाएगा।

जीवन से जुड़े कुछ विवाद

राजा भोज का नाम जितना महान है, उनके शासनकाल में कुछ विवाद भी रहे, जो इतिहास का हिस्सा बन गए। ये विवाद मुख्य रूप से उनकी राजनीतिक रणनीतियों, सैन्य अभियानों, और धार्मिक पहलुओं से जुड़े हुए हैं।

धार्मिक सहिष्णुता पर सवाल

राजा भोज को धार्मिक सहिष्णु शासक माना जाता है।,लेकिन कुछ इतिहासकारों का मानना है कि उनके शासनकाल में शैव धर्म को अन्य धर्मों के मुकाबले ज्यादा प्राथमिकता दी गई। भोज ने कई भव्य शिव मंदिरों का निर्माण कराया, विशेषकर भोजेश्वर मंदिर, जिसे उनके शैव धर्म के प्रति झुकाव का प्रतीक माना जाता है। कुछ दस्तावेजों में यह उल्लेख मिलता है कि जैन और बौद्ध धर्म के अनुयायियों को उतना समर्थन नहीं मिला, जितना शैव और वैष्णव परंपराओं को। हालांकि, इस बात के ठोस प्रमाण नहीं हैं और यह अधिकतर अनुमान पर आधारित है।

राजा भोज और चालुक्य शासकों के बीच लंबे समय तक संघर्ष चला।चालुक्य राजा जयसिंह द्वितीय के साथ भोज के सैन्य अभियान विवादास्पद माने जाते हैं।धार और उज्जैन के क्षेत्रों को लेकर हुए इन संघर्षों में भोज ने बड़ी जीत हासिल की।लेकिन कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इन लड़ाइयों के कारण प्रजा पर कर का भार बढ़ा।

राजा भोज द्वारा धार में स्थापित भोजशाला आज भी विवादों का केंद्र है।भोजशाला को शिक्षा और संस्कृति का केंद्र माना जाता था।लेकिन आधुनिक समय में इसे लेकर हिंदू और मुस्लिम समुदायों में विवाद है।हिंदू समुदाय इसे राजा भोज द्वारा देवी सरस्वती का मंदिर मानते हैं, जबकि कुछ मुस्लिम इसे ‘कमाल मौला मस्जिद’ मानते हैं।यह विवाद राजा भोज के धार्मिक योगदान पर प्रश्नचिह्न लगाता है, हालांकि इसके पीछे उनकी कोई सीधी भूमिका नहीं थी।


भोज ने अपने शासनकाल में कई सामाजिक सुधार किए।,लेकिन उनके कुछ फैसलों ने उस समय की परंपरागत व्यवस्थाओं को चुनौती दी।भोज पर आरोप था कि उन्होंने ब्राह्मण वर्ग को अन्य वर्गों के मुकाबले अधिक संरक्षण दिया।हालांकि भोज ने जल प्रबंधन और कृषि सुधारों में सभी वर्गों को शामिल किया। लेकिन निचले वर्गों को राजनीतिक और सामाजिक निर्णय लेने में विशेष अधिकार नहीं मिले।

राजा भोज के सैन्य अभियान उनके शासन को विस्तृत करने के लिए प्रसिद्ध हैं। लेकिन कुछ आलोचक उन्हें इन अभियानों में अत्यधिक कठोर मानते हैं। धार और उज्जैन के पड़ोसी राज्यों के साथ हुए संघर्षों में भोज की सेना ने विरोधियों के क्षेत्रों में भारी विनाश किया।इन अभियानों के दौरान स्थानीय जनता को भी काफी नुकसान उठाना पड़ा।

भोजेश्वर मंदिर, जिसे अधूरा छोड़ दिया गया था, भी विवादों का विषय है।इतिहासकारों का मानना है कि इस मंदिर का निर्माण किसी राजनीतिक या धार्मिक दबाव के कारण रुक गया था। कुछ विद्वान इसे चालुक्य और परमार साम्राज्य के बीच हुए संघर्ष से जोड़ते हैं।

राजा भोज एक महान शासक थे।लेकिन हर युग में शक्तिशाली व्यक्तित्वों के साथ विवाद जुड़े रहते हैं। उनके जीवन और शासनकाल से जुड़े विवाद उनकी महानता को कम नहीं करते, बल्कि यह दर्शाते हैं कि उनके फैसलों का प्रभाव व्यापक था। चाहे उनके धार्मिक झुकाव हों, सैन्य अभियानों की रणनीतियां, या उनके द्वारा निर्मित स्थापत्य—राजा भोज का नाम आज भी गर्व और चर्चा का विषय है।

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