Vijaya Raje Scindia Death Anniversary: विजयाराजे सिंधिया भारतीय राजनीति की 'राजमाता' का जीवन और योगदान

Vijaya Raje Scindia Ki Punyatithi: ग्वालियर की महारानी विजयाराजे सिंधिया की आज पुण्यतिथि है। विजयाराजे सिंधिया को उनके अनुशासन, दृढ़ता और परंपरागत मूल्यप्रियता के लिए जाना जाता था। आइए जानें विजयाराजे के बारे में खास बातें।;

Written By :  Akshita Pidiha
Update:2025-01-25 19:26 IST

Vijaya Raje Scindia (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

Vijaya Raje Scindia Death Anniversary: विजयाराजे सिंधिया का जन्म 12 अक्टूबर, 1919 को मध्य प्रदेश के सागर जिले में हुआ था। उनके पिता महेंद्र सिंह ठाकुर (Mahender Singh Thakur) जालौन में डिप्टी कलेक्टर थे और मां विंदेश्वरी देवी ने उनका नाम लेखा दिव्येश्वरी (Lekha Divyeshwari) रखा। उनकी परवरिश शाही माहौल में हुई और उनका व्यक्तित्व बचपन से ही प्रभावशाली था। उनका नाम विजयाराजे राजे पवार था और वे मराठा राजघराने से संबंधित थीं।

ग्वालियर के महाराजा से विवाह (Vijaya Raje Scindia Ki Shadi)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

मुंबई के ताज होटल में दिव्येश्वरी की पहली मुलाकात ग्वालियर के महाराजा जीवाजी राव सिंधिया (Jiwajirao Scindia) से हुई। महाराजा ने उन्हें राजकुमारी कहकर संबोधित किया। कुछ ही समय बाद उनके परिवार को विवाह का प्रस्ताव भेजा। हालांकि सिंधिया परिवार और मराठा सरदार इस शादी के खिलाफ थे। लेकिन दोनों का विवाह संपन्न हुआ। विवाह के बाद दिव्येश्वरी का नाम विजयाराजे सिंधिया (Vijaya Raje Scindia) पड़ा और वे ग्वालियर की महारानी बनीं।

विजयाराजे सिंधिया को उनके अनुशासन, दृढ़ता और परंपरागत मूल्यप्रियता के लिए जाना जाता था। उनका शाही जीवन और उनकी राजनीतिक यात्रा एक प्रेरणा है, जिसमें उन्होंने शाही पृष्ठभूमि से एक सामान्य जननेता तक का सफर तय किया।

राजनीतिक सफर की शुरुआत (Vijaya Raje Scindia Political Career)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

भारत के स्वतंत्रता आंदोलन और 1947 में भारत के विभाजन के बाद, कई राजघरानों ने राजनीति से दूरी बनाए रखी। हालांकि, विजयाराजे सिंधिया ने 1957 में भारतीय राजनीति में कदम रखा। विजयाराजे सिंधिया ने राजनीति में अपना पहला कदम कांग्रेस के माध्यम से रखा। हालांकि वे कांग्रेस के विचारों से कभी प्रभावित नहीं रहीं। उनके लिए राजनीति सेवा का माध्यम थी। वे देश की जनता के लिए कार्य करने के लिए प्रतिबद्ध थीं।

जल्द ही विजयाराजे सिंधिया ने कांग्रेस छोड़कर भारतीय जनसंघ का दामन थामा। जनसंघ से जुड़ने के बाद वे राष्ट्रीय राजनीति में एक मजबूत और प्रभावशाली नेता के रूप में उभरीं। उनकी दूरदृष्टि, निष्ठा और हिंदुत्व की विचारधारा ने उन्हें पार्टी में विशेष स्थान दिलाया।

1957 में वे गुना निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा चुनाव जीतकर संसद पहुंचीं। इसके बाद उन्होंने ग्वालियर, भिंड और अन्य क्षेत्रों से भी चुनाव लड़ा और कई बार जीत दर्ज की। उनका राजनीतिक करियर भारतीय जनसंघ के लिए मील का पत्थर साबित हुआ।

दोहरी सदस्यता विवाद के कारण 1980 में जनसंघ के नेताओं ने अलग राह पकड़ने का निर्णय लिया। विजयाराजे सिंधिया ने अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के साथ मिलकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की स्थापना की।

विजयाराजे सिंधिया का भाजपा में योगदान

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विजयाराजे सिंधिया को भारतीय जनसंघ और बाद में भारतीय जनता पार्टी की आधारशिला रखने वालों में से एक माना जाता है। उन्होंने:

संघठन निर्माण: भाजपा और जनसंघ को जमीनी स्तर पर मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

मध्य प्रदेश में विस्तार: मध्य प्रदेश में भाजपा के प्रचार और विस्तार में उनकी भूमिका अतुलनीय थी।

हिंदुत्व का समर्थन: उन्होंने अपने भाषणों और कार्यों के माध्यम से हिंदुत्व की विचारधारा का प्रचार किया।

सामाजिक सुधार: शोषित और वंचित वर्गों के उत्थान के लिए काम किया।

उनकी लोकप्रियता और दृढ़ता के कारण उन्हें राजमाता कहा जाने लगा।

1980 का मध्यावधि चुनाव

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

भाजपा की स्थापना के तुरंत बाद 1980 में मध्यावधि चुनाव हुआ। हिंदी पट्टी के सभी राज्यों में भाजपा ने उम्मीदवार उतारने का निर्णय लिया। रायबरेली से इंदिरा गांधी चुनाव लड़ रही थीं, और उनके खिलाफ भाजपा को एक मजबूत उम्मीदवार की तलाश थी।

रायबरेली से इंदिरा गांधी के खिलाफ चुनाव

जब कोई बड़ा नेता रायबरेली से लड़ने को तैयार नहीं हुआ, तो विजयाराजे सिंधिया संकटमोचक बनीं। उन्होंने रायबरेली से इंदिरा गांधी के खिलाफ नामांकन किया। उनकी सभाओं में भीड़ कांग्रेस को चिंतित कर रही थी। हालांकि, चुनाव में वे डेढ़ लाख से अधिक मतों से हार गईं। इस चुनाव ने रायबरेली को सुर्खियों में ला दिया और विजयाराजे सिंधिया की छवि को और मजबूत किया।

आपातकाल और जेल (Emergency And Jail)

1975 में इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लागू किया। इस दौरान विजयाराजे सिंधिया विपक्ष के प्रमुख चेहरों में थीं।उन्हें दिल्ली के तिहाड़ जेल में बंद कर दिया गया।उनका अपराध सिर्फ इतना था कि वे सरकार की नीतियों का विरोध कर रही थीं।इस अवधि ने विजयाराजे सिंधिया को और दृढ़ और सशक्त नेता बना दिया।

1984 का चुनाव: ग्वालियर की महत्वपूर्ण लड़ाई

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

अटल बिहारी वाजपेयी बनाम माधवराव सिंधिया

1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद आम चुनाव हुआ। कांग्रेस के पक्ष में सहानुभूति की लहर थी। भाजपा ने ग्वालियर से अटल बिहारी वाजपेयी को चुनाव में उतारा।कांग्रेस ने अंतिम समय में माधवराव सिंधिया को ग्वालियर से खड़ा किया।विजयाराजे सिंधिया ने अटल बिहारी वाजपेयी को 'धर्मपुत्र' घोषित कर रखा था।प्रचार के दौरान विजयाराजे सिंधिया ने अटल बिहारी वाजपेयी के समर्थन में अभियान चलाया। चुनाव परिणाम में अटल बिहारी वाजपेयी इस चुनाव में हार गए। हालांकि, विजयाराजे सिंधिया का भाजपा के प्रति समर्पण और पॉलिटिकल स्टैंड इस चुनाव में ऐतिहासिक बन गया।

माधवराव सिंधिया और कांग्रेस

विजयाराजे सिंधिया के बेटे माधवराव सिंधिया ने कांग्रेस पार्टी का रुख किया और पार्टी में एक प्रमुख नेता बन गए। यह राजनीतिक बदलाव उनकी मां और उनके बीच मतभेदों का कारण बना।

वसीयत विवाद

उनके संबंध इतने ख़राब थे कि 1985 में अपने हाथ से लिखी वसीयत में उन्होंने माधवराव सिंधिया को अंतिम संस्कार में शामिल होने से भी इनकार कर दिया था। दोनों के बीच में जबरदस्त राजनीतिक प्रतिद्वंदिता थी। मां विजयाराजे जहां पहले जनसंघ में तो बाद में उसके बदले हुए स्वरुप बीजेपी में थीं तो बेटा माधवराव सिंधिया कांग्रेस के कार्यकर्ता था। 2001 में विजयाराजे सिंधिया का निधन हो गया था। विजयाराजे की वसीयत के हिसाब से उन्होंने अपनी बेटी को तमाम जेवरात और अन्य कीमती चीजें दी थीं। - यहां तक कि अपने राजनीतिक सलाहकार और बेहद विश्वस्त संभाजीराव आंग्रे को विजयाराजे सिंधिया ट्रस्ट का अध्यक्ष बना दिया।

विजयाराजे सिंधिया और माधवराव

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

सिंधिया के बीच कैसे रिश्ते थे, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मां राजमाता ने ग्वालियर के जयविलास पैलेस में रहने के लिए माधवराव सिंधिया से किराया भी मांग लिया। विजयाराजे से माधवराव सिंधिया से एक रुपए साल का किराया मांगा था। इसके अलावा जब इमरजेंसी के दौरान विजयाराजे को पुलिस ने गिरफ्तार किया था तब उन्होंने आरोप लगाया था कि उन्हें उनके बेटे माधवराव ने ही गिरफ्तार करवाया है।

ग्वालियर और समाज के लिए योगदान

विजयाराजे सिंधिया ने ग्वालियर और आसपास के क्षेत्रों के लिए कई महत्वपूर्ण कार्य किए:

शिक्षा का प्रसार: उन्होंने ग्वालियर में कई शिक्षण संस्थानों की स्थापना की।महिलाओं और वंचित वर्गों के लिए विशेष योजनाएं शुरू कीं।

स्वास्थ्य सेवाएं: उन्होंने अस्पताल और स्वास्थ्य केंद्र स्थापित किए।गरीबों के लिए मुफ्त इलाज और दवाइयों की सुविधा उपलब्ध करवाई।

सांस्कृतिक संरक्षण: ग्वालियर की सांस्कृतिक धरोहर और विरासत को संरक्षित करने में उनकी अहम भूमिका रही।

गरीबों और किसानों के लिए काम: उन्होंने किसानों और श्रमिकों के लिए कल्याणकारी योजनाएं शुरू कीं। ग्वालियर के ग्रामीण क्षेत्रों के विकास में योगदान दिया।

विजयाराजे सिंधिया की मृत्यु

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

विजयाराजे सिंधिया का निधन 25 जनवरी, 2001 को हुआ। उनकी मृत्यु के साथ ही भारतीय राजनीति में एक युग का अंत हो गया। वे न केवल भाजपा के लिए बल्कि पूरे देश के लिए प्रेरणा का स्रोत थीं।उनकी मृत्यु लंबी बीमारी के बाद हुई। हालांकि, उनके राजनीतिक और सामाजिक योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता।

विजयाराजे सिंधिया का राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव

भाजपा के लिए योगदान: उन्होंने भाजपा को जमीनी स्तर पर मजबूत किया और इसे एक राष्ट्रीय पार्टी के रूप में स्थापित करने में मदद की।वे भाजपा की वैचारिक आधारशिला थीं।

महिला सशक्तिकरण: उन्होंने महिलाओं को राजनीति में आने के लिए प्रेरित किया।उनकी कहानी उन महिलाओं के लिए प्रेरणा है, जो राजनीति और समाज में बदलाव लाना चाहती हैं।

धार्मिक सहिष्णुता: उन्होंने हिंदुत्व की विचारधारा को बढ़ावा दिया, लेकिन साथ ही धार्मिक सहिष्णुता का भी प्रचार किया।

परिवार और राजनीति: उनके परिवार में राजनीतिक मतभेदों के बावजूद, उन्होंने अपने विचारों से समझौता नहीं किया। उनका जीवन यह सिखाता है कि सिद्धांतों के लिए खड़ा रहना कितना महत्वपूर्ण है।

विजयाराजे सिंधिया भारतीय राजनीति की एक महान हस्ती थीं। उनका जीवन समाज और राजनीति के प्रति समर्पण का प्रतीक था। उन्होंने शाही जीवन को त्यागकर जनसेवा और राजनीतिक सुधारों के लिए काम किया।

उनकी भूमिका भाजपा और भारतीय राजनीति में हमेशा याद की जाएगी। उनके द्वारा शुरू किए गए कार्य, विशेष रूप से महिलाओं और वंचित वर्गों के लिए, आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं। विजयाराजे सिंधिया वास्तव में 'राजमाता' के नाम की हकदार थीं, क्योंकि उन्होंने अपना जीवन समाज की भलाई और राजनीति के उत्थान के लिए समर्पित किया। उनकी जीवन यात्रा से यह स्पष्ट होता है कि उन्होंने राजनीति को सेवा का माध्यम माना और अपना पूरा जीवन समाज और देश के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया। विजयाराजे सिंधिया को भारतीय राजनीति में 'राजमाता' के रूप में सदैव याद किया जाएगा।

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