Bharat Ki Famous Transgender: गौरी सावंत, एक सशक्त ट्रांसजेंडर कार्यकर्ता की प्रेरणादायक कहानी
Famous Transgender Shri Gauri Sawant Biography: एक सशक्त ट्रांसजेंडर कार्यकर्ता गौरी सावंत का जीवन कई कठिनाइयों से गुज़रा वहीँ कैसे वो समाज के लिए दिन रात काम कर रही हैं आइये विस्तार से जानते हैं उनकी प्रेरणादायक कहानी।;
Famous Transgender Shri Gauri Sawant Biography: गौरी सावंत, भारत की एक प्रमुख ट्रांसजेंडर कार्यकर्ता, का जीवन साहस, संघर्ष और प्रेरणा का प्रतीक है। वे न केवल अपने समुदाय के लिए एक आवाज बनीं, बल्कि समाज में बदलाव की मिसाल भी कायम की। उनका जीवन एक अद्वितीय यात्रा है, जो अपने आप में एक प्रेरणादायक डॉक्यूमेंट्री के रूप में देखी जा सकती है।
गौरी सावंत का जन्म 1979 में पुणे, महाराष्ट्र में गणेश सावंत नाम के एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ। उनका जन्म एक लड़के के रूप में हुआ था और उनका नाम गणेश रखा गया। गौरी के पिता एक पुलिस अधिकारी थे और परिवार अनुशासनप्रिय था। लेकिन बचपन से ही गौरी ने महसूस किया कि वे बाकी बच्चों से अलग हैं। वे अपनी पहचान को लेकर संघर्ष कर रही थीं और उन्हें समाज की ओर से आलोचना का सामना करना पड़ता था।
गौरी को लड़कों के कपड़े पहनने और उनके साथ खेलने में रुचि नहीं थी। उन्हें अपनी मां के आभूषण और साड़ियों में अधिक खुशी मिलती थी। उनके इस स्वभाव के कारण परिवार में अक्सर उन्हें डांट पड़ती थी। गौरी का बचपन समाज के पूर्वाग्रहों और परिवार की असहमति के बीच संघर्षों से भरा था।
पारिवारिक संघर्ष और घर छोड़ने की कहानी
गौरी ने बताया था कि घर छोड़ने के बाद उनके पिता ने जीते जी उनका अंतिम संस्कार कर दिया था। अपने परिवार से अलग होने के बाद गौरी ने ट्रांसजेंडर समुदाय के अधिकारों के लिए संघर्ष करना शुरू किया। उनका मानना था कि उनके अपने भी कभी उनका साथ नहीं देते थे।यह गौरी के लिए एक बेहद कठिन समय था। वे अपनी शिक्षा को जारी रखने के लिए मुंबई चली गईं। वहां उन्होंने ट्रांसजेंडर समुदाय के बीच अपनी जगह बनाई।
बचपन और नाम का चयन
गौरी सावंत का जन्म गणेश नाम से हुआ था। उन्होंने अपना नाम ‘गौरी’ इसलिए चुना क्योंकि भगवान गणेश की मां पार्वती को गौरी भी कहा जाता है। बचपन से ही गौरी का सपना मां बनने का था। जब भी उनसे पूछा जाता कि वे बड़े होकर क्या बनेंगी, तो वे बिना झिझक ‘आई’( मां) कहती थीं।
ट्रांसजेंडर अधिकारों के लिए संघर्ष
मुंबई में, गौरी ने महसूस किया कि ट्रांसजेंडर समुदाय के लोग किस तरह के भेदभाव और कठिनाइयों का सामना करते हैं। यह अनुभव उनके जीवन का महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। उन्होंने न केवल अपने लिए बल्कि अपने समुदाय के लिए भी कुछ करने का संकल्प लिया।
गौरी सावंत ने ट्रांसजेंडर समुदाय के अधिकारों के लिए संघर्ष करना शुरू किया। उन्होंने 2000 के दशक में सामाजिक कार्यों में सक्रिय भूमिका निभाई। गौरी ने ‘सखी चार चौघी’ नामक एक एनजीओ की स्थापना की, जिसका उद्देश्य ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों को सशक्त बनाना और उनकी समस्याओं का समाधान करना था। इस संगठन के माध्यम से गौरी ने HIV/AIDS जागरूकता, यौन स्वास्थ्य, और ट्रांसजेंडर अधिकारों के लिए काम किया।
गौरी का सबसे बड़ा योगदान ट्रांसजेंडर समुदाय को मुख्यधारा में लाने का प्रयास रहा। उन्होंने समाज से ट्रांसजेंडर लोगों के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं और रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने की मांग की। उनके प्रयासों ने न केवल उनके समुदाय को लाभ पहुंचाया, बल्कि समाज की सोच में भी बदलाव लाया।
नायिका के रूप में उभरना
गौरी सावंत का नाम राष्ट्रीय स्तर पर तब प्रमुखता से सामने आया जब उन्होंने 2014 में भारत के सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसजेंडर समुदाय के अधिकारों के लिए याचिका दायर की। यह ऐतिहासिक फैसला ‘नालसा बनाम भारत सरकार’ के नाम से जाना जाता है। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडर समुदाय को ‘ थर्ड जेंडर’ के रूप में मान्यता दी और उनके मौलिक अधिकारों की रक्षा का आदेश दिया। इस निर्णय के बाद, गौरी सावंत पूरे देश में ट्रांसजेंडर समुदाय की आवाज बन गईं।
समाज और सिनेमा में योगदान
गौरी सावंत के जीवन पर आधारित कई कहानियां और कार्यक्रम बनाए गए हैं। उनके जीवन को फिल्म और सिनेमा के माध्यम से दिखाने का प्रयास किया गया, ताकि समाज को ट्रांसजेंडर समुदाय के संघर्षों और उनकी वास्तविकता से अवगत कराया जा सके। 2023 में गौरी सावंत पर आधारित वेब सीरीज ‘ताली’ रिलीज़ हुई, जिसमें सुष्मिता सेन ने उनकी भूमिका निभाई। इस सीरीज ने गौरी के जीवन और उनके संघर्षों को दर्शाने का प्रयास किया।
सामाजिक कार्यों की शुरुआत
गौरी ने ट्रांसजेंडर अधिकारों के लिए लड़ाई की शुरुआत हमसफर ट्रस्ट से जुड़कर की। इसके बाद उन्होंने अपना एनजीओ ‘सखी चार चौगी’ शुरू किया। यह एनजीओ घर से भागे हुए ट्रांसजेंडर्स को सहारा देने और उनकी मदद करने का काम करता है।
ट्रांसजेंडर समुदाय की पहली चुनाव एंबेसडर
गौरी सावंत देश की पहली ट्रांसजेंडर इलेक्शन एंबेसडर बनीं। यह उपलब्धि न केवल उनके लिए बल्कि पूरे ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए एक बड़ी सफलता थी।
विक्स का विज्ञापन और चर्चा में आना
कुछ साल पहले गौरी विक्स के एक विज्ञापन में दिखाई दी थीं। इस विज्ञापन में वे एक छोटी बच्ची के साथ नजर आईं, जिसमें दिखाया गया कि कैसे गौरी उस बच्ची को गोद लेती हैं। इस भावुक कहानी ने गौरी को राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में ला दिया।
गौरी सावंत ने न केवल किन्नरों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी, बल्कि एक मासूम बच्ची को भी बचाया। यह बच्ची एक सेक्स वर्कर की बेटी थी, जिसका नाम गायत्री था। उस सेक्स वर्कर की एचआईवी के कारण मृत्यु हो गई थी। उसकी मौत के बाद लोग उस बच्ची को बेचने की बात कर रहे थे। गौरी ने उस बच्ची को गोद लिया और उसे पाला-पोसा। वर्तमान में वह बच्ची एक हॉस्टल में पढ़ाई कर रही है। गौरी ने यह साबित कर दिया कि ‘मां’ शब्द किसी एक लिंग तक सीमित नहीं है।
जीवन बदलने वाली घटना
गौरी सावंत एक लंबी गहरी सांस लेकर कहती हैं, ‘इसके पीछे भी एक कहानी है।’ वे उन दिनों को याद करती हैं जब वे संयुक्त राष्ट्र और भारत सरकार के लिए काम करने वाली एक संस्था से जुड़कर एचआईवी रोकथाम जागरूकता अभियान पर काम कर रही थीं। काम के सिलसिले में एक दिन उनका मुंबई के कमाठीपुरा जाना हुआ।
वहां उन्होंने माचिस के डिब्बे जैसे छोटे-छोटे कमरों में महिलाओं को जिस्म का सौदा करते देखा। उन्होंने एक 24 साल की महिला को चार महीने की बच्ची को पास लिटाकर धंधा करते देखा। इस घटना ने उन्हें झकझोर कर रख दिया। पूरी रात वे सो नहीं पाईं। उन्हें तब यह अहसास हुआ कि जब एक कामकाजी महिला काम पर जाती है, तो उसके बच्चों को परिवार के सदस्य संभालते हैं। लेकिन इन महिलाओं के बच्चों को कौन संभालेगा? इनका अपना है ही कौन?
'नानी का घर' की स्थापना
गौरी सावंत ने तब ठान लिया कि वे इन बच्चों के लिए परिवार बनेंगी। उन्होंने ‘आजी का घर’ नाम से एक ट्रस्ट की शुरुआत की। बाद में बॉलीवुड अभिनेता अमिताभ बच्चन ने इस ट्रस्ट का नाम बदलकर ‘नानी का घर’ कर दिया। इस ट्रस्ट में गौरी देह व्यापार से जुड़ी महिलाओं के बच्चों को सुरक्षित आश्रय देती हैं। उन्हें नहलाती, खिलाती-पिलाती और स्कूल भेजती हैं ताकि किसी भी बच्चे को मजबूरन गंदे काम में न धकेला जाए।
सफलता और पहचान
गौरी के इस काम को व्यापक पहचान मिली। वे ‘कौन बनेगा करोड़पति’ के सीजन 9 में आमंत्रित की गईं, जहां उन्होंने 25 लाख रुपये जीते। इस धनराशि और कुछ लोगों के समर्थन से वे इन बच्चों को एक सुरक्षित छत देने में कामयाब हुईं। हाल ही में एक वेब सीरीज की रॉयल्टी के तौर पर उन्हें धनराशि मिली, जिसका उपयोग उन्होंने अपनी संस्था के डोनेशन के लिए किया।
संघर्षों से भरा जीवन
गौरी सावंत की जिंदगी में कई उतार-चढ़ाव आए। उन्हें पहचान तो मिली। लेकिन उनके अपने परिवार ने कभी उनका हाल जानने की कोशिश नहीं की। जब उनके पिता का निधन हुआ, तो उनके भाई-बहनों ने उन्हें खबर तक नहीं दी।
गौरी ने जब अपने गोद लिए बच्चों के लिए पैतृक संपत्ति में हिस्सा मांगा, तो उनके भाई दिनेश सावंत ने मुंबई के फैमिली कोर्ट में याचिका दायर कर उन्हें फांसी देने की मांग की। भाई ने उन पर नकली ट्रांसजेंडर होने और परिवार को बदनाम करने का आरोप लगाया।
कानूनी लड़ाई और ट्रांसजेंडर पहचान की मान्यता
साल 2009 में, गौरी सावंत ने ट्रांसजेंडर्स को कानूनी मान्यता दिलाने के लिए कोर्ट में पहला हलफनामा दाखिल किया। नाज फाउंडेशन ने उनकी अपील को आगे बढ़ाया, जिसे नेशनल लीगल सर्विसेज अथॉरिटी (NALSA) ने जनहित याचिका का रूप दिया। इस याचिका पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडर समुदाय को कानूनी पहचान दी।
सम्मान और उपलब्धियां
गौरी सावंत को उनके कार्यों के लिए कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर सम्मानित किया गया। वे विभिन्न सामाजिक संगठनों और सरकारी अभियानों का हिस्सा रही हैं। 2019 में, वे ‘मदर इंडिया’ अभियान का चेहरा बनीं, जो ट्रांसजेंडर समुदाय के प्रति समाज के रवैये को बदलने का एक प्रयास था।
गौरी सावंत के रास्ते में कई चुनौतियां आईं। उन्हें न केवल समाज के पूर्वाग्रहों का सामना करना पड़ा, बल्कि अपने समुदाय के भीतर भी कई बार आलोचना झेलनी पड़ी। लेकिन गौरी ने हर चुनौती का सामना धैर्य और साहस के साथ किया।गौरी सावंत का जीवन प्रेरणा का एक प्रतीक है। उन्होंने यह साबित कर दिया कि अगर इंसान में आत्मविश्वास और दृढ़ संकल्प हो, तो वह किसी भी बाधा को पार कर सकता है। वे न केवल ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए, बल्कि पूरे समाज के लिए एक प्रेरणा हैं। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि हर व्यक्ति को समान अधिकार और सम्मान मिलना चाहिए।गौरी सावंत की कहानी एक ऐसी गाथा है, जो समाज को सोचने पर मजबूर करती है कि समानता और मानवता का असली मतलब क्या है।