World Radio Day 2025: अनगिनत चुनौतियों और संघर्षों की एक संजीदा कहानी है भारत की पहली महिला समाचार वाचिका सईदा बानो का जीवन
World Radio Day 2025: आज हम आपको भारत की पहली महिला समाचार वाचिका सईदा बानो से रूबरू करवाने वाले हैं आइये जानते हैं कैसा था उनका जीवन।;
World Radio Day 2025 First Newsreader Saeeda Bano: एक समय में रेडियो ही एक मात्र मनोरंजन का ऐसा साधन था जिसकी पहुंच रसूखदारों से लेकर गांव- गांव तक मौजूद रहती थी। घरों में जब टीवी नहीं हुआ करते थे, तो रेडियो ने ही गांव-देहात में लोगों को समाचारों या मनोरंजन से अपडेटेड रखा था। ये मनोरंजन के साथ सूचना प्रसारण का एक ऐसा सशक्त माध्यम है, जिसने इतिहास में घटित अहम घटनाओं में अपनी एक अलग भूमिका निभाई है। भले ही आधुनिकता के दौर में आज इंटरनेट से लेकर एआई जैसी बेहद एडवांस तकनीक ईजाद क्यों न हो चुकी हो, भले ही वर्तमान समय में देश दुनिया के हाथों में संपर्क का बेहतरीन माध्यम मोबाइल का बोलबाला क्यों न हो।लेकिन इन सबके बावजूद रेडियो की भूमिका और इसके योगदान को दरकिनार नहीं किया जा सकता है। यही वजह है कि आज भी रेडियो जन-जन तक मनोरंजन के अलावा सरकारी योजनाओं और विज्ञान से जुड़ी सूचनाओं को पहुंचाने का सशक्त और सस्ता माध्यम बना हुआ है। भले ही आज इसके रूप रंग में बड़ा परिवर्तन आ चुका है। भारत में रेडियो प्रसारण की शुरुआत बॉम्बे में 23 जुलाई, 1927 को हुई थी। इसका उद्घाटन उस समय के वायसराय लॉर्ड इरविन ने किया था। यह प्रसारण भारतीय प्रसारण कंपनी ने किया था। बाद में इसका नाम बदलकर ऑल इंडिया रेडियो और फिर आकाशवाणी कर दिया गया। 1990 के दशक में रेडियो डिजिटल युग में परिवर्तित हो गया। सैटेलाइट प्रसारण और इंटरनेट पर रेडियो स्टेशनों की उपलब्धता ने ऑडियो कंटेंट की तरफ लोगों का ध्यान फिर से आकर्षित किया। इसके अतिरिक्त, पॉडकास्ट ऑडियो कंटेंट का एक लोकप्रिय रूप बन गया, जिसने तकनीकी और सांस्कृतिक परिवर्तनों के लिए रेडियो की निरंतर तरक्की को प्रदर्शित किया, जो डिजिटल युग में भी प्रासंगिक बना हुआ है।
लेकिन क्या आपको इस बात की जानकारी है कि भारतीय रेडियो पर सबसे पहले किस महिला समाचार वाचिका की आवाज गूंजी थी, जिसने लोगों को अपनी खनकती दिलकश आवाज से अपना मुरीद बना लिया था, इनका नाम था सईदा बानो। हर साल 13 फरवरी को विश्व रेडियो दिवस के रूप में मनाया जाता है। आज, आइए एक नज़र डालते हैं आज़ाद भारत के रेडियो में पहली महिला आवाज़ के तौर पर पहचान बनाने वाली सईदा बानो के जीवन से जुड़े दिलचस्प किस्सों के बारे में -
लखनऊ के मशहूर आईटी कॉलेज की छात्रा रहीं हैं सईदा बानो
सईदा बानो भारत की पहली महिला रेडियो समाचार वाचिका के रूप में कार्य किया। उर्दू -प्रसारण जगत में आज भी सईदा बानो का नाम जानी मानी हस्तियों में शुमार है। भोपाल में जन्मी, उन्होंने अपनी शिक्षा लखनऊ में पूरी की और कथित तौर पर पढ़ाई से ज़्यादा खेलकूद में उनकी रुचि थी। जहां उन्होंने स्कूल के दिनों में कई पुरस्कार अपने नाम किए। सईदा ने अपने मैट्रिक्स की शिक्षा इसाबेला थोबर्न कॉलेज, लखनऊ से पूरी की, जो कि उस दौर के प्रसिद्ध कॉलेजों में से एक था।
बिना रजामंदी के हुआ निकाह
सईदा बानो की निजी जिंदगी
14 नवंबर साल 1932 में सईदा का निकाह न्यायाधीश अब्बास रजा से हुआ। हालांकि उन्हें शादी करने में कोई दिलचस्पी नहीं थी। वो आगे पढ़ाई करना चाहती थीं। वह सिर्फ़ 19 साल की थीं, जब उन्होंने चार पन्नों का पत्र लिखकर प्रस्ताव ठुकरा दिया।लेकिन इसका कोई फ़ायदा नहीं इतने प्रयासों के बावजूद सईदा और अब्बास रजा शादी के बंधन में बंध गए।
कुछ समय में टूट गया शादी का रिश्ता
बानो ने अपने संस्मरण ‘डगर से हट कर’ में बताया कि लखनऊ में नवाब शासन की पारंपरिक परंपराओं ने उन्हें कैसे घुटन दी। ग़ालिब की पंक्ति को शामिल करते हुए उन्होंने कहा, “फिर वजह ए अहतेयात से... रुकने लगा है दम...,“ सईदा और अब्बास का रिश्ता ज्यादा समय तक नहीं चल पाया। एक दिन बानो ने हिम्मत जुटाई और लखनऊ और अपनी शादी की चारदीवारी से बाहर निकल आईं। उन्होंने अपने बड़े बेटे को बोर्डिंग स्कूल में भेज दिया और अपने छोटे बेटे के साथ दिल्ली आ गईं। उन्होंने सबसे पहले ऑल इंडिया रेडियो पर उर्दू समाचार बुलेटिन पढ़कर देश को संबोधित किया।
विजयलक्ष्मी पंडित ने साईदा की नौकरी के लिए की थी सिफारिश
जब सईदा दिल्ली पहुंची तो उनके पास कुछ भी नहीं था। उस वक्त उनकी दोस्त रही गायिका विजयलक्ष्मी पंडित के कहने पर ही सईदा बानो को आकाशवाणी के दिल्ली कार्यालय में नौकरी मिली। इसी के साथ सईदा भारत की पहली समाचार वाचिका के रूप जानी जाने लगी। ऑल इंडिया रेडियो की आवाज़ बनने के बाद, बानो ने लिखा कि स्टेट्समैन ने भी उनकी प्रशंसा में कुछ शब्द प्रकाशित किए। अपने डेब्यू के बाद, उनकी प्रशंसित आवाज़ को कई शो मिले। आखिरकार, वह आगे बढ़ीं। उन्होंने अपनी सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ीं और ‘डेली-सुनी’ नामक पाँच मिनट के शो की निर्माता बन गईं। उस दौरान उनकी आवाज की खूब प्रशंसा की गई। रेडियो में उनके काम को आज भी याद किया जाता है। हालांकि, दिल्ली में उनका जीवन बहुत संघर्ष भरा रहा। सभी उतार-चढ़ाव के बाद भी उन्होंने देश भर में अपनी एक अलग पहचान बनाई।बानो की कहानी प्रेरणा और साहस की कहानी है, एक ऐसी महिला की जो अपने व्यक्तित्व को संजोए रखती है और किसी भी चीज़ से कम पर समझौता नहीं करती। समाचार पढ़ते समय, बानो नए स्वतंत्र भारत की महिलाओं को अपनी कहानी की पंक्तियों के बीच पढ़ने के लिए आमंत्रित कर रही थी।उनसे अपनी कहानी लिखने का आग्रह कर रही थीं।
बेगम अख्तर से थी गहरी दोस्ती
बानो को गायिका और अभिनेत्री बेगम अख्तर से दोस्ती की, तो उन्हें एक वेश्या के साथ संबंध बनाने के लिए उपहास का पात्र बनाया गया। इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ा। उनकी दोस्ती परवान चढ़ी और बानो ने अख्तर को लखनऊ के उच्च समाज और अख्तर के भावी पति इश्तियाक अब्बासी से मिलवाया। बानो को इस बात का बिल्कुल भी अंदाज़ा नहीं था कि उनके सामने कितनी चुनौतियाँ आने वाली हैं।
झेलनी पड़ी विभाजन की भी पीड़ा
एक अकेली मुस्लिम महिला होने के नाते, उन्हें विभाजन की पीड़ा झेलनी पड़ी। अपने संस्मरण में बानो कहती हैं कि उन्हें अपने श्रोताओं से ढेरों पत्र मिले, जिनमें उनसे कहा गया कि ‘पाकिस्तान जाओ’। हालाँकि समय के साथ पत्रों की संख्या कम होती गई। लेकिन वे उनके पूरे करियर में उनके साथ रहे। एक तरफ़ उन्हें कई विवाह के प्रस्ताव मिल रहे थे, दूसरी तरफ़ लोग उन्हें पाकिस्तान जाने की धमकी दे रहे थे। बंटवारे के ठीक बाद एक मुस्लिम महिला होना उनके लिए चुनौती बन गई थी। लेकिन बानो ने दुनियां की परवाह नहीं की। वह ठीक से जानती थी कि उनकी मंजिल क्या है और वह उसके पीछे चलती चली गईं।
बानो अपने आत्मसंग्रह में लिखती हैं कि, “दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से मेरी आवाज़ की तारीफ़ में सैकड़ों पत्र आए। कई सज्जनों ने तो मुझसे शादी करने की इच्छा भी जताई!“
बेबाकी से किया अपने प्रेम संबंधों का जिक्र
अपने संस्मरण में, वह वकील नूरुद्दीन अहमद के साथ एक लंबे समय तक कायम रहे प्रेम संबंधों के बारे में बेबाकी से जिक्र करती हैं। बानो की दिल्ली के मेयर और पद्म भूषण पुरस्कार विजेता नूरुद्दीन अहमद से लंबे समय तक बेहद गहरी मित्रता रही। अहमद एक विवाहित व्यक्ति थे और बानो के साथ उनकी दोस्ती वक्त के साथ प्यार में बदल गई जो लगातार 25 साल तक कायम रही। जिसे बानो अपने संस्मरण में ‘अग्नि परीक्षा ‘ के रूप में बयां करती हैं।
पहुंचा था गांधी जी की हत्या का गहरा सदमा
एक और घटना जिसने बानो पर गहरा प्रभाव डाला, वह थी 30 जनवरी, 1948 को महात्मा गांधी की हत्या। बानो कहती हैं कि जब गांधी की हत्या हुई तो वह इतना रोईं कि उनकी आवाज पूरी तरह से बैठ गई। उस शाम समाचार बुलेटिन भी नहीं पढ़ पाईं। किसी को उनकी जगह शिफ्ट बदल कर समाचार पढ़ना पड़ा था।
लंबे समय तक कि आकाशवाणी उर्दू की सेवा
बानो एक सफल महिला होने का इतिहास लिख रही थीं, कुछ लोग इसे समझ ही नहीं पाए। बानो 1965 में समाचार वाचक के पद से सेवानिवृत्त हुईं और उन्हें आकाशवाणी की उर्दू सेवा के लिए प्रोड्यूसर के रूप में नियुक्त किया गया। 1970 के दशक में रेडियो से सेवानिवृत्त होने तक उन्होंने यह भूमिका निभाई। 2001 में उनका निधन हो गया। सईदा के संघर्ष की कहानी लाखों महिलाओं के लिए प्रेरणा हैं। बानो हमें अपने संस्मरण, डगर से हट कर (ऑफ द बीटन ट्रैक - द स्टोरी ऑफ माई अनकन्वेंशनल लाइफ ) के माध्यम से अपने जीवन से रूबरू कराती हैं, जिसे उन्होंने 1994 में उर्दू में प्रकाशित किया था। उनकी पोती शाहाना रजा द्वारा अंग्रेजी में अनुवादित और 2020 में प्रकाशित, बानो ने उल्लेख किया है कि महिलाओं को किस तरह का बेबाक मुखौटा ओढ़ना पड़ता था। कैसे उन्हें अपनी भावनाओं को और उनके साथ, अपने व्यक्तित्व को निगलना पड़ता था। हालांकि उन्हें विद्रोही माना जाता था। लेकिन बानो विद्रोही नहीं थीं। उन्होंने बस अपनी शर्तों पर जीवन जीने का फैसला किया, जो 1940 के दशक के लखनवी समाज में भी वही बात थी।
भारत में रेडियो प्रसारण से जुड़ी कुछ और खास बातेंः
- साल 1936 में ऑल इंडिया रेडियो ने अपना पहला न्यूज़ बुलेटिन प्रसारित किया था.
- 14-15 अगस्त, 1947 की मध्यरात्रि में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अपना प्रसिद्ध भाषण “ट्राइस्ट विद डेस्टिनी” ऑल इंडिया रेडियो पर प्रसारित किया था।
- आज़ादी के समय भारत में कुल नौ रेडियो स्टेशन थे।
- आकाशवाणी, भारत के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अधीन संचालित सार्वजनिक क्षेत्र की रेडियो प्रसारण सेवा है।
- आकाशवाणी की सिग्नेचर ट्यून को चेकोस्लोवाकिया के कंपोज़र वॉल्टर कॉफ़मैन ने बनाया था। इससे पहले जगदीश चन्द्र बसु ने भारत में तथा गुल्येल्मो मार्कोनी ने सन 1900 में इंग्लैंड से अमरीका बेतार संदेश भेजकर व्यक्तिगत रेडियो संदेश भेजने की शुरुआत कर दी थी, पर एक से अधिक व्यक्तियों को एक साथ संदेश भेजने या ब्रॉडकास्टिंग की शुरुआत 1906 में फेसेंडेन के साथ हुई।
- भारत में रेडियो प्रसारण 1922 में शुरू हुआ और वर्ष 1927 तक मद्रास प्रेसीडेंसी क्लब ने ही भारत में रेडियो ब्रॉडकास्टिंग पर प्रसारण का काम किया था।
- आर्थिक तंगी के चलते मद्रास प्रेसीडेंसी क्लब द्धारा इसे बंद कर दिया गया।
- वर्ष 1927 में बॉम्बे और कलकत्ता में बॉम्बे के कुछ बड़े बिजनेसमैन द्वारा भारतीय प्रसारण कंपनी शुरु की गयी।
- वर्ष 1932 में। भारत सरकार द्वारा इसकी जिम्मेदारी ले ली गई और इसकी देख-रेख के लिए इंडियन ब्रॉडकास्टिंग सर्विस नाम का विभाग शुरु किया।
- वर्ष 1936 में इसका नाम बदलकर ऑल इंडिया रेडियो रख दिया गया, जो कि आकाशवाणी के नाम से भी जाना जाता है।
- सरकारी स्वामित्व वाले रेडियो स्टेशन ऑल इंडिया रेडियो ने 1936 से प्रसारण पर अपना वर्चस्व कायम रखा। लेकिन निजीकरण और विनियमन के माध्यम से वाणिज्यिक निजी स्वामित्व वाले वार्ता और संगीत स्टेशनों को बड़े दर्शकों तक पहुंचने की अनुमति मिल गई।
- रेडियो के इतिहास में कई वैज्ञानिक शामिल थे। पहला वायरलेस रेडियो 1893 में सेंट लुइस में निकोला टेस्ला द्वारा आविष्कार किया गया था। हालाँकि, पहले रेडियो का श्रेय गुग्लिल्मो मार्कोनी को जाता है। मार्कोनी को 1896 में इंग्लैंड में वायरलेस रेडियो डिवाइस के लिए पहला पेटेंट जारी किया गया था।
- पहले विश्वयुद्ध के दौरान ( 1914 से 1918 तक) गैर सेनाओं द्धारा रेडियो के इस्तेमाल को पूरी तरह अवैध करार कर दिया गया।
- वर्ष 1918 में न्यूयॉर्क के हैब्रिज में पहली बार रेडियो स्टेशन की स्थापना की गई थी जिसको बाद में गैरकानूनी करार कर दिया गया।
- वर्ष 1923 में पहली बार कानूनी तौर पर रेडियो के माध्यम से विज्ञापनों की शुरुआत हुई।
- रेडियो के शुरुआती दिनों में रेडियों रखने के लिए आईएनआर 10 का लाइसेंस खरीदना पड़ता था।
- भारत में भारतीय भाषा के रेडियो स्टेशनों की सूची वर्णानुक्रम में आकाशवाणी की होम सर्विस में 479 स्टेशन शामिल हैं, जो आज देश भर में स्थित हैं, जो देश के लगभग 92 फीसदी क्षेत्र और कुल आबादी के 99.19 फीसदी तक पहुँचते हैं।