World Soil Day History Hindi: क्षरण हो चुका है एक तिहाई मृदा का

World Soil Day History Hindi: हर साल 5 दिसंबर को मनाया जाने वाला विश्व मृदा दिवस (World Soil Day), मृदा के महत्व और इसके संरक्षण पर जागरूकता बढ़ाने के लिए समर्पित है।;

Written By :  AKshita Pidiha
Update:2024-12-05 16:22 IST

World Soil Day History Hindi (Photo- Social Media)

World Soil Day History Hindi: मिट्टी, जिसे मृदा के रूप में भी जाना जाता है, न केवल हमारे खाद्य उत्पादन का आधार है, बल्कि पर्यावरणीय स्थिरता, जल शोधन, और जैव विविधता को बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इस दिन का आयोजन संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (FAO) द्वारा किया जाता है।

विश्व मृदा दिवस का इतिहास

2002 में, अंतर्राष्ट्रीय मृदा विज्ञान संघ (International Union of Soil Sciences - IUSS) ने पहली बार मृदा को समर्पित एक दिन मनाने का प्रस्ताव रखा। इसके बाद 2013 में, FAO ने संयुक्त राष्ट्र महासभा से इस दिवस को मान्यता देने की सिफारिश की।5 दिसंबर को इस दिन को मनाने के लिए चुना गया, क्योंकि यह थाईलैंड के पूर्व राजा, राजा भूमिबोल अदुल्यादेज, जो मृदा संरक्षण के प्रति समर्पित थे, का जन्मदिन है। 2014 से इसे औपचारिक रूप से मनाया जाने लगा। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार विश्व की कुल एक तिहाई मृदा का क्षरण हो चुका है। मृदा के गुणवत्ता को प्रभावित करने वाला एक प्रमुख कारक मृदा प्रदूषण भी है। मृदा प्रदूषण का खाद्यान्न, जल तथा वायु पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है, जो प्रत्यक्ष रूप से स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। मृदा प्रदूषण का प्रमुख कारण औद्योगिक प्रदूषण तथा ख़राब मृदा प्रबंधन है।

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मृदा का महत्त्व

मिट्टी केवल एक भौतिक पदार्थ नहीं है, बल्कि यह जीवन का आधार है। मृदा पृथ्वी के सतह पर पाई जाने वाली वह परत है जिसमें जीव-जंतु, पौधे और सूक्ष्मजीव मिलकर एक पारिस्थितिकी तंत्र बनाते हैं।मृदा में मौजूद पोषक तत्व पौधों की वृद्धि के लिए आवश्यक हैं। लगभग 95 प्रतिशत वैश्विक खाद्य उत्पादन मिट्टी पर निर्भर है।मृदा जल को शुद्ध करने, कार्बन को अवशोषित करने और प्राकृतिक जल चक्र को बनाए रखने में मदद करती है। मिट्टी में लाखों सूक्ष्मजीव और छोटे जीव पाए जाते हैं। यह जैव विविधता पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने में सहायक है।मृदा कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करके जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने में योगदान देती है। खराब मृदा प्रबंधन से यह गैस वायुमंडल में वापस जा सकती है, जिससे ग्लोबल वार्मिंग बढ़ती है।

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मृदा क्षरण, आज की सबसे गंभीर पर्यावरणीय समस्याओं में से एक है। 24 बिलियन टन उपजाऊ मिट्टी हर साल विभिन्न कारणों से खो जाती है।

मृदा क्षरण के प्रमुख कारण- अत्यधिक फसल उत्पादन, रसायनों का अनियंत्रित उपयोग और मोनोकल्चर खेती मिट्टी की गुणवत्ता को खराब करते हैं। वृक्षों की कटाई से मिट्टी का कटाव बढ़ता है और यह पोषक तत्व खो देती है। शहरीकरण के कारण मिट्टी के प्राकृतिक चक्र में बाधा आती है। जल प्रदूषण भी मिट्टी की उर्वरता को कम करता है। असामान्य मौसम, बाढ़ और सूखे जैसी घटनाएं मिट्टी के क्षरण को तेज करती हैं।

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मृदा संरक्षण के प्रयास

अंतरराष्ट्रीय प्रयास:

FAO और ग्लोबल सॉयल पार्टन-यह संगठन मृदा के स्वास्थ्य को बनाए रखने और उसके बेहतर प्रबंधन के लिए देशों को तकनीकी और नीतिगत सहायता प्रदान करते हैं।

संयुक्त राष्ट्र के टिकाऊ विकास लक्ष्य (SDGs): टिकाऊ कृषि, भूमि उपयोग, और मृदा संरक्षण को SDG 15 (स्थलीय पारिस्थितिक तंत्र की सुरक्षा) का हिस्सा बनाया गया है।

भारत में मृदा संरक्षण का प्रयास:

1. मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना (Soil Health Card Scheme)-2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू की गई।किसानों को उनकी मिट्टी की गुणवत्ता और पोषक तत्वों की कमी के बारे में जानकारी देना ताकि वे उचित उर्वरकों का उपयोग कर सकें। इस योजना के तहत अब तक लाखों किसानों को उनकी मिट्टी की संरचना और स्वास्थ्य की जानकारी दी गई है।

2. राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (Rashtriya Krishi Vikas Yojana)-यह योजना टिकाऊ कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देती है, जिसमें मृदा संरक्षण एक प्रमुख पहलू है।इसमें जैविक खेती, फसल चक्र (Crop Rotation), और पारंपरिक ज्ञान को बढ़ावा देने के लिए सहायता प्रदान की जाती है।

3. परम्परागत कृषि विकास योजना (Paramparagat Krishi Vikas Yojana)-जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए यह योजना शुरू की गई है। जैविक खेती मिट्टी के स्वास्थ्य को बनाए रखने में सहायक है।इस योजना के तहत किसानों को बिना रसायनों के खेती करने और जैविक खाद के उपयोग के लिए प्रशिक्षित किया जाता है।

4. मृदा संरक्षण अनुसंधान और विकास-भारत में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) और क्षेत्रीय कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा मृदा स्वास्थ्य पर शोध किया जाता है।मिट्टी के कटाव, लवणीयता (salinity), और पोषक तत्वों की कमी को दूर करने के लिए अनुसंधान कार्य किए जा रहे हैं।

5. प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY)-जल उपयोग दक्षता (Water Use Efficiency) बढ़ाने के साथ-साथ मिट्टी के संरक्षण के लिए यह योजना शुरू की गई है।सूक्ष्म सिंचाई तकनीकों, जैसे ड्रिप और स्प्रिंकलर प्रणाली, को बढ़ावा दिया जा रहा है ताकि जल और मिट्टी का अपव्यय रोका जा सके।

6. वन संरक्षण और वृक्षारोपण अभियान-वन संरक्षण के प्रयासों के साथ बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण अभियान चलाए जा रहे हैं। वृक्ष मिट्टी के कटाव को रोकते हैं और उसकी उर्वरता को बनाए रखते हैं।

7. राष्ट्रीय कृषि भूमि और जल प्रबंधन प्राधिकरण (NALWA)- इस प्राधिकरण का उद्देश्य कृषि भूमि और जल संसाधनों का टिकाऊ प्रबंधन सुनिश्चित करना है।यह मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार और कृषि उत्पादन बढ़ाने में मदद करता है।

8. जैविक खेती मिशन-इस मिशन के तहत भारत के पूर्वोत्तर राज्यों और अन्य क्षेत्रों में जैविक खेती को प्रोत्साहन दिया जा रहा है।यह मिट्टी के प्राकृतिक पोषण को बनाए रखने और उसे प्रदूषण मुक्त रखने में मदद करता है।

9. राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGA)-MGNREGA के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि और जल संरक्षण परियोजनाओं पर कार्य किया जाता है।इसमें खेत तालाब, जल संरक्षण ढांचे, और वनीकरण को शामिल किया जाता है, जो मिट्टी के संरक्षण में सहायक होते हैं।

10. सघन वृक्षारोपण और हरित पट्टी परियोजनाएं-मिट्टी के कटाव को रोकने और इसकी गुणवत्ता को संरक्षित करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर वृक्षारोपण परियोजनाएं चलाई जा रही हैं।इन परियोजनाओं का उद्देश्य मिट्टी को पोषक तत्वों से भरपूर बनाना और मिट्टी के कटाव को रोकना है।

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2024 की थीम-

इस वर्ष की थीम, "Caring for Soils: Measure, Monitor, Manage", मृदा की स्थिति को समझने और उसके टिकाऊ प्रबंधन पर जोर देती है।

मृदा के संरक्षण के प्रति हमारी भूमिका

मृदा संरक्षण केवल सरकारों और संगठनों की जिम्मेदारी नहीं है। हम सभी इसमें योगदान दे सकते हैं:जैसे -जैविक अपशिष्ट को खाद में बदलें।स्थानीय वृक्षारोपण अभियानों में भाग लें।रसायनों के अनावश्यक उपयोग से बचें।मृदा संरक्षण के महत्व के बारे में जागरूकता फैलाएं।

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इस दिन का उदेश्य किसानों को भी मृदा संरक्षण के बारे में जागरूक करना है और उनको जैविक खेती की ओर अग्रसर करना है। क्योंकि आज कल किसान अपनी भूमि में ज्यादा रासायनिक ऊर्वरक का इस्तमाल कर रहे हैं। जिस से फसल का उत्पादन तो ज्यादा होता है, लेकिन इन में केमिकल होने के कारण ये भूमि में जो किसान मित्र कीट होते हैं उन्हे मार देते हैं और भूमि की उपजाऊ शक्ति को खत्म कर देते हैं। किसानों को अपनी भूमि को उपजाऊ बनाने का लिए गोबर की खाद का इस्तेमाल करने की जानकारी देना मृदा दिवस का मत्वपूर्ण लक्ष्य है।

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