VP Singh Birth Anniversary: वीपी सिंह का एक फैसला और बन गए भारतीय राजनीति का मसीहा

VP Singh Birth Anniversary: बोफोर्स तोप दलाली मुद्दे पर राजीव गांधी सरकार को घेरने वाले वीपी सिंह ने मंत्री पद के साथ ही कांग्रेस भी छोड़ दिया। 1989 में वे प्रधानमंत्री बन गए। इसके बाद उन्होंने मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू करने का जो फैसला लिया जिसने उन्हें राजनीति का मसीहा बना दिया।

Update:2024-11-27 09:51 IST

पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह (Pic: Social Media)

Birthday Special: पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह का 27 नवंबर यानी आज जन्मदिन है। राजीव गांधी सरकार में वित्त मंत्री रहे विश्वनाथ प्रताप सिंह ने अपनी ही सरकार के खिलाफ बोफोर्स तोप दलाली मुद्दे को लेकर मोर्चा खोल दिया। यही नहीं उन्होंने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और पार्टी भी छोड़ दिया। इसके बाद उन्होंने बोफोर्स मामले को लेकर पूरे देश में विरोध जताया। नतीजा यह रहा कि उनके इस रूख से वे काफी पापुलर हो गए। राजा नहीं फकीर है, देश की तकदीर है इस नारे के साथ अस्सी के दशक के अंतिम सालों में विश्वनाथ प्रताप सिंह को देश की राजनीति का एक बड़ा चेहरा बना दिया। राजनीति में उनकी स्वच्छ छवि होने के चलते उनको 1989 में हुए लोकसभा चुनाव में काफी फायदा हुआ और नतीजा यह रहा कि वे देश के आठवें प्रधानमंत्री बन गए। हालांकि वे भाजपा के समर्थन से प्रधानमंत्री बने थे।

प्रधानमंत्री बनने के बाद वीपी सिंह ने एक ऐसा फैसला भी लिया जिसको लेकर उन्हें पसंद करने वाले भी दो हिस्सों में बंट गए।


                                                                         फाइल फोटो- वीपी सिंह। 

एक फैसला और बन गए मसीहा

वीपी सिंह ने प्रधानमंत्री रहते हुए अपने कार्यकाल में एक बड़ा फैसला लेते हुए देश में मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू कर दिया। उस समय भारत की करीब आधी आबादी ओबीसी थी। उनके उस फैसले से ओबीसी को सरकारी नौकरियों में आरक्षण मिला। वीपी सिंह के इस निर्णय से देश के पिछड़े समुदाय के सामाजिक और आर्थिक हालात बदलने लग गए। वहीं वीपी सिंह अपने इस फैसले से सामाजिक न्याय के तो मसीहा बन गए, लेकिन सवर्ण समाज उनके इस फैसले से उन्हें विभाजनकारी के तौर पर देखने लगा। इस फैसले के बाद देश में बड़ा बवाल हुआ। सवर्ण समाज आक्रोशित हो गया। देश भर में इसका विरोध प्रदर्शन होने लगा। नतीजा यह रहा कि जो समाज उन्हें कभी हीरो बता रहा था अब वो उन्हें खलनायक बताने लगा। इस तरह वीपी सिंह को पसंद करने वाले दो हिस्सों में बंट गए। ओबीबी वर्ग की नजर में वो हीरो बन गए थे और सवर्णों की नजर में खलनायक। वहीं वीपी सिंह के इस फैसले से भाजपा सहित कई विपक्षी दल काफी नाराज थे। इसके बाद से उन्हें सत्ता से बाहर करने की तैयारी शुरू हो गई।


                                                                   फाइल फोटो-देवी लाल, चंद्रशेखर और वीपी सिंह। 

और भाजपा ने समर्थन वापस ले लिया

बोफोर्स और पनडुब्बी रक्षा सौदों की दलाली का मुद्दा उठाने वाले वीपी सिंह उस समय कांग्रेस की राजीव गांधी सरकार में वित्त मंत्री थे। वीपी सिंह ने बोफोर्स दलाली का मुद्दा उठाते हुए न केवल वित्त मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया बल्कि कांग्रेस भी छोड़ दी। उस समय उनके पास न तो कोई राजनीतिक दल था और न ही कोई विचारधारा, उनके पास थी तो केवल एक साफ-सुथरी छवि और वे अपने इस कदम के कारण देशभर में छा गए थे। 1989 में देश में लोकसभा के चुनाव हुए, वीपी सिंह ने बोफोर्स मुद्दे को केंद्र में रखकर चुनाव लड़ा। चुनाव में कांग्रेस हार गई और वीपी सिंह भाजपा के समर्थन से प्रधानमंत्री बने।

वीपी सिंह ने जब मंडल कमीशन की सिफारिशों के फैसले से भाजपा और विपक्षी दल तक सहमत नहीं थे। नतीजा यह हुआ की समर्थन वापस लेने का फैसला लिया गया और भाजपा की बैसाखी पर चल रही संयुक्त मोर्चा सरकार संसद में विश्वास मत हासिल नहीं कर सकी और सरकार गिर गई।


छात्र जीवन से ही राजनीति में रखा कदम

25 जून 1931 को उत्तर प्रदेश के प्रयागराज (इलाहाबाद) में राजपूत परिवार में जन्मे वीपी सिंह ने छात्र जीवन में ही राजनीति में कदम रखा दिया था। वीपी सिंह ने शुरुआती पढ़ाई के बाद 1947 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के उदय प्रताप कॉलेज में एडमिशन ले लिया। वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के उपाध्यक्ष रहे और कॉलेज के दिनों में ही आंदोलनों में भाग लेते रहे। 1957 में जब भूदान आंदोलन हुआ तो वीपी सिंह के नेतृत्व में भारी संख्या युवाओं की भीड़ जुटी। इसको देखकर राजनीतिक पंडिंतों ने उस समय ही ऐलान कर दिया कि वीपी सिंह भविष्य का बड़ा नेता बनेंगे। वीपी सिंह ने इस आंदोलन के दौरान अपनी जमीन दान कर दी। वीपी सिंह 1980 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। 31 दिसम्बर 1984 को वीपी सिंह केंद्रीय मंत्री बने।

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