Rana Sanga Controversy: राणा सांगा और बाबर के बीच जुड़ा क्या है विवादित चिट्ठी का रहस्य, जानिए विशेषज्ञों की इस पर क्या है राय
Kya Rana Sanga Ne Babur Ko Bharat Bulaya Tha: राणा सांगा से जुड़ा एक विवाद हमेशा सुर्खियों में रहता है, वो है उनका बाबर को चिट्ठी लिखकर भारत आने के लिए आमंत्रण देना। हालांकि क्या सच में महाराणा सांगा ने बाबर को चिट्ठी लिखी थी या नहीं, आइए जानते हैं इसका सच विशेषज्ञों के द्वारा।;
Rana Sanga-Babur (फोटो साभार- सोशल मीडिया))
Controversial Letter Between Rana Sanga and Babur: राणा सांगा और बाबर के बीच संबंध भारतीय इतिहास के सबसे चर्चित और विवादास्पद विषयों में से एक हैं। यह प्रश्न कि क्या राणा सांगा (Rana Sanga) ने बाबर को भारत पर आक्रमण करने के लिए चिट्ठी लिखी थी, इतिहासकारों के बीच लंबे समय से बहस का मुद्दा बना हुआ है। विभिन्न ऐतिहासिक स्रोतों, विशेषज्ञों की राय और ऐतिहासिक घटनाओं के विश्लेषण के माध्यम से आइए जानते हैं आखिर इस विवादित चिट्ठी के पीछे क्या है रहस्य?
भारत में राजनीतिक अस्थिरता थी एक बहुत बड़ा कारण
16वीं शताब्दी की शुरुआत में भारत राजनीतिक अस्थिरता के दौर से गुजर रहा था। दिल्ली पर लोदी वंश का शासन था। लेकिन इब्राहिम लोदी (1517-1526) के नेतृत्व में सल्तनत कमजोर हो रही थी। कई अफगान सरदार और भारतीय शासक इब्राहिम लोदी (Ibrahim Lodi) के शासन से असंतुष्ट थे। इस बीच, राणा सांगा (1508-1528) ने मेवाड़ को एक शक्तिशाली राज्य बना दिया था और उत्तर भारत के कई राजपूतों एवं अफगान शासकों को अपने साथ जोड़ लिया था।
उधर, बाबर (1483-1530), जो काबुल का शासक था, भारत की समृद्धि और राजनीतिक अस्थिरता को देखते हुए यहां आक्रमण करने की योजना बना रहा था। 1519 से 1524 तक बाबर ने भारत पर कई छोटे आक्रमण किए। लेकिन 1526 में पानीपत की पहली लड़ाई के बाद वह भारत में स्थापित हुआ।
बाबर के भारत आने के प्रमुख कारण (Reasons for Babur's visit to India)
(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
1. राजनीतिक अस्थिरता
भारत में राजनीतिक अस्थिरता के चलते सांगा के नेतृत्व में राजपूत शक्ति संयुक्त हो रही थी। लेकिन उनकी बीच एकता की कमी थी। वहीं, लोदी शासन के अधीन सैन्य बलों में असंतोष था। वे किसी बाहरी शक्ति का समर्थन करने के लिए तैयार थे। उस दौर में भारत में विभिन्न छोटे-छोटे राज्य थे, जो एक-दूसरे से लड़ रहे थे और बाहरी आक्रमण को रोकने के लिए संयुक्त नहीं थे।
2. बाबर की महत्वाकांक्षाएं
बाबर को अपने पूर्वज तैमूर की तरह सोने की चिड़िया कहे जाने वाले भारत में एक स्थायी साम्राज्य स्थापित करने की प्रबल इच्छा थी। भारत धन-धान्य से समृद्ध देश और व्यापार तथा कृषि से समृद्ध था। बाबर को आशा थी कि यदि वह भारत जीतेगा, तो उसे एक प्रतिष्ठित और समृद्ध साम्राज्य मिलेगा। उधर उज़्बेक शासकों ने बाबर को उसके मूल क्षेत्र से बाहर कर दिया, जिससे वह एक नई संपत्ति की तलाश में था। काबुल जैसे सीमित औपचारिक वाले क्षेत्र में टिके रहने की बजाय उसने भारत की ओर रुख करना ज्यादा बेहतर समझा।
3. राजनीतिक निमंत्रण
कुछ इतिहासकार मानते हैं कि पंजाब के गवर्नर दौलत खान लोदी और अफगान नेताओं ने बाबर को इब्राहिम लोदी के खिलाफ आमंत्रित किया था।
क्या राणा सांगा ने बाबर को चिट्ठी लिखी थी-
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इस ऐतिहासिक मुद्दे पर कई पुस्तकों और इतिहासकारों की अलग-अलग राय का जिक्र मिलता है -
बाबरनामा के संदर्भ में
बाबर ने अपनी आत्मकथा 'बाबरनामा' में लिखा है कि उसे भारत के कुछ शासकों ने निमंत्रण भेजा था। लेकिन उसमें राणा सांगा का स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं है। हालांकि, कुछ इतिहासकार मानते हैं कि राणा सांगा और बाबर के बीच गुप्त संचार हुआ था।
फरिश्ता का इतिहास
फ़ारसी इतिहासकार मुहम्मद कासिम फ़रिश्ता ने अपनी पुस्तक ‘तारीख-ए-फ़रिश्ता’ में उल्लेख किया है कि राणा सांगा ने बाबर से कुछ हद तक सहयोग की अपेक्षा की थी।
अबुल फज़ल की अकबरनामा
इसमें उल्लेख है कि राणा सांगा ने बाबर को इब्राहिम लोदी के खिलाफ मदद के लिए संदेश भेजा था। लेकिन बाबर के भारत में स्थायी शासन की मंशा का अंदाजा नहीं लगाया था।
प्रमुख इतिहासकारों की व्याख्या
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एस.ए.ए. रिज़वी
वे मानते हैं कि राणा सांगा और बाबर के बीच प्रत्यक्ष पत्राचार के प्रमाण नहीं हैं। लेकिन कुछ स्थानीय राजपूत सरदारों ने बाबर से संपर्क किया हो सकता है।
जे.एफ. रिचर्ड्स
(मुगल साम्राज्य के विशेषज्ञ): उनके अनुसार, बाबर की विजय पहले से ही निश्चित थी। चाहे उसे कोई निमंत्रण मिला हो या नहीं।
रोमिला थापर
इनका मत है कि बाबर ने अपनी विजय को सही ठहराने के लिए यह दावा किया होगा कि उसे भारतीय शासकों ने आमंत्रित किया था।
सतीश चंद्र और आर.सी. मजूमदार
इनका मानना है कि यह ऐतिहासिक रूप से सिद्ध नहीं किया जा सकता कि राणा सांगा ने बाबर को आमंत्रित किया था।
इरफान हबीब
वे मानते हैं कि राणा सांगा ने बाबर से गठबंधन की उम्मीद की थी। लेकिन बाबर को भारत में स्थायी रूप से शासन करने की उनकी कोई योजना नहीं थी।
यूरोपीय इतिहासकार
कुछ यूरोपीय इतिहासकारों का मत है कि राणा सांगा ने बाबर को केवल इब्राहिम लोदी को हराने के लिए बुलाया था। लेकिन बाबर के स्थायी रूप से भारत में बसने से वे अनजान थे।
संशयवादी दृष्टिकोण
कुछ इतिहासकार मानते हैं कि राणा सांगा के बाबर को बुलाने की कहानी बाद में बनाई गई हो सकती है। उनका तर्क है कि बाबर ने अपनी विजय को सही ठहराने के लिए यह कहानी गढ़ी होगी।
राणा सांगा और बाबर के बीच ये थे मतभेद
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दिल्ली की सत्ता को हासिल करने के लिए राणा सांगा और बाबर के बीच समझौता हुआ जो कि बाद में कई मतभेद में तब्दील हो गया। राणा सांगा और बाबर के बीच मतभेद मुख्य रूप से राजनीतिक और सामरिक थे। राणा सांगा, जो मेवाड़ के शक्तिशाली शासक थे, बाबर के भारत आगमन और विजय से असंतुष्ट थे। उनके बीच मतभेदों को निम्नलिखित बिंदुओं में समझा जा सकता है:-
1. बाबर का भारत आना और राणा सांगा की प्रतिक्रिया
राणा सांगा ने पहले बाबर को भारत आने के लिए प्रेरित किया था। क्योंकि वे इब्राहिम लोदी को हराना चाहते थे। लेकिन जब बाबर ने पानीपत की लड़ाई (1526) में लोदी वंश को पराजित कर दिया और दिल्ली तथा आगरा पर अधिकार कर लिया, तो राणा सांगा को यह एहसास हुआ कि बाबर भारत छोड़कर वापस जाने वाला नहीं है।
2. भारत पर अधिकार को लेकर संघर्ष
राणा सांगा यह मानते थे कि बाबर केवल लोदी वंश को हटाने के लिए आया है। लेकिन बाबर ने भारत में अपनी सत्ता स्थापित करने की घोषणा कर दी। इससे राणा सांगा को लगा कि बाबर एक बाहरी आक्रमणकारी के रूप में भारत पर शासन करना चाहता है, जो उन्हें स्वीकार्य नहीं था।
3. खानवा की लड़ाई (1527)
राणा सांगा ने विभिन्न राजपूत राजाओं और अफगानों को एकजुट कर बाबर के खिलाफ युद्ध छेड़ा। बाबर ने अपने युद्ध कौशल, तोपखाने और तुर्की रणनीति का उपयोग करके खानवा की लड़ाई (1527) में राणा सांगा को हराया। इस हार के बाद राणा सांगा बुरी तरह घायल हो गए और कुछ समय बाद उनकी मृत्यु हो गई।
4. युद्ध नीति और रणनीति में अंतर
- राणा सांगा पारंपरिक युद्ध नीति अपनाते थे, जिसमें वीरता और प्रत्यक्ष संघर्ष प्रमुख था। जबकि बाबर मध्य एशियाई युद्ध रणनीति, घुड़सवार सेना और बारूद (तोपों और बंदूकों) का उपयोग करता था, जो भारतीय सेनाओं के लिए नया था।
- राणा सांगा एक कट्टर हिंदू शासक थे और राजपूत स्वाभिमान के रक्षक थे, जबकि बाबर एक मुस्लिम आक्रमणकारी था।
- राणा सांगा ने हिंदू राज्यों को एकजुट करने का प्रयास किया, जबकि बाबर ने इस्लामी झंडे को ऊंचा करने का दावा किया।
- राणा सांगा और बाबर के बीच मुख्य मतभेद भारत के नियंत्रण और शासन को लेकर थे। बाबर ने विदेशी आक्रमणकारी के रूप में भारत पर अधिकार किया, जबकि राणा सांगा ने भारतीय स्वाधीनता के लिए संघर्ष किया। खानवा की लड़ाई में बाबर की जीत के साथ भारत में मुगल साम्राज्य की नींव मजबूत हो गई, जबकि राजपूत शक्ति को भारी झटका लगा।
अलेक्जेंडर और पुरु का प्रसंग
ऐतिहासिक घटनाओं से तुलना करें तो जिस प्रकार राजा पुरु (Porus) और अन्य भारतीय राजाओं को अलेक्जेंडर के भारत आने की सूचना थी, उसी तरह राणा सांगा भी बाबर के आने से परिचित थे। बाबर ने जब पानीपत और खानवा की लड़ाइयां जीतीं, तो उसने स्पष्ट रूप से अपनी स्थायी सत्ता स्थापित करने के संकेत दिए। राणा सांगा की रणनीति बाबर के इरादों को गलत आंकने की एक ऐतिहासिक भूल साबित हुई।
अंततः ऐतिहासिक स्रोतों में ऐसे कोई भी स्पष्ट प्रमाण नहीं है कि राणा सांगा ने बाबर को बुलाया था, लेकिन यह संभव है कि उन्होंने उसे लोदी वंश के खिलाफ एक अस्थायी सहयोगी के रूप में देखा हो। हालांकि, बाबर के स्थायी शासन की मंशा ने इस पूरी राजनीतिक गणना को विफल कर दिया। राणा सांगा द्वारा बाबर को बुलाने की घटना पर इतिहासकार एकमत नहीं हैं। कुछ स्रोत इसे स्वीकारते हैं, जबकि अन्य इसे विवादित मानते हैं। लेकिन यह स्पष्ट है कि बाबर के आगमन के बाद भारतीय शक्ति संतुलन पूरी तरह बदल गया और मुगल साम्राज्य की नींव पड़ी। चाहे चिट्ठी लिखी गई हो या नहीं, यह घटना भारतीय इतिहास के महत्वपूर्ण मोड़ों में से एक बनी रहेगी।