Bharat Ka Itihas: ब्रिटिश हुकूमत का काला कानून, कैसे पारित हुआ था भारत में, आइए जानते हैं इसका इतिहास
Rowlatt Act 1919 In Hindi: 1919 रोलेट एक्ट पारित किया गया था, जिसे 'काला कानून’ के नाम से भी जाना जाता है।;
Bharat Ka Itihas Rowlatt ACT 1919 (फोटो साभार- सोशल मीडिया)
Rowlatt ACT 1919 Kya Tha: रोलेट एक्ट 1919 भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण और विवादास्पद कानून था। इसे ब्रिटिश सरकार ने भारत में राष्ट्रीय आंदोलन को कुचलने और स्वतंत्रता संग्राम के नेताओं को दबाने के उद्देश्य से लागू किया था। भारतीयों ने इस कानून का तीव्र विरोध किया और इसे ‘काला कानून’ कहा गया।
रोलेट एक्ट की पृष्ठभूमि (Background of the Rowlatt Act)
प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) के दौरान ब्रिटिश सरकार ने भारत से भारी मात्रा में संसाधन और सैनिक लिए थे। युद्ध के बाद भारतीय जनता को उम्मीद थी कि ब्रिटिश सरकार उन्हें अधिक स्वायत्तता देगी। लेकिन इसके बजाय ब्रिटिश सरकार ने दमनकारी कानून बनाए।
मुख्य कारण
राष्ट्रीय आंदोलन का बढ़ता प्रभाव: 1915-16 में होमरूल लीग आंदोलन और लोकमान्य तिलक, महात्मा गांधी, एनी बेसेंट जैसे नेताओं की बढ़ती लोकप्रियता ने ब्रिटिश सरकार को चिंतित कर दिया।
क्रांतिकारी गतिविधियाँ: चापेकर बंधु, खुदीराम बोस, भगत सिंह और अन्य क्रांतिकारियों की बढ़ती गतिविधियाँ ब्रिटिश सरकार के लिए एक चुनौती बन गई थीं।
1915 का रक्षा क़ानून: प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश सरकार ने भारत रक्षा अधिनियम (Defence of India Act) लागू किया था, जो युद्ध समाप्ति के साथ समाप्त हो गया। लेकिन ब्रिटिश सरकार ने इसी प्रकार का स्थायी कानून लागू करने की योजना बनाई।
रोलेट एक्ट क्या था (Rowlatt ACT Kya Tha)
(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
ब्रिटिश सरकार ने 1917 में जस्टिस सिडनी रोलेट की अध्यक्षता में एक समिति गठित की, जिसका उद्देश्य भारत में क्रांतिकारी गतिविधियों को रोकने के लिए स्थायी कानून तैयार करना था। इस समिति की सिफारिशों के आधार पर 1919 में "अराजक और क्रांतिकारी अपराध अधिनियम" (Anarchical and Revolutionary Crimes Act) पारित किया गया, जिसे ‘रोलेट एक्ट’ (Rowlatt ACT) कहा गया।
रोलेट एक्ट के प्रमुख प्रावधान (Major Provisions of the Rowlatt Act)
बिना मुकदमा चलाए कैद: सरकार को किसी भी भारतीय को बिना किसी मुकदमे के दो साल तक जेल में रखने का अधिकार मिल गया।
बिना वारंट गिरफ्तारी: पुलिस को किसी भी संदिग्ध व्यक्ति को बिना वारंट गिरफ्तार करने और बिना किसी ठोस प्रमाण के जेल में डालने की शक्ति दी गई।
प्रेस पर प्रतिबंध: भारतीय समाचार पत्रों और पत्रिकाओं पर सेंसरशिप लागू कर दी गई।
निजी स्वतंत्रता पर हमला: किसी भी भारतीय की संपत्ति ज़ब्त की जा सकती थी और उसे देशद्रोही करार दिया जा सकता था।
कोर्ट में अपील का अधिकार नहीं: यदि किसी व्यक्ति को इस कानून के तहत गिरफ्तार किया जाता, तो उसे उच्च न्यायालय में अपील करने का कोई अधिकार नहीं मिलता।
गुप्त सुनवाई: जिन मामलों में सरकार को आवश्यक लगता, उनकी सुनवाई बंद दरवाजों के पीछे की जाती।
रॉलेट एक्ट का उद्देश्य (Objective of the Rowlatt Act)
रॉलेट एक्ट लाने के पीछे ब्रिटिश सरकार के कुछ नकारात्मक उद्देश थे। जो कुछ इस प्रकार हैं:-
स्वतंत्रता संग्राम को दबाना: भारत में बढ़ते स्वतंत्रता संग्राम को रोकने के लिए ब्रिटिश सरकार ने यह कठोर कानून बनाया था।
भारतीयों को डराना: इस कानून के जरिए ब्रिटिश सरकार भारतीयों को डराना चाहती थी और उन्हें अपने खिलाफ बोलने से रोकना चाहती थी।
शासन को मजबूत करना: ब्रिटिश सरकार भारत में अपना शासन मजबूत करना चाहती थी और इसीलिए उन्होंने यह कानून बनाया था।
मौलिक अधिकारों का हनन: इस कानून का उद्देश भारतीयों के मौलिक अधिकारों का हनन करना और इसमें जनता की स्वतंत्रता को सीमित करना था।
स्थायी कानून में बदलना: उनका उद्देश्य युद्धकालीन ‘भारत रक्षा अधिनियम (1915)’ के अत्याचारी प्रावधानों को स्थायी कानून द्वारा बदलना था।
भारतीयों की प्रतिक्रिया
महात्मा गांधी ने इस कानून के खिलाफ ‘सत्याग्रह सभा’ की स्थापना की और इस कानून का अहिंसात्मक विरोध शुरू किया।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दलों ने इस कानून की घोर निंदा की।
पूरे देश में हड़तालें हुईं और लाखों लोगों ने सड़कों पर उतरकर विरोध प्रदर्शन किया।
पंजाब, बंगाल, बिहार और उत्तर प्रदेश में विशेष रूप से आंदोलन तेज़ हो गया।
जलियांवाला बाग हत्याकांड (13 अप्रैल 1919)
(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
रोलेट एक्ट का सबसे भयानक परिणाम अमृतसर के जलियांवाला बाग हत्याकांड के रूप में सामने आया। 10 अप्रैल, 1919 को अमृतसर में रोलेट एक्ट के खिलाफ प्रदर्शन हो रहे थे, जिसमें ब्रिटिश सरकार ने डॉक्टर सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलू को गिरफ्तार कर लिया।
13 अप्रैल को बैसाखी के दिन हजारों लोग जलियांवाला बाग में शांतिपूर्वक एकत्र हुए थे।
जनरल डायर ने बिना किसी चेतावनी के सैनिकों को निहत्थे लोगों पर गोलियाँ चलाने का आदेश दे दिया।
सरकारी रिपोर्ट के अनुसार, 379 लोग मारे गए और 1200 से अधिक घायल हुए, लेकिन असल संख्या 1000 से अधिक थी।
गांधीजी और रोलेट सत्याग्रह
महात्मा गांधी ने इस अन्यायपूर्ण कानून के विरोध में ‘रोलेट सत्याग्रह’ शुरू किया।
उन्होंने भारतीयों से ब्रिटिश संस्थानों और अदालतों का बहिष्कार करने का आह्वान किया।
गांधीजी ने 6 अप्रैल, 1919 को देशव्यापी हड़ताल का आह्वान किया।
पूरे भारत में विरोध प्रदर्शन हुए, लेकिन कई स्थानों पर यह आंदोलन हिंसक हो गया।
हिंसा के बाद गांधीजी ने यह सत्याग्रह स्थगित कर दिया। लेकिन इसने ब्रिटिश सरकार को हिला दिया।
रोलेट एक्ट का प्रभाव (Effect of Rowlatt Act)
(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
भारतीयों में असंतोष बढ़ा: इस कानून ने भारतीयों में ब्रिटिश सरकार के प्रति और अधिक गुस्सा भर दिया।
महात्मा गांधी राष्ट्रीय नेता बने: गांधीजी ने पहली बार अखिल भारतीय स्तर पर जन आंदोलन किया, जिससे वे राष्ट्रीय नेता बनकर उभरे।
भारतीयों का ब्रिटिश सरकार से भरोसा उठा: इससे पहले कई भारतीय मानते थे कि ब्रिटिश सरकार भारतीयों के हित में काम कर रही है। लेकिन इस कानून के बाद उनका यह भ्रम टूट गया।
1922 में असहयोग आंदोलन की नींव: रोलेट सत्याग्रह की असफलता के बाद गांधीजी ने असहयोग आंदोलन की शुरुआत की।
जलियांवाला बाग हत्याकांड: इस हत्याकांड ने पूरे देश को हिला दिया और ब्रिटिश हुकूमत की नृशंसता उजागर कर दी।
रौलेट एक्ट को लेकर जनता का असंतोष और अंग्रेजी शासन के खिलाफ बढ़ता आंदोलन बहुत ही महत्वपूर्ण था। जब रॉलेट एक्ट लागू हुआ, तो भारतीय जनता में भारी आक्रोश और असंतोष फैल गया। लोग इस कानून को अपने मौलिक अधिकारों पर हमला मानते थे।महात्मा गांधी ने इस एक्ट के खिलाफ व्यापक स्तर पर विरोध और सत्याग्रह का आयोजन किया। जनता ने हड़तालें कीं, रैलियाँ निकालीं, और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ खुलकर अपनी नाराजगी जताई। इस विरोध ने पूरे देश में एकजुटता का माहौल पैदा किया और स्वतंत्रता संग्राम को एक नया मोड़ दिया।
जलियाँवाला बाग हत्याकांड, जो इसी आंदोलन के दौरान हुआ, ने जनता के गुस्से को और भड़का दिया। इस घटना ने ब्रिटिश शासन की क्रूरता को सबके सामने ला दिया और स्वतंत्रता की मांग को और मजबूती से उठाया। रौलेट एक्ट के कारण जनता और भी अधिक संगठित होकर ब्रिटिश शासन के खिलाफ खड़ी हो गई।
रोलेट एक्ट का अंत (Rowlatt Act The End)
रोलेट एक्ट का देशभर में भारी विरोध हुआ, जिसके चलते 1922 में इसे औपचारिक रूप से निरस्त कर दिया गया। लेकिन इस कानून के माध्यम से ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों पर जो जुल्म किए, वे इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गए।
हंटर आयोग
14 अक्टूबर, 1919 को जलियांवाला बाग हत्याकांड की जांच के लिए हंटर आयोग (अव्यवस्था जांच समिति ) का गठन किया गया। डायर ने अपने अत्यधिक कार्यों का बचाव करते हुए दावा किया कि अवज्ञा और हिंसा को दंडित करना आवश्यक था।
फ़ैसला:
हंटर रिपोर्ट में ब्रिगेडियर जनरल डायर के कार्यों की आलोचना करते हुए उन्हें अनुचित बताया गया।उन्हें इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया। लेकिन उन पर और अन्य अपराधियों पर कोई गंभीर दंड नहीं लगाया गया।
यह त्रासदी भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण मोड़ बन गई, जिसने ब्रिटिश शासन की क्रूर और दमनकारी प्रकृति को उजागर किया। इसने समुदायों में स्वतंत्रता के संकल्प को ऊर्जा दी। 13 मार्च, 1940 को लंदन के कैक्सटन हॉल में, भारतीय स्वतंत्रता सेनानी उधम सिंह ने माइकल ओ'डायर की हत्या कर दी, जिसने डायर की कार्रवाई को मंजूरी दी थी और माना जाता है कि वह मुख्य योजनाकार था।
रौलेट एक्ट के विरुद्ध प्रतिक्रिया: रॉलेट सत्याग्रह
रौलेट एक्ट के विरुद्ध लोगों ने कई तरह की प्रतिक्रियाएं दीं जिनमें शामिल हैं:-
सत्याग्रह: महात्मा गांधी जी ने रौलेट एक्ट के विरोध में सत्याग्रह का रास्ता चुना। उन्होंने लोगों से अपील की कि वे इस कानून का पालन न करें और शांतिपूर्ण तरीके से विरोध करें।
हड़तालें: कई जगहों पर लोगों ने हड़तालें कीं। दुकानें बंद रहीं, गाड़ियां नहीं चलीं। इससे ब्रिटिश सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश की गई।
विरोध प्रदर्शन: लोगों ने सभाएं कीं और जुलूस निकाले। उन्होंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ नारे लगाए और इस कानून को वापस लेने की मांग की।
असहयोग: लोगों ने ब्रिटिश सरकार के साथ सहयोग करना बंद कर दिया। उन्होंने सरकारी नौकरियां छोड़ दीं और सुनवाई के वक्त अदालतों में नहीं गए।
‘रॉलेट एक्ट’ न केवल एक दमनकारी कानून था, बल्कि यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण मोड़ भी साबित हुआ। इस एक्ट ने भारतीय जनता के बीच एकता और संघर्ष की भावना को और मजबूत किया। रॉलेट एक्ट के खिलाफ हुए विरोध प्रदर्शनों और जलियांवाला बाग हत्याकांड ने ब्रिटिश शासन की क्रूरता को उजागर किया और स्वतंत्रता की लड़ाई को और तेज कर दिया। यह घटना भारतीय इतिहास में एक काला अध्याय है।लेकिन इसने स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा और ऊर्जा भी प्रदान की।
इस ब्लॉग में आपने रॉलेट एक्ट क्या था, रॉलेट एक्ट कब पारित हुआ, रॉलेट एक्ट कब लागू हुआ, इसका उद्देश, इसके प्रभाव, जलियांवाला बाग हत्याकांड 1919 और जानने योग्य बातों के बारे में जाना।
रोलेट एक्ट ब्रिटिश सरकार का एक दमनकारी कानून था, जिसे भारतीयों के मौलिक अधिकारों को छीनने के लिए लागू किया गया था। हालांकि, इस कानून ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को और अधिक गति दी और देशभर में विरोध की ज्वाला भड़का दी। यह कानून न केवल ब्रिटिश हुकूमत के अन्याय का प्रतीक बना, बल्कि इसने भारतीयों को स्वतंत्रता संग्राम के लिए और अधिक प्रेरित किया।