Albert Einstein: अल्बर्ट आइंस्टीन के 144 वी जयंती पर विशेष
Albert Einstein: वह कभी नहीं बदलती बल्कि space और time को अपने अनुसार संतुलित करती है। आप इसी संतुलन को परमसत्ता कह सकते हैं। इसके अतिरिक्त ईश्वर के अस्तित्व का प्रश्न इतना जटिल है जिसका उत्तर हां या ना में नही दिया जा सकता।
Albert Einstein: संसार का कोई ज्ञान पूर्ण नही। प्रत्येक का अस्तित्व प्रकाश की गति के सापेक्ष है। अर्थात प्रकाश की गति ही असंदिग्ध है। वह कभी नहीं बदलती बल्कि space और time को अपने अनुसार संतुलित करती है। आप इसी संतुलन को परमसत्ता कह सकते हैं। इसके अतिरिक्त ईश्वर के अस्तित्व का प्रश्न इतना जटिल है जिसका उत्तर हां या ना में नही दिया जा सकता। ऐसा सिद्ध करने वाले महान भौतिक शास्त्र के वैज्ञानिक और दार्शनिक अल्बर्ट आइंस्टीन(14 मार्च 1879 — 18 अप्रैल 1955) जर्मन मूल के यहूदी थे। ऑस्ट्रिया, स्वीटजरलैंड सहित USA की नागरिकता भी उन्हे प्राप्त थी। वैसे तो उन्हे भौतिक शास्त्र वैज्ञानिक के रूप में सभी उन्हे जानते है पर दर्शनशास्त्र में भी आइंस्टीन डॉक्टरेट थे। उन्हे प्रकाश विद्युत प्रभाव के खोज के लिए 1921 में भौतिक शास्त्र का नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। मेटक्यूसी पदक 1925, कोपले पदक 1929, मैक्स प्लैंक पुरस्कार 1929 से सम्मानित आइंस्टीन को 1999 में टाइम्स 20 सदी का सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति बताया।
आइंस्टीन के मस्तिष्क एक प्रयोगशाला थी। सिद्धांतो को मस्तिष्क में सोचकर गणितीय सूत्र से प्रयोगशाला में सिद्ध करने की विशेषता उन्हे अन्य वैज्ञानिकों से अलग करता है। उनके सापेक्षता के सिद्धांत ने ब्रम्हांड के रहस्यों को समझने में मदद की। उनके इस सिद्धांत ने प्रकाश की गति को absolute सिद्ध करते हुए सभी पदार्थों को उसकी गति के सापेक्ष समझने में मदद की। एक अवधारणा जो प्रायः बाल कथाओं का आधार होती है जिन्हे हम time travel यानी समय की यात्रा कह सकते है। ये अतीत अथवा भविष्य की जीवन की यात्रा करने जैसा है। Speed, space (distance) और time के अंतर्संबंध से ये बता दिया कि अनंत ब्रह्मांड में प्रकाश की गति स्थिर है और अपने अस्तित्व को बचाने के लिए वो space और time में परिवर्तन कर लेती है। Space और time के इसी adjustment को आप ईश्वर की बनाई व्यवस्था कह सकते है। अर्थात यदि नवी सदी के महान धर्म और दर्शन के विद्वान शंकराचार्य ने " ब्रह्म सत्यं जगत मिथ्या" (संसार भ्रम है कोई दृश्य ज्ञान पूर्ण सत्य नही) का अद्वैतवाद सिद्धांत दिया तो आइंस्टीन ने उसे प्रयोगशाला में गणितीय सिद्धांतो के आधार पर सिद्ध कर दिया।
उनके शोध में द्रव्यमान और ऊर्जा का संबंध E = mc² है। अर्थात द्रव्यमान को ऊर्जा में और ऊर्जा को द्रव्यमान में बदला जा सकता है। उन्होंने बताया की द्रव्यमान भी सापेक्ष होता है और पदार्थ की गति बढ़ाने पर द्रव्यमान भी बढ़ता है। कालांतर में इसी सिद्धांत पर परमाणु बम बनाया गया जिसका पहला और अंतिम प्रयोग हिरोशिमा और नागासाकी पर किया गया। परिणाम इतना भयावह था कि 82 वर्ष बीत जाने के बाद भी मनुष्य ने दुबारा उसके प्रयोग की कल्पना भी नहीं की। आइंस्टीन को अपने परमाणु ऊर्जा सिद्धांत के इस भयानक दुष्परिणाम पर अफसोस था। उनके अनुसार सिद्धांत कल्याण के लिए बनाए जाते हैं ऐसे भयानक विभीषिका के लिए नही।
अन्य खोजो में क्वांटम थ्योरी, ब्राउनियन गति, फोटो इलेक्ट्रिक प्रभाव रहे जिन्होंने ब्रह्मांड के रहस्यों को समझने में मदद की। अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा कि वह बारूक स्पिनोज़ा के सर्वेश्वरवादी ईश्वर में विश्वास करते हैं। वह एक व्यक्तिगत ईश्वर में विश्वास नहीं करता था जो खुद को भाग्य और मनुष्यों के कार्यों से चिंतित करता है, एक ऐसा दृष्टिकोण जिसे उन्होंने भोले के रूप में वर्णित किया। हालांकि उन्होंने स्पष्ट किया कि, "मैं नास्तिक नहीं हूं", खुद को अज्ञेयवादी , या "धार्मिक अविश्वासी" कहना पसंद करते हैं । आइंस्टीन ने यह भी कहा कि वह मृत्यु के बाद के जीवन में विश्वास नहीं करते, "मेरे लिए एक जीवन काफी है।" वह अपने जीवनकाल में कई मानवतावादी समूहों के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़े रहे। आइंस्टीन का मानना था कि भगवान की समस्या "दुनिया में सबसे कठिन" थी - एक ऐसा प्रश्न जिसका उत्तर "बस हां या ना में" नहीं दिया जा सकता था। उन्होंने स्वीकार किया कि, "इसमें शामिल समस्या हमारे सीमित दिमागों के लिए बहुत बड़ी है।"
विचार, शोध , सिद्धांत आविष्कार तो इतने है कि किसी लेख में समेटना संभव ही नहीं। इस महान आत्मा के 144 वी जयंती पर उन्हें याद करते हुए बस इतना ही।
देवेंद्र भट्ट (गुरु जी)