गुजरात चुनाव अपने चरम पर है। शुक्रवार (9 दिसंबर) को होने वाले मतदान के लिए लिए प्रचार थम चुका है। इस दिन गुजरात विधानसभा का पहला मतदान चरण पूरा कर लिया जाएगा। इस बार गुजरात का चुनाव कुछ ज्यादा ही चर्चा में है। इस चुनावी समर में सभी पार्टियों ने खूब जोर आजमाइश की और जबरदस्त रस्साकशी का माहौल रहा।
सियासी बयानबाजी और आरोप-प्रत्यारोपों का भी दौर चला जिसके बाद गुजरात के विधानसभा के चुनावों का खूब रंग चढ़ा। गुजरात के चुनावों का रंग ऐसा था, कि पिछले 4 से 5 महीनों में शायद ही कोई हो जिसने इस चुनावी आग में अपनी आहूति ना दी हो और इन सब में साथ दिया सोशल मीडिया ने।
अय्यर प्रकरण: बयानबाजियों की हद
इन बयानबाजियों का चरम तो गुरुवार को ही देखने को मिला, जब कांग्रेस के मणिशंकर अय्यर के एक शब्द ने गुजरात के साथ-साथ कांग्रेस पार्टी में भी भूचाल ला दिया। अय्यर को निलंबित होना पड़ा और राहुल गांधी को अपनी सारी मेहनत पर पानी फिरते नजर आने लगा। बीजेपी तो हिन्दू कार्ड खेल ही रही थी, कांग्रेस ने भी खुद को हिंदुओं से जोड़ने के लिए हर संभव कोशिश की, लेकिन मुसलमानों को जोड़ने के लिए अहमद पटेल का चेहरा राहुल के साथ ही चिपका रहा।
बीजेपी आक्रामक
चुनावी दौरों के दौड़ में मोदी एंड पार्टी ने खूब पसीना बहाया। बातों और जुमलों का दौर भी खूब चला। पार्टी ने यहां खुलकर हिन्दू कार्ड खेला। 'मुग़ल' शब्द का खूब प्रयोग हुआ। कांग्रेस के साथ ही अपने हर विरोधी की गिरेबां तक में झांकने की कोशिश हुई। बात करें पीएम मोदी की, तो बीजेपी का 22 साल का शासन और भरोसा, साथ ही उनका पद उन्हें गुजरात से दूर न रख सका। कुल मिलाकर पूरे प्रचार के दौरान मोदी ने लगभग 12 चक्कर गुजरात के लगाए हैं जो आखिरी दौर तक जारी रहा।
खूब गायी गई 'मुगल' गाथा
बीजेपी की तरफ से सिर्फ मोदी ही नहीं बल्कि अमित शाह से लेकर रूपाणी और यहां तक खुद यूपी छोड़कर योगी भी प्रचार और अपना दांव खेलने पहुंच गए। यूपी में नगर निगम चुनाव में कमल खिलाने की यशगाथा भी खूब गायी गई। पीएम मोदी ने एक रैली के दौरान कांग्रेस के वरिष्ट नेता मणिशंकर अय्यर के एक बयान का इस्तेमाल करते हुए पलटवार किया। मोदी ने कांग्रेस राज की तुलना 'औरंगजेब राज' से कर दी, जिसे पार्टी के लोगो ने खूब भुनाया। पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता जीवीएल नरसिम्हा राव ने तो यहां तक कह दिया कि वो ‘बाबर-भक्त और ‘खिलजी का रिश्तेदार’ हैं।
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जेटली को लेकर बीजेपी असहज
अयोध्या में राम मंदिर का विरोध करने के लिए राहुल गांधी ने ओवैसिस, जिलानिस से हाथ मिला लिया है। राहुल गांधी निश्चित रूप से एक 'बाबर भक्त' और 'खिलजी के रिश्तेदार' हैं। बाबर ने राम मंदिर को नष्ट कर दिया और खिलजी ने सोमनाथ को लूट लिया। नेहरू वंश दोनों इस्लामी आक्रमणकारियों के पक्ष में! इसी बीच अरुण जेटली को लेकर बीजेपी को थोड़ा असहज भी होना पड़ा। जेटली ने राहुल गांधी के मंदिर भ्रमणों के बारे बयान देकर सिर पर आफत मोल ली थी। उन्होंने बीजेपी को असली हिंदुत्ववादी पार्टी बताया तो और कांग्रेस को महज बहुरूपिया। जिसके बाद उन्हें भी पार्टी के अंदर और बाहर घेरा गया।
मुस्लिम महिलाओं ने किया मोदी के लिए वोट की अपील
हालांकि, जेटली का असर जल्दी ही व्यवस्थित करने में पार्टी काफी हद तक कामयाब रही। बीजेपी के पक्ष में उत्तर प्रदेश की मुस्लिम महिलाओं के सड़क पर उतरने की खबरों ने भी लोगों का ध्यान खींचा। तीन तलाक से मुक्ति के लिए ये महिलाएं मोदी को धन्यवाद दे रही थी और गुजरात की मुस्लिम महिलाओं से मोदी ले लिए बीजेपी को वोट देने की अपील कर रही थीं।
कांग्रेस का हिंदुत्व
कांग्रेस इस बार बहुत बचकर चली। हर विवादित बात से बचती रही। इस चुनाव में राहुल गांधी ने यक़ीनन बहुत मेहनत की। ऐसा कई बार लगा कि राहुल ने अबकी मोदी को कहीं न कहीं संकट में डाल दिया है। शुरू में तो राहुल की वजह से कांग्रेस की स्थिति भी बहुत अच्छी दिखने लगी। राहुल गांधी भी कांग्रेस में वापस जान फूंकने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते थे। इसके लिए प्रचार से लेकर मंदिरों के दर्शन तक कर डाले और खुद को हिंदू साबित करने में जुटे रहे। कुल मिलाकर सॉफ्ट हिंदुत्व से एक बार फिर कांग्रेस अपना पीछा नहीं छुड़ा पाई। राहुल ने गुजरात में नवसर्जन यात्रा की जिसमें सोमनाथ मंदिर से लेकर कई छोटे-बड़े मंदिरों के दर्शन किए और मत्था टेका। सोशल मीडिया पर तो विपक्ष ने शायद ही मोदी और बीजेपी के खिलाफ कोई मौका छोड़ा हो। सबसे पहले आया मोदी को लेकर 'चायवाला' मुद्दा जिसमें कांग्रेस के यूथ विंग की ऑनलाइन मैगजीन ने मोदी को लेकर एक आपत्तिजनक टिप्पणी की जिसके बाद खूब हो-हल्ला हुआ। उनके नेता राहुल गांधी ने भी इन मौकों पर खूब बयानबाजी की। सबसे ज्यादा सुर्खियां जिसने बटोरी वो था जीएसटी का पूरा नाम ‘गब्बर सिंह टैक्स’ जिसे पीएम मोदी ने ‘गुड एंड सिंपल टैक्स’ बताया था।
गुजरात की राजनीति में तीन नए सितारे
गुजरात चुनाव ने तीन नए सितारों को इस बार सामने लाकर यह संदेश दिया, कि देश में युवा राजनीति की चुनौतियों से जूझने के लिए तैयार हैं। हार्दिक पटेल , जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकुर के रूप में मिले ये तीन चेहरे वास्तव में इस चुनाव की राजनीतिक उपलब्धि के रूप में देखे जा सकते हैं। यह अलग बात है कि इन तीनो को जबरदस्त आक्रमण भी झेलना पड़ा। पाटीदार आंदोलन के कर्णधार और बीजेपी के पटेल वोटो में सेंध लगाने वाले हार्दिक पटेल की सीडी भी खूब वायरल हुई। जो पहले दौर के आखिरी प्रचार दौर तक जारी थी। 7 दिसम्बर को भी हार्दिक 4 से 5 सेक्स वीडियों ने खूब सुर्खियां बटोरीं। जिसको लेकर हार्दिक भी पीछे नहीं रहे और बीजेपी की कारसतानी बताकर बोल पड़े, कि मुझे कोई फर्क नहीं पड़ा और और मेरे उम्र के लड़के की गर्लफ्रेंड हो सकती है।
इसी तरह दलित-मुस्लिम गठजोड़ का गुजरात में नया आयाम देने की कोशिश में लगे और लोकप्रियता हासिल कर चुके दलित नेता जिग्नेश मेवाणी पर भी बीजेपी ने जबर्दस्त वार किया। हाल ही में अपनी चुनावी सीट पर रोड शो करते समय जिग्नेश के साथ कुछ बीजेपी समर्थकों ने तोड़फोड़ की और काले झंडे दिखाए। फिलहाल जिग्नेश किसी भी पार्टी के साथ नहीं हैं और निर्दलिय लड़ रहे हैं लेकिन परोक्ष रुप से राहुल का साथ देते नजर आ रहे हैं। इसके बाद ओबीसी नेता अल्पेश ठाकुर ने तो कांग्रेस को खुला समर्थन देकर अपना रूख साफ कर दिया।
मणिशंकर ने फेर दिया राहुल की मेहनत पर पानी
देश में लोकसभा चुनाव के समय से ही एक कहावत कही जा रही है कि कांग्रेस को बीजेपी नहीं, खुद कांग्रेसी हराते हैं। मणिशंकर अय्यर का मोदी को नीच और असभ्य कहना कांग्रेस के लिए मौजूदा चुनाव में आत्मघाती साबित हो सकता है। पीएम मोदी इसे गुजरात अस्मिता से जोड़कर और गुजरात का अपमान करार देकर इसे राजनीति से भी आगे ले गए और एक इमोशनल मुद्दा बना दिया। जिस तरह से बीजेपी ने इस पर पलटवार किया है, उससे साफ हो गया है कि वोटिंग तक वो इसे बेहद आक्रामक ढंग से उठाएगी। यह मुद्दा कांग्रेस के लिए किस तरह आत्मघाती है, इसका अंदाजा इसी बात से लगता है कि ताबड़तोड़ प्रेस कॉन्फ्रेंस की गईं। राहुल के ट्वीट आए और रात होते-होते अपने सबसे वरिष्ठ नेता को पार्टी से निलंबित करना पड़ा। इतनी बड़ी कार्रवाई इअतनी जल्दी कांग्रेस में पहली बार ही हुई है। ऐसा इसलिए करना पड़ा क्योंकि कांग्रेस के दिमाग में कहीं न कहीं 2007 का मौत का सौदागर, 2014 का चायवाला और प्रियंका गांधी का वो बयान कि मोदी 'नीच' राजनीति करते हैं, घूम रहा होगा। लेकिन क्या इससे डैमेज कंट्रोल हो पाएगा? कुल मिलाकर कांग्रेस ने एक बार फिर वही गलती की जो वो हर चुनाव में करती है।
बचते-बचते फंस गई कांग्रेस
कांग्रेस ने बहुत कोशिश की कि किसी भी तरह मोदी को कोई मुद्दा न मिले। यही वजह थी कि वो पूरे प्रचार के दौरान 2002 के दंगे, सोहराबुद्दीन एनकाउंटर का जिक्र तक करने से बचती रही। यहां तक कि अहमद पटेल तक को अपने साथ नहीं रखा। पिछले 15 दिन से मोदी और पूरी बीजेपी इसी कोशिश में थी कि कांग्रेस को किसी भी तरह अपने पाले में खींचा जाए। शुरुआत में लगा कि इस बार राहुल गांधी बहुत सोच समझकर चालें चल रहे हैं और मोदी की रणनीति में नहीं उलझ रहे हैं। लेकिन जनेऊ कार्ड के साथ ही पूरी कांग्रेस मोदी की चाल में फंसी और फिर फंसती चली गई। सोमनाथ मंदिर में दर्शन से शुरू हुए विवाद पर सफाई की मुहीम को अय्यर ने पलीता लगा दिया।
मोदी को मिल ही गए हथियार
बचती बचती कांग्रेस ने अंत में नरेंद्र मोदी को बहुत ही ताकतवर सस्त्र थमा दिया। अय्यर के एक बयान से नोटबंदी, जीएसटी, पाटीदार आंदोलन, ओबीसी-दलित नाराजी, महंगाई आदि सारे मुद्दों के सामने मोदी ने गुजरात अस्मिता को खड़ा कर दिया है। मोदी वैसे भी लहरों के राजहंस हैं। उनकी सबसे बड़ी ताकत रही है कि विरोधी गलती करें और वो मुद्दा बना दें। वर्ष 2007 के गुजरात चुनाव में मोदी ने सोनिया गांधी के एक बयान (मौत का सौदागर) को ऐसा भुनाया था कि कांग्रेस चारों खाने चित्त हो गई थी। 2014 के लोकसभा चुनाव में इन्हीं अय्यर ने मोदी को चायवाला कहा था तो मोदी ने चाय पर चर्चा शुरू कर माहौल बदल डाला था।