लखनऊ: मुसाफिर के रास्ते बदलते रहे, मुकद्दर में चलना था चलते रहे। मुहब्बत अदावत वफा बेरुखी किराये के घर थे बदलते रहे। बशीर बद्र का यह शेर कांग्रेस की चुनावी नैया को पार लगाने वाले पीके पर सटीक बैठ रहा है। दो साल बाद उनकी कई टीमें कल से एक हफ्ते के लिए यूपी के तीन मंडल की जमीनी हकीकत का जायजा लेने के लिए निकलेंगी, और बारी बारी यही टीमें पूरे प्रदेश का जायजा लेंगी। इसके लिए मई महीने का समय तय किया गया हैं। लेकिन चिलचिलाती धूप में प्रदेश की खाक छानने वाली पीके की टीम के इरादे अलग लग रहे हैं।
ऐसा नही है कि यह टीमें पहली बार यूपी की खाक छानने जा रही हैं, दो साल पहले भी पीके की ये टीमें ऐसा कर चुकी हैं। बस तब और अब में एक फर्क है, इरादे और पाले बदल गए हैं। लोकसभा चुनाव में जहां पीके का लक्ष्य कांग्रेस को उखाड़ फेंकने की मंशा लिए चुनाव लड़ रही बीजेपी का पथ प्रशस्त करना था। वहीं इस बार भाजपा की राहें रोककर कांग्रेस को चुनाव में सम्मानजनक स्थिति तक ले जाना हैं। पीके की टीम के एक सदस्य ने बताया कि हम लोक सभा चुनाव में भी यूपी में काम कर चुके हैं।
अपने मिशन पर जहां पीके गंभीर होकर काम कर रहे हैं वहीं उनका काम कांग्रेसियों के लिए बेहद उत्सुकता भरा है। ज्यादातर कांग्रेसी अब तक यही इसी सोच में डूबे हैं कि आखिर पीके क्या करने वाले हैं और कैसे करेंगे।
मोदी और नितीश की जीत तो समझ में आती है लेकिन कांग्रेस ...
कुछ वरिष्ट नेताओं का कहना है कि पिछले चुनावों में मोदी की जीत के जो कारण हैं उसे पीके से ज्यादा कांग्रेसियों के साथ-साथ सपाई और बसपाई भी समझ रहे थे। उसमे कोई मैजिक जैसा कुछ नहीं था जबकि नितीश की जीत में भी पीके का कोई करिश्मा ज्यादातर नेता नहीं समझ पा रहे हैं। जिस लोकतंत्र में वोट के समय जाति, धर्म, क्षेत्र, मजहब जैसी संकीर्णता हावी हो वहां पर सभी पार्टियों ने एकजुट होकर अगर बीजेपी और उसकी सहयोगी पार्टियों को पटकनी दे दी तो इसमें पीके का नहीं लोकतंत्र के संख्याबल का करिश्मा है।
पीके के कल से शुरू होने वाले अभियान के बारे में एक वरिष्ट कांग्रेसी नेता ने बताया कि कल से जो पीके की टीमें शुरू करने जा रही हैं। वह पहले भी कर चुकी हैं लेकिन तब उनके मन में हमारी राहें रोकने का इरादा था और आज भाजपा की राहें रोकने और हमे जिताने का इरादा है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि जनता इसे कैसे लेती है।
कुल मिलाकर अभी से जो हवा बन रही है उससे यह बात तो साफ है कि अपने भाग्य को तरसने वाली जनता फिर से भाग्य विधाता बनने जा रही है। यह देखना दिलचस्प होगा कि यूपी का ऊंट कांग्रेस के नीचे आएगा या पीके का?
अन्त में सरकार निर्माता जनता और पीके के नाम दुष्यंत कुमार की ये लाइनें
जिस तरह चाहो बजाओ तुम हमें
हम आदमी नहीं हैं झुनझुने हैं..............