लखनऊ: भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के सांसद विनोद खन्ना के निधन से खाली हुई गुरदासपुर लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव के नतीजे ने पार्टी को गहरा झटका दिया है और हवा में उड़ रही पार्टी जमीन पर आ गई है। साल 2014 में केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद संभवत: पहली बार पार्टी ने जीती हुई सीट खो दी। नतीजे से साफ दिखा कि बीजेपी ने सांसद विनोद खन्ना की पत्नी कविता खन्ना को टिकट नहीं देकर भारी गलती की। दूसरी तरफ, इसे पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह के छह महीने के कार्यकाल का परिणाम भी माना जा रहा है।
कांग्रेस प्रत्याशी सुनील जाखड को इतनी बड़ी जीत की उम्मीद नहीं थी। इससे जाहिर होता है कि पंजाब के लोगों की अकाली दल बीजेपी गठबंधन से नाराजगी अभी तक कम नहीं हुई है।
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सलारिया ने उठाया था कविता के बाहरी होने का मुद्दा
गुरदासपुर उपचुनाव की जब घोषणा हुई थी, तो राजनीतिक हलकों में इस बात की जोरदार चर्चा थी, कि बीजेपी वहां से दिवंगत सांसद विनोद खन्ना की पत्नी को टिकट देगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। विनोद खन्ना की तरह कविता के भी बाहरी होने का सवाल उठा और बीजेपी की राज्य इकाई में चल रही खींचतान के कारण कविता को टिकट से वंचित कर दिया गया। बीजेपी के हारे प्रत्याशी स्वर्ण सलारिया ने ही कविता के बाहरी होने का मुद्दा उठा दिया। सलारिया इससे पहले भी विनोद खन्ना के बाहरी होने का सवाल उठाते रहे हैं।
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जाखड़ और कविता में पकी 'खिचड़ी'
चुनाव के कुछ दिन पहले कांग्रेस उम्मीदवार व प्रदेश अध्यक्ष सुनील जाखड़ की कविता खन्ना से हुई मुलाकात ने नई चर्चाओं को जन्म दे दिया। लोग यह कयास लगाने में जुट गए कि स्वर्ण सलारिया को बीजेपी उम्मीदवार बनाए जाने के बाद कविता खन्ना कांग्रेस का दामन थाम सकती हैं। जाखड़ से मुलाकात के तुरंत बाद कविता खन्ना मुंबई के लिए रवाना हो गयीं और प्रचार करने से मना कर दिया।
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इस क्षेत्र से कविता का रहा है विशेष लगाव
पठानकोट के लोगों से लगाव के कारण ही तेज तपती दोपहरी में भी सेलिब्रिटी कविता खन्ना पठानकोट की गलियों में झाड़ू लगाने से भी नहीं चूकीं थी। उन्होंने कहा, कि 'यह हमारा कर्तव्य है कि हम पठानकोट व गुरदासपुर को स्वच्छ रखें। यह खन्ना साहब का सपना था जिसे मैं पूरा कर रही हूं।' कोई पहली बार नहीं था कि जब कविता ने नालियों की सफाई की हो। पहले भी वे कई बार पठानकोट व गुरदासपुर जिले के दूर-दराज के गांवों में जाकर झाड़ू लगा चुकी थीं।
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लोग मानते थे खन्ना की विरासत का प्रबल दावेदार
इसके अलावा कविता खन्ना अपने पति सांसद विनोद खन्ना के साथ भी राजनीतिक मंच साझा करती रही थीं। लोग उन्हें सांसद खन्ना की विरासत का प्रबल दावेदार भी मानते थे। गुरदासपुर के लोगों की सहानुभूति कविता खन्ना के साथ थी। कविता के साथ लोगों की सहानुभूति व उनके पति विनोद खन्ना के किए गए कार्यों व निष्पक्ष छवि का होना व समाजसेवा की पूंजी उनके पास थी, जिसे बीजेपी पहचान नहीं सकी।
'अघोषित वारिस' को बीजेपी ने किया इग्नोर
विनोद खन्ना ने तो पठानकोट में ही अपना घर बना लिया था। पठानकोट, गुरदासपुर संसदीय क्षेत्र का हिस्सा है। फिल्मों से लगभग खुद को दूर कर चुके विनोद खन्ना बीमारी से पहले पूरे समय तक अपने संसदीय क्षेत्र में ही रहते थे और उनके साथ रहती थीं पत्नी कविता। लोगों से मिलना, उनकी समस्याएं सुनना और उसका निराकरण कराना उनके रोज के काम का हिस्सा बन गया था। कविता, विनोद खन्ना की अघोषित राजनीतिक वारिस थीं।
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विनोद खन्ना और गुरदासपुर सीट
विनोद खन्ना 1997 में बीजेपी में शामिल हुए थे। अगले साल हुए लोकसभा चुनाव में पार्टी ने उन्हें गुरदासपुर से प्रत्याशी बनाया और जीत गए। उस वक्त भी उनके बाहरी होने की बात जोर-शोर से उठी थी। ये सवाल उठाने वाले भी उपचुनाव में मुंह की खाने वाले स्वर्ण सलारिया ही थे। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के 13 महीने बाद गिर जाने से अगले साल 1999 में फिर चुनाव हुए और विनोद खन्ना जीत गए। उन्हें 2002 में विदेश राज्य मंत्री बनाया गया। विनोद खन्ना को 2004 के लोकसभा चुनाव में भी जीत मिली, लेकिन 2009 के चुनाव में वो हार गए। उन्होंने 2014 में फिर इसी सीट से जीत दर्ज की।