Atal Bihari Vajpayee: भाव प्रणव काव्य था अटल जी का जीवन
Atal Bihari Vajpayee: अटल का नाम भारतीय जन गण मन में रचा बसा है। वे जीवित रहते तो आज 98 बरस के होते।
Atal Bihari Vajpayee: अटल का नाम भारतीय जन गण मन में रचा बसा है। वे जीवित रहते तो आज 98 बरस के होते। उनकी स्मृति बार बार आती है। उनका पूरा व्यक्तित्व भावप्रवण काव्य था। तरल, सरल, विरल और विश्वमोहक। आज उनकी जन्म तिथि है। कैसे करें उनका स्मरण? स्मरण उनका होता है, जिनका विस्मरण हो जाता है। अटल की स्मृति प्रतिपल जीवंत रहती है। वे भारतीय सार्वजनिक जीवन की दिव्यता हैं और राजनैतिक जीवन के मर्यादा पुरुष। भारतीय इतिहास ने उन्हें पूरी आत्मीयता के साथ अपने अन्तःस्थल में स्थापित किया है। वैसे इतिहास निर्मम और निष्पक्ष होता है। वह अपने पराए में भेद नहीं करता। वह अनायास ही किसी को महानायक नहीं बनाता।
अटल बिहारी वाजपेयी ने पया राष्ट्र के संपूर्ण जनगणमन का प्यार
लोकमत भी इतिहास की तरह निर्मम होता है। इसलिए विश्व इतिहास के प्रतिष्ठित महानायक भी संपूर्ण लोकमन की प्रशंसा नहीं पा सके। लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी अद्वितीय हैं। उन्होंने राष्ट्र के संपूर्ण जनगणमन का प्यार पाया। वे परिपूर्ण राष्ट्रवादी थे। वैचारिक प्रतिबद्धता में अटल थे बावजूद इसके उनके विचार के विरोधी भी उनके प्रशंसक थे। वे भारतीय राजनीति के अद्वितीय महानायक थे। वे तमाम असंभवों का संगम थे। वे सरस भावप्रवण कवि हृदय थे। राजनीति के भावविहीन क्षेत्र में भी देश के अग्रणी राजनेता। इस सदी के महानतम नेता। शब्द चयन और प्रयोग में सम्मोहन। आचार व्यवहार में सबके प्रति आत्मीय। विपरीत ध्रुवों से भी समन्वय की साधना बेजोड़ थी। वे सर्वप्रिय धीरोदात्त महानायक थे।
अटल थे भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्य
आग्रही राजनीति में विपरीत ध्रुवों का समन्वय आसान नहीं होता। 1975 में आपातकाल था। संविधान कुचल दिया गया था। हजारों राजनैतिक सामाजिक कार्यकर्ता जेल भेजे गए थे। अटल ने गैरकांग्रेसी दलों से समन्वय बनाया। तमाम गैर कांग्रेसी दल साझा मंच में आए। अटल भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्य थे। उन्होंने मिलकर चुनाव लड़ने के लिए गैरकांग्रेसी दलों को सहमत किया। 1977 के आम चुनाव में जनता पार्टी जीती। सरकार भी बनी। वे विदेश मंत्री बने। दिल्ली में भारतीय जनसंघ का अधिवेशन हुआ।
अटल ने जनसंघ के विसर्जन का रखा था प्रस्ताव
अटल ने जनसंघ के विसर्जन का प्रस्ताव रखा। वे पं0 दीनदयाल उपाध्याय का नाम लेकर रोने लगे। जनसंघ की विकास यात्रा में उपाध्याय, अटल आदि अनेक नेताओं कार्यकर्ताओं ने अपना श्रम तप लगाया था। जनसंघ का विसर्जन भावुक क्षण था। इन पंक्तियों का लेखक भी इस प्रवाह का हिस्सा था। कुछ समय बाद जनता पार्टी में कलह हुई। जनसंघ घटक के सदस्यों पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के नाम पर दोहरी सदस्यता का आरोप लगा। अटल ने यू0पी0 की एक जनसभा में चुटकी ली "उन्होंने पहले प्यार किया, सम्बंध बनाये। सम्बंधों का लाभ उठाया और अब हमसे हमारा गोत्र वंश पूछते हैं।" जनसंघ घटक अलग हो गया। अटल के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी बनी। अटल जी के नेतृत्व का सम्मोहन बढ़ता गया।
अटल जैसी वक्तव्य कला दुर्लभ। नेता प्रतिपक्ष के रूप में उन्होंने विषय प्रतिपादन का नया रिकार्ड बनाया। संसद उन्हें पूरे मनोयोग से सुनती थी। नरसिंहाराव तत्कालीन प्रधानमंत्री ने उन्हें विदेशी प्रतिनिधिमण्डल का नेता बनाया। यह भी एक विशेष अवसर था। उन्होंने देश के बाहर भारतीय जनतंत्र की प्रतिष्ठा बढ़ाई, "उन्होंने कहा कि वे भारत में विरोधी दल के नेता हैं लेकिन देश के बाहर भारत के प्रतिनिधि। वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से राजनीतिक क्षेत्र में आए थे। संघ की राष्ट्रवादी विचारधारा है। उनके विचार मननीय हैं। उन्होंने श्रीराम जन्मभूमि मंदिर को राष्ट्रीय भावना की अभिव्यक्ति बताया। हिन्दू और हिन्दुत्व को भारत की जीवनशैली बताया। उनकी कविता 'तन मन हिन्दू मेरा परिचय' खासी चर्चा में रहती है। उन्होंने राजनीति में भारतीय संस्कृति का प्रवाह पैदा किया। जो कहा, सीना ठोककर कहा। लोग तिलमिलाए। ऐसे लोगों ने जनसंघ पर साम्प्रदायिकता का आरोप लगाया। अटल जी ने संसद में साम्प्रदायिकता की परिभाषा करने की मांग भी की।
राष्ट्रधर्म पत्रिका के सम्पादक रहे थे अटल
अटल लखनऊ से प्रकाशित राष्ट्रधर्म पत्रिका के सम्पादक रहे थे। पत्रिका के सम्पादक मण्डल ने भारतीय जनसंघ व भारतीय जनता पार्टी पर विशेषांक प्रकाशित करने का निर्णय लिया। सम्पादक मण्डल ने मुझे दोनों विशेषांकों का अतिथि सम्पादक बनाया। इसका विमोचन दिल्ली भाजपा कार्यालय में अटल जी व आडवाणी जी ने किया था। विमोचन के पहले अटल जी ने दोनों अंक देखने के लिए मांगे। मैंने पत्रिका के प्रबंधक पवन पुत्र बादल के साथ अटल जी को दोनों अंक दिखाए। विशेषांकों के आलेख व चित्र संयोजन देखकर वे भावुक हुए। उन्होंने इस अनुष्ठान की प्रशंसा की। मुझे बधाई भी दी। इस तरह वे अपने सहयोगियों को लिखने पढ़ने की प्रेरणा देते थे। अटल जी के नेतृत्व में ही राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन बना।
विश्व परिवार ने अटल के नेतृत्व का किया सम्मान
क्षेत्रीय दलों को राष्ट्रीय आकांक्षा और राष्ट्रीय दलों को क्षेत्रीय कठिनाइयां समझने का अवसर मिला। विश्व परिवार ने अटल जी के नेतृत्व का सम्मान किया। लेकिन अन्तर्राष्ट्रीय बिरादरी परमाणु परीक्षण से सहमत नहीं थी। अटल जी यह बात जानते थे। इसके कारण संभावित आर्थिक प्रतिबंधों से भी वे अवगत थे। लेकिन उन्होंने परमाणु परीक्षण का निर्णय लिया। दुनिया के कई देश नाराज भी हुए। संसद में भी भारी बहस हुई। उन्होंने पूरे स्वाभिमान के साथ अपने निर्णय का पक्ष रखा। उन्होंने संसद में देश की प्राथमिकता बताई "परमाणु परीक्षण सम्बंधी हमारे निर्णय की एक मात्र कसौटी राष्ट्रीय सुरक्षा ही है। हमने किसी अन्तर्राष्ट्रीय करार का उल्लंघन नहीं किया है। उन्होंने कहा कि परमाणु परीक्षण किसी देश के विरूद्ध भय उत्पन्न करने अथवा आक्रमण करने के लिए नहीं हैं।" चन्द्रशेखर ने टिप्पणी की। उनके कथन पर अटल जी की टिप्पणी ध्यान देने योग्य है। अटल जी ने कहा कि मुझे खेद है कि मैं आपके विचारों से सहमत नहीं हूं।" चन्द्रशेखर की बात काटते हुए भी वे शील और मर्यादा में ही रहे।
अटल ने भारत के राजनैतिक आकाश में सार्वजनिक जीवन की मर्यादा रेखा खींची
लोकतंत्र उनकी जीवन श्रद्धा था। अटल ने भारत के राजनैतिक आकाश में सार्वजनिक जीवन की मर्यादा रेखा खींची है। यह रेखा बहुत ऊंची है। मूल्य आधारित सार्वजनिक जीवन की यह रेखा हम सभी राजनैतिक दलों के लिए अनुकरणीय है। उन्होंने लोकतंत्र को भारत की जीवनशैली बताया था। अटल जी के अनुसार "लोकतंत्र 49 बनाम 51 का अंकगणित नहीं है। सबकी अभिलाषा और राष्ट्रीय स्वप्नों के लिए सबको साथ लेकर कल्याण करना ही जनतंत्री राजनीति है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का सबका साथ सबका विकास और सबका विश्वास भी यही है। अटल जी सभी दलों और नेताओं में लोकप्रिय थे। उन्होंने भारतीय राजनीति को अनेक प्रतीक व प्रतिमान दिये। राष्ट्र सर्वोपरिता की सगुण जीवनदृष्टि दी। संसदीय मर्यादा पालन के नए आयाम दिये।
अटल निश्चयी थे। अथर्ववेद में दृढ़ निश्चयी व्रात्य की गति बताई गई है, "वह उठा। पूर्व दिशा की ओर चला वृहत्साम, रथंतर साम गान उसके पीछे चले। उसकी कीर्ति बढ़ी। वह दक्षिण चला। ऋद्धि सिद्धि समृद्धि उसके साथ चली। वह उत्तर चला। सोम देव आदि उसके साथ चले। वह अविचल - अटल खड़ा रहा। देव शक्तियों ने उसे आसन दिया। उसने ध्रुव दिशा की ओर गति की। भूमि और वनस्पतियां उसके अनुकूल हुईं। काल ने उसका अनुसरण किया। वह चलता रहा। इतिहास और पुराण उसके साथ हो गए।" - इतिहास च पुराणं च गाथाश्च अनुव्य चलन। अटल भी इतिहास पुरूष हैं। अटल का जीवन असंभव का संभव है - संभवामि युगे युगे। वे प्रतिपल भारत के राष्ट्रजीवन में है, भारत की धरती और आकाश में स्पंदित हैं। भारत के अणु परमाणु में उनका कृतित्व और विचार रस बस गया है।