सरकारी रेपिस्ट, लुटेरे दंडित ! नन्हें गांव की महाविजय गाथा !!

Bombay High Court: यह शौर्यगाथा है तमिलनाडु के पूर्वी घाट के खंड में स्थित मनोरम चितेरी पहाड़ियों के वनाच्छादित गांव वचथी की। जनपद धर्मपुरी के इस नन्हे से गांव का किस्सा शुरू होता है 20 जून 1992 की शाम को।

Written By :  RK Sinha
Update:2023-10-03 18:26 IST

Bombay High Court decision on Tamilnadu Dharmapuri village womens rape and murder Case 

Bombay High Court: दिया टकराये तूफान से ! न बुझे ? तो चमत्कार कहलाएगा। विस्मयजनक ! ठीक ऐसा ही हुआ (29 सितंबर 2023) गत सप्ताह। मद्रास हाईकोर्ट ने यही कर दिखाया। केवल 565 निर्धन अनुसूचित आदिवासी ग्रामीणजन तमिलनाडु के चार महाबली मुख्यमंत्रियों से 31 साल तक भिड़े। न्यायार्थ ! अंततः विजयी हुए। इन जुल्मी मुख्यमंत्री में हैं, एमके स्टालिन, उनके पिता एम. करुणानिधि, स्व. जे. जयललिता, ओ. पन्नीरसेल्वम तथा ई. पलनिस्वामी। सभी हार गए। मगर इन सभी ने अपने अत्याचारी अफसरों का समर्थन किया, बेशर्मी से। न्याय पाया जनजाति वालों ने, 31 साल बाद। अनवरत संघर्ष के फलस्वरुप।

यह शौर्यगाथा है तमिलनाडु के पूर्वी घाट के खंड में स्थित मनोरम चितेरी पहाड़ियों के वनाच्छादित गांव वचथी की। जनपद धर्मपुरी के इस नन्हे से गांव का किस्सा शुरू होता है 20 जून 1992 की शाम को। गोधूलि पर। पुलिसवाले कुख्यात तस्कर मुनिस्वामी वीरप्पन की तलाशी में आए थे। यह आतंकी और डाकू चंदन के पेड़ काटकर बेचने के अलावा, राजनेताओं का अपहरण करना और फिरौती बटोरने में लिप्त रहा। पुलिस और राजस्व अधिकारियों ने वाचथी गांव पर छापा मारा। घरों में अंधाधुंध तोड़फोड़ की। वृद्धों, महिलाओं और बच्चों को बेरहमी से पीटा गया। उनके घरेलू सामान और कृषि उपकरण नष्ट कर डाले। करीब 18 महिलाओं को एक सुनसान जगह पर ले जाया गया। उनके साथ बलात्कार किया गया। “द हिंदू” दैनिक ने फोटो भी छापी थी।

यह आदिवासी गांव तालुक मुख्यालय हरूर से 17 किमी दूर स्थित है। गांव की कुल जनसंख्या 1992 में 655 थी, केवल 12 लोग अन्य जाति के थे। केंद्र के एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम के तहत बनाए गए 120 समूह आवास सहित लगभग 200 घर थे। गाँव में केवल 261.18 हेक्टेयर खेती योग्य क्षेत्र है। लगभग 190 लोगों के पास ज़मीन थी। बाकी 466 भूमिहीन मजदूर थे। पहाड़ियों की तलहटी में स्थित यह थोम्बक्कल रिजर्व फॉरेस्ट और पल्लीपट्टी रिजर्व फॉरेस्ट इसके निकट है। आदिवासी जंगलों से लघु वन उपज और जलाऊ लकड़ी भी एकत्र करते थे। गाँव में उपलब्ध भूमि पर वे मुख्य रूप से रागी, टैपिओका, चावल और अन्य अनाज की खेती करते थे। यहां कुल 250 परिवार रहते हैं। गाँव की जनसंख्या 1032 है, जिसमें 517 पुरुष हैं, जबकि 515 महिलाएँ हैं।

वचथी का आपराधिक मामला 20 जून 1992 का है। एक आधिकारिक दल जिसमें 155 वनकर्मी, 108 पुलिसकर्मी और छह राजस्व अधिकारी शामिल थे चंदन की तस्करी और वीरप्पन के बारे में पता करने के लिए वचथी गाँव में दाखिल हुए थे। खोज के बहाने इस दल ने ग्रामीणों की संपत्ति की तोड़फोड़ की, उनके घरों को नष्ट कर दिया, मवेशियों तक को मार डाला, ग्रामीणों पर हमला किया और 18 महिलाओं के साथ बलात्कार किया।

राज्य विधानसभा में कई दफा मामला उठा, पर दबी आवाज से ही। फिर हाईकोर्ट के आदेश के बाद सीबीआई ने इसकी जाँच की थी। मामला राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की जाँच पड़ताल से भी गुज़रा। प्रदेश की एक विशेष अदालत ने 29 सितंबर 2011 को दलितों पर अत्याचार की सभी 269 आरोपी अधिकारियों को सजा सुनाई और बलात्कार के लिए 17 आरोपियों को सज़ा सुनाई। आरोपियों में से 54 लोगों की उस समय तक मृत्यु हो गई थी; शेष 215 आरोपियों को जेल की सजा सुनाई गई थी। निचली अदालत ने इन लोगों को दोषी ठहराया था। इस आदेश के खिलाफ आरोपियों ने मद्रास हाईकोर्ट में अपील की थी। शुक्रवार (29 सितंबर) को हाईकोर्ट ने निचली अदालत के कोर्ट का फैसला बरकरार रखा। पुलिस और सरकारी अधिकारियों ने गांव के लोगों को चंदन तस्कर वीरप्पन का समर्थक बताते हुए तीन दिन तक उनके साथ बर्बरता की थी। इन 269 दोषियों में से 126 फॉरेस्ट ऑफिसर, 84 पुलिसवाले और 5 रेवेन्यू अधिकारी थे। जब निचली कोर्ट का आदेश आया, तब तक 54 दोषियों की मौत हो चुकी थी।

अपने फैसले में निचली कोर्ट ने सभी दोषियों को 1 से 10 साल तक की जेल की सजा सुनाई थी। इसके साथ ही हर दोषी को 10 लाख रुपए देने आदेश दिया गया था, जो 18 पीडिताओं को दिए जाते। इनमें से हर दोषी पांच लाख रुपए जमा कर चुका है, जबकि पांच लाख बकाया है। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में राज्य सरकार को निर्देश दिया कि पीड़ितों को नौकरी या उनके और उनके परिवारों को स्व-रोजगार के अवसर मुहैया कराए जाएं। कोर्ट ने सरकार को ये निर्देश भी दिया था कि तत्कालीन जिला कलेक्टर, सुपरिंटेंडेंट ऑफ पुलिस और डिविजनल फॉरेस्ट ऑफिसर दोषियों के खिलाफ एक्शन ले क्योंकि उन्होंने आरोपियों के खिलाफ कोई भी कार्रवाई नहीं कर थी।

मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति पी. वेलमुरुगन ने गत शुक्रवार को इस मामले में फैसला सुनाया। जज ने यह भी आदेश दिया कि जो बलात्कार के दोषी पाए गए हैं, उन सब से मुआवजे की 50 प्रतिशत रकम वसूली जाए। ऐतिहासिक निर्णय देने वाले हैं डिंडीगुलवासी न्यायमूर्ति पेरुमल वेलमुरुगन, जो एक पंचायत शिक्षक के पुत्र हैं। उनकी सहधर्मिणी डॉ. आर. सुधा, एमडी, त्रिची मेडिकल कॉलेज में प्रोफेसर हैं। न्यायमूर्ति पी. वेलमुरुगन ने कहा : “सभी आपराधिक अपीलों को खारिज किया जाता है।” वाचथी गाँव के लोगों के खिलाफ तस्करी का जो आरोप लगाया गया था, मद्रास उच्च न्यायालय ने उसे भी खारिज कर दिया। पुलिस तीस साल तक मामले को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थी। तत्कालीन राज्य मंत्री केए सेनगोट्टैयन ने टिप्पणी की कि ग्रामीण चंदन की तस्करी में सहायता कर रहे थे। ग्रामीणों को लंबे समय तक मुआवजे से वंचित रखा गया था। अंततः विजय पीड़ितों और वंचितों की हुई।

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