Sushma Swaraj Birth Anniversary: हिंदी की प्रतिबद्ध समर्थिका सुषमा स्वराज
Sushma Swaraj Birth Anniversary:;
Sushma Swaraj Birth Anniversary News (Photo Social Media)
Sushma Swaraj Birth Anniversary: सुषमा स्वराज आज हमारे बीच नहीं है । आज ही के दिन 1952 में उनका जन्म हुआ था । वर्तमान में राजनीति कर रहे राजनेताओं को सुषमाजी से भाषण और संवाद करने का गुण सीखना चाहिए । हिंदी और लोकभाषाओं के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का मैं साक्षी और कायल हूँ । उनसे मेरी पांच मुलाकातें हुईं हैं । हर मुलाकात मीठी तकरार से शुरू हुई और स्नेहासिक्त वर्षा के साथ खत्म हुई , उनके प्रति मैं यदि पांच गज सम्मान भाव लेकर आता था तो मुलाकात के बाद सम्मान भाव का माप दस गुना अर्थात पचास गज पाता था । दो संस्मरण जरूर साझा करना चाहूंगा। उनसे पहली मुलाक़ात का सौभाग्य सन दो हजार की जनवरी को मिला था, वो सूचना प्रसारण मंत्री थीं । हम लोग आकाशवाणी गोरखपुर से भोजपुरी में समाचार प्रसारण की मांग कर रहे थे । मैं काफी धरना प्रदर्शन कर चुका था । छोटे लोहिया जनेश्वर मिश्र हमारे पैरोकार थे । उन्होंने हमारे शिष्ट मंडल को मंत्रीजी से मिलाने का वादा किया ।
जनेश्वरजी ने सुषमाजी को फोन किया कि बच्चों से मिल लो । उनके आवास के सामने ही शास्त्री भवन था , लगभग दस बजे सुषमाजी एक किसी सहयोगी के साथ ज्नेश्वरजी के यहां पहुंच गई । बात चीत के बाद उन्होंने मुझसे कहा कि शास्त्री भवन चलो । पैदल ही हम लोग मंत्रालय पहुंचे। उन्होंने पूछा कि भोजपुरी में समाचार क्यों चाहते हो जबकि भोजपुरी सुनने वालों की संख्या कम है । मैंने कहा कि अंग्रेजी और संस्कृत भी लोग कम बोलते और सुनते हैं लेकिन आकाशवाणी से इन दोनों भाषाओं में समाचार प्रसारित होता है । भोजपुरी गरीबों की बोली है, आपकी सरकार गरीब विरोधी है, आप की सरकार लोक भाषा विरोधी है ...... सुषमाजी सुनती रहीं फिर गाल पर स्नेह से चुपड़ी हुई चपत लगाते बोलीं , मुझे समाजवाद मत बताओ, मैं तुमसे बड़ी समाजवादी हूं , तुम जनेश्वर के चेले हो तो मैं जय प्रकाश की चेली हूं । सुषमाजी ने तुरंत अधिकारियों को भोजपुरी में समाचार प्रसारित करने का निर्देश दिया और प्रयोग के रूप में बीतल हफ्ता का प्रसारण शुरू हुआ ।
मॉरीशस में विश्व हिंदी सम्मेलन के दौरान वे विदेश मंत्री के रूप में भारत का प्रतिनिधि कर रही थीं । उसमें हम भी सुरक्षा परिषद में हिंदी को आधिकारिक भाषा का दर्जा मिले के मांग को लेकर अभियान चला रहे थे । मैंने एक खुला खत लिखा था जो वहां वितरित कर रहा था । कहीं से वह खुला खत सुषमाजी के हाथ लग गया, उन्होंने मुझे लैबुडोने बुलवाया । मैं पहुंचा, बात चीत के बाद , उन्होंने कहा कि दीपक से अकेले में बात करनी है । मैं घबराया कि बात हो गई । अकेले होते ही उन्होंने पर्स से पांच सौ डॉलर निकाला और हाथ में रखा । इसके पहले मैं कुछ कहता , वे बोलीं - रखी, सोशलिस्टों को मैं जानती हूं, पैसे होंगे नहीं, किसी साथी के यहां रुके होगे । मैंने कहा कि दो सौ डॉलर मेरे लिए बहुत है । उन्होंने कहा कि तीन सौ डॉलर पर्चा वगैरह की छपवाई के लिए रख लो ,जबकि पर्चा सरकार के खिलाफ लिखा था ।
आज के नेताओं और राजनीतिक कार्यकर्ताओं को उनसे काफी कुछ सीखने की आवश्यकता है । वर्तमान भाजपा सुषमाजी की राह से विचलित हो चुकी है । हिंदी के सवाल पर वर्तमान सरकार की सोच सुषमाजी से उलट है । केंद्र सरकार हिंदी को संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा दिलाने दिशा में कोई सार्थक कदम नहीं उठा रही । वाचाल मोदीजी की इस संदर्भ में मौन समझ से परे है ।