Holi 2025: मल दे गुलाल मोहे, आई होली आई रे

Holi 2025: होली एक अनूठा सांस्कृतिक और पारंपरिक उत्सव है। इन दिनों अलग-अलग जगह से आती फाग के गीतों की आवाज सुनने वाले को अपनी ओर खींचने लगती है झूमने को, पैर थिरकने लगते हैं;

Update:2025-03-09 13:33 IST

Holi 2025

Holi 2025: सुबह-सुबह जब बालकनी के दरवाजे खोले जाते हैं तब जो हवा का एहसास मिलता है वह न तो सर्दियों की हवा में होता है और न ही गर्मियों की हवा में होता है। यह हवा ही कुछ अलग होती है। इस मादक हवा में एक अलग सा आनंद, एक अलग सी मिठास, एक अलग सा मीठा सुरूर होता है, जो मन को अंदर तक छू जाता है। राग-विराग में झूमती, मतवाली वसंत ऋतु और यह फाल्गुन का महीना रससिक्त कर जाता है मन को। किसी-किसी के विरह वेदना के तार भी झंकृत कर जाती है यह अनोखी फाल्गुन बयार। कहीं कबूतरों के जोड़े की गुटरग़ूं तो कहीं चिड़ियों का किलोल। पता लग जाता है कि फागुनी मौसम चल रहा है।

 इस ऋतु में पलाश अपने पूरे शबाब पर होता है। पलाश में जैसे-जैसे सुर्ख लाल फूल आते जाते हैं, वह जवान होता जाता है। पलाश के पेड़ पर उगने वाले इस फूल का रंग केसरी-लाल होता है, जिसके कई नाम हैं, जैसे कि लाल टेसू, ढाक, छूल, परसा, किंशुक, केसू। आदिवासी समुदाय में टेसू के फूलों का महत्व केवल सजावट या रंग के रूप में नहीं होता, बल्कि यह उनके जीवन के साथ गहरे तौर पर जुड़ा होता है। यह फूल उनकी पारंपरिक मान्यताओं, उत्सवों और सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा बन चुके हैं। इस पर्व को मनाते समय आदिवासी एकजुट होकर सामूहिक रूप से गीत गाते हैं, नृत्य करते हैं और एक-दूसरे के साथ रंगों खेलते हैं। प्रसिद्ध कवि केदारनाथ अग्रवाल ने पलाश के लाल फूलों के आकर्षण पर लिखा है --

'पलास के बूढ़े वृक्षों ने

टेसू की लाल मौर सिर पर धर ली!

विकराल वनखंडी

लजवंती दुलहिन बन गई,

फूलों के आभूषण पहन आकर्षक बन गई।'

होली एक अनूठा सांस्कृतिक और पारंपरिक उत्सव है। इन दिनों अलग-अलग जगह से आती फाग के गीतों की आवाज सुनने वाले को अपनी ओर खींचने लगती है झूमने को, पैर थिरकने लगते हैं नाचने को, कंठ गुनगुनाने लगता है संग गाने को, ऐसे में कोई इससे अछूता कैसे रह सकता है भला...... कभी मन सवाल करता है तो कभी बहुत सारी बातों के बीच भी मौन अच्छा लगता है और कभी बिन बात के भी बातें कर लेता है। एक नवविवाहिता की शादी के बाद जब पहली होली आती है तो मन में कई सपने खिल उठते हैं।

कुछ हिंदी फिल्मी को देखकर, तो कुछ खुद की कल्पनाओं के सहारे। उसको सपने भले ही काली रंग की रात में आते हैं पर उनके रंग सुर्ख होते हैं, जिसमें इंद्रधनुष के सात रंग ही नहीं वरन् हर वह रंग होता है जो की प्रकृति हमें देती है। पर भाव में शर्मीलापन लिए हुए, उसकी मांग का सिंदूर और उसके चेहरे का शर्माता ललाईपन उसके सपनों को और भी शर्मिला लाल बना देता है। उसके करवट लेते सपने अपनी पहचान उन रंगों को ही थमा देते हैं। और 'कामचोर' फिल्म का राजेश रोशन के संगीत से सजा और लता मंगेशकर एवं किशोर कुमार द्वारा गाया गया यह गाना बरबक्स ही याद आ जाता है-

' मल दे गुलाल मोहे, आई होली आई रे।

चुनरी पर रंग सोहे, आई होली आई रे।'

पहले के समय में रिश्तों का मजबूत बंधन में देवर-भाभी, ननद-भौजाई की होली में हंसी ठिठोली का भी अपना ही महत्व हुआ करता था। कहीं-कहीं होली के नाम पर जबरदस्ती रंग लगाने के बहाने कुछ और सट लेने के सुख लेने वालों का भी समय आ जाता था। अब जब फागुन का महीना आ जाता है तो कुछ और जोड़ने की संग में जरूरत ही नहीं पड़ती क्योंकि बौराए हुए इस महीने में प्रकृति भी बौरा जाती है। कामदेव को बौरा देने वाला यह फागुन खुद ही गाता है, खुद ही नाचता है, खुद ही मांदल की थाप भी दे लेता है। पलाश, लाल टेसू के फूलों का अप्रतिम सौंदर्य जहां भी देखने को मिलता है, वही हौले-हौले फागुन छाने लगता है। सुस्त पड़े जीवन में फागुन एक राग लेकर आता है, कर्तव्य का नहीं बल्कि उल्लास, उमंग, मस्ती और अल्लहड़ता का।

लेकिन नई पीढ़ी अपने त्योहार से दूर होती जा रही है। वह या तो सार्वजनिक रूप से रंग खेलती ही नहीं है या होटल या क्लब के होली आयोजनों में ही अपने दोस्तों के साथ खेल लेती है। पहले जहां हमें जरूरी लगता था कि होली खेलना है क्योंकि रंगों का त्यौहार नहीं तो कैसे मनाया जाएगा। बचपन में चाव रहता था आसपास के बच्चों के साथ होली खेलने का। जैसे-जैसे बड़े हुए पूरे दिन होली खेलने की जगह त्योहार पर घर के कामकाज में भी हाथ बंटाने लगे, फिर भी ऐसा नहीं था की होली नहीं खेली।

आज जैसे उस समय में इतनी औपचारिकताएं भी तो नहीं हुआ करतीं थीं। होली खेलने के लिए न कोई हैप्पी होली लिखी सफेद शर्ट या कुर्ता खरीदा जाता था और नहीं हर्बल कलर का प्रचलन था। हुर्रयारों की रंग भरी बारात जब निकलती तो उससे मोटे-मोटे पाइपों से रंगीन पानी सारी छतों के ऊपर फेंका जाता था, जहां से महिलाएं होली का आनंद ले रही होतीं थीं।

भाभी या देवर के साथ होली खेली जाती है जमकर, यह फिल्मों में जरूर सुनते और देखते थे। फिल्मी गानों का प्रभाव यह जरूर हुआ करता था कि उम्र के खास मोड़ पर पहुंचने वाला हर युवा एक साथी का ख्वाब जरुर देखने लगता था, जिससे वह होली पर रंग लगाने के बहाने आंखें चार कर ले और भावनाओं को आंखों के माध्यम से ही लेनदेन का सुख प्राप्त कर ले। पर ऐसा करना भी बहुत ही साहसिक काम माना जाता था, वैसे ही जैसे कबड्डी में विपक्ष के पाले में जाकर विरोधी को चित्त करके बिना पकड़े वापस लौट आना।

 एक कलाकार को अपनी ब्रशों के माध्यम से रंगों को बिखेर कर सजाना पसंद होता है। होली होने को बिखराव का त्यौहार भी है जहां सिर्फ रंग ही नहीं बल्कि बिखरता है जिंदगी का फलसफा भी। क्योंकि रंग संवेदना भी होते हैं और कई कारणों से दार्शनिक रुचि का विषय भी होते है। रंग गंभीर आध्यात्मिक मुद्दों को उठाता है, जो भौतिक वास्तविकता और मन दोनों की प्रकृति से संबंधित हैं। इन मुद्दों में से एक यह है कि क्या रंग मन-स्वतंत्र वास्तविकता का हिस्सा है और हम रंग के अनुभवों के बारे में क्या बता सकते हैं। सबकी जिंदगी में रंगों की उतनी ही महत्वपूर्ण जगह होती है जिस तरह से प्राणवायु ऑक्सीजन की। रंग न हो तो कुछ भी न हो। रंग भले ही काले -सफेद ही क्यों न हो, वे रंग तो होते हीं हैं। जिंदगी में विषाद, उतार-चढ़ाव, सुख-दु:ख सब कुछ रंगों के माध्यम से ही तो निकल कर बाहर आते हैं। 

 पूछो उस जमाने की विधवाओं को जिनके रंगीन सपनों को छीन लिया गया या उन्होंने खुद ही त्याग दिए। आप किसी को भी जबरदस्ती रंगों को अपनाने को नहीं कह सकते हैं लेकिन अगर कोई खुद से अपने सपनों को फिर से रंगीन बनाने को तैयार हो तो उस पहल का सार्थक का स्वागत किया जाना चाहिए। कोई गिनीज वर्ल्ड बुक रिकॉर्ड बनाने के लिए नहीं, किसी तरह के शोर शराबे वाले विज्ञापन के लिए नहीं, किसी तरह के पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए नहीं बल्कि उनको सच में जिंदगी के रंगों में वापस लाने के लिए। खबर आई है कि उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के प्रयासों से वृंदावन में 2000 से अधिक विधवाएं एक साथ होली खेलकर एक अनूठा रिकॉर्ड बनाने जा रही हैं।

वृंदावन के सामाजिक संगठनों के साथ मिलकर उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग होली पर विधवाओं की होली-2025 के तौर पर एक इवेंट का आयोजन कर गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाने की दिशा में प्रयास करेंगी। यह होली का त्यौहार न केवल विधवाओं की बेरंग जिंदगी में खुशियों का रंग घोलने का माध्यम बनेगा बल्कि इतिहास व विश्व रिकॉर्ड में दर्ज होने के साथ ही समाज में सशक्त संदेश देने का माध्यम भी बनेगा।

वृंदावन के बहुत सारे आश्रम ऐसे हैं जहां पर सफेद साड़ी में लिपटी ये विधवाएं अपने आप को वहां पर ही होम कर चुकी है श्री कृष्ण की नगरी में या ऐसा करना उनकी मजबूरी है। वृंदावन में विधवाओं की होली का यह आयोजन क्या वाकई सदियों पुरानी वर्जनाओं को तोड़ पाएगा या मात्र एक औपचारिक आयोजन बनकर रह जाएगा, यह देखने की बात है। बहरहाल होली की रंग -बिरंगी शुभकामनाएं। फूल में सूरज की अनुभूति, करुणा की सुगंध में चमक। शुभ होलिका उत्सव मनायें और सबका कल्याण करें।

'सूर्य संवेदना पुष्पे, दीप्ति कारुण्यगंधने। 

लब्ध्वा शुभं होलिकापर्वेऽस्मिन कुर्यात्सर्वस्य मंगलम्‌।'

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