कोरोना का तुरंत तोड़ प्लाज्मा है, तब्लीगी जमात का आगे आना सुखद

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सबसे ज्यादा रुचि दिखाई और मुझसे कहा कि मैं अभी डाक्टरों की बैठक बुलाता हूं और उनसे कहता हूं कि प्लाज्मा चिकित्सा का परीक्षण शुरु करें। मुझे बहुत खुशी है कि अभी तक सारी दुनिया के डॉक्टर जिस कोरोना का तोड़ नहीं निकाल पाए हैं, उसका तोड़ हमारे डॉक्टरों ने निकाल लिया है।

Update:2020-04-29 14:17 IST

वेद प्रताप वैदिक

ज्यों ही तालाबंदी घोषित हुई, गुड़गांव के कुछ मित्र डाॅक्टरों और वैद्यों ने मुझे तरह-तरह के सुझाव दिए। कुछ डाक्टरों ने कहा कि आप प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों से कहिए कि वे ‘प्लाज्मा थेरेपी’ को मौका दें।

मैंने कई मुख्यमंत्रियों से बात की लेकिन दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सबसे ज्यादा रुचि दिखाई और मुझसे कहा कि मैं अभी डाक्टरों की बैठक बुलाता हूं और उनसे कहता हूं कि प्लाज्मा चिकित्सा का परीक्षण शुरु करें। मुझे बहुत खुशी है कि अभी तक सारी दुनिया के डॉक्टर जिस कोरोना का तोड़ नहीं निकाल पाए हैं, उसका तोड़ हमारे डॉक्टरों ने निकाल लिया है।

दिल्ली के डाॅक्टरों की इस खोज पर ‘इंडियन कौंसिल आॅफ मेडिकल कौंसिल’ ने भी अपनी मोहर लगा दी है। कोरोना के मरीजों को यह तीन-चार दिन में ठीक कर देता है। यह ठीक है कि इसकी तुलना किसी टीके (वेक्सीन) या कुनैन जैसी गोली से नहीं की जा सकती। यह ‘प्लाज्मा’ हजारों-लाखों लोगों को एक साथ नहीं दिया जा सकता, क्योंकि यह उन लोगों के खून में से निकाला जाता है, जो पहले कोरोना के मरीज़ रह चुके हैं और अब बिल्कुल ठीक हो चुके हैं। ऐसे लोगों का प्लाज्मा ज्यादा से ज्यादा तीन लोगों को दिया जा सकता है।

प्लाज्मा की पेशकश करने वाले बधाई के हकदार

भारत में कोरोना के मरीज़ हजारों में हैं और ठीक होनेवाले मरीजों की संख्या एक-चौथाई भी नहीं है और उनमें से अपना प्लाज्मा देने की शर्त आधे लोग भी पूरी नहीं कर सकते। इसके अलावा जो व्यक्ति एक बार कोरोना के चक्कर से बच निकला है, वह अस्पताल की सूरत भी नहीं देखना चाहता। जो ठीक हुए मरीज़ अपना प्लाज्मा देने की पेशकश कर रहे हैं, मैं उन्हें बधाई देता हूं। वे छोटे-मोटे देवदूत हैं। वे डरपोक नहीं हैं। उनमें सच्ची इंसानियत है, क्योंकि यह प्लाज्मा किसकी जान बचाएगा, इसका उन्हें कुछ पता नहीं।

और तब्लीगी जमात

यह तो डाक्टर तय करेंगे कि किसका प्लाज्मा किसको दिया जाएगा। यह जरुरी नहीं कि वह अपने रिश्तेदारों या मित्रों को ही दिया जाए। यह खबर और भी बड़ी खुशखबर है कि निजामुद्दीन की तबलीगी जमात में शामिल हुए तीन सौ लोग, ठीक होने के बाद अपना प्लाज्मा दान करने के लिए तैयार हैं। उनका प्लाज्मा सभी के काम आएगा, वे चाहे हिंदू हों या मुसलमान, सिख हों या ईसाई ! जब प्लाज्मा जात, मजहब, भाषा, रंग-रुप और हैसियत का फर्क नहीं करता तो हम इंसान होकर यह फर्क क्यों करने लगते हैं ?

इन प्लाज्मा देनेवालों की वजह से तबलीगी जमात को कुछ हद तक अपने पाप से उबरने का मौका भी मिलेगा। रमज़ान के दिनों में इससे बढ़िया (पुण्य कार्य) कारे-सवाब क्या होगा ? यह ज़काते-जान है।

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