Desh Ka GDP: क्या जीडीपी के आंकड़े मंदी से बाहर आने के संकेत हैं?

Desh Ka GDP: महामारी (covid-19 pandemic) से पहले कुल जीडीपी 35.60 लाख करोड़ रुपए की थी, जबकि जारी वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में यह 35 लाख करोड़ रुपए है और पिछले वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में 32 लाख करोड़ रुपए की थी। अर्थव्यवस्था में तीव्र सुधार के संकेत मिल रहे हैं।

Written By :  Vikrant Nirmala Singh
Published By :  Shashi kant gautam
Update:2021-12-09 19:27 IST

क्या जीडीपी के आंकड़े मंदी से बाहर आने के संकेत हैं?: photo - social media 

Desh Ka GDP: जीडीपी (GDP Of India) के आकडों ने हमेशा आर्थिक बहसों (Economic Debates) को जन्म दिया है। संतुलित विकास (Balanced Development) की चर्चा के बीच नए दौर के अर्थशास्त्री (Economist) इसे आर्थिक विकास (Economic Development) नापने का सही पैमाना नहीं मानते हैं। इनके अनुसार जीडीपी मानव विकास सूचकांक (Human Development Index) को शामिल नहीं करता है। बहरहाल एक वास्तविकता यह भी है कि आर्थिक विकास को नापने का जीडीपी सबसे कारगर तरीका भी है।

हाल ही में मौजूदा वित्त वर्ष 2021-22 ( FY Year 2021-22) के लिए भारतीय अर्थवयवस्था (Indian Economy) के जीडीपी आंकड़े (GDP figures) जारी किए गए हैं। ये आंकड़े दूसरी तिमाही के अनुमान हैं। इस तिमाही में जीडीपी दर के 8.4 फ़ीसदी रहने का अनुमान लगाया गया है।

इन आंकड़ों के आधार पर भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) में सुधार को समझने के लिए हमें इसकी तुलना पिछ्ले वर्ष की दूसरी तिमाही से करना होगा। साथ ही साथ यह भी देखना होगा कि अर्थव्यवस्था महामारी (Corona Pandemic) के पूर्व वाले स्तर की तुलना में कहां खड़ी है। तभी संभव है कि मंदी के बाद के आर्थिक सुधार को समझा जा सकता है।

भारतीय अर्थव्यवस्था में तीव्र सुधार के संकेत

कोविड-19 की महामारी (covid-19 pandemic) से पहले कुल जीडीपी 35.60 लाख करोड़ रुपए की थी, जबकि जारी वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में यह 35 लाख करोड़ रुपए है और पिछले वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में 32 लाख करोड़ रुपए की थी। यानी कि जीडीपी के कुल आंकड़े भारतीय अर्थव्यवस्था में तीव्र सुधार की तरफ संकेत कर रहे हैं।

लेकिन फिर भी कोविड-19 के पहले वाली अर्थव्यवस्था बनने में अभी वक्त लगेगा । क्योंकि रोजगार (Employment), मांग, महंगाई (Dearness) जैसे पैमानों पर भारतीय अर्थव्यवस्था नकारात्मक दिखाई पड़ रही है। साथ ही साथ जीडीपी की गणना संगठित क्षेत्र के आंकड़ों से होती है। इसमें असंगठित क्षेत्र को शामिल नहीं किया जाता है। इसलिए भारत जैसी अर्थव्यवस्था जिसका 94 फ़ीसदी हिस्सा असंगठित क्षेत्र से आता है, वहां जीडीपी को बहुत बेहतर पैमाना नहीं माना जा सकता है।

कृषि क्षेत्र उम्मीद के रूप में दिखाई पड़ रहा है: photo - social media

इन आंकड़ों में कृषि क्षेत्र उम्मीद के रूप में दिखाई पड़ रहा है

कोविड-19 (COVID-19) के कठिन समय में भी यह कृषि क्षेत्र ही था जिसने भारतीय अर्थव्यवस्था में उम्मीद को जिंदा रखा था। वर्तमान में इसकी वृद्धि दर 4.5 फ़ीसदी है जो कि पिछले वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही के 3 फ़ीसदी से काफी बेहतर है। विनिर्माण क्षेत्र रोजगार के दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण रहा है। जारी वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में इसकी वृद्धि दर 7.5 फ़ीसदी है, जबकि पिछले वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में यह -7.2 फिसदी था। मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में भी सुधार आया है। जारी आंकड़ों के अनुसार वर्तमान वृद्धि दर 5.5 फ़ीसदी है जबकि पिछले वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में यह -1.5 फ़ीसदी थी।

अब चर्चा उस हिस्से की जिसे भारतीय अर्थव्यवस्था में रीढ़ की हड्डी माना जाता है। यानी की खपत।भारत की जीडीपी में खपत की हिस्सेदारी 55 फ़ीसदी है। इस वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में भारत के लोगों ने कुल 19.50 लाख करोड़ रुपए खर्च किए हैं। यह पिछले साल की तिमाही से बेहतर है। पिछले साल यह आंकड़ा 17.93 लाख करोड़ रुपए का था। लेकिन अभी भी यह कोविड-19 से पहले वाली स्थिति की तुलना में तकरीबन एक लाख करोड़ रुपए कम है। कुल जीडीपी की हिस्सेदारी में देखें तो खपत का प्रतिशत स्थिर रहा है। वर्ष 2020-21 की दूसरी तिमाही में जहां यह 54.4 फ़ीसदी था वहीं जारी वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में यह 54.5 फ़ीसदी है।

कोविड-19: photo - social media


मंदी से निकलने के लिए सरकार की बड़ी भूमिका होती है

किसी भी मंदी से निकलने के लिए सरकार की बड़ी भूमिका होती है। जब अर्थव्यवस्था के अन्य पहलू नकारात्मक प्रदर्शन कर रहे होते हैं तब सरकार अपने बजट से पैसा लगाकर अर्थव्यवस्था को गति देती है। लेकिन यह आश्चर्यजनक है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में ऐसा होता नहीं दिख रहा है। इस वर्ष की तिमाही में सरकारी का कुल खर्च 3,61,616 करोड़ रुपए का है, जोकि वर्ष 2019-20 की तुलना में तकरीबन 70,000 करोड़ रूपए कम है। वर्ष 2019 की दूसरी तिमाही में कुल सरकारी खर्च 4,34,571 करोड़ रुपए रहा था। यानी कि संकट के समय सरकार का खर्च कम हुआ है।

इन तमाम आंकड़ों के अध्ययन से एक तथ्य स्पष्ट होता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था दोबारा रफ्तार पकड़ रही है। कुछ चुनिंदा सेक्टर को छोड़ दें तो हर मोर्चे पर यह बेहतर कर रही है। अगर इन जीडीपी आंकड़ों की वृद्वि के साथ ही रोजगार में वृद्धि हो जाए तो भारतीय अर्थव्यवस्था के दिन बेहतर हो जाएंगे। साथ ही हमें महंगाई को एक तय सीमा के दायरे में रखना होगा। क्योंकि महंगाई बिना कानून के एक ऐसा टैक्स है जिसे देश के हर नागरिक को देना पड़ता है।

(लेखक फाइनेंस एंड इकोनॉमिक्स थिंक काउंसिल के संस्थापक एंव अध्यक्ष हैं।)

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