Dr. ved Pratap Vaidik: बलूचिस्तान की आजादी?

Dr.Ved Pratap Vaidik: कराची विश्वविद्यालय में तीन प्रोफेसरों की हत्या हो गई है।

Published By :  Ragini Sinha
Update:2022-04-29 10:31 IST

बलूचिस्तान की आजादी? (social media)

Dr. Ved Pratap Vaidik: कराची विश्वविद्यालय में तीन प्रोफेसरों की हत्या हो गई। ये पाकिस्तानी नहीं थे। ये चीनी थे। ये कराची के कन्फ्यूशिस इंस्टीट्यूट में पढ़ाते थे। इन प्रोफेसरों ने बलूचों का क्या नुकसान किया था कि उन्होंने इनको मार दिया? सच्चाई तो यह है कि ये हत्याएं इसलिए की गई हैं कि बलूचिस्तान में चीन इतने अधिक निर्माण-कार्य कर रहा है कि उनसे बलूचिस्तान पर इस्लामाबाद का शिकंजा कसता चला जा रहा है। यह तथ्य ही बलूच बागियों के गुस्से का असली कारण है।

बलूच लोग पाकिस्तान में नहीं रहना चाहते हैं। वे अपना अलग राष्ट्र बनाना चाहते हैं। कई बलूच नेताओं ने मुझे कराची, इस्लामाबाद और पेशावर में हुई भेंटों में बताया कि वे पाकिस्तान में कभी मिलना ही नहीं चाहते थे। इसीलिए 1947 में कलात के खान ने कलात, लासबेला, खरान और मकरान को स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर दिया था लेकिन 1948 में पाकिस्तानी फौज ने डंडे के जोर पर बलूचों को पाकिस्तान में मिला लिया।

बलूच प्रांत आधे पाकिस्तान के बराबर बड़ा है और उसकी जनसंख्या मुश्किल से पाकिस्तान की जनसंख्या के 3.5 प्रतिशत के बराबर है। बलूच कहते हैं कि हम लोग सैकड़ों बरस से आजाद रहे हैं। अंग्रेज भी हमें गुलाम नहीं बना सके। हम अब पंजाबियों की गुलामी क्यों करे? बांग्लादेश की आजादी के बाद बलूच आजादी के आंदोलन ने काफी जोर पकड़ा लेकिन जुल्फिकार अली भुट्टो ने उसे निर्दयतापूर्वक कुचल डाला। मुशर्रफ के जमाने में प्रसिद्ध बलूच नेता नवाब अकबर खान बुगती को एक गुफा में बम से उड़ा दिया गया था। इसके बावजूद बलूच आंदोलन कभी ढीला नहीं पड़ा। कई बलूच नेता वाशिंगटन, लंदन, काबुल और तेहरान में बैठकर बागियों को हवा देते रहते हैं।

बलूच आंदोलन पूर्णरूपेण हिंसक है। उसके कार्यकर्त्ता पाकिस्तानी फौज और चीनी लोगों पर अब तक कई सीधे आक्रमण कर चुके हैं। उनमें अब तक दर्जनों पाकिस्तानी और चीनी लोग मारे गए हैं। कराची के चीनी वाणिज्य दूतावास पर और ग्वादर का बंदरगाह बनानेवाले चीनी कामगारों पर कई बार हमले हो चुके हैं। बलूच लोग इन्हें अपनी बंदूक की गोलियों का शिकार बनाते हैं। इस बार एक बलूच महिला ने आत्मघाती हमला करके नवीन परंपरा स्थापित की है। बलूच नहीं चाहते कि उनके ग्वादर के बंदरगाह का चीनी लोग इस्तेमाल करें।

चीन चाहता है कि ग्वादर के जरिए वह अरब और अफ्रीकी देशों तक अपनी पहुंच बढ़ा ले। इसीलिए वह काराकोरम से ग्वादर तक पक्की सड़क बना रहा है। पाकिस्तान का आरोप है कि भारत की सरकारें बलूच आंदोलन को भड़काती रहती हैं। लेकिन मैं इतना कह सकता हूं कि आज तक जितने भी बलूच नेता मुझसे मिले हैं, मैं उनसे नम्रतापूर्वक कहता रहा हूं कि हिंसक आंदोलन न तो उचित है और न ही यह कभी सफल हो सकता है।

आंदोलन हमेशा अहिंसक होना चाहिए। दूसरा, दक्षिण एशिया में अब नए-नए राज्य खड़े करने से उसके सिरदर्द बढ़ते चले जाएंगे। जरूरी यह है कि बलूचिस्तान और पख्तूनख्वाह जैसे प्रांतों को अधिकतम स्वायत्ता दी जाए, जो कि स्वाधीनता के बराबर ही हो। हर बलूच यह महसूस करे कि वह आजाद है।

यदि हमें दक्षिण एशिया के देशों को सशक्त और संपन्न बनाना है तो उन्हें तोड़ने की बजाय जोड़ने की कोशिश करनी होगी। दक्षिण एशिया के लगभग हर राष्ट्र में अल्पसंख्यक लोग हैं। वे अलगाव की मृग-मरीचिका में फंसने की कोशिश करते हैं। लेकिन, देख लीजिए कि 1947 में भारत से अलग होकर पाकिस्तान को क्या मिला?

Tags:    

Similar News