AIIMS Renamed: एम्स को एम्स ही रहने दो

AIIMS Renamed: एम्स का नाम बदलने की कवायद शुरू हो गई है। सन 1956 में स्थापित एम्स के नाम को बदलने की वैसे तो कोई जरूरत तो नहीं है।

Written By :  RK Sinha
Update:2022-09-20 22:53 IST

AIIMS। (Social Media) 

AIIMS Renamed: अंग्रेजी के महान नाटककार विलियम शेक्सपियर (English great playwright William Shakespeare) भले ही कह गए हों कि नाम में क्या रखा है, पर कुछ नामों की तो बात ही अलग होती है। वे नाम सम्मान और आदर के लायक होते हैं। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (All India Institute of Medical Sciences) भी इसी तरह का एक स्थापित नाम है। एम्स (AIIMS) यानी देश भर के मरीजों का भरोसा और विश्वास। यहां पर देशभर से हर रोज सैकड़ों रोगी और उनके संबंधी इस विश्वास के साथ आते हैं कि वे यहां से सेहतमंद होकर ही घर लौटेंगे। एम्स भी उनके भरोसे पर खरा उतरने की हरचंद कोशिश करता है। यहां के डॉक्टर, नर्स और बाकी स्टाफ हरेक रोगी को स्वस्थ करने के लिए अपनी जान लगा देते हैं।

एम्स का नाम बदलने की कवायद शुरू

अब एम्स (AIIMS) का नाम बदलने की कवायद शुरू हो गई है। सन 1956 में स्थापित एम्स के नाम को बदलने की वैसे तो कोई जरूरत तो नहीं है। एम्स के डॉक्टरों का भी मानना है कि ऐसा नहीं होना चाहिए। एम्स के डॉक्टरों का कहना है जब दुनिया भर में आक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज जैसी यूनिवर्सिटी ने सदियों से अपने नाम नहीं बदले तो एम्स को उसकी पहचान से क्यों अलग किया जाए? बात तो ठीक ही है। भारत में आईआईटी, आईएमए और एम्स शिक्षा के क्षेत्र में बेहद प्रतिष्ठित नाम हैं। इनकी सारी दुनिया में अलग पहचान होती है।

एम्स में एमबीबीएस, एमएस, एमडी वगैरह कोर्सो में दाखिला पाने के लिए देश भर के सबसे मेधावी बच्चे हर वर्ष प्रयास करते रहते हैं। वे आगे चलकर दुनिया के सर्वश्रेष्ठ डॉक्टर के रूप में भी जाने जाते हैं। एम्स अपने यहां पढ़े विद्यार्थियों को लगातार शोध करने और मानवीय बने रहने के लिए प्रशिक्षित करता रहता है। यहां के डॉक्टरों में मानव सेवा का गजब का जज्बा देखने को मिलता है।

सैंकड़ों प्रसिद्ध डाक्टरों ने एम्स में की है शिक्षा ग्रहण

विश्व विख्यात लेखक और मोटिवेशन गुरु डॉ.दीपक चोपड़ा (Motivation Guru Dr.Deepak Chopra), शिकागो यूनिवर्सिटी (University of Chicago) के पैथोलिजी विभाग (Department of Pathology) के प्रोफेसर डॉ. विनय कुमार (Professor Dr. Vinay Kumar), गंगा राम अस्पताल (Ganga Ram Hospital) के मशहूर लीवर ट्रांसप्लांट सर्जन डॉ. अरविंदर सिंह सोईन, एम्स के मौजूदा डायरेक्टर डॉ.रणदीप गुलेरिया, ईएनटी विशेषज्ञ डॉ.रमेश डेका, डॉ. पी.वेणुगोपाल, डॉ. सिद्दार्थ तानचुंग, यूरोलोजिस्ट डॉ. राजीव सूद जैसे सैकड़ों चोटी के डाक्टरों ने एम्स में ही शिक्षा ग्रहण की और फिर यहाँ बरसों सेवाएं भी दीं।

डॉ. राजीव सूद ने कुछ सालों तक एम्स में सेवा देने के बाद राजधानी के राममनोहर लोहिया अस्पताल (आरएमएल) को ज्वाइन किया और फिर वे इसके डीन भी रहे। वे कहते हैं कि एम्स की तासीर में ही सेवा भाव है। जो एक बार एम्स रह लिया वह फिर मानव सेवा के प्रति समर्पित रहेगा ही। इधर डॉ. जीवन सिंह तितियाल, प्रोफेसर प्रदीप वेंकटेश, प्रो डॉ. राजवर्धन आज़ाद, प्रोफेसर तरुण दादा, प्रोफेसर विनोद अग्रवाल जैसे बेहतरीन नेत्र चिकित्सक हैं। इन्हें आप संसार के सबसे कुशल डाक्टरों की श्रेणी में रख सकते हैं। इन सब डाक्टरों की देखरेख में ही देश के नए डाक्टर तैयार होते हैं।

एम्स में हजारों रोगियों का होता इलाज

आपको एम्स में देश के कोने-कोने से आए हजारों रोगियों का इलाज होता है। यहां पर भिखारी से लेकर भारत सरकार का बड़े से बड़ा बाबू भी लाइन में मिलेगा। एम्स के डाक्टर किसी के साथ उनके पद या आर्थिक आधार पर भेदभाव भी नहीं करते। यहां पर सुबह-शाम रोगियों का आना-जाना इस बात की गवाही है कि देश को एम्स पर भरोसा है। एम्स भारत की पहली स्वास्थ्य मंत्री और गांधी जी की सहयोगी राजकुमारी अमृत कौर की दूरदर्शिता का नतीजा है। जिस निष्ठा और निस्वार्थ भाव से एम्स के डाक्टर रोगियों को देखते हैं, उससे तुरंत समझ आ जाता है कि ये सामान्य अस्पताल तो नहीं है।

एम्स पर लगता है, बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, उड़ीसा और मध्य प्रदेश के रोगियों का खासा यकीन है। यहां आने वाले कुल रोगियों में बिहारियों का आंकड़ा ही लगभग 50 फीसद होगा। पटना, दरभंगा, किश्नगंज, अररिया, मुजफ्फरपुर वगैरह के तमाम रोगी एम्स दिल्ली से स्वस्थ होकर घर वापस जाते हैं। एम्स में काफ़ी हद तक समाजवाद के दर्शन होते हैं। 

अगर एम्स राजकुमारी अमृत कौर के विजन का परिणाम था, तो इसके पहले डायरेक्टर डॉ. बी.बी. दीक्षित (1902-1977)  ने इसे एक श्रेष्ठ अस्पताल और मेडिकल कॉलेज के रूप में स्थापित किया। वे एक महान डाक्टर, अनुभवी शिक्षक और कुशल प्रशासक थे। एम्स 1956 में स्थापित हुआ तो सरकार ने डॉ दीक्षित को इसका पहला निदेशक का पदभार संभालने की पेशकश की गई। उन्होंने इस पद को एक शर्त पर स्वीकार किया। उनका कहना था कि वे किसी नेता या बड़े सरकरी अफसर का नियुक्तियां में हस्तक्षेप नहीं स्वीकार करेंगे। वे  एक ईमानदार और कड़क इंसान थे। वे पुणे के बी.जे. मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल रह चुके थे। वे फिज़ीऑलजी (शरीर विज्ञान) विषय के प्रोफेसर भी थे। डॉ. दीक्षित ने अपने कार्यकाल में एम्स में चोटी के प्रोफेसरों/डाक्टरों को जोड़ा। वे हरेक नियुक्ति उम्मीदवार की योग्यता पर करते थे। वे लगातार एम्स में रिसर्च करने वालों को प्रोत्साहित करते रहते थे। डॉ. दीक्षित 1925 में मुंबई के ग्रांट मेडिकल कॉलेज के छात्र रहे थे। वे सत्य और न्याय का साथ देने वाले इंसान थे। उन्होंने देश को एम्स के रूप में एक विश्व स्तरीय संस्थान खड़ा कि दिया।

डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने एम्स में राजेन्द्र प्रसाद नेत्र विज्ञान केंद्र हुआ स्थापित

एम्स की स्थापना के लगभग एक दशक के बाद 1967 में भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद (Former President Dr. Rajendra Prasad) के नाम पर एम्स में राजेन्द्र प्रसाद नेत्र विज्ञान केंद्र स्थापित हुआ। इसका ध्येयवाक्य है 'तमसो मा ज्योतिर्गमय'। इसके पहले निदेशक प्रो.एल.पी अग्रवाल थे। वे अमेरिका के बोस्टन रेटिना सेंटर से उच्च शिक्षा प्राप्त करके आए थे। उन्होंने भी अनेक कुशल नेत्र चिकित्सकों को इस केंद्र से जोड़ा।

एम्स की स्थापना के 66 सालों के बाद बदलने जा रहा नाम

एम्स की स्थापना के 66 सालों के बाद इसका नाम बदलने का कोई औचित्य समझ नहीं आता। इसकी कोई आवश्यकता भी नहीं है। एम्स को तो सिर्फ एम्स ही रहने देना चाहिए। इसके नाम को लेकर कोई भी फैसला एक राय से होना चाहिए। एम्स में सरकरी हस्तक्षेप न्यूनतम रहे तो ही बेहतर है। इसका अभी तक का सफर बेहद गौरवपूर्ण रहा है। देश के बाकी सरकरी और निजी अस्पतालों को इसके कामकाज से सीखना होगा। सरकार के ऊपर भी यह दायित्व तो रहेगा कि वह देश के गांवों से लेकर महानगरों के अस्पतालों को एम्स जैसा ही स्तरीय बनाए। सबसे पहले तो यह प्रयास करना होगा ताकि निजी अस्पताल मरीजों को भयभीत न करें। उनसे नए-नए टेस्ट करवाने के लिए न कहें। अगर किसी रोगी को अस्पताल में भर्ती करना ही है तो उससे यह न पूछें कि क्या उसके पास इंश्योरेंस है?

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