मतलब चुनाव आयोग और सरकार दोनों ने मूड खराब करके रख दिया है। विश्वास कीजिये कि इतनी ज्यादा निराशा कभी नहीं हुई। कसम से अब मुझे लगने लगा है कि चुनाव आयोग और सरकार दोनों मनोरंजन विरोधी हैं। मैं तो फैन हो गया हूं मुंह छुपा कर ज्ञान दे रहे सैयद शुजा साहब का और उससे भी बड़ा फैन हो गया हूं, उन लोगों का जिन लोगों ने अमेरिका से बोलने वाले व्यक्ति की प्रेस कॉन्फ्रेंस लंदन में रखी और उसे अटैंड करने भारत से लोग पहुंचे। सोचिये न कि अब तक नेता प्रेस कॉन्फ्रेंस करते थे और पत्रकार सुनने जाते थे। इस बार ये हुआ कि पत्रकार ने प्रेस कॉन्फ्रेंस रखी और नेता सुनने पहुंचे। इस अद्भुद पल की चर्चा होने की बजाय चुनाव आयोग कह रहा है कि शुजा का बयान दहशत पैदा करने वाली अफवाह है।
भला ये भी कोई बात हुई, जिसको देखो शुजा की बातों से सूजा नजर आ रहा है। लंदन का फॉरेन प्रेस एसोसिएशन कह रहा है कि हमारा इससे कोई मतलब नहीं। चुनाव आयोग के लिए ईवीएम बनाने वाली इलेक्ट्रॉनिक कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड यानी कि ईसीआईएल कह रही है कि सैयद शुजा ने उनके साथ किसी भी रूप में काम किया ही नहीं। केन्द्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद जबरदस्त आग बबूला हैं। अमा शुजा साहब की बातों पर इतना बुरा मानने की जरूरत ही क्या है। कांग्रेस, सपा, बसपा, तेदेपा ये पा, वो पा... सभी तो चाह रहे हैं कि बैलेट से चुनाव हों, तो जो सब पार्टियां चाह रही हैं, वो हम भी यानी चाह रहे हैं। बस बैलेट से चुनाव कराने की हमारी चाह अलहदा है। अब आप ही बताइये कि आजादी से लेकर आज तक जनता को इन चुनावों से क्या मिला।
कपिल शर्मा की तरह मत कह दीजिएगा, बाबाजी का ठुल्लू... याद कीजिये न कि जब ईवीएम का बटन दबाने के बजाय ठप्पा लगाना होता था, वो चुनाव कितना आनंददायक होता था। मतलब तीन-तीन दिन तक काउंटिंग चलती थी। केवल संडे को थकी हुई फिल्म दिखाने वाला दूरदर्शन तीन-तीन दिन तक लगातार फिल्में दिखाता था। अब ये बताइए कि उस दौर में आम पब्लिक को मनोरंजन मिलता था या नहीं और फिर आज के दौर में चुनाव होगा तो कितना आनंद आयेगा। न्यूज चैनलों वालों की दुकान भी तीन दिन ज्यादा चलेगी। टीवी पर विज्ञापन देने वालों को ज्यादा दर्शक मिलेंगे। सट्टा बाजार में भी क्रिकेट स्टाइल में सट्टा लग सकेगा। लेकिन जिसको देखो शुजा के खिलाफ हुआ चला जा रहा है। अरे भाई ठीक है उसे साइबर एक्सपर्ट मत मानिए, फोरेंसिक एक्सपर्ट ही मान लीजिए। जेम्स बांड और शरलॉक होम्स ही समझ लीजिए।
ईवीएम के अलावा भी तो उसने जानकारियां दी थीं। मसलन बीजेपी नेता गोपीनाथ मुंडे की मौत हादसे में नहीं हुई थी बल्कि उनकी हत्या की गई थी या फिर गौरी लंकेश की हत्या के पीछे भी ईवीएम का हाथ था। अब लोग लग गए हर बात का सबूत मांगने। ये भी कोई बात हुई। अरे भाई हर बात में सबूत नहीं होता, कुछ में इंटरटेनमेंट भी होता है। अब ये सब कहने की क्या जरूरत कि ईवीएम से तो केवल छेड़छाड़ होने की बात हो रही हैं, बैलेट बॉक्स तो बेचारी लुट जाया करती थी।