Democracy in India: भारत का सामर्थ्य, लोकतंत्र और विकास

Democracy in India: भारतीय लोकतंत्र की जड़े बहुत गहरी हैं। वैदिक काल से ही भारत में लोकतंत्र के स्पष्ट प्रमाण देखने को मिलते हैं। प्राचीन ग्रंथों में से एक ऋग्वेद में निष्पक्ष संसाधन वितरण, सौहार्दपूर्ण प्रवचन और संघर्ष समाधान जैसे उद्धरण लोकतांत्रिक आदर्शों की ओर इशारा करते हैं।

Written By :  Surya Prakash Agrahari
Update:2023-09-15 07:43 IST

Democracy in India (Photo: Social Media)

Democracy in India: जनता द्वारा, जनता के लिए, जनता का शासन लोकतंत्र की सबसे प्रचलित परिभाषा है। स्वतंत्रता, समानता और भ्रातृत्व के सिद्धांत को समेटे लोकतंत्र में जनता अपने शासकों और प्रतिनिधियों को स्वयं चुनती है। लोकतंत्र में समाज में स्वतंत्रता, स्वीकार्यता, समानता और समावेशिता के मूल्य शामिल होते हैं। यह अपने आम नागरिकों को गुणवत्तापूर्ण और सम्मानजनक जीवन जीने का अवसर देता है। लोकतंत्र मूल्यों से बंधी हुई राजनीतिक समाजिकता है। लोकतंत्र के अभाव में व्यक्ति निरंकुशता के बंधन में बंध जाता है। लोकतंत्र में सबसे बड़ी चिंता यह होती है कि लोगों का अपना शासक चुनने का अधिकार और शासकों पर नियंत्रण बरकरार रहे। वक्त, जरूरत और यथासंभव इन चीजों के लिए लोगों को निर्णय प्रक्रिया में भागीदारी करने में सक्षम होना चाहिए ताकि लोगों के प्रति जिम्मेदार सरकार बन सके और सरकार लोगों की ज़रूरतों और उम्मीदों पर ध्यान दे। लोकतंत्र में इस बात की पक्की व्यवस्था होती है कि फ़ैसले कुछ कायदे-कानून के अनुसार होंगे और अगर कोई नागरिक यह जानना चाहे कि फ़ैसले लेने में नियमों का पालन हुआ है या नहीं तो वह इसका पता कर सकता है। उसे यह न सिर्फ़ जानने का अधिकार है बल्कि उसके पास इसके साधन भी उपलब्ध हैं। इसे पारदर्शिता कहते हैं। लोकतंत्र के गुणों में निष्पक्षता, जवाबदेहिता, पारदर्शिता, सुशासन आदि लक्षण परिलक्षित होते हैं।


लोकतंत्र की जननी भारत

भारत को लोकतंत्र की जननी कहते हैं। जी20 की अध्यक्षता के दौरान देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अन्य देशों के राष्ट्राध्यक्ष का भारत में स्वागत 'वेलकम टू द मदर लैंड ऑफ डेमोक्रेसी' कहकर किया। 'लोकतंत्र की जननी' होने की उद्घोषणा एक बहुआयामी और जटिल अवधारणा है जो ऐतिहासिक, दार्शनिक आधारों और शासन पद्धतियों के धागों से जटिल रूप से बुनी गई है। भारत में लोकतांत्रिक मूल्यों एवं अवधारणाओं का विकास 1215 ई. में जारी किए गए इंग्लैंड के कानूनी परिपत्र मैग्ना कार्टा से नहीं, अपितु सहयोग, समन्वय एवं सह-अस्तित्व पर आधारित प्राचीन एवं सनातन सांस्कृतिक विचार-प्रवाह एवं  जीवन-दर्शन से हुआ है। 12वीं सदी के भगवान बसवेश्वर का अनुभव मंडपम लोकतांत्रिक मूल्यों का अनुपम उदाहरण है। यहाँ मुक्त वाद-विवाद और विचार-विमर्श को बढ़ावा दिया जाता था। यह मैग्ना कार्टा से भी पहले की बात है।

वैदिक काल से ही भारत में लोकतंत्र

भारतीय लोकतंत्र की जड़े बहुत गहरी हैं। वैदिक काल से ही भारत में लोकतंत्र के स्पष्ट प्रमाण देखने को मिलते हैं। प्राचीन ग्रंथों में से एक ऋग्वेद में निष्पक्ष संसाधन वितरण, सौहार्दपूर्ण प्रवचन और संघर्ष समाधान जैसे उद्धरण लोकतांत्रिक आदर्शों की ओर इशारा करते हैं। सभा, समिति, विदथ या संसद जैसी लोकतांत्रिक संस्थाओं के अस्तित्व में होने से भारत को लोकतंत्र की जननी कहने में कोई भी संकोच नहीं होना चाहिए। सभा और समिति के निर्णय को आपसी सलाह-मशवरें के बाद ही स्वीकार किया जाता था। कभी-कभी सलाह मशवरा आपसी बहस में भी बदल जाता था, इससे हम यह कह सकते हैं की द्विसदनीय विधान की शुरुआत वैदिक काल से हुई थी। ऋग्वैदिक काल की तरह ही महाभारत के शांति पर्व में आम लोगों की एक सभा का उल्लेख है जिसे संसद कहा जाता था। इसका अन्य नाम जन सदन भी था। ऋग्वेद में गणतंत्र शब्द का प्रयोग चालीस बार, अथर्ववेद में नौ बार और ब्राह्मण ग्रंथों में कई बार हुआ है, जो लोकतंत्र के उद्भव के पश्चिमी समर्थकों के इस तथ्य को खारिज करता है कि लोकतंत्र का जनक यूनान था।


बौद्ध परंपरा में भी लोकतंत्र

वेदों से इतर बौद्ध परंपरा में भी लोकतंत्र प्रचलित था। भारतीय गणतंत्रवाद की नींव बहुत गहरी है, प्राचीन भारत की बात करें तो उत्तरी बिहार और नेपाल में लिच्छवी शासन, कुशीनगर के मल्ल, वैशाली में वज्जि संघ और मालक, मदक, कंबोज आदि लोकतांत्रिक परंपरा के उदाहरण थे। वैशाली के पहले राजा विशाल को चुनाव के माध्यम से चुना गया था। ये गण संघ, स्वतंत्र गणराज्य थे जो छठी से चौथी शताब्दी ईसा पूर्व के मध्य फले-फूले। डॉ. भीमराव अंबेडकर, जिन्हें संवैधानिक प्रणालियों का पश्चिमी समर्थक भी माना जाता है, ने बौद्ध संघों से अपनी लोकतांत्रिक प्रणाली की प्रेरणा ग्रहण की थी। मौजूदा लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को स्पष्ट करने के लिए डॉ. अंबेडकर ने थेरवाद बौद्ध धर्मग्रंथ विनय-पिटक का संदर्भ दिया।


इन धर्मग्रंथों ने भिक्षुओं के संघों में गुप्त मतदान के माध्यम से बहस, प्रस्ताव और मतदान को विनियमित किया। यूनानी इतिहासकार डिओडोरस सिकुलस के लेखों में भी यह पुष्टि की गई है कि प्राचीन भारत में स्वतंत्र लोकतांत्रिक गणराज्यों का अस्तित्व था। गण संघो के पास प्रशासनिक, वित्तीय और न्यायिक अधिकार थे। इस समय वंशानुगत राजाओं की जगह जनता द्वारा चुने हुए शासक शासन करते थे। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में गणतंत्र को दो श्रेणियों में वर्णित किया गया है, पहला आयुध गणराज्य, जिसमें केवल राजा ही निर्णय लेता है और दूसरा वह गणराज्य है जिसमें सभी लोग निर्णय लेने की प्रक्रिया में भाग ले सकते हैं। पाणिनि में जनपद शब्द का भी उल्लेख मिलता है। जिसमें प्रतिनिधि जनता द्वारा चुना जाता था और वही प्रशासन की देखभाल करता था।

लघु संविधान

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मन की बात में तमिलनाडु स्थिति उतिरमेरुर गाँव से प्राप्त एक शिलालेख की बात कही थी जिसमें एक लघु संविधान उत्कीर्ण है। इस शिलालेख विस्तार से बताया गया है कि ग्राम सभा का संचालन कैसे होना चाहिए और उसके सदस्यों के चयन की प्रक्रिया क्या हो। दसवीं शताब्दी के दौरान चोल साम्राज्य में प्रचलित मतदान प्रक्रिया भी लोकतंत्र का गौरवशाली उदाहरण है जिसके प्रमाण तमिलनाडु के कांचीपुरम से प्राप्त हुए हैं। उसमें प्रत्येक समुदाय को प्रतिनिधित्व प्राप्त था। उसमें प्रत्याशियों की एक प्रमुख अर्हता यह थी कि जो व्यक्ति अपनी संपत्ति की सार्वजनिक घोषणा नहीं करेगा वह चुनाव में शामिल नहीं हो सकेगा। वारंगल के काकतीय वंश के राजाओं की गणतांत्रिक परम्पराएं भी बहुत प्रसिद्ध थी। भक्ति आन्दोलन ने, पश्चिमी भारत में, लोकतंत्र की संस्कृति को आगे बढ़ाया। प्राचीन काल में पाल शासक गोपाल, पल्लव शासक नंदिवर्मन पल्लवमल्ल सहित अनेक शासक जनता द्वारा सीधे तौर पर चुने गए थे। सदियों से लोकतंत्र की भावना भारत में प्रवाहित होती रही है।

भारत में लोकतंत्र के समक्ष चुनौतियां

भारत में लोकतंत्र केवल शासन की एक प्रणाली मात्र नहीं, बल्कि वह सहस्त्राब्दियों के अनुभव और इतिहास से सिंचित-निर्मित भेद में एकत्व और विरुद्धों में सामंजस्य देखने वाली जीवन-शैली व दृष्टि है। इन सब के बावजूद भारत में लोकतंत्र के समक्ष अनेक चुनौतियां हैं। अधिकांश स्थापित लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के सामने अपने विस्तार की चुनौती है। इसमें लोकतांत्रिक शासन के बुनियादी सिद्धांतों को सभी इलाकों, सभी सामाजिक समूहों और विभिन्न संस्थाओं में लागू करना शामिल है। स्थानीय सरकारों को अधिक अधिकार संपन्न बनना, संघ के सिद्धांतों के व्यावहारिक स्तर पर संघ की सभी इकाइयों के लिए लागू करना, महिलाओं और अल्पसंख्यक समूह की उचित भागीदारी सुनिश्चित करना आदि ऐसी ही चुनौतियां हैं। लोकतंत्र के ऊँचे आदर्शों की स्थापना करके व्यवहारिक हिसाब से हम लोकतंत्र की चुनौतियों का निवारण कर सकते हैं। लोकतंत्र ने दुनिया भर में विभिन्न रूपों को धारण किया हैं और ऐसे में लोकतांत्रिक प्रथाओं में कार्य प्रणाली में एकरूपता लाने की भी आवश्यकता है।

भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र

वर्तमान में विश्व के सभी लोकतंत्रों को क्रिप्टो, पर्यावरण, आर्थिक विकास, जलवायु संकट, भुखमरी, मानव संसाधन, भ्रष्टाचार, आतंकवाद आदि से संबंधित मुद्दों से निपटना चाहिए ताकि लोकतंत्र को सशक्त किया जा सके। भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। लोकतंत्र के जननी के रूप में, हमें, निरंतर इस विषय का गहन चिंतन भी करना चाहिए, चर्चा भी करना चाहिए और दुनिया को अवगत भी कराना चाहिए। डिजिटल समाधानों के माध्यम से भारत लोकतांत्रिक अनुभवों को साझा कर सकता है। इससे देश में लोकतंत्र की भावना और प्रगाढ़ होगी। 

( लेखक स्तंभकार हैं। )

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