उड्डयन और सतत विकास
दुनिया भर में, नागरिक उड्डयन एक ऐसा क्षेत्र रहा है जिसने आर्थिक विकास को गति दी है।
दुनिया भर में, नागरिक उड्डयन एक ऐसा क्षेत्र रहा है जिसने आर्थिक विकास को गति दी है, सामाजिक विकास को बढ़ावा दिया है और पहुंच को संभव बनाया है। लेकिन दूसरी ओर, इसका हमारे पर्यावरण पर सीमित स्तर पर हानिकारक प्रभाव भी पड़ा है। विशेषकर स्थानीय पर्यावरण पर, क्योंकि विमान और हवाई अड्डे के परिचालन से जुड़ी गतिविधियां वायु, जल, मिट्टी और ध्वनि प्रदूषण में योगदान करती हैं।
अक्टूबर, 2016 में अंतरराष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (आईसीएओ) ने अंतरराष्ट्रीय उड्डयन से होने वाले उत्सर्जन को सीमित करने के लिए एक पहल शुरू करने का फैसला किया। इस पहल के इर्द-गिर्द उभरी वैश्विक चेतना ने विमान और हवाई अड्डों के कुशल संचालन से संबंधित इस क्षेत्र में लागू किए जाने वाले कई नीतिगत उपायों को प्रेरित किया है।
अब जब हम संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित इकोसिस्टम की बहाली के दशक में विश्व पर्यावरण दिवस मना रहे हैं, तो पर्यावरण और इकोसिस्टम के संरक्षण को एक मुख्य सिद्धांत के रूप में लेते हुए भारतीय नागरिक उड्डयन क्षेत्र और उड्डयन के अगले युग में कदम रखने के लिए किए गए प्रयासों पर गौर करना जरूरी होगा।
कोविड–19 पूर्व भारत वैश्विक स्तर पर तीसरा सबसे बड़ा घरेलू उड्डयन बाजार था, जिसमें लगभग 14 करोड़ (140 मिलियन) यात्री सालाना यात्रा करते थे। देश अगले तीन वर्षों में तीसरा सबसे बड़ा समग्र बाजार बनने की ओर अग्रसर है। मात्र 7.3% आबादी द्वारा परिवहन के साधन के रूप में उड्डयन का उपयोग करने के तथ्य को देखते हुए, इस क्षेत्र में विकास की अपार संभावनाएं हैं।
इसमें कोई शक नहीं कि कोविड-19 ने इस क्षेत्र की प्रगति में बाधा पहुंचायी है, लेकिन हम अपनी अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करते हुए एक लचीलापूर्ण और मजबूत वापसी कर रहे हैं। एयरपोर्ट काउंसिल इंटरनेशनल- एयरपोर्ट कार्बन एक्रेडिटेशन प्रोग्राम जैसी पहलों, जोकि स्वतंत्र रूप से 6 स्तरीय प्रमाणन के जरिए कार्बन उत्सर्जन को प्रबंधित और कम करने के हवाई अड्डों के प्रयासों का आकलन और पहचान करता है, पर जोर देना जलवायु परिवर्तन से निपटने की दिशा में एक सामयिक हस्तक्षेप है।
भारत वर्ष 2014 से प्रमाणन के इस कार्यक्रम का पालन कर रहा है। इस तथ्य को स्वीकार करते हुए कि आने वाले वर्षों में भारतीय उड्डयन क्षेत्र में तेजी से वृद्धि होगी, पर्यावरण और स्थिरता संबंधी चिंताओं को दूर करना हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता है।
दिल्ली हवाई अड्डा एशिया प्रशांत क्षेत्र का पहला ऐसा हवाई अड्डा है जिसने वर्ष 2016 में "लेवल 3+, न्यूट्रलिटी" की मान्यता हासिल की है और 2020 में "लेवल 4+, ट्रांजीशन", की सर्वोच्च मान्यता प्राप्त की है। मुंबई, हैदराबाद और बैंगलोर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डों जैसे अन्य हवाई अड्डों ने लेवल 3+ एयरपोर्ट कार्बन एक्रेडिटेशन हासिल किया है।
भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (एएआई) मार्गों की अधिकतम उपयोगिता के लिए प्रमुख हवाई मार्गों को छोटा एवं सीधा करने और घटी हुई क्षैतिज पृथक्करण एवं प्रदर्शन-आधारित परिवहन (पीबीएन) जैसे तकनीकी सुधारों को लागू करने में अग्रणी रहा है। भारतीय वायु सेना के परामर्श से भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (एएआई) ने हवाई क्षेत्र के लचीले उपयोग (एफयूए) पहल के तहत हवाई क्षेत्र के अधिकतम उपयोग को सुनिश्चित किया है। 32 सशर्त मार्गों को स्थापित करके कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) के अनुमानित सालाना उत्सर्जन में लगभग 2 लाख मीट्रिक टन की कमी लाई गई है।
भारतीय हवाई अड्डों पर नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग को अपनाने और बढ़ावा देने की पहल भी शुरू की गई है। वर्ष 2014 के बाद से 44 हवाई अड्डों पर स्थापित सौर क्षमता में 44 मेगावाट पीक (एमडब्ल्यूपी) की वृद्धि हुई है, जिससे हमें भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (एएआई) के अंतर्गत आने वाले हवाई अड्डों पर कार्बन उत्सर्जन में सालाना लगभग 57,600 टन कार्बन डाईऑक्साइड (CO2) की कमी लाने में मदद मिली है।
आज, दिल्ली हवाईअड्डा ऊर्जा की अपनी कुल मांग का शत-प्रतिशत नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के जरिए पूरा करता है। इसी तरह, 40 मेगावाट पीक (एमडब्ल्यूपी) की स्थापित सौर ऊर्जा क्षमता के साथ कोचीन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा भारत का पहला पूर्ण सौर ऊर्जा संचालित हवाई अड्डा बन गया है। साथ ही, नियमित ऊर्जा ऑडिट के माध्यम से ऊर्जा संरक्षण और निगरानी को बढ़ावा देने वाली पहल भी शुरू की गई है। वर्ष 2014 से 50 हवाई अड्डों के मामले में पिछले ऑडिट के कार्यान्वयन संबंधी उपायों की प्रभावशीलता का आकलन करने के लिए समीक्षा ऑडिट का काम पहले ही पूरा कर लिया गया है।
इसके अलावा राष्ट्रीय एलईडी कार्यक्रम (उजाला- सभी के लिए सस्ती एलईडी द्वारा उन्नत ज्योति) के तहत भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (एएआई) ने 85 हवाई अड्डों पर पारंपरिक प्रकाश व्यवस्था की जगह एलईडी फिटिंग लगाने का लक्ष्य रखा है। 81 हवाई अड्डों पर यह काम पूरा हो चुका है और चार हवाई अड्डों पर काम चल रहा है।
बुनियादी ढांचे का निर्माण जोकि देश में नागरिक उड्डयन उद्योग के विस्तार का एक अन्य आवश्यक पहलू है, को हरा- भरा और टिकाऊ रखने पर ध्यान केन्द्रित किया गया है। दिल्ली, मुंबई और बंगलुरू अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डों को पहले ही अंतरराष्ट्रीय ग्रीन बिल्डिंग ऑर्गनाइजेशन, एलईईडी से 'गोल्ड रेटिंग' मिल चुका है। जबकि जम्मू, चंडीगढ़ और तिरुपति हवाई अड्डों को ग्रीन रेटिंग फॉर इंटीग्रेटेड हैबिटेट असेसमेंट (गृह), जोकि भारत की अपनी ग्रीन बिल्डिंग रेटिंग प्रणाली है, द्वारा "4-स्टार रेटिंग" प्राप्त हुई है।
भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (एएआई) ने अपशिष्ट जल को शोधित करके और उपचारित पानी के दोबारा उपयोग के जरिए पीने योग्य पानी की बर्बादी को कम करके अपशिष्ट और जल प्रबंधन से जुड़ी पहल भी की है। प्रत्येक मौजूदा/नई परियोजना के साथ सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) और वर्षा जल संचयन की सुविधा मुहैया/योजनाबद्ध की गई है।
उड़ान 'उड़े देश का आम नागरिक' योजना के जरिए देश में नागरिक उड्डयन तक आम लोगों की पहुंच बढ़ाने के उद्देश्य से 100 नए हवाई अड्डों का निर्माण किया जा रहा है। यह विकास आगे की सोच से लिए गए निर्णयों से लाभान्वित होगा, क्योंकि हरित अवसंरचना, ऊर्जा दक्षता, अपशिष्ट प्रबंधन और कुशल परिवहन भारत के नागरिक उड्डयन क्षेत्र के विस्तार के महत्वपूर्ण पहलू बन गए हैं। अगले दशक में, इकोलॉजी, अर्थव्यवस्था और समाज के बीच उचित संतुलन बिठाना महत्वपूर्ण होगा। नागरिक उड्डयन के क्षेत्र में प्रगति, जोकि हमारे पर्यावरण और इकोसिस्टम को संरक्षित और बहाल करने की प्रक्रिया की समकालिक है, हमारे नागरिकों के एक सुरक्षित, स्वस्थ और समृद्ध भविष्य को खोलने की कुंजी है और मोदी सरकार के दर्शन का एक महत्वपूर्ण अंग है।
(लेखक केन्द्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री हैं)
(यह लेखक के निजी विचार हैं)