Jagdeep Dhankhar: धनखड़ की जीत के अर्थ

Jagdeep Dhankhar: जगदीप धनखड़ कुल 528 वोट मिले और मार्गेट अल्वा को सिर्फ 182 वोट याने उन्हें लगभग ढाई-तीन गुने ज्यादा वोट! भाजपा के पास इतने सांसद तो दोनों सदनों में नहीं हैं।

Written By :  Dr. Ved Pratap Vaidik
Update:2022-08-09 08:08 IST

जगदीप धनखड़ (photo: social media )

Click the Play button to listen to article

Jagdeep Dhankhar: जगदीप धनखड़ उप-राष्ट्रपति तो बन गए हैं लेकिन उनके चुनाव ने देश की भावी राजनीति के अस्पष्ट पहलुओं को भी स्पष्ट कर दिया है। सबसे पहली बात तो यह कि उन्हें प्रचंड बहुमत मिला है। उन्हें कुल 528 वोट मिले और मार्गेट अल्वा को सिर्फ 182 वोट याने उन्हें लगभग ढाई-तीन गुने ज्यादा वोट! भाजपा के पास इतने सांसद तो दोनों सदनों में नहीं हैं। फिर कैसे मिले इतने वोट? जो वोट तृणमूल कांग्रेस के धनखड़ के खिलाफ पड़ने थे, वे नहीं पड़े। वे वोट तटस्थ रहे। इसका कोई कारण आज तक बताया नहीं गया।

धनखड़ ने राज्यपाल के तौर पर मुख्यमंत्री ममता बेनर्जी की जैसी खाट खड़ी की, वैसी किसी मुख्यमंत्री की क्या किसी राज्यपाल ने आज तक की है? इसी कारण भाजपा के विधायकों की संख्या बंगाल में 3 से 73 हो गई। इसके बावजूद ममता के सांसदों ने धनखड़ को हराने की कोशिश बिल्कुल नहीं की। इसका मुख्य कारण मुझे यह लगता है कि ममता कांग्रेस के उम्मीदवार के समर्थक के तौर पर बंगाल में दिखाई नहीं पड़ना चाहती थीं। इसका गहरा और दूरगामी अर्थ यह हुआ कि विपक्षी गठबंधन में कांग्रेस को ममता नेता की भूमिका नहीं देना चाहती हैं याने विपक्ष का भाजपा-विरोधी गठबंधन अब धराशायी हो गया है।

कई विपक्षी पार्टियों के सांसदों ने भी धनखड़ का समर्थन किया है। हालांकि राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति का पद पार्टीमुक्त होता है लेकिन धनखड़ का व्यक्तित्व ऐसा है कि उसे भाजपा के बाहर के सांसदों ने भी पसंद किया है, क्योंकि वी. पी. सिंह की सरकार में वे मंत्री रहे हैं, कांग्रेस में रहे हैं और भाजपा में भी रहे हैं। उनके मित्रों का फैलाव कम्युनिस्ट पार्टियों और प्रांतीय पार्टियों में भी रहा है। वे एक साधारण किसान परिवार में पैदा होकर अपनी गुणवत्ता के बल पर देश के उच्चतम पदों तक पहुंचे हैं। ममता बेनर्जी के साथ उनकी खींच-तान काफी चर्चा का विषय बनी रही लेकिन वे स्वभाव से विनम्र और सर्वसमावेशी हैं। हमारी राज्यसभा को ऐसा ही सभापति आजकल चाहिए, क्योंकि उसमें विपक्ष का बहुमत है और उसके कारण इतना हंगामा होता रहता है कि या तो किसी भी विधेयक पर सांगोपांग बहस हो ही नहीं पाती है या फिर सदन की कार्रवाई स्थगित हो जाती है।

सत्र के अंतिम दो दिन की अध्यक्षता में जगदीप धनखड़

उप-राष्ट्रपति की शपथ लेने के बाद इस सत्र के अंतिम दो दिन की अध्यक्षता वे ही करेंगे। वे काफी अनुशासनप्रिय व्यक्ति हैं लेकिन अब वे अपने पद की गरिमा का ध्यान रखते हुए पक्ष और विपक्ष में सदन के अंदर और बाहर तालमेल बिठाने की पूरी कोशिश करेंगे ताकि भारत की राज्यसभा, जो कि उच्च सदन कहलाती है, वह अपने कर्तव्य और मर्यादा का पालन कर सके। लोकसभा के अध्यक्ष ओम बिरला और राज्यसभा के अध्यक्ष जगदीप धनखड़ को अब शायद विपक्षी सांसदों को मुअत्तिल करने की जरुरत नहीं पड़ेगी।

Tags:    

Similar News