Jamnalal Bajaj Birth Anniversary: गांधी जी कहते थे जमनालाल बजाज को पाँचवाँ बेटा, आज़ादी की लड़ाई में दिया बड़ा योगदान
Jamnalal Bajaj Birth Anniversary: जमनालालजी बजाज की सामाजिक व राष्ट्रीय सेवाओं के कारण अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें मजिस्ट्रेट और रायबहादुर की उपाधियों से नवाजा, पर देश की आजादी के खातिर उन्होंने इन उपाधियों को विनम्रतापूर्वक उन्हें लौटा दिया।
Jamnalal Bajaj Birth Anniversary: जमनालालजी बजाज केवल बजाज कम्पनी समूह के संस्थापक ही नहीं थे, अपितु वे मानवतावादी, स्वतंत्रतासेनानी, लोकोपकारी, समाजसेवी और राष्ट्रपिता के समर्पित अनुयायी भी थे। इन्ही सब गुणों के कारण महात्मा गाँधी ने उन्हें अपना पांचवां पुत्र स्वीकार किया। वे आजादी की लड़ाई में दिलोजान से लगे, साथ ही महात्मा गाँधी के18 रचनात्मक कार्यक्रम को आगे बढ़ा कर समाज के समग्र विकास की नींव भी मजबूत की।
महात्मा गाँधी और आजादी आन्दोलन के वरिष्ठ नेताओं ने जमनालालजी के इन चारित्रिक गुणों को देखा-परखा। उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रथम कोषाध्यक्ष की कमान सौंपी। ऐतिहासिक दांडी यात्रा के पूर्व ली गयी शपथ पूरी न होने के कारण जेल से छूटने के बाद महात्मा गाँधी साबरमती आश्रम नहीं लौटे। जमनालाल जी बजाज के अनुरोध पर वर्धा और सेवाग्राम आश्रम (महाराष्ट्र) में रहे। इन दोनों आश्रमों के लिए जमनालालजी बजाज ने न केवल जमीन मुहैया कराई, अपितु वहां की सभी कुटियों के निर्माण और रहन-सहन का पूरा खर्च भी वहन किया। आजादी के आन्दोलन के दौरान महात्मा गाँधी से दिशा-निर्देश प्राप्त करने के लिए उस समय के वरिष्ठ नेतागण जैसे पं. जवाहरलाल नेहरु, सुभाषचंद्र बोस, सरदार वल्लभभाई पटेल, डॉ. राजेंद्र प्रसाद समय-समय पर बजाजवाड़ी,वर्धा पधारते और जमनालालजी बजाज की मेहमाननवाजी का लुत्फ़ उठाते थे।
जमनालालजी बजाज की सामाजिक व राष्ट्रीय सेवाओं के कारण अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें मजिस्ट्रेट और रायबहादुर की उपाधियों से नवाजा, पर देश की आजादी के खातिर उन्होंने इन उपाधियों को विनम्रतापूर्वक उन्हें लौटा दिया। वे एकमात्र ऐसे नेता थे, जो कहते थे, वही करते थे। उस समय की तत्कालीन सामाजिक बुराई पर्दा-प्रथा का उन्होंने पुरजोर विरोध किया। इसकी शुरुआत अपने परिवार की महिलाओं से की। उन्होंने देश में सबसे पहले अपने पारिवारिक लक्ष्मी-नारायण मंदिर में हरिजनों को प्रवेश कराकर एक मिशाल कायम की। उनकी गो-सेवा समाज के लिए एक नजीर बन गयी। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का उत्थान, स्त्री-शिक्षा, हिंदी का प्रचार-प्रसार, खादी का विकास व प्रोत्साहन और कुटीर तथा लघु उद्योग का उत्थान उनकी दिनचर्या के अंग बन गये।
अपनी मातृभूमि राजस्थान की सेवा करने के लिए उन्होंने जयपुर प्रजामंडल की स्थापना की। रचनात्मक कार्यों और आजादी आन्दोलन से भयभीत जयपुर नरेश ने जब उन्हें अपनी जन्मभूमि आने का निषेध कर दिया तो उन्होंने सविनय अवज्ञा की। अपने अंग्रेज दीवान के बहकावे में आकर महाराजा ने जमनालालजी को जेल में डाल दिया। किन्तु उनके पक्ष में जब राजस्थान की पूरी अवाम आंदोलित हो गयी। सच्चाई का पता चला, तो महाराज ने बिना शर्त उन्हें रिहा कर दिया।
चीनी का निर्यात बढ़ाने और देश को इस क्षेत्र में आत्म-निर्भर बनाने हेतु महात्मा गाँधी के सुझाव को मद्देनज़र रखते हुए जमनालालजी बजाज ने उत्तर प्रदेश के गोला-गोकर्णनाथ में अपनी पहली ‘हिंदुस्तान सुगर मिल’ की नींव रख कर बजाज समूह के कम्पनी की शुरुआत की, जो इस समय बजाज हिंदुस्तान लि. के नाम से जानी जाती है। अपनी कर्तव्यनिष्ठा और देशप्रेम के चलते यह कम्पनी समूह भारत में सबसे अधिक चीनी उत्पादक के रूप प्रसिद्द हो गया।
शिशिर बजाज – जमनालालजी बजाज के पौत्र,
कुशाग्र और अपूर्व बजाज – जमनालालजी बजाज के प्रपौत्र,
उनकी परोपकारिता रूपी विरासत को आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं। ये लोग
कमलनयन जमनालाल बजाज फाउंडेशन और जमनालाल कनीराम बजाज ट्रस्ट
के माध्यम से वर्धा, महाराष्ट्र और सीकर, राजस्थान की ग्रामीण जनता को समृद्ध बनाने और आजीविका अर्जन के लिए समर्थ बनाने के लिए निरंतर प्रयत्नशील हैं।