ससुराल गेंदा फूल तो आम का फल है मायका, आम के ख़ास होने की पड़ताल करती एक रिपोर्ट

Mango: आम जिसके बारे में मिर्ज़ा ग़ालिब ने लिखा- आमों का ज़िक्र तूने जो छेड़ा है हमनशीं, एक आम ऐसा सीने पे मारा की हाए हाए।

Written By :  Raj Kumar Singh
Update: 2022-07-06 14:26 GMT

Mango। 

Mango: आम. आम लोग, आम बात, दीवाने-आम, कत्ले- आम, आम आदमी पार्टी। लेकिन यहां. हम इन आम चीजों की बात नहीं करने जा रहे। यहां बात करेंगे बेहद ख़ास चीज की, जो है आम. जी हां आम. मतलब आम! वही आम जिसके बारे में मिर्ज़ा ग़ालिब ने लिखा- आमों का ज़िक्र तूने जो छेड़ा है हमनशीं, एक आम ऐसा सीने पे मारा की हाए हाए।

खैर शेरो शायरी फिर कभी. लेकिन ये सवाल अकसर मन में उठता रहता है कि आम में क्या ख़ास है। क्यों इसे सबसे ख़ास कहा जाता है? क्यों इसे फलों का राजा कहा जाता है? तो हमने एक लिस्ट बनाई उन बातों की जो इसे ख़ास बनाती हैं. लिस्ट हमारी है तो आप इससे सहमत हों ये हो भी सकता है और नहीं भी. लेकिन आम के नाम पर जब यहां तक पढ़ ही लिया है तो इन प्वाइंट्स पर भी नज़र डाल लीजिए।

आम एक स्वाद अनेक

दरअसल आम एकमात्र (मेरी जानकारी के अनुसार) ऐसा फल है जिसके कई स्वाद होते हैं। मसलन आप केला कहीं भी खाएं एक ही स्वाद होगा, सेब, पपीता, संतरा, अंगूर, नाशपाती, आड़ू, अमरूद सबका कमोबेश एक सा स्वाद और महक होती है। थोड़ा बहुत स्वाद ऊपर नीचे हो सकता है, रंग, महक, खट्टापन-मीठापन थोड़ा बहुत ऊपर नीचे हो सकता है।.

अब आम पर आ जाइए। जितनी वैराइटी उतनी तरह का स्वाद, सुगंध, आकार, प्रकार, रंग. दशहरी से अलग सफेदा, सफेदा से अलग लंगड़ा, लंगड़ा से अलग चौसा, चौसा से अलग मालदा, मालदा से अलग तोतापरी, तोतापरी से अलग अलफांसो, अलफांसो से अलग हुस्नआरा, हुस्नाआरा से अलग जर्दालू, जर्दालू से अलग मनकुरद और मुसरद, इनसे अलग हिमसागर, हिमसागर से अलग बंगनपल्ली आदि आदि. यानि कश्मीर से कन्याकुमारी तक पूरे देश में हर प्रांत में आम की अलग वैरायटी. और अगर देसी आम की प्रजातियों पर लिखा तो घंटों लग जाएंगे क्योंकि हर गांव में ही आम की सैकड़ों प्रजातियां हैं।

आएगा-छाएगा-जाएगा

आम की एंट्री और एक्जिट हीरो की माफिक है. आएगा, छाएगा और जाएगा. जैसे ही इसका सीजन शुरू हुआ। आम ही आम दिखेगा और यही बिकेगा। दूसरे फल साइड लाइन। कई घरों में मिठाइयां आना तक बंद मिल्क शेक, मिल्क पुडिंग, आम बर्फी, आम कुल्फी, आम का केक और न जाने क्या क्या और हां सिर्फ फल ही नहीं, क्या आप आम के बगैर अचार की कल्पना कर सकते हैं। रसोई में अमचूर न हो ये कैसे सोचा जा सकता है।

ख़ास है आम का उपहार- आम के मौसम में अकसर देखते हैं कि भारत-पाक सीमा पर आम की टोकरियों का आदान प्रदान हो रहा है। बड़े बड़े राजनयिक अपने देशों के आम का आदान प्रदान करते हैं। साहबों के यहां आम की टोकरियां भेजी जाती हैं। कभी आपने देखा कि सेब की, संतरे की, केलों की, पपीते की टोकरियां गिफ्ट में ली और दी जा रही हों। ये आम का ही प्रताप है कि उपहार स्वरूप इसे भेंट किया जाता है और आज से नहीं प्राचीन काल से. तभी से मशहूर शायर अकबर इलाहाबादी ने लिखा था- नाम कोई न यार का पैगाम भेजिए, इस आम की फसल में जो भेजिए बस आम भेजिए। ओहो, कितना भी शायरी से बचो आ ही जाती है कहीं न कहीं से. मेरे लिए तो जैसे आम से बचना नामुमकिन है वैसे ही शायरी से।

गांव और अपनों की याद दिलाता है आम

वैसे आम मुझे हमेशा नोस्टाल्जिया देता है. यादों की उस दुनिया में ले जाता है जो हंसी तो लाती है लेकिन अंत में उदासी से भर देती है. सावन से ठीक पहले शुरू होने वाले आम के मौसम में गांवों में दूर देस ब्याही बेटियां वापस आने लगती थीं। इनका मायका प्रवास सावन भर रहता था. ससुराल के बंधनों से मुक्त होकर आम के बागों में उनका स्वच्छंद घूमना, दौड़ना, आम के पेड़ों पर पड़े झूलों पर झूलना और हम बच्चों का बहनों के आगे पीछे दौड़ना सब आंखों के सामने दौड़ जाता है. जो बेटियां ससुरालों में बहुएं बनकर क्यायिरों और गमलों में गेंदा फूल की तरह सलीके से सकुचाई सी खड़ी रहतीं वे मायके आकर आम के बड़े बड़े बागों में आम की तरह अल्हड़ मिजाज हो जातीं. इनके अलावा आम के बागों में बुजुर्गों का आल्हा गायन और उसपर लोगों का वीरोचित उत्तेजना से भर जाना. स्कूल बंद होने के बाद कस्बों, शहरों से भी चचेरे, ममेरे, मौसेरे भाई बहनों का एक साथ जुटना और आम तोड़ना. आह.

हां चलते चलते एक और बात जो मुझे थोड़ी सी नागवार गुजरती है। वह है आम को बांटने की कोशिश। अच्छे, ज्यादा अच्छे में. राजा-प्रजा में। अकसर ये बहस होती रहती है कि आम का राजा कौन। अरे भाई कोई ये भी पूछता है कि शेरों का राजा कौन। फलों का राजा आम है, क्या इतना ही काफी नहीं। राजा-जनता की राजनीति नेताओं को करने दीजिए, चाहे वो आम आदमी पार्टी के ही क्यों न हों। आप तो बस आम खाइए और कहिए वाह आम।

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