विदेश नीति में मुरली व चक्र
विदेश नीति के अनेक तत्व होते है। इसमें इतिहास, भूगोल, नेतृत्व, व्यक्तित्व के अलावा अनेक प्रेरक प्रतीक भी होते हैं। जिनसे किसी देश की विदेश नीति का निर्धारण होता है। नरेंद्र मोदी...
विदेश नीति के अनेक तत्व होते है। इसमें इतिहास, भूगोल, नेतृत्व, व्यक्तित्व के अलावा अनेक प्रेरक प्रतीक भी होते हैं। जिनसे किसी देश की विदेश नीति का निर्धारण होता है। नरेंद्र मोदी का नेतृत्व व व्यक्तित्व प्रभावशाली है। उन्होंने मुरली और सुदर्शन चक्र का लेह में उल्लेख किया, तब पाकिस्तान और चीन जैसे देशों को सीधा सन्देश मिल गया।
प्रारंभ से ही नरेंद्र मोदी की विदेश नीति स्पष्ट
प्रारंभ से ही नरेंद्र मोदी की विदेश नीति स्पष्ट रही है। पिछले कार्यकाल के प्रारंभ में ही उन्होंने दिशा का निर्धारण कर दिया था। तब मोदी ने कहा तहस कि भारत किसी देश से आंख झुका कर या आंख दिखा कर बात नहीं करेगा। बल्कि वह आँख मिला कर बात करेगा। विदेश नीति के संदर्भ में इस कथन का व्यापक अर्थ था। वस्तुतः इस कथन में भारतीय चिन्तन का समावेश था। जिसमें शांति व सौहार्द की कामना थी।
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भारत युद्ध नहीं बुद्ध का देश
मोदी ने संयुक्त राष्ट्र संघ महासभा में भी कहा था कि भारत युद्ध नहीं बुद्ध का देश है। हम शांति के पक्षधर है, उसके अनुरूप प्रयास करते है, लेकिन इसका यह मतलब भी नहीं कि हमको किसी देश की घृष्टस्ता का जबाब देना नहीं आता। पिछले कार्यकाल की शुरुआत में मोदी ने अपनी विदेश नीति का यह सिद्धांत बताया था। पहले दिन से ही वह इसको व्यवहार में ले आये थे। तब अपने शपथ ग्रहण समारोह में उन्होंने सार्क के सदस्य देशों को आमंत्रित किया था। इसमें पाकिस्तान के तत्कालित प्रधानमन्त्री नवाज शरीफ भी शामिल थे। यह आँख मिलाकर बात करने का प्रयास था। लेकिन जब पाकिस्तान ने आतंकी हमले से आँख दिखाई,तो उसके भीतर घुस कर भारत ने सर्जिकल व एयर स्ट्राइक भी की है।
चीन ने फिर असली चेहरा दिखाया
इसी प्रकार नरेंद्र मोदी ने चीन के साथ आंख मिलाकर रिश्तों में सुधार का प्रयास किया। उनकी चीन और चीन के राष्ट्रपति की भारत यात्रा इसी सिद्धात के अनुरूप थी। लेकिन जब डोकलाम में चीन ने आंख दिखाने का प्रयास किया, तो भारत से सौनिकों ने उसे माकूल जबाब भी दिया। इसके बाद चीन यथास्थिति पर सहमत हुआ था। एक बार फिर चीन ने अपना असली चेहरा दिखाया। उसने भारतीय सीमा में घुसने का प्रयास किया। हमारे जांबाज सैनिकों ने बलिदान देकर अपनी सीमाओं को सुरक्षित रखा।
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भारत आंख दिखाने वाले को जबाब देना जनता है
इस झड़प में चीन के भी अनेक सैनिक मारे गए था। इसके बाद भारत ने अपनी साफ कर दिया कि वह आंख दिखाने वाले को जबाब देना जनता है। नरेंद्र मोदी की लेह यात्रा का यही सन्देश है, जिस पर पूरी दुनिया ने ध्यान दिया है। सुबह सात बजे ही नरेंद्र मोदी लेह लद्दाख पहुंच गए थे। उन्होंने लेह के नीमू फॉरवर्ड पोस्ट पर अधिकारियों से बात की और सुरक्षा स्थिति समीक्षा की। उन्होंने सैनिकों से भी संवाद किया। वह नीमू के एक फॉरवर्ड लोकेशन गए थे। यह भी चीन को सीधा सन्देश था। यह जगह ग्यारह हजार की ऊंचाई पर स्थित है। यह क्षेत्र सिंध नदी के किनारे जांस्कर रेंज से घिरा दुर्गम स्थान है।
नीमू दुनिया की सबसे ऊंची और खतरनाक पोस्ट में से एक है। प्रधानमंत्री के साथ चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ बिपिन रावत और सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे भी इस दुर्गम पोस्ट पर गए थे। इस प्रकार प्रधानमंत्री ने बिल्कुल स्पष्ट सन्देश दे दिया है। भारत प्रत्येक स्थिति का सामना करने के लिए तैयार है। ऐसा भी नहीं कि वह चीनी सेना कमांडर स्तर की वार्ता से पीछे हट रही है। तीन दौर की वार्ता के दौरान किये गये वादों पर चीन अमल करेगा तभी शांति की स्थापना संभव होगी। नरेंद्र मोदी सुनियोजित रणनीति पर अमल कर रहे हैं।
चीन के उनसठ ऐप्स बैन
मन की बात उन्होंने कहा था कि लद्दाख में हुई झड़प का चीन को उचित जवाब दे दिया गया है। इसके दो दिन के अंदर भारत ने चीन के उनसठ ऐप्स को बैन कर दिया था। मोदी ने बुधवार को चीनी ऐप वीइबो भी छोड़ दिया था। केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने इसे भारत की चीन पर डिजिटल स्ट्राइक करार दिया था। क्योंकि इससे चीन पर अरबों रुपये की चोट पहुंची है।
कांग्रेस इस एकजुटता से अलग ही दिखाई दे रही
प्रधानमंत्री जब लेह में थे, तब उनमें ऐसा आत्मविश्वास था जैसे पूरा देश उनके साथ है। लेकिन यह बिडम्बना है कि देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस इस एकजुटता से अलग ही दिखाई दे रही है। चीन के साथ झड़प के बाद से ही उसका यही नजरिया चल रहा है। वह चीन की जगह अपनी ही सरकार पर हमला बोल रही है। कांग्रेस के नेता जब कहते है कि चीन ने हमारी जमीन पर कब्जा कर लिया है, नरेंद्र मोदी उसे कब खाली कराएंगे, नरेंद्र मोदी ने सरेंडर कर दिया है,तब वह चीन का ही मनोबल बढ़ा रहे होते है।
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उनको यह अनुभूति होनी चाहिए कि इस समय ऐसी शब्दबली अपने ही देश के लिए ठीक नहीं है। राजनीति तो इस संकट के बाद भी हो सकती है। जबकि नरेंद्र मोदी ने इस संकट में पूरे देश को साथ लेकर चलने का प्रयास किया है। इसीलिए उन्होंने सर्वदलीय बैठक बुलाई थी।
दुश्मन देश की हिंसक गतिविधि पर विचार हेतु बुलाई गई सर्वदलीय बैठक को मर्यादा होती है। राष्ट्रहित में ऐसा होना भी चाहिए। ऐसी बैठक से केवल राष्ट्रीय सहमति को ही आवाज बुलंद करने के लिए होती है। इसमें यह दिखना चाहिए कि बात जब सीमाओं की सुरक्षा की होगी, तब पार्टी लाइन कोई महत्व नहीं रखती। शत्रु पक्ष भी देख ले कि उसके खिलाफ पूरा देश एकजुट है। कुछ प्रान्तों में सत्तारूढ़ छोटी पार्टियों ने बड़प्पन दिखाया। उन्होंने संकट के समय चीन का विरोध और भारत सरकार को पुरजोर समर्थन दिया।
ऐसे बयानों से बचने की आवश्यकता
लेकिन कांग्रेस ने इसका भी अपनी राजनीति के लिए उपयोग किया। लेकिन कांग्रेस तो नरेंद्र मोदी पर ही हमला बोलती रही। जबकि इनका सेना पर अपरोक्ष रूप में प्रभाव पड़ सकता था। ऐसे में ऐसे बयानों से बचने की आवश्यकता थी। इस समय सभी को चीन के खिलाफ ही आवाज बुलंद करनी चाहिए थी। कांग्रेस राष्ट्रीय एकजुटता के सन्देश में बाधक दिखाई दे रही थी। कांग्रेस सरकार से पूंछ रही थी कि स्थिति से निपटने के लिए भारत की सोच, नीति और हल क्या है।
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जबकि कोई सरकार युद्ध जैसी स्थिति में इस प्रकार के सवालों का जबाब नहीं दे सकती। क्योंकि इससे दुश्मन देश लाभ उठा सकता है। ऐसी रणनीति गोपनीय होती है। सैनिक कमांडरों से विचार विमर्श के बाद ही शायद उसका निर्धारण होता है। पता नहीं कांग्रेस यह सब क्यों जानना चाहती थी। जबकि केंद्रीय मंत्री पूर्व जनरल वीके सिंह ने दावा किया भारत ने भी चीन के चालीस से ज्यादा सैनिकों को मार गिराया है। बीस भारतीय सैनिक शहीद भी हो गए थे। बताया जा रहा है कि चीन ने कुछ भारतीय सैनिक पकड़े थे, बाद में उन्हें लौटाया था।
इसी तरह हमने भी चीन के सैनिक पकड़े, जिन्हें बाद में छोड़ दिया गया। उन्होंने कहा कि गलवान घाटी में जो इलाका भारत के पास था,वह अब भी हमारे पास ही है। झगड़ा पेट्रोल प्वाइंट चौदह को लेकर हैं, ये अभी भी भारत के नियंत्रण में हैं। गलवान घाटी का एक हिस्सा चीन के पास और एक हिस्सा अब भी हमारे पास है।
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