कथा सम्राट प्रेमचंद जयंती पर विशेषः संघर्ष की दास्तां सुन रो देंगे आप

Premchand Jayanti: हिन्दी कथा सम्राट प्रेमचंद की 141वीं जयंती पर इस कालजयी लेखक को नमन। जो अपने न रहने के 85 साल बाद भी भारतीय युवाओं के लिए एक आदर्श उपन्यासकार और कथाकार हैं।

Written By :  Ramkrishna Vajpei
Published By :  Chitra Singh
Update:2021-07-30 10:52 IST

मुंशी प्रेमचंद्र (कॉन्सेप्ट फोटो- सोशल मीडिया)

Premchand Jayanti: हिन्दी कथा सम्राट प्रेमचंद की 141वीं जयंती (Premchand's 141st Birth Anniversary) पर इस कालजयी लेखक को नमन। जो अपने न रहने के 85 साल बाद भी भारतीय युवाओं के लिए एक आदर्श उपन्यासकार और कथाकार हैं। हिन्द कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में 1918 से 1936 का कालखंड प्रेमचंद युग कहा जाता है। मेरा ये सौभाग्य रहा कि मेरे पिताजी स्वर्गीय मधुसूदन वाजपेयी ने 1960 में श्रीपत राय और अमृत राय के सानिध्य में सरस्वती प्रेस में नौकरी करते हुए प्रेमचंद के उपन्यासों सेवासदन, रंगभूमि, निर्मला, प्रेमाश्रम और कायाकल्प का उन्हीं की शैली में संक्षप्तीकरण किया। मेरे बाबा आचार्य किशोरीदास वाजपेयी ने प्रेमचंद के साथ सुधा और चांद जैसी पत्रिकाओं में संपादन कार्य किया।

प्रेमचंद का जीवन परिचय (Premchand Ka Jivan Parichay)- अध्यापक, लेखक, कहानीकार, उपन्यासकार और पत्रकार प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी जिले के लमही में हुआ था। उनकी मां का नाम आनन्दी देवी व पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही डाकमुंशी थे। जब प्रेमचंद सात साल के थे तो मां का साथ छूट गया। 15 साल की उम्र में विवाह कर दिया गया। और 16 साल के होते होते पिता का भी निधन हो गया। इस तरह प्रेमचंद जिनका वास्तविक नाम धनपत राय था बहुत ही संघर्ष पूर्ण रहा।

प्रसिद्ध लेखक रामविलास शर्मा की उन पर यह उक्ति सटीक बैठती है कि सौतेली मां का व्यवहार, बचपन में शादी, पंडों पुरोहितों का कर्मकांड, किसानों और क्लर्कों का दुखी जीवन यह सब प्रेमचंद ने किशोरावस्था में ही देख लिया था। और कटु यथार्थ समेटे ये अनुभव उनके कथा साहित्य में भी झलके।

प्रेमचंद (फाइल फोटो- सोशल मीडिया) 

प्रेमचंद की शादी (Premchand Marriage)

कम उम्र में शादी की बात बार-बार आने का बहुत बड़ा कारण यह है कि प्रेमचंद की पहली शादी सफल नहीं रही। खींचतान कर लगभग एक दशक चले इस विवाह के बाद 1905 में आपकी पहली पत्नी पारिवारिक कटुताओं के कारण घर छोड़कर मायके चली गई फिर वह कभी लौटकर नहीं आईं। हालांकि विवाह विच्छेद के बावजूद प्रेमचंद कुछ सालों तक वह अपनी पहली पत्नी को खर्चा भेजते रहे। इस बीच प्रेमचंद ने एक विधवा स्त्री शिवरानी देवी से शादी कर ली। प्रेमचंद की तीन संतानें (Munshi Premchand Son Name) हुई- श्रीपत राय, अमृत राय और कमला देवी श्रीवास्तव।

यह कहा जा सकता है कि दूसरी शादी के पश्चात् आपके जीवन में परिस्थितियां कुछ बदली और आय की आर्थिक तंगी कम हुई। आपके लेखन में अधिक सजगता आई। आपकी पदोन्नति हुई तथा आप स्कूलों के डिप्टी इन्सपेक्टर बना दिये गए। इसी खुशहाली के जमाने में आपकी पाँच कहानियों का संग्रह सोजे वतन प्रकाश में आया। यह संग्रह काफी मशहूर हुआ।

प्रेमचंद ने स्कूल इंस्पेक्टर के पद से दिया इस्तीफा

1921 में जब देश में असहयोग आंदोलन की लहर चली तो प्रेमचंद भी इससे अछूते नहीं रह सके और महात्मा गांधी के आह्वान पर सरकारी नौकरी स्कूल इंस्पेक्टर के पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद लेखन को ही अपना व्यवसाय बना लिया। सरस्वती प्रेस खरीदा और हंस व जागरण निकाला लेकिन वह लाभप्रद नहीं रहा। कहानी लेखन के लिए मुंबई भी गए लेकिन मायानगरी इन्हें रास नहीं आयी। बनारस लौट आए लेकिन स्वास्थ्य नहीं संभल सका और 8 अक्टूबर 1936 को कहानी जगत का यह सूर्य अस्त हो गया।

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