Rashtriya Khel Diwas 2021 : सरकार को क्या चिंतन करना होगा खेल दिवस पर

भारत के लिए इस वर्ष खेल दिवस बहुत महत्वपूर्ण है। कारण है टोक्यो ओलंपिक 2020 में जहां छोटे-छोटे देशों ने 30-35 मेडल हासिल..

Written By :  rajeev gupta janasnehi
Published By :  Deepak Raj
Update:2021-08-29 15:25 IST

राष्ट्रीय खेल दिवस 2021 फोटो सोर्स-सोशल मीडिया

भारत के लिए इस वर्ष खेल दिवस बहुत महत्वपूर्ण है। कारण है टोक्यो ओलंपिक 2020 में जहां छोटे-छोटे देशों ने 30-35 मेडल हासिल किए हो वहां भारत जैसे सशक्त राष्ट्र को सात मेडल से संतुष्ट होना पड़ा, जबकि हमारे पूर्वज शारीरिक मानसिक और खेलों की दृष्टि से बहुत मजबूत थे। आज के दिन सरकार को चिंतन करना होगा की भारत की प्रतिष्ठा (विश्व गुरु ) को खेल जगत में अच्छा प्रदर्शन करके बढ़ना होगा।


फाइल फोटो मेजर ध्यानचंद (फोटो सोर्स-सोशल मीडिया)


देश के प्रथम प्रधानमंत्री स्वर्गीय जवाहरलाल नेहरु जी ने यह बात अपने भाषण के दौरान अनेकों बार कहीं की कि अगर हम सशक्त और स्वस्थ भारत की कल्पना करते हैं जो हमें अस्पताल नहीं खेल के मैदान चाहिए। कारण जितने लोग खेलेंगे वो स्वस्थ अच्छा रहेंगे। अगर हम इतिहास के पिछले पन्नों को पलटे तो आजादी व आजाद भारत होने के उपरांत अनेकों खेल जगत में विश्वव्यापी कामयाबी और रिकॉर्ड बनाए हैं, परंतु अब ऐसा क्या हो गया कि हम खेल जगत में हष्ट पुष्ट होते हुए भी पिछड़ रहे हैं? आहार के दृष्टिकोण से भारतवर्ष हमेशा शुद्ध और पौष्टिक आहार व शारीरिक श्रम वाला देश रहा है। फिर भी एसा क्या हुआ कि हम विकास में आगे बढ़े पर खेल में पिछड़ गए? जबकि बोंर्बिटा(Bornvita),काम्प्लान(Complan)बुस्ट आदि शक्ति वर्धक होने का उत्पादक दम भरते हैं ।

राजा हरिश्चंद्र का देश भारत आजादी से पूर्व भी चारित्रिक ईमानदारी और मेहनत कश नागरिकों का देश था पर जाने अनजाने भारत को आजादी मिलते ही दिन प्रतिदिन हमारा चरित्र, ईमानदारी और कम समय में तरक्की करने हेतु साम दंड भेद अपनाने में माहिर हो गया। जिसका नतीजा है कि भ्रष्टाचार का बढ़ना और राजनीतिक इच्छा शक्ति दिन प्रतिदिन गिरने लगी इसका खामियाजा भारत के हर क्षेत्र में तो पड़ा ही पर इस का प्रकोप से खेल जगत अछूता नहीं रहा।

सरकार को आज खेल दिवस पर तीन विषयों पर मंथन करना पड़ेगा पहला की स्कूल स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक कोई भेदभाव ना हो,किसी भी जाति किसी भी धर्म किसी भी राज्य का अगर खिलाड़ी है चाहे वह आर्थिक रूप से संपन्न है या निर्धन है उसकी प्रतिभा को देखते हुए सरकार को अपनी नीति ऐसी बनानी चाहिए कि उसके उसकी निर्धनता की वजह से उसकी खेल प्रतिभा पर कोई आंच नहीं आए। हर स्तर पर सरकार द्वारा दिया गया अनुदान पूर्ण है या नहीं,अनुदान पूरा लग रहा है या नहीं इसकी समय-समय पर अकाउंटेबिलिटी देश की सर्वोच्च इन्वेस्टिगेशन संस्था के माध्यम से ऑडिट कराना चाहिए।

सरकार को इस रूप में भी ध्यान देना पड़ेगा कि जो खेल के मैदान बनाए जा रहे हैं वह विश्व स्तरीय अगर नहीं होंगे तो खिलाड़ियों को प्रदर्शन करने में विदेशी प्रतियोगिताओं में सफलता हासिल नहीं होगी। अमूमन देखा गया है कि जब खिलाड़ियों, प्रशिक्षक या मैनेजर का चयन होता है तो उसमें राजनीतिक दखलअंदाजी जरूरत से ज्यादा होती है, पहुंच रखने वाले व्यक्ति हर प्रतिभावान खिलाड़ियों को पीछा छोड़ देते हैं। ऐसे में हम अपना विश्व स्तरीय प्रदर्शन से ना केवल महरूम रहते हैं बल्कि देश की ख्याति को भी नहीं बना पाते हैं।

सरकार को यह भी मंथन करना पड़ेगा जब एक खिलाड़ी खेल में अभ्यास और अपने प्रशिक्षण को समय देता है तो उसके रोजगार के साधन उसे छूट जाते हैं। ऐसे में सरकार की नीति होनी चाहिए कि खिलाड़ियों को प्राइवेट या सरकारी या गैर सरकारी नौकरियों ( रोज़गार ) में एक विश्वास दिलाया जाए कि वह अगर इतने दिन तक इस स्तर तक प्रदर्शन करते हैं तो उन्हें सरकार की जिम्मेदारी है कि उन्हें नौकरी ( रोज़गार ) मुहिम कराई जाएगी। अक्सर देखा गया है भारत में सभी खेलों को एक निगाह से नहीं देखा जाता है, ना दर्शक देखते हैं ना सरकार का खेल मंत्रालय और खेल प्राधिकरण देखता है।

यह भी अपने आप में 1 तरीके से मतभेद की श्रेणी में आता है। कुछ खेलों को छोड़कर अन्य खेलों में अगर हम फोकस नहीं करते हैं। अतः हम प्रतियोगिता में मेडल हासिल करने से रह जाते हैं तो सरकार को इस बात का भी चिंतन करना होगा कि जब हम किसी प्रतियोगिता से लौट के आते हैं और अपना बेहतर प्रदर्शन करके खिलाड़ियों की हौसला-अफजाई करते हैं। साथ ही हमें इस बात का अवलोकन करना पड़ेगा कि हम इससे और अच्छा प्रदर्शन कैसे कर सकते थे? इसमें सरकार को अपने खेल जगत से जुड़े हुए सभी गैर सरकारी और सरकारी तंत्र के साथ खेल जगत से जुड़े हुए पुराने खिलाड़ियों के साथ अगर हम खेल जगत के पत्रकारों से साथ बैठकर मंत्रण करेंगे तो निश्चित रूप से आने वाले समय के लिए हम खेल जगत को एक अच्छी नीति और नियति देकर, उन्हें विश्व स्तरीय प्रतियोगिता के काबिल अपने खिलाड़ियों को बना पाएंगे।

अब ओलंपिक 2024 में होगा हमारे पास पूरे 3 साल हैं हमें पहली क्लास से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक के खेल-खिलाड़ी चयन समिति को बहुत ही मेहनत और मशक्कत करनी पड़ेगी कि वह अपने यहां से अच्छे खिलाड़ियों को उत्पाद करें आने वाली परेशानियों को मीडिया के माध्यम से पत्राचार के माध्यम से हर स्तर पर सरकार को जानकारी दें। ताकि सरकार खेल और खिलाड़ियों के साथ होने वाले मतभेद भ्रष्टाचार व राजनीति करने वाले लोगों के लिए कड़े से कड़े दंड का प्रावधान करें। अगर हम खेल जगत के साथ होने वाले तमाम तरह के मतभेदों को बिल्कुल एक राष्ट्रीय द्रोह के रूप में देखेंगे तो निश्चित रूप से वह दिन दूर नहीं होगा कि हर स्तर पर भारतीय खिलाड़ी अपना झंडा न केवल बुलंद करेंगे बल्कि फतेह करके देश का गौरव भी बढ़ाएंगे|

2010 में तत्कालीन जिलाधिकारी मृत्युंजय नारायण जी द्वारा टेबल टेनिस हॉल का जीर्णोद्धार कराया गया था। वह टेबल टेनिस के बहुत ही शौकीन और अच्छे खिलाड़ी थे, आज प्रशासनिक व्यक्ति के खेल जगत में हस्तक्षेप का ही परिणाम है कि आज स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया द्वारा एक जनपद एक खेल के लिए आगरा को टेबल टेनिस खेल के लिए चुना गया जो आगरा के सभी खिलाड़ियों के लिए और शहर वासियों के लिए बड़ी गौरव की बात है, पर यह गौरव का सही अनुभव हमें उस दिन होगा जब हम राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी देने वाले शहर और तमाम सम्मानित खेल जगत के पुरस्कार प्राप्त करने वाले खिलाड़ी जैसे जगबीर सिंह, विजय सिंह, दीपक चाहर,राहुल चाहर,अजित भदुरिया,अंकित,मीनाक्षी सिंह ,दीप्ति शर्मा ,पूनम यादव आदि की तरह टेबल टेनिस की प्रतियोगिता में प्रदेश का व शहर नाम रोशन करेंगे।

खेल जगत के सभी पत्रकारों से आलोचकों से समीक्षकों से और खिलाड़ियों को स्वयं से जिम्मेदारी लेनी होगी कि वह समय-समय पर प्रशासन, राज्य सरकार और केंद्र सरकार को आने वाली परेशानी या सुविधा की मांग या होने वाले भ्रष्टाचार को उन्हें जानकारी में दे। इससे समस्त खिलाड़ियों को एक मनोबल प्रदान करेंगे तभी हम खेल दिवस को मनाने का न केवल फायदा होगा बल्कि इस चिंतन से भारत का मान बढ़ेगा।

हमको इस बात पर भी चिंतन करना पड़ेगा कि आज देश की रक्षा करने वाले सिपाहियों की तरह ही हमारे खिलाड़ी होते हैं, जो अन्य देशों में जाकर हमारे मान की रक्षा करते हैं। परंतु जब वह किसी प्रतियोगिता में झंडा फहरा कर मेडल लेकर आते हैं तो कुछ समय तक तो हम उनका बहुत ही गुणगान करते हैं परंतु बाद में उनकी देखभाल न करने के कारण उनको रोजगार के साधन ना जुटा पाने के कारण उनके परिवारों की बहुत दयनीय स्थिति होती है। सब खेलों में क्रिकेट की तरह पैसा नहीं होता बाकी अन्य खेल हमेशा से आर्थिक बोझ से उनके कंधे हमेशा झुके रहते हैं और अपने जीवन यापन के लिए जूझते रहते हैं। ऐसे में हम लोगों को (सामाजिक संस्थाओं ) को भी खिलाड़ियों के आर्थिक रोजगार के साधन सरकार के साथ मिलकर उपलब्ध कराने होंगे।

खेल दिवस हर देश में अपने अपने तरीके से अलग-अलग देशों में मनाया जाता है। यह खेल दिवस हम जानते हैं की भारत में स्वर्गीय मेजर ध्यान चंद की जन्म तिथि 29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में उनको और उनके खेल प्रतिभा को सम्मान देने के लिए मनाया जाता है। जिससे खेलों से जुड़े हुए सभी खिलाड़ियों को उत्साहवर्धन और प्रेरणा मिल सके। वैसे तो खेल दिवस पर तमाम कार्यक्रम होती हैं, परंतु राष्ट्रीय भवन में भारतीय खिलाड़ियों को विशेष पुरस्कार वितरण समारोह आयोजित किया जाता है जोकि भारत के राष्ट्रपति द्वारा भारत के सर्वोच्च खेल पुरस्कार जैसे राजीव गांधी खेल रतन अब इस वर्ष से इसका नाम (मेजर ध्यानचंद खेल रतन ) पुरस्कार हो गया,अर्जुन पुरस्कार और द्रोणाचार्य पुरस्कार जैसे पुरस्कारों से खिलाड़ियों को सम्मानित किया जाता है।

खेलों में आजीवन उपलब्धि के लिए ध्यानचंद पुरस्कार दिया जाता है। ध्यान रहे यह खेल जीवन में प्रदर्शन के साथ सेवानिवृत्त होने के बाद भी खेल के उत्थान के लिए के लिए की गई कड़ी मेहनत के लिए दिया जाता है, पुरस्कार के साथ एक विचार आगे बढ़ाना पड़ेगा। फ़िल्मी कलाकार की जगह खिलाड़ियों को सिलेब्रिटी मानना होगा तभी नागरिक को उनके प्रती सहानुभूति व पैसा मिलेगा, हमें समझना होगा फ़िल्म कलाकार पैसा लेते है लेकिन खिलाड़ियों को पैसा नहीं मिलता हैं।

देश में सर्वोच्च खेल पुरस्कार राजीव गांधी खेल पुरस्कार इस का नाम अब ( ध्यानचंद खेल रत्न ) हो गया है। यह वर्ष 1991 में शुरू हुआ था अब इसमें 2500000 रुपए की धनराशि दी जाती है। दूसरा बड़ा पुरस्कार अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया जाता है जो वर्ष 1961 में शुरू हुआ था अब तक 719 खिलाड़ी 2019 तक सम्मानित किए गए थे। पुरस्कार राशि 500000 होती है। वर्ष 1985 में द्रोणाचार्य पुरस्कार जो अब तक 107 गुरुओं को यह पुरस्कार मिल चुका है इसमें ₹500000 की धनराशि दी जाती है, सभी पुरस्कारों में एक प्रतिमा,प्रमाण पत्र भी दिया जाता है। अन्य पुरस्कार ज्ञानचंद खेल पुरस्कार, मौलाना अबुल कलाम आजाद ट्रॉफी, राष्ट्रीय खेल प्रोत्साहन पुरस्कार। ऐसा नहीं है की सारी गलती खेल प्राधिकरण या सरकार की है खिलाड़ियों को भी शॉर्टकट रास्ता अपनाने का एक जुनून हो गया है। जिसके कारण वह शक्ति वर्धक टैबलेट इंजेक्शन आदि लेते हैं

जिससे वह अपना अच्छा तो प्रदर्शन कर लेते हैं पर बात खुलने के साथ ही खिलाड़ी के साथ प्रदेश और भारत सरकार की बहुत बदनामी होती है। क्यों नहीं हम खेलों में खेल भावना और राजा हरिश्चंद्र जैसी आत्मविश्वास व ईमानदारी डेवलप करें जिसका उदाहरण हाल में ही केन्या के सुप्रसिद्ध धावक अबेल मुताई ओलंपिक प्रतियोगिता में कुछ गलतफहमी के कारण वे अंतिम रेखा समझकर एक मिटर पहले ही रुक गए। उनके पीछे आनेवाले स्पेन के इव्हान फर्नांडिस के ध्यान में आया कि अंतिम रेखा समझ नहीं आने की वजह से वह पहले ही रुक गए। उसने चिल्लाकर अबेल को आगे जाने के लिए कहा लेकिन स्पेनिश नहीं समझने की वजह से वह नहीं हिला। आखिर इव्हान ने उसे धकेलकर अंतिम रेखा तक पहुँचा दिया। इस कारण अबेल का प्रथम तथा इव्हान का दूसरा क्रमांक आया। यह होती है खेल भावना।

आज समानता के दौर में जब महिलाएं कंधे से कंधा मिलाकर हर क्षेत्र में साथ दे रही हैं वहां पर खेल जगत में महिलाओं के साथ व्यवहार भी ना केवल अशोभनीय है बल्कि शारीरिक शोषण तक सुनने को मिला है। पुरुष की अपेक्षा महिला खिलाड़ियों को कमतर आँका ते हैं जबकि 2020 ओलंपिक में महिलाओं के ही प्रदर्शन से आज भारत की जान बची है ना केवल आज बल्कि कई सालों से उन्हीं के सर पर प्रतिष्ठा का दारोमदार रहता है।

आज खेल संगठनों को सामाजिक कार्यकर्ताओं को और खेल प्रेमियों को आरटीआई के माध्यम से सूचना के अधिकार के माध्यम से खेल-खिलाड़ी और खेल मैदानों की सही जानकारी लेते रहना चाहिए। ताकि स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया जैसा संगठन भी और सजग होकर खिलाड़ियों के खेल भावना को ना केवल बढ़ाएं बल्कि प्रोत्साहित करें और भारत खेल जगत में भी उसे विश्व गुरु बनाने से कोई नही रोक सकता।

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