मुसलमान बनाम मिल्लत: उइगर के चीनी दमन पर भारत पाक की खामोशी क्यों

उइगर सुन्नी मुसलमानों पर हो रहे जुल्म के मसले पर इस्लामी पाकिस्तान तो कम्युनिस्ट चीन का हमजोली था ही, अब तो भारत भी इन अल्पसंख्यक अकीदतमंदों का साथ न देकर तटस्थ हो गया है। चीन के विरोध में कम से कम 19 प्रमुख देशों ने अगले साल होने वाले शीतकालीन ओलंपिक से पहले चीन के साथ कोई भी समझौता नहीं करने का फैसला किया है।

Report :  K Vikram Rao
Published By :  Deepak Kumar
Update:2021-12-09 21:37 IST

मुसलमान बनाम मिल्लत। (Social Media)

उइगर सुन्नी मुसलमानों पर हो रहे जुल्म के मसले पर इस्लामी पाकिस्तान तो कम्युनिस्ट चीन का हमजोली था ही, अब तो भारत भी इन अल्पसंख्यक अकीदतमंदों का साथ न देकर तटस्थ हो गया है। चीन के विरोध में कम से कम 19 प्रमुख देशों ने अगले साल होने वाले शीतकालीन ओलंपिक से पहले चीन के साथ कोई भी समझौता नहीं करने का फैसला किया है। जापान, कनाडा और यहां तक कि तुर्की जैसे कई अन्य ऐसे राष्ट्र हैं, जिन्होंने चीन के साथ 'ओलंपिक ट्रूस' पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया है।

इन देशों ने किया चीन के खेलों में शिरकत करने से इनकार

ओलंपिक ट्रूस एक प्राचीन परंपरा है, जो खेल में युद्धरत पक्षों के बीच शत्रुता को समाप्त करने के लिए है, ताकि खेलों का सुचारू संचालन सुनिश्चित किया जा सके। 2022 में बीजिंग विंटर ओलम्पिक (Beijing Winter Olympics) का भारत भी पाकिस्तान से मिलकर बहिष्कार नहीं कर रहा है। हालांकि अमेरिका, जर्मनी, जापान, कनाडा, आस्ट्रेलिया, ब्रिटेन आदि ने चीन के खेलों में शिरकत करने से साफ इनकार कर दिया है। इन पाश्चात्य गणराज्यों का कहना है कि लाल चीन मानवाधिकारों के घोर उल्लंघन का दोषी है। यह खेल फरवरी 4 से 20 को होना है। चीन द्वारा उइगर मुस्लिम समाज का अमानुषिक दमन बुनियादी मुद्दा है।

कम्युनिस्ट तानाशाह इस्लामी उइगर मुसलमानों का खत्म कर देने पर उतारु

यह कम्युनिस्ट तानाशाह इस्लामी उइगर (Communist dictator Islamic Uyghur) मुसलमानों का खत्म कर देने पर उतारु है। झिनशियांग प्रांत (Xinxiang Province) के इन पूर्वी तुर्की सुन्नी मुसलमानों का दमन वीभत्स है। ताजा खबरों के अनुसार इन सुन्नी उइगर मुस्लिमों के मस्जिद बंद कर दिए गए थे। नमाज निषिद्ध है। सुअर का गोश्त अकीदतमंदों को जबरन खिलाया जा रहा है। प्रशिक्षिण शिविर में कैद कर उन्हें नास्तिक बनाया जा रहा है। अर्थात अल्लाह, खुदा आदि के अस्तित्व को ही नकारा जा रहा है। यह सब इस्लामी पाकिस्तान की मिलीभगत से हो रहा है। कराची से उइगर की राजधानी तक सीधी बस सेवा भी चालू हो गई है। भारतीयों को आश्चर्य तो इस बात का है कि म्यांमार के रोहिंग्या के लिए लहू के आंसू बहाने वाले भारत की इस्लामी तंजीमें, जमातें, अंजुमनें साजिशभरी खामोशी बनाए हुए हैं। आजतक एक भी विरोध प्रदर्शन उनके द्वारा दिल्ली की चाणक्यपुरी स्थित शांतिपथ पर निर्मित चीनी दूतावास पर हुआ ही नहीं।

उदार सूफी चिंतन से प्रभावित हैं उइगर मुसलमान

उइगर मुसलमानों के प्रति भारत सरकार (Indian Government) का रवैया काफी ढुलमुल और अवसरवादी रहा। विपक्ष में रहे थे तो अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) तब चीन के प्रखर आलोचक थे। मगर प्रधानमंत्री बनते ही उनकी नजर बदल गई। इन उइगर लोगों को कांग्रेसी प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंह राव (Congress Prime Minister PV Narasimha Rao) याद रहेंगे। उन्होंने अफगानी तालिबानियों के विरुद्ध उत्तरी सैनिक गठबंधन का साथ दिया था जिसमें उज्बेकी, ताजिक तथा हाजरा मुसलमान थे। इन सबका रिश्ता और समर्थन उइगर स्वाधीनता संघर्ष के साथ रहा है। उइगर मुसलमान उदार सूफी चिंतन से प्रभावित हैं। उनकी स्वाधीनता, विकास तथा समरसता वाली आकांक्षा को आतंकवाद कहना तथ्यों को विकृत करना होगा।

तालिबानी लोग पश्तून

उइगर मुसलमान उजबेकियों के निकट हैं जबकि तालिबानी लोग पश्तून हैं। दोनों शत्रु हैं। एक भी उदाहरण नहीं मिलता जब कोई उइगर मुसलमान किसी फिदायीन हमले का दोषी पाया या हो। चीन ने इन उइगर मुसलमानों पर आतंकवादी का ठप्पा लगा दिया है। पर उसकी दुहरी नजर में जमात-उद-दावा शांतिप्रिय जमात है, जबकि यह लश्कर का सियासी अंग है और भारत में कई वारदातों को अंजाम दे चुका है। इस वर्ष झिनशियांग की अस्सी लाख जनता चीन के आधिपत्य के छह दशक पूरा करेगी ठीक तिब्बत की भांति। सवा अरब की हान नस्ल के चीनी जन के सामने उइगर मुसलमान तो जीरे के बराबर भी नहीं हैं, लेकिन उनके विरोधी तेवर और स्वर के कारण चीन के हान बहुसंख्यक उन्हें रौंद देना चाहते हैं। बौद्ध तिब्बतियों की भांति।

आलमी इस्लाम का सपना में तोड़ा रहे तालिबान

अचरज यही है कि पड़ोस में कट्टर तालिबानी जन भी उइगर बिरादर पर हो रहे जुल्म को नजरांदाज कर रहे हैं। मानों उइगर उनके भाई नहीं है। आलमी इस्लाम का सपना में तालिबान तोड़ा रहे हैं। इस संदर्भ में मोदी सरकार को लोकतांत्रिक गणराज्यों का साथ देना चाहिये था। आक्रमणकारी चीन को अलग - थलग करने का यह सुअवसर है। एक बात और कोई भी इस्लामी राष्ट्र अबतक उइगर के पक्ष में नहीं आया। फिर कहां है इस्लामी भ्रातृत्व।

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