कानून को शराब की पटकनी

बिहार में जहरीली शराब पीकर मरने वालों की खबर दिल दहलाने वाली थी। जिस प्रांत में पूर्ण शराबबंदी हो, उसमें दर्जनों लोग शराब पीने के चलते मर जाएं और सैकड़ों लोग अधमरे हो जाएं, इसका अर्थ क्या निकला?

Written By :  Dr. Ved Pratap Vaidik
Published By :  aman
Update: 2021-11-08 04:22 GMT
शराब प्रेमियों को झटका: जाम छलकाना होगा महंगा, लागू होगी ये नई नीति

बिहार में जहरीली शराब पीकर मरने वालों की खबर दिल दहलाने वाली थी। जिस प्रांत में पूर्ण शराबबंदी हो, उसमें दर्जनों लोग शराब पीने के चलते मर जाएं और सैकड़ों लोग अधमरे हो जाएं, इसका अर्थ क्या निकला? क्या यह नहीं, कि शराबबंदी के बावजूद शराब बिहार में दनदना रही है। यह तो जहरीली थी, इसलिए इसका पता चल गया। उसने खुद अपना पता दे दिया। अपने-आपको पकड़वा दिया। लेकिन, जिस शराब के चलते लोगों को सिर्फ नशा होता है, उनकी संख्या कितनी होगी, कुछ पता नहीं। यह भी हो सकता है कि अब पहले से भी ज्यादा शराब बन रही हो, ज्यादा बिक रही हो और ज्यादा पी जा रही हो। इसमें सरकारी अधिकारियों और पुलिस वालों की भी पूरी मेहरबानी होती है।

नीतीश कुमार के साहस का मैं बड़ा प्रशंसक रहा हूं, कि उन्होंने शराबबंदी का यह साहसिक कदम उठाया। उनके पहले हमारे समाजवादी मित्र मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर ने भी बिहार में शराबबंदी कर दी थी। 2017 में जब पटना में नीतीश से मेरी भेंट हुई, तो उन्होंने मेरे आग्रह पर पटना की होटलों में शराब की जो छूट थी, उसे भी तत्काल उठा लिया था।

स्वयं नीतीश और नशाबंदी के आग्रही मेरे जैसे लोगों को इस तथ्य का जरा भी अंदाज नहीं है, कि जिन्हें शराब की लत पड़ गई है, उसे कानून से नहीं छुड़ाया जा सकता है। जिसने पीने की ठान रखी है, वह बिहार की सीमा पार करेगा और किसी अन्य प्रांत या नेपाल के सीमांत में घुसकर पिएगा। आम कंपनियों की बोतलें नहीं बिकने देगें तो वह उन्हें तस्करी से प्राप्त करेगा और यदि आपने उसे रोकने का बंदोबस्त कर लिया, तो वह घरों में बनी शराब पिएगा। घरों में बनी यह शराब पियक्कड़ों के होश तो उड़ाती ही है, उनकी जान भी ले बैठती है।

हरियाणा में बंसीलाल और आंध्र में रामाराव ने भी शराबबंदी की थी। लेकिन वह चल नहीं पाई। अब तो कांग्रेस की कार्यसमिति के सदस्यों पर से भी शराबबंदी की पाबंदी हटाई जा रही है। मेरे कई प्रधानमंत्री मित्रों को मैंने कई बार गुपचुप शराब पीते हुए देखा है। लेकिन मैं ऐसे सैकड़ों आर्य समाजियों, सर्वोदयियों, गांधीवादियों, रामकृष्ण मिश्नरियों और मुसलमानों को भी जानता हूं, जिन्होंने लाख आग्रहों के बावजूद शराब की एक बूंद भी जीवन में कभी नहीं छुई।

मैं जब मास्को में पढ़ता था, तो यह देखकर दंग रह जाता था कि कम्युनिस्ट नेताओं के साथ-साथ पादरी लोग भी चलती मेट्रो रेल में बेहोश पड़े होते थे। वैसे इस्लामी देशों और भारत में शराब का प्रचलन उतना नहीं है, जितना यूरोपीय और अफ्रीकी देशों में है। इसका मूल कारण बचपन में पड़े दृढ़ संस्कार हैं। कानून तभी अपना काम करेगा, जब पहले माता-पिता और शिक्षक गण बच्चों में नशा-विरोधी संस्कार पैदा करेंगे।

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