Venkaiah Naidu Speech: हम विश्व गुरु हैं या विश्व-चेले ?

Venkaiah Naidu Speech: पिछले सप्ताह गोवा के एक कॉलेज-भवन का उद्घाटन करते हुए उप-राष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने इस बात पर बड़ा जोर दिया है कि प्राचीन काल में भारत विश्व गुरु था।

Written By :  Dr. Ved Pratap Vaidik
Published By :  Chitra Singh
Update: 2021-10-31 01:57 GMT

वेंकैया नायडू (फाइल फोटो- सोशल मीडिया) 

Venkaiah Naidu Speech: उप-राष्ट्रपति वेंकैया नायडू (Venkaiah Naidu) ने अपने पिछले कई भाषणों (venkaiah naidu speech) में इस बात पर बड़ा जोर दिया है कि प्राचीन काल में भारत विश्व गुरु (vishva guru bharat) था और अब उसे वही भूमिका निभाना चाहिए। इसी बात पर उन्होंने पिछले सप्ताह गोवा के एक कालेज-भवन का उद्घाटन करते हुए अपना तर्कपूर्ण भाषण दिया। आश्चर्य है कि हमारे कोई भी शिक्षा मंत्री इस तरह के विचार तक प्रकट नहीं करते। उन्हें अमली जामा पहनाना तो बहुत दूर की बात है। इस मोदी सरकार (Modi Sarkar) ने शिक्षा मंत्री की जगह राजीव गांधी सरकार द्वारा गढ़ा गया फूहड़ शब्द 'मानव संसाधन मंत्री' बदल दिया, यह तो अच्छा किया । लेकिन क्या हमारे शिक्षा मंत्रियों और अफसरों को पता है कि विश्व-गुरु होने का अर्थ क्या है (vishva guru ka arth Kya Hai)? यदि उन्हें पता होता तो आजादी के 74 साल बाद भी हम विश्व गुरु नहीं, विश्व चेले क्यों बने रहते ?

अंग्रेजी राज ने हमारी नस-नस में गुलामी और नकल का खून दौड़ा रखा है। हमारे बड़े से बड़े नेता हीनता ग्रंथि से ग्रस्त रहते हैं। हमारे वैज्ञानिक और तकनीकी विशेषज्ञ पश्चिम की नकल में व्यस्त रहते हैं। हमारी लगभग सारी शिक्षण संस्थाएं अमेरिकी और ब्रिटिश स्कूलों और विश्वविद्यालयों की नकल करती रहती हैं। अपने आप को बहुत योग्य और महत्वाकांक्षी समझनेवाले लोग विदेशों में पढ़ने और पढ़ाने के लिए बेताब रहते हैं। इन देशों के छात्र और अध्यापक क्या कभी भारत आने की बात भी उसी तरह सोचते हैं, जैसे सदियों पहले चीन से फाहयान और ह्वेनसांग आए थे? भारत के गुरुकुलों की ख्याति चीन और जापान जैसे देशों तक तो थी ही, मिस्र, इटली और यूनान तक भी थी। प्लेटो और अरस्तू के विचारों पर भारत की गहरी छाप थी। प्लेटो के 'रिपब्लिक' में हमारी कर्मणा वर्ण-व्यवस्था का प्रतिपादन पढ़कर मैं आश्चर्यचकित हो जाया करता था। मेकियावेली का 'प्रिंस' तो ऐसा लगता था, जैसे वह कौटिल्य के अर्थशास्त्र का हिस्सा है।

इमेनुअल कांट और हीगल के विचार बहुत गहरे थे । लेकिन मैं उन्हें दार्शनिक नहीं, विचारक मानता हूं। कपिल, कणाद और गौतम आदि द्वारा रचित हमारे छह दर्शनग्रंथों के मुकाबले पश्चिमी विद्वानों के ये ग्रंथ दार्शनिक नहीं, वैचारिक ग्रंथ प्रतीत होते हैं। जहां तक विज्ञान और तकनीक का सवाल है, पश्चिमी डॉक्टर अभी 100 वर्ष पहले तक मरीज़ों को बेहोश करना नहीं जानते थे, जबकि हमारे आयुर्वेदिक ग्रंथों में ढाई हजार साल पहले यह विधि वर्णित थी। अब से 400 साल पहले तक भारत विश्व का सबसे बड़ा व्यापारी देश था। समुद्री मार्गों और वाहनों का जो ज्ञान भारत को था, किसी भी देश को नहीं था। लेकिन विदेशियों की लूटपाट और अल्पदृष्टि ने भारत का कद एकदम बौना कर दिया। अब आजाद होने के बावजूद हम उसी गुलाम मानसिकता के शिकार हैं। वैंकेय्या नायडू ने पश्चिम की इसी चेलागीरी को चुनौती दी है। भारतीय शिक्षा और भारतीय भाषाओं के पुनरुत्थान का आह्वान किया है।

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