हमें कई करतारपुर चाहिए

भारत और पाकिस्तान के बीच करतारपुर गलियारे के बारे में कल समझौता हो गया। क्या यह गजब नहीं हुआ? मैं तो इसे गजब ही मानता हूं।

Update:2019-10-26 16:10 IST

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

लखनऊ: भारत और पाकिस्तान के बीच करतारपुर गलियारे के बारे में कल समझौता हो गया। क्या यह गजब नहीं हुआ? मैं तो इसे गजब ही मानता हूं। दोनों देशों के बीच आजकल जितना तनाव है, वैसी हालत में उसके नेता और अफसर एक-दूसरे की सूरत देखना भी पसंद नहीं करते लेकिन कमाल है कि पाकिस्तान ने अपनी सीमा में बने गुरु नानकजी के पुण्य-स्थान की यात्रा के लिए 5 हजार भारतीयों को वहां रोज दर्शन करने की अनुमति दे दी। कुछ लोग कह सकते हैं कि यह पाकिस्तान की चाल है। वह सिखिस्तान की मांग को हवा देने के लिए यह फिसलपट्टी लगा रहा है।

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सिर्फ सिख ही नहीं, कोई भी भारतीय बिना वीजा लिए जा सकता है करतारपुर

यदि ऐसी नकारात्मक कल्पनाओं में कुछ दम हो, तब भी यह मानना पड़ेगा कि इमरान सरकार ने सिख संप्रदाय और भारतीयों के लिए उदारता दिखाई है। सिर्फ सिख ही नहीं, कोई भी भारतीय बिना वीजा लिए सुबह करतारपुर जाकर शाम तक लौट आ सकेगा। जहां तक 20 डाॅलर (1400 रु.) की फीस का सवाल है, इसमें शक नहीं कि यह थोड़ी ज्यादा है। यह 500 या 1000 रु. होती तो बेहतर होता लेकिन आखिर पाकिस्तान सरकार को करतारपुर में व्यवस्था जमाए रखने के लिए काफी खर्च भी करना पड़ेगा। उसे 70-80 लाख रु. रोज की आमदनी भी हो जाएगी।

मैं पूछता हूं कि ऐसा ही इंतजाम पाकिस्तान के सिंध, बलूच और पख्तून इलाकों में भारतीय हिंदुओं, सिखों और मुसलमानों के अन्य श्रद्धा-केंद्रों के लिए क्यों नहीं हो सकता? यह ठीक है कि ये यात्राएं करतारपुर की तरह साढ़े चार कि.मी. और एक दिन की नहीं होंगी लेकिन उनका भी रास्ता निकाला जा सकता है। मैंने तो पाकिस्तान के सभी प्रदेशों में खुद जाकर ऐसे श्रद्धा-केंद्रों को देखा है। यही काम भारत भी करे।

मिलनी चाहिए दिल्ली व अजमेर की दरगाह की इजाजत

दिल्ली में निजामुद्दीन और अजमेर की दरगाह तथा आगरा में ताजमहल को देखने की इजाजत मिल जाए तो हजारों पाकिस्तानी रोज भारत आने लगेंगे। एक-दूसरे से मिलेंगे तो कई गलतफहमियां दूर होंगी। आपसी प्रेम बढ़ेगा। लेकिन यह होगा कैसे ? सबसे पहले आतंकवाद पूरी तरह खत्म हो और दोनों देशों की सरकारों को यह भरोसा हो कि इस छूट का वे दुरुपयोग नहीं करेंगी।

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मैं तो चाहता हूं कि दक्षिण एशिया के सारे देश ऐसी छूट एक-दूसरे को दे दें ताकि पारपत्र और वीजा का झंझट खत्म हो। यही आगे चलकर दक्षिण एशिया की साझा संसद, साझा बाजार, साझा रुपया और साझा महासंघ बन जाए। करतारपुर से इस महान कार्य की प्रेरणा मिल जाए तो अगले दस साल में हमारा दक्षिण एशिया यूरोप से भी अधिक संपन्न और खुशहाल हो सकता है।

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