Welcome New Year 2024: नए साल का स्वागत दृढ़ संकल्प और विश्वास के साथ

Welcome New Year 2024: नया साल उस सुकुमार बालक की तरह होता है जिसको हम अपने अनुसार जैसा चाहे वैसा ढाल सकते हैं, बना सकते हैं अपनी-अपनी क्षमताओं का उपयोग करके।

Written By :  Anshu Sarda Anvi
Update:2023-12-31 15:45 IST

नए साल का स्वागत दृढ़ संकल्प और विश्वास के साथ: Photo- Social Media

Welcome New Year 2024: एक और साल हम सबके जीवन से विदा लेने के लिए दरवाजे पर खड़ा है। नया साल दरवाजे के दूसरी ओर से अंदर आने का इंतजार कर रहा है। जाता हुआ साल उस वृद्ध पिता की तरह होता है जो कि हमें बहुत सारी शिक्षाएं और अनुभव देकर, समझा कर, बताकर, दिखाकर, चेताकर बाहर जा रहा होता है। नया साल उस सुकुमार बालक की तरह होता है जिसको हम अपने अनुसार जैसा चाहे वैसा ढाल सकते हैं, बना सकते हैं अपनी-अपनी क्षमताओं का उपयोग करके। इस साल देश ने मणिपुर हिंसा, हेट स्पीच, नया संसद भवन, भीषण रेल त्रासदी, चांद पर इसरो की पहुंच, उत्तराखंड में सुरंग से निकले मजदूरों को नया जीवन, महिलाओं को 33 फ़ीसदी आरक्षण, डीपफेक वीडियोज, पांच राज्यों के चुनाव परिणाम, विश्व कप क्रिकेट में भारत की हार, कुश्ती पहलवानों का दंगल, फेक न्यूज़, पेपर लीक, एशियाई खेलों में शतकीय पदक जैसी घटनाएं देखी हैं। आज जब हम आगत और विगत दोनों सालों के बीच में खड़े हैं तो यह हमारा दायित्व बनता है कि हम पिछले साल की घटनाओं का एक पुनरावलोकन करें और नए साल का स्वागत नए संकल्पों से करें।

सेतु का साल

दुनिया का हर आदमी अपने भविष्य की एक अच्छी कल्पना करता है, जहां वह शुद्ध पानी, शुद्ध हवा और एक बेहतरीन जीवन स्तर के बारे में सोचता है। क्या हमारे देश के नागरिकों को यह मिल रहा है? हम अपने वरिष्ठ नागरिकों और बच्चों को क्या दे रहे हैं? ज़हरीली हवा और गंदा पानी। देश के किस शहर को हम रहने की दृष्टि से बेहतर और योग्य कहेंगे? देश के नागरिकों की शारीरिक अस्वस्थता का यह भी एक बड़ा कारण है और उसके बाद उन्हें बीमारी की हालत में कितनी जल्दी और कितनी मुफीद चिकित्सीय सहायता मिल पाती है, यह भी एक जरूरी बात है। जब हम शहरों की बात करते हैं तब यहां प्रत्येक दस हजार नागरिकों पर मात्र एक डॉक्टर की उपलब्धता है, तो गांवों की बात करना तो बेकार ही है । क्योंकि वहां के हालात तो और भी अधिक बदहाल ही होंगे।

हमारे देश में शिक्षा लगातार महंगी होती जा रही है, कारण कि शिक्षा और चिकित्सा दोनों क्षेत्र अब कॉरपोरेट सेक्टर के हवाले हो चुके हैं। इन दोनों में सेवा और परोपकार की भावना लुप्त हो चुकी है। देश में हर थोड़े समय में एक नई सुपरफास्ट ट्रेन चालू हो रही है, फिर भी जनसाधारण के हाथों में ट्रेन की सामान्य सुविधाएं तक उपलब्ध नहीं है। लगातार बढ़ती परिवहन सुविधाओं के बाद भी देश की जनता आज भी कहीं खड़े होकर, कहीं ट्रेन की छत पर बैठकर और कहीं दो सीटों के बीच में फर्श पर सोकर अपनी यात्रा करने के लिए मजबूर है। महिलाओं की बात करें तो भले ही चुनावों में 33 फ़ीसदी आरक्षण का विधेयक संसद द्वारा पारित हो चुका है । लेकिन ऊंचे ओहदों और नाम वाली महिलाओं को भी अपने सम्मान और पुरुष उत्पीड़न के खिलाफ लड़ना पड़ रहा है तो आम महिला के प्रति अत्याचारों को तो किस श्रेणी में रखा जाएगा, उनकी सुनवाई कौन करेगा? बलात्कार और यौन उत्पीडन की घटनाओं पर अंकुश कैसे लगेगा? मणिपुर में महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमाने और यौन उत्पीड़न के वीडियो वायरल होने की घटना अभी अधिक पुरानी नहीं हुई है कि देश उसे भूल जाए।

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उम्मीद जगाता वर्ष

देश का अन्नदाता भी बुरे हालातों का शिकार है। आत्महत्या करने को मजबूर है और एक हम हैं कि उस अनाज की कीमत नहीं समझते हैं। हमारे देश की 74 फ़ीसदी जनता आज भी पोषक भोजन से वंचित है। हमारे देश में चहुं ओर, बहुत तेजी से विकास हो रहा है। पर यह किस तरह का विकास है सिर्फ भौतिक और आर्थिक? नए-नए बनते पुल, स्मारक, ऊंची मूर्तियां, नई टनल्स, रेल गाड़ियों की दूर-दराज तक पहुंच, बड़े-बड़े मॉल्स , नए हवाई अड्डे, पहाड़ों को काटकर बनते रास्ते सभी कुछ तो हो रहा है विकास के लिए, फिर कमी क्या है? कमी है। लोग भावनात्मक रूप से, मानसिक रूप से विकसित होने की जगह अधिक उग्र और संवेदनहीन होते जा रहे हैं। कटते पेड़, घटते जंगल, सिकुड़ती नदियां, खत्म होते जलाशय....कहां जा रहा है मेरा देश? नई टेक्नोलॉजी ने लोगों को एक हथियार दे दिया है जो प्रयोग करने में सरल, सुगम और सुलभ भी है। लेकिन उसे अगर ठीक से प्रयोग नहीं किया जाए तो उससे फायदा नहीं बल्कि नुकसान अधिक दिखाई दे रहा है।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस अपना प्रभाव बढ़ाता जा रहा है। यह रोजगार कम करता जा रहा है। आम आदमी हैरान और परेशान है। मणिपुर हिंसा और अन्य शहरों में होती रही छोटी-बड़ी हिंसा देश के लोगों को इस साल परेशान करती रही। साथ ही लोगों का उग्र होता स्वभाव विशेषकर युवा पीढ़ी का बात-बात पर उत्तेजित होकर किसी को मारना-पीटना या हत्या कर देना अब जैसे एक आम घटना हो चुकी है। भारत एक अहिंसक प्रकृति का देश माना जाता है क्योंकि यह गौतम और महावीर का देश है। लेकिन हर साल होने वाली ये हिंसा की घटनाएं इस बात को झुठला देती हैं।

नये आयाम की ज़रूरत

तो हमें क्या करना चाहिए? क्या बीते साल की दुर्घटनाओं पर मातम करके आने वाले नए साल, नए सवेरे को स्वागत न करें या मातमपुर्सी में ही दिन निकाल दें। रुकिए! नया साल नए संकल्पों को लेने का दिन होता है, कुछ अच्छा हासिल कर, कुछ बुरा छोड़ देने का दिन होता है। यह नया साल हमें अपनी जिंदगी बदलने का उत्साह देता है। ऐसा नहीं है कि कोई जादू की छड़ी घूमी और कैलेंडर में नए साल का पहला दिन आते ही हमारी सारी मुश्किलें हल हो गईं। हर रोज का सूरज एक नया दिन लेकर ही तो आता है हम सबके लिए। कुछ समय पहले तक लोग यह मानते थे कि अभी तक जो हुआ सो हुआ । लेकिन अब नए साल से अपनी जिंदगी को एक नया आयाम, नई शुरुआत देंगे और नए साल पर कोई न कोई रिजोल्यूशन जरूर लेते थे, वह चाहे फिर पूरा ही न हो पाए। लेकिन अगर उसे कुछ समय के लिए भी अपना लेते तो इसका सकारात्मक परिणाम जरूर देखने को मिलता था। लेकिन आज लोग रिजोल्यूशन नहीं लेते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि अब हमारी इच्छा शक्ति इतनी कमजोर हो चुकी है कि हम अपने लक्ष्य को साधना ही भूल गए हैं।

कोई भी सफलता चाहे वह छोटी हो या बड़ी, किसी भी काम को समय से पूरा करने पर निर्भर होती है और इसके लिए हमें स्वयं को अपने लिए एक डेडलाइन निर्धारित कर देनी चाहिए। कितने लोग होते हैं जो अपने लक्ष्य के बारे में बात नहीं करते हैं क्योंकि अगर वे उसके बारे में बात करेंगे तो उनके ऊपर दबाव पड़ने लगेगा। लेकिन यह बात भी उतनी ही सच है कि कभी-कभी हम दबाव में ही अच्छा काम कर पाते हैं । क्योंकि वह हमें कुछ हासिल करने की, कुछ बड़ा करने की प्रेरणा देता है। कुछ बड़ा करने से ही लोग बड़े नहीं होते नहीं बल्कि छोटे-छोटे काम करने से भी लोग दूसरों के दिलों-दिमाग में जगह बनाते हैं। सबकी यादों में रहते हैं। यह संकल्पों का दिन है। इसलिए बेफिजूल की टीका -टिप्पणी से बेचैन होकर अपना रास्ता न तो छोड़े और न ही बदलें । पुरुषार्थ को छोड़कर भागोवादी या भाग्यवादी न बनें। यह एक जानी हुई बात है कि कोई भी आदमी टोका टोकी या टीका टिप्पणी से नहीं बल्कि अपने अनुभव से बड़ा बनता है। अगर हमें भी आगे बढ़ना है तो अपनी कार्य कुशलता को बढ़ाना होगा। अपनी आंतरिक शक्ति का विकास करना होगा। खुद को जानना-समझना होगा, अपने मन की परतों को खोलना होगा।

मंगलमय हो

वक्त के साथ जो हमें अनुभव मिले हैं, वे हीं हमारी अपनी कमाई होते हैं क्योंकि वे हीं हमारे हौसलों को नया प्लेटफार्म देते हैं, मजबूत बनाने में मदद करते हैं, नया रास्ता चुनने में मदद करते हैं। जब हम दूसरों की राय को अधिक प्राथमिकता देते हैं तो वह हमें अपनी शांति और सुकून से हमेशा के लिए दूर कर देती है। लेकिन बहुत जरूरी है कि खुद को बनाए रखने के लिए, अपने नए सपनों को बढ़ाने के लिए हम स्वयं पर स्वयं को ही प्राथमिकता दें। स्वार्थी न बने लेकिन अपनी शांति और सुकून के लिए दूसरों की इच्छाओं को अपने ऊपर न लाद लें। इसलिए हर दिन को नया बनाकर जिएं। बेहतर भविष्य के लिए सपने जरूर देखें। अगर नए सपने नहीं देखेंगे तो नया कुछ कैसे करेंगे। समवेत प्रयास हम सबका यही होना चाहिए कि हम अधिक ऊर्जावान बनें, अपने आसपास के अधिकाधिक जीवन से खुश भी रहे और प्रेरित भी हों। नए साल, नए दिन और नए सवेरे का स्वागत दृढ़ संकल्प से, दृढ़ विश्वास से और पूरी आशा के साथ करें। आप सभी का नव वर्ष मंगलमय हो।

(लेखिका वरिष्ठ स्तंभकार हैं ।)

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